#अमरप्रहरी
इस शरीर की सकल शिराएँ
हों तेरी तन्त्री के तार,
आघातों की क्या चिन्ता है,
उठने दे ऊँची झंकार।
मैथिलीशरण गुप्त
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यहाँ भी मोह है अनिवार,
यहाँ भी स्नेह का अधिकार।
- गजानन माधव मुक्तिबोध
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ओ ! जीवन के तेज सनातन,
तेरे अग्निकणों से जीवन,
तीक्ष्ण बाण से नूतन सर्जन।
- गजानन माधव मुक्तिबोध
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देवालय की ज्योति बनाकर,
दीपक को निर्वाण दे दिया।
- आरसी प्रसाद सिंह
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अंतिम जय का वज़्र बनाने-
नव दधीचि हड्डियाँ गलाएँ।
आओ फिर से दिया जलाएँ।।
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योगी बन उसके लिये हम, साधे सब योग।
सब भोगों से हैं भले, जन्मभूमि के भोग।।
- अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध'
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देख कठिनता-बदन बदन जिसका कुम्हलाया।
कब वसुधा में सिध्दि समादर उसने पाया!
-अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’
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किस वनमाली के चरणों में अर्पित होगी पूजा-थाली?
- आरसी प्रसाद सिंह
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कर्तव्य के पुनीत पथ को,
हमने स्वेद से सींचा है...
- अटल बिहारी वाजपेयी
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अचल के शिखरों पर जा चढ़ी
किरण पादप शीश विहारिणी
तरणि बिंब तिरोहित हो चला
गगन मंडल मध्य शनै: शनै:।।
- अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’
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चाहे पथ में शूल बिछाओ,
चाहे ज्वालामुखी बसाओ,
हार न अपनी मानूँगा मैं!
- गोपालदास "नीरज"
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मैंने जीवन विषपान किया, मैं अमृत-मंथन क्या जानूँ!
मैं चूमा करता अंगारे, फ़िर मधुमय चुम्बन क्या जानूँ।l
- गोपालदास "नीरज"
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प्रबल तुम तेज पवन की फूँक,
फूँक से उठा हुआ तूफ़ान----
गोपाल सिंह 'नेपाली'
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यह अतीत कल्पना, यह विनीत प्रार्थना,
यह पुनीत भावना, यह अनंत साधना..
- गोपाल सिंह 'नेपाली
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अब शक्ति की ज्वलंत दामिनी स्वतंत्र है...
- गोपाल सिंह 'नेपाली
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बीती गुलामियाँ, न लौट आएँ फिर कभी,
तुम भावना करो, स्वतंत्र भावना करो..
- गोपाल सिंह 'नेपाली'
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घर की स्वतंत्रता, समाज का सिंगार है,
पर देश की स्वतंत्रता.. अमर पुकार है ...
- गोपाल सिंह 'नेपाली'
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समस्त धर्म-तीर्थ इस ज़मीन पर
गिरा यहां
लहू किसी
शहीद का।
- हरिवंशराय बच्चन
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...उसको छू कर मृत साँसें भी
होंगी चिनगारी की माला!
- महादेवी वर्मा
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जन्म दिया,
प्राण दिये,
मुक्ति का विवेक दिया।
- महादेवी वर्मा
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जब ज्वाला से प्राण तपेंगे,
तभी मुक्ति के स्वप्न ढलेंगे।
- महादेवी वर्मा
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सामने देश माता का भव्य चरण है,
जिह्वा पर जलता हुआ एक, बस प्रण है..
काटेंगे, अरि का मुण्ड, कि स्वयं कटेंगे...
पीछे, परन्तु, सीमा से नहीं हटेंगे।
रामधारी सिंह "दिनकर"
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संग्राम सिंधु लहराता है,
सामने प्रलय घहराता है,
रह रह कर भुजा फड़कती है,
बिजली-सी नसें कड़कतीं हैं,
- रामधारी सिंह "दिनकर"
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कोटि-कोटि कंठों से मिलकर
उठे एक जयनाद यहाँ
- अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’
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तू स्वयं तेज भयकारी है,
क्या कर सकती चिनगारी है?
- रामधारी सिंह "दिनकर"
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विक्रमी पुरुष लेकिन सिर पर,
चलता ना छत्र पुरखों का धर.
अपना बल-तेज जगाता है,
सम्मान जगत से पाता है.
- रामधारी सिंह "दिनकर"
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सामने देश माता का भव्य चरण है,
जिह्वा पर जलता हुआ एक, बस प्रण है..
काटेंगे अरि का मुण्ड, कि स्वयं कटेंगे...
पीछे, परन्तु, सीमा से नहीं हटेंगे।
- रामधारी सिंह "दिनकर"
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नर भले बने सुमधुर कोमल,
पर अमृत क्लेश का पिए बिना,
आताप अंधड़ में जिए बिना,
वह पुरुष नही कहला सकता,
विघ्नों को नही हिला सकता.
- रामधारी सिंह "दिनकर"
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विकल हमारे राज दंड में
साठ कोटि भुजबल!
- हरिवंशराय बच्चन
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चुपचाप दे गए प्राण देश-धरती के हित
हैं हुए यहाँ ऐसे भी अगणित बलिदानी ll
- श्रीकृष्ण सरल
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यह देख, गगन मुझमें लय है,
यह देख, पवन मुझमें लय है,
मुझमें विलीन झंकार सकल,
मुझमें लय है संसार सकल।
- रामधारी सिंह 'दिनकर'
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जब फूल पिरोये जाते हैं,
हम उनको गले लगाते हैं।
- रामधारी सिंह 'दिनकर'
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पीसा जाता जब इक्षु-दण्ड,
झरती रस की धारा अखण्ड।
- रामधारी सिंह 'दिनकर'
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