(लाल)
मात बिना को लाड़ लड़इहै
को उठ भोर कलेवा देहै?
मात पिता दीन्हे सुख जैसे
ते बीते सुख सपने जैसे!
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(पद्माकर)
मो बिन माय न खात कछू पद्माकर त्यों भई भाभी अचेत हैं
वीरन आये लिवायवे को तिनकी मृदु बानी हु मानि न लेत हैं
प्रीतम को समुझावत क्यों नहिं ए सखि तू जो पै राखति हेत है
और तो मोहि सबै सुख री दुख री यह माइके जान न देत है
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सीय बिलोकि धीरता भागी रहे कहावत परम बिरागी
लीन्हि राय उर लाइ जानकी मिटी महामरजाद ज्ञान की
(तुलसीदास)
But such emotions are beyond the reach of femists...
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