अतःबड़गुर्जर, सिकरवार, सिसोदिया, ओर राठौड़ राजा लव के वंशज ही है ओर आज की तारीख में , वंशावली के अनुसार
भाग १
श्री राम के दूसरे पुत्र हुए कुश .
भाग २
भाग ३
2 अतिथि के पुत्र निषधन हुये।
3 नभ के पुत्र पुण्डरीक हुये।
4 पुण्डरीक के पुत्र क्षेमन्धवा हुये।
5 क्षेमन्धवा के पुत्र देवानीक हुये।
6 देवानीक के पुत्र अहीनक हुये।
7अहीनक से रुरु हुये।
8 रुरु से पारियात्र हुये। भाग ४
10 दल से छल हुये।
11 छल से उक्थ हुये।
12 उक्थ से वज्रनाभ हुये।
13 वज्रनाभ से गण हुये।
14 गण से व्युषिताश्व हुये।
15 व्युषिताश्व से विश्वसह हुये।
16 विश्वसह से हिरण्यनाभ हुये।
17 हिरण्यनाभ से पुष्य हुये।
भाग ५
19 ध्रुवसंधि से सुदर्शन हुये।
20 सुदर्शन से अग्रिवर्ण हुये।
21 अग्रिवर्ण से पद्मवर्ण हुये।
22 पद्मवर्ण से शीघ्र हुये।
23 शीघ्र से मरु हुये।
24 मरु से प्रयुश्रुत हुये।
25 प्रयुश्रुत से उदावसु हुये।
भाग ६
27 नंदिवर्धन से सकेतु हुये।
28 सकेतु से देवरात हुये।
29 देवरात से बृहदुक्थ हुये।
30 बृहदुक्थ से महावीर्य हुये।
31 महावीर्य से सुधृति हुये।
32 सुधृति से धृष्टकेतु हुये।
33 धृष्टकेतु से हर्यव हुये।
34 हर्यव से मरु हुये।
भाग ७
36 प्रतीन्धक से कुतिरथ हुये।
37 कुतिरथ से देवमीढ़ हुये।
38 देवमीढ़ से विबुध हुये।
39 विबुध से महाधृति हुये।
40 महाधृति से कीर्तिरात हुये।
41कीर्तिरात से महारोमा हुये।
42 - महारोमा से स्वर्णरोमा हुये।
भाग ८
44 - ह्रस्वरोमा से सीरध्वज का जन्म हुआ। ये “सीरध्वज” सिता के पिता जनक सीरध्वज से अलग है क्योंकि सीरध्वज नाम से अनेक और व्यक्ति हुए हैं।
ओर राजस्थान को जीतने वाले दुल्हेसिंह कच्छवाहा श्रीराम के पुत्र कुश की 80वीं पीढ़ीसे थे
भाग ९
इस तरह से यह वंश बड़े लंबे समय से शाशन करता आ रहा है
लवकुश के वंशजो की महाभारत तक कि लड़ाई में जिक्र आता है बाद में लगातार बोद्ध धर्म ओर इस्लामी आक्रमण होने के कारण बीच का इतिहास एकदम खत्म ही हो गया भाग १०
संभवतः शकों के आक्रमण के समय, ओर परमारो के उदय के समय कच्छवाहा राजपूतो का पतन हो गया था,
भाग ११
कच्छवाहो राजपूत की चार राजधानियां थी
दौसा
जयपुर
आमेर
जमवारामगढ़
ने अपनी राजधानी दौसा में बनाई थी, यहां इन्होंने बड़गुर्जरो को पराजित किया था । दुल्हेरायसिंहः ने अपनी दूसरी राजधानी बनाई,
भाग १३
भाग १४
कोकिलदेव ने आमेर के शकों को परास्त कर, आमेर को अपनी राजधानी बनाई कोकिलदेव ने यादवों ( रजपूतो ) को भी परास्त कर दिया था ।
इन्ही कोकिलदेव के वंशज की पीढ़ी में आगे चलकर
भाग १५
महाराज नरु से , नरूका राजपूत हुए, महाराज नरूका मेहराज जी के पुत्र थे ,
ओर राव शेखाजी से शेखावत
शेखावाटी राज्य की स्थापना , राव शेखाजी ने ही की थी
1527 में जयपुर के राजा पृथ्वीराज हुआ करते थे,उन्होंने खानवा के युद्ध मे, महाराणा सांगा
भाग १६
भाग १७
ओर 1547 ईस्वी में , आसकरण को गद्दी से भारमल ने उतारफेंका , ओर अपना अधिकार कुशवाहा गद्दी पर फिर से प्राप्त कर लिया ।
कुशवाहा साम्राज्य में कई खापो में बंट गया
भाग १८
भाग १९
भाग २०
उन सभी राजपूतो वंश जो, कच्छवाहा ही है, उनकी डिटेल कुछ पोस्टों में दे दी जाएगी
भाग २१
नरूका_कच्छवाहा
महाराज नरु के नाम से ही, नरूका वंश की नींव पड़ी है ।
नरुका कछवाह – राजा मेराज जी (मेहराज) के पुत्र नरु जी के वंशज नरुका कछवाह कहलाते हैं । मेराज जी, राजा बरसिँह जी के पुत्र व
भाग २२
नरूका कच्छवाहा वंश के भी उपवंश बन गए, आज वह ..
दासावत
लालावत
तेजावत
जेतावत
रत्नावत
आदि नामो से जाने जाते है .. यह प्रत्येक नाम, व्यक्ति के नाम पर पड़ा है ...
नरूका राजपुतो की कुल देवी जमवायमाता ही है ।
रावशेखाजीकच्छवाहा
भाग २३
राव शेखाजी के नाम से ही इस वंश का नाम शेखावत पड़ा है
राव शेखाजी जयपुर घराने से ही संबंध रखते थे, इनके पिता राव मोकल सिंहः जी को मात्र 24 गांवो की जागीरदारी मिली हुई थी,
भाग २४
भाग २५
राव शेखाजी का " घाटवा का युद्ध " का विवरण आगे की पोस्ट में दिया जाएगा , इसके लिए कच्छवाहा वंश की वीरगाथा नाम जे पोस्ट भी की जाएगी, इसी वंश के एक राजा ने, मुहम्मद गौरी को बांध लिया था ।
भाग २५ इतिश्री 🙏🙏