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Aug 20, 2021, 17 tweets

हमारे कुछ मित्र बोल रहे हैं कि अफगानी पठान नहीं बल्कि फटान है..
तभी वे अपने घर की महिलाओं और बच्चों को तालिबान में ही छोड़कर भाग रहे..!

जबकि, ऐसी बात नहीं है..!

ये अफगानी आज के फटान नहीं हैं बल्कि सैकड़ों वर्षों से फट्टू ही हैं.
#AfghanTaliban

आज से लगभग 1000 साल पहले ये पूरा इलाका हिंदुस्तान ही हुआ करता था और वे लोग हिन्दू.

लेकिन, कटेशरों के हमले से सबसे पहले डरकर पिस्लाम कबूल करने वाले वही लोग थे.

वे कितने बड़े फट्टू अर्थात फटान कैटेगरी के लोग हैं इसका अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि...

आज जो वहाँ आप सड़क, स्कूल, पार्क, एयरपोर्ट , बांध, संसद आदि देख रहे हैं वो हमने महज इन 10 सालों में उन्हें बना दिया है ताकि वे फट्टे भी कम से कम इंसानों की सी जिंदगी जी सकें.

इसी से आप कल्पना कर सकते हैं कि... आज से महज 20 साल पहले वहाँ क्या रहा होगा ???

ना तो वहाँ ढंग की सड़क थी, ना बिजली, ना अस्पताल , ना स्कूल और न ही कोई बुनियादी सुविधा.

कुछेक शहरी इलाके के अलावा अधिकांश लोग कबीले में रहते थे..

अफीम की खेती करते थे और चरस फूंक के पड़े रहते रहते थे.

एक दूसरे की औरत की लूटते थे और पिस्लाम मजबूत करते थे.

और, ये सब महज 20-25 साल पहले का हाल था.

तो, ये सहज कल्पना की जा सकती है कि आज से 1000 साल पहले वहाँ की स्थिति कैसी रही होगी ???

फिर भी, वे इतने बड़े फट्टू निकले कि सालों ने आक्रमणकारी के डर से ही खतना करवा लिया और खुद के खतना धारी होने पर गर्व महसूस करने लगे.

जहाँ तक बात रह गई कि गजनवी ने 2-2 दीनार में हिन्दू महिलाओं को बेचा था तो कृपया इसकी तथ्यात्मक जांच कर लें

गजनी से दिल्ली की दूरी लगभग 1000 किलोमीटर है.
और, उस समय ना तो सड़क थी ,ना ही ट्रेन या हवाई जहाज...

तो, वे लोग हजारों महिलाओं को 1000 किलोमीटर तक कैसे ले गए थे ??

रास्ते में उतने लोगों के खाने पीने और रहने का इंतजाम कैसे हुआ होगा ???

और, बिना खाये पिये और आराम किये कोई आज की तारीख में भी 1000 किलोमीटर पैदल चल सकता है क्या ???

इसीलिए, मेरे ख्याल से अगर ऐसा कुछ हुआ भी होगा तो वो सीमांत इलाके के लोगों के साथ हुआ होगा...

जो कि, आज बलूचिस्तान, पिग्गिस्तान आदि है.

चूंकि, उस समय वो सब इलाका हिंदुस्तान ही कहा जाता था इसीलिए उन्होंने इसे हिंदुस्तान ही लिख दिया.

और, जहाँ तक उसके भारत से रिश्ते की बात है तो... अफगानिस्तान 1834 तक भारत का ही हिस्सा था...

फिर,1834 मे प्रकिया के तहत 26 मई1876 को रूसी व ब्रिटिश शासकों (भारत)के बीच गंडामक संधि के रूप में निर्णय हुआ और अफगानिस्तान नाम से एक बफर स्टेट अर्थात राजनीतिक देश को दोनों ताकतों के बीच स्थापित किया गया
इससे,अफगानिस्तान अर्थात पठान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम से अलग हो गए

और, 18 अगस्त 1919 को अफगानिस्तान को ब्रिटिश शासन से आजादी मिली.

तो, यह एक स्थापित सत्य है कि जब अफगानिस्तान 1834 ईसवी तक हिंदुस्तान ही था तो उसने फिर किस हिंदुस्तान की महिलाओं को बेचा था ???

और... लंगड़ा तैमूर, गजनवी, गोरी, लोदी-फोदी किस अफगानिस्तान से आये थे ???

क्योंकि, उस समय तो अफगानिस्तान का कोई अस्तित्व ही नहीं था और न ही इसका नाम अफगानिस्तान था बल्कि सारा का सारा प्रदेश हिंदुस्तान ही था.

और, सबसे बड़ा सवाल जो शुरू में किया था कि... अगर पठान पीठ दिखा कर नहीं भागते हैं और अजेय होते हैं तो...

फिर, कटेशरों के कुछ ही हमले में वे हार कैसे गए और सबसे कलमा कैसे पढ़ लिया ???

असलियत यही है कि... वे फट्टू थे और आज भी फट्टू ही हैं.

क्योंकि, उनकी तुलना अगर हमलोग खुद से करें तो आज 1000 साल के लंबे हमले के बाद भी हममें से अधिकांश आबादी हिन्दुओं की ही है.

अगर... भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान को भी मिला दें....
फिर भी... (भारत के) 20 +(पिग्गिस्तान के) 20 + (अफगानिस्तान के) 5 + (बांग्लादेश के) 17 = 65 करोड़ ही बैठते हैं.

जबकि... अकेले हम हिन्दुओं की ही आबादी 100 करोड़ से ज्यादा है.

तो..

तो
तलवार के डर से सलवार उतार कर कटेशर बन जाने वाली कौम ज्यादा बहादुर हुई या तलवार से तलवार टकरा कर कटेशरों को औकात दिखाने वाले हम हिन्दू ज्यादा बहादुर हुए ??
मतलब बिल्कुल साफ है कि.

फ़िल्म जंजीर में फटान बने प्राण ने जो डायलॉग कहा था कि "पठान मर जायेगा, मगर पीठ दिखाकर नही भागेगा" वो पूर्णतया गलत था और वो डायलॉग अपने मजहबी भाइयों को ग्लोरीफाई करने के लिए बुलवाया गया था.

क्योंकि, उस जंजीर फ़िल्म के डायलॉग लेखक सलीम जावेद थे जिसमें से सलीम खान पठान है ..

अफगानिस्तान से आया था.
जबकि,आज पूरी दुनिया देख रही है ये पठान पीठ दिखाकर भागना तो छोड़िए अपनी महिलाओं और बच्चों को छोड़कर भागरहे हैं
जो यह साबित करने के लिए काफी है कि ये सब साले कुछ नहीं है

और,हमारे इतिहास की किताबों और फिल्मों के माध्यम से सबके बारे में सिर्फ हवा बना दी गई थी

जबकि, हकीकत में ये बिल्कुल फट्टू-फटान कौम है.

इसीलिए, इन लफंगों से डरने अथवा भयभीत होने की कोई जरूरत नहीं है.

क्योंकि, जो फट्टू साले मुगलों और तुर्कों से नहीं लड़ पाए वे मुगलों और तुर्कों को धूल चटाने वाले हम हिन्दुओं से भला क्या लड़ पाएँगे.

जय महाकाल...!!!

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