बिहार में #Urdu को राजकीय भाषा बनाने के लिए जिन लोगों ने तहरीक चलाई, उनमें ग़ुलाम सरवर साहब, मौलाना बेताब सिद्दीक़ी साहब, शाह मुश्ताक़ साहब, प्रोफ़ेसर अब्दुल मुग्नी साहब, कलीम आजिज़ साहब, तक़ी रहीम साहब का नाम सबसे अहम है, इसके इलावा जिस इंसान की सियासी सरपरस्ती से इस .. 1/5)
.. तहरीक को मज़बूती मिली वो थे कर्पूरी ठाकुर साहब।
16 अक्तूबर 1978 को अंजुमन इस्लामिया हॉल में बिहार रियासती अंजुमन तरक़्क़ी ए उर्दू की जनरल कौंसिल मीटिंग में बिहार उर्दू एकेडमी के अध्यक्ष के रूप में बिहार के उस समय के मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर ने कहा के वो उर्दू को भी.. 2/5
..हिन्दी, बंगला, उड़िया, गुजराती, मराठी भाषा की तरह तरक़्क़ी देना चाहते हैं।
बिहार उर्दू एकेडमी के उपाध्यक्ष के रूप में बिहार के शिक्षा मंत्री ग़ुलाम सरवर साहब ने सात ख़ास काम के लिए उर्दू ज़ुबान के इस्तेमाल को क़ानूनी दर्जा देने का एलान किया। बाद में जनता पार्टी की सरकार.. 3/5
..गिर गई, फिर 1981 में उर्दू को बिहार की दूसरी राजकीय भाषा का दर्जा देने कि घोषणा जगन्नाथ मिश्रा द्वारा किया गया, तब सरकार कांग्रेस की थी।
ये सब यूँ ही नहीं हुआ है, उर्दू तहरीक के लिए लोगों ने बड़ी क़ुर्बानी दी है, क्यूँकि 70 के दशक में जमशेदपुर, राँची आदि जगह जो दंगे हुए, ..4/5
.. उसकी शुरुआत में उर्दू के विरोध और समर्थन में हुए प्रदर्शन का एक अहम रोल रहा है। उर्दू को सरकारी दर्जा दिलवाने के लिए ज़मीन पर लोगों ने लम्बा संघर्ष किया। इस तहरीक से जुड़े नेताओं ने अपने जीवन का लम्बा समय जेल में काटा है। तब जाकर उर्दू बिहार की दूसरी राजकीय भाषा बनी है। 5/5
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