यह बात इतिहास में कही नही मिलेगी
प्राथमिक शिक्षा में जब बच्चे को देवनागरी वर्णमाला का अध्ययन कराया जाता है तो ठ अक्षर से ठठेरा शब्द का उच्चारण बच्चा करता है .. मैकाले की शिक्षा में हम केवल अक्षर ज्ञान तक सीमित रहे गौरवशाली ऐतिहासिक ठठेरा समाज के विषय में नहीं जान पाए ....
ठठेरा समाज पर समाजशास्त्रीय अध्ययन बहुत कम हुआ... जिसकी राजस्थान मध्य प्रदेश उत्तर प्रदेश बिहार बंगाल में एक 30 लाख से अधिक आबादी है यह समाज पीतल तांबे कांसा के उत्कृष्ट बर्तन बनाने में माहिर है अधिकतर बर्तन का कारोबार करते हैं।
बॉलीवुड की सर्वाधिक कमाई करने वाली बाहुबली फिल्म तो आपने देखी होगी फिल्म मैं महिष्मति साम्राज्य का उल्लेख किया गया है
महिष्मति कोई काल्पनिक नगरी नहीं थी यह महाभारत कालीन अवंती महाजनपद की समृद्धशाली शक्तिशाली राजधानी थी
जो मध्य प्रदेश के नर्मदा नदी के किनारे बसी हुई थी...
हैहेय वंश के क्षत्रियों की यह नगरी थी !
महाभारत काल में सर्वाधिक शक्तिशाली सहस्त्रबाहु नाम का राजा इसी वंश का था आज का ठठेरा समाज महाराज सहस्त्रबाहु का वंशज है .... प्रत्येक वर्ष ठठेरा समाज उनकी जयंती मनाता है कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा को मनाई जाती है।
महाराज सहस्त्रबाहु को लेकर कुछ मान्यताएं यह भी प्रचलित है कि उनकी हजारों भुजाएं थी ऐसा इसलिए हो सकता सकता है वह बहुत पराक्रमी थे
भगवान परशुराम ने उन का वध किया था भगवान परशुराम से उनके युद्ध हुए थे महाराज सहस्त्रबाहु परशुराम के पिता महर्षि जमदग्नि की कामधेनु गाय को लेकर आ गए थे
जबरन परशुराम ने सहस्त्रबाहु का मस्तक काटकर गाय अपने पिता जमदग्नि को सौंपी मौका पाकर बदले की भावना से महाराज सहस्त्रबाहु के पुत्रों ने ध्यान मग्न महर्षि जमदग्नि का मस्तक काट दिया इस घटना से कुपित होकर ऋषि परशुराम ने महिष्मति सहित वहां के सभी क्षत्रियों का सर्वनाश कर डाला
उसी समय से परंपरा है कि हैहेय वंशी क्षत्रिय अपनी पहचान छुपाकर परशुराम के भय से बर्तन निर्माण का कार्य करने लगे ।
महाभारत के भीषण संग्राम का आर्थिक ही नहीं सामाजिक प्रभाव भी भारतवर्ष की सामाजिक व्यवस्था के ऊपर पड़ा है
जो समाज कभी क्षत्रिय थे वह आज अन्य पिछड़ा वर्ग अनुसूचित जनजाति में गिने जाते हैं यह एक अध्ययन का विषय है ठठेरा समाज उन्हीं में से है आज यह अन्य पिछड़ा वर्ग कहीं-कहीं अनुसूचित जनजाति में शामिल है । जैसे भील जनजाति लोहारों को महाराणा प्रताप का वंशज बताया जाता है!
ठठेरा महाभारत कालीन भारत में चंद्रवंशी क्षत्रिय थे जिन्होंने अन्य क्षत्रियों की भांति धातु के विषय में विशेष ज्ञान होने के कारण क्योंकि क्षत्रियों का धातु से बने हथियारों से वास्ता पड़ता था
महाभारत के भीषण संग्राम के दुष्परिणाम स्वरूप,
परशुराम के साथ हुए युद्ध के कारण बर्तन निर्माण के पेशे को स्वीकार कर लिया... आपको आश्चर्य होगा यूनेस्को की सांस्कृतिक विरासत की सूची जारी होती है जो 200 देशों के लिए जारी होती है ..भारत से केवल 12 चीजों को शामिल किया गया है जिनमें योग,
, कुंभ ,वेद, केरल की नृत्य शैली, बौद्ध के मठ सहित ठठेरे समाज के बर्तन निर्माण के कला कौशल को यूनेस्को सांस्कृतिक विरासत के तौर पर शामिल किया गया है। राजस्थान, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में यह समाज काफी समृद्ध है लेकिन बिहार मध्य प्रदेश में इनकी स्थिति दयनीय है.
समाज के 246 से अधिक गोत्र है जिनमें ताम्रकार पतेहरा कसेरा टकसाली आदि शामिल है...।
यह पोस्ट एक छोटा सा प्रयास है जो भविष्य में भी जारी रहेगा ऐसे गौरवशाली हुनरमंद समाजों को आम जनमानस से परिचित कराने के लिए..।
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