आततायिनमायान्तं हन्यादेवाविचारयन्॥(मनुस्मृति ८।३५०)
यदि गुरु, बालक, ब्राहम्ण, वृद्ध एवं बहुश्रुत भी आततायी के रुप में प्राप्त हों, तो उनका भी बिना सोचे विचारे हनन करना चाहिये.
जिघांसन्तं जिघांसीयान्न तेन ब्रह्महाभवेत्॥ (वशिष्ठस्मृति3।१६)
यदि वेदान्त का पारगामी विद्वान भी मारने के योग्य आततायी हो तो उनका भी हनन करे, उनके हनन से वह ब्रह्म हत्यारा नही होता.
"Many students of the spiritual literature of this period have hailed the medieval siddhas and the saints as harbingers of a casteless society.
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