नमः = सत्कार, श्रद्धा, किसी के सामने झुकना। क – अमरकोष में आया है ‘नमो नतौ’ । ‘नमस्’ अव्यय ‘ ज्ञति’ अर्थात् किसी के सामने झुकने के अर्थ में आता है।
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ग – सिद्धान्तकौमुदी में ‘णम’ धातु प्रहत्व अर्थात् सत्कार अर्थ में आता है।
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• दिव्य देव नमस्ते अस्तु॥ ~अथर्व० २/२/१
• विश्वकर्मन नमस्ते पाह्यस्मान॥ ~अथर्व० २/३५/४
• तस्मै ज्येष्ठाय ब्रह्मणे नम: ॥ ~अथर्व० १०/७/३२
• नमस्ते भगवन्नस्तु ॥ ~यजु० ३६/२१
• स्त्री के लिए–
नमस्ते जायमानायै, जाताया उत ते नमः। (अथर्ववेद १०।१०।१)
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• नमस्ते यातुधानेभ्यो नमस्ते भेषजेभ्यः मृत्यो मूलेभ्यो ब्राहाणेभ्य इद नमः । (अथर्व० ६।१४।३)
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• शतपथ ब्राह्मण में आता है कि गार्गी अपने पति याज्ञवल्क्य को नमस्ते करती है। सा होवाच – नमस्ते याज्ञवल्क्य।
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• अरण्यकाण्ड ( ५५/२८ ) माता सीता द्वारा वृक्ष को नमस्ते किया गया है
~ “नमस्तेsस्तु महावृक्ष” ॥
• सीता जङग्ल में विराध नाम के राक्षस को नमस्ते करती है —
मां वृका भझयिष्यन्ति, शार्दूला दीपिनस्तथा ।
मां हरोत्सृज्य काकुत्स्थौ नमस्ते राक्षसोत्तम ॥
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• शकुनि बड़े होते हुए युधिष्ठर को नमस्ते कहते हैं —
ज्येष्ठो राजन वरिष्ठोसि नमस्ते भरतर्षभ॥
• युद्ध के पश्चात महर्षिशाकल्य ने धृतराष्ट्र को नमस्ते कहा । जबकि एक महर्षि का पद राजा(क्षत्रिय) से कितना बड़ा है। धृतराष्ट्र एक क्षत्रिय थे किन्तु महर्षि ने नमस्ते की थी।
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नमो नमस्तेऽस्तु सहस्त्रकृत्वः , पुनष्च भूयोऽपि नमो नमस्ते। नमःपुरस्तादथ पृष्ठतस्ते, नमोऽस्तु ते सर्वत एव सर्व।।
इस प्रकार नमस्ते शब्द का व्यवहार वेद, ब्राह्मण, उपनिषद्, रामायण तथा महाभारत सभी ग्रन्थों में है।
॥ नमस्ते ॥
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