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॥ ओ३म् ॥
वैदिक अभिवादन - “नमस्ते”

नमस्ते संस्कृत का शब्द हैं। इसमें दो पद हैं — नमः + ते । व्याकरण के अनुसार ‘ते’ शब्द का अर्थ है – तुम्हारे लिए (ते, तुभ्यम् - तुम्हारे लिए) परिणामतः ‘नमस्ते’ शब्द का अर्थ यह हुआ ~ तुम्हारे लिए नमः। अब रहा ‘नमः’ शब्द ।
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अब हम इस ’नमः’ शब्द के अर्थ का भी विवेचन करें।

नमः = सत्कार, श्रद्धा, किसी के सामने झुकना। क – अमरकोष में आया है ‘नमो नतौ’ । ‘नमस्’ अव्यय ‘ ज्ञति’ अर्थात् किसी के सामने झुकने के अर्थ में आता है।
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ख – यास्क निघण्टु ३ । ५ में ‘नमस्यति ’ का अर्थ किया है ‘परिचरति’ । अर्थात् सेवा करने, सत्कार करने के अर्थ में नमस्यति शब्द आता है।

ग – सिद्धान्तकौमुदी में ‘णम’ धातु प्रहत्व अर्थात् सत्कार अर्थ में आता है।
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वेदों में “नमस्ते” शब्द

• दिव्य देव नमस्ते अस्तु॥ ~अथर्व० २/२/१

• विश्वकर्मन नमस्ते पाह्यस्मान॥ ~अथर्व० २/३५/४

• तस्मै ज्येष्ठाय ब्रह्मणे नम: ॥ ~अथर्व० १०/७/३२

• नमस्ते भगवन्नस्तु ॥ ~यजु० ३६/२१

• स्त्री के लिए–
नमस्ते जायमानायै, जाताया उत ते नमः। (अथर्ववेद १०।१०।१)
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नमस्तक्षभ्यो रथकारेभ्यश्च वा नमो नमो कुलालेभ्यः कर्मारेभ्यश्च वो नमो नमो निषादेभ्यः पुञिजष्ठेभ्यश्च वा नमो नमः श्वनिभ्यो मृगयुभ्यष्च वो नमः ।। (यजु० १६।२७)
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~ यहाँ तो तक्ष – तरखान, राजमिस्त्री, रथकार, कुलाल - कुम्हार, निषाद अर्थात् चाण्डाल तथा कुत्तों के शिक्षक आदि सब के लिए ’ नमस्ते ’ का प्रयोग है अर्थात् इनके लिए अन्नादि भोग्य सामग्री देने का विधान है।
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• नमस्ते हरसे शोचिषे नमस्तेऽअस्त्वर्चिषे। (यजु० १७।११)

• नमस्ते यातुधानेभ्यो नमस्ते भेषजेभ्यः मृत्यो मूलेभ्यो ब्राहाणेभ्य इद नमः । (अथर्व० ६।१४।३)
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• महर्षि यम जो कि नचिकेता के आचार्य थे, अपने शिष्य नचिकेता को नमस्ते कहते हैं- नमस्तेऽस्तु ब्रहा्न् स्वस्ति तेऽस्तु। (कठोपनिषद् व० १ कं० ९)

• शतपथ ब्राह्मण में आता है कि गार्गी अपने पति याज्ञवल्क्य को नमस्ते करती है। सा होवाच – नमस्ते याज्ञवल्क्य।
८/n
• याज्ञवल्क्य यद्यपि ऋषि थे, वे पदवी में अपने से छोटे राजा जनक को नमस्ते करते हैं – स होवाच – जनको वैदेहो – नमस्ते । (शतपथ)
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~वाल्मीकि रामायण~

• अरण्यकाण्ड ( ५५/२८ ) माता सीता द्वारा वृक्ष को नमस्ते किया गया है
~ “नमस्तेsस्तु महावृक्ष” ॥

• सीता जङग्ल में विराध नाम के राक्षस को नमस्ते करती है —
मां वृका भझयिष्यन्ति, शार्दूला दीपिनस्तथा ।
मां हरोत्सृज्य काकुत्स्थौ नमस्ते राक्षसोत्तम ॥
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महाभारत

• शकुनि बड़े होते हुए युधिष्ठर को नमस्ते कहते हैं —
ज्येष्ठो राजन वरिष्ठोसि नमस्ते भरतर्षभ॥

• युद्ध के पश्चात महर्षिशाकल्य ने धृतराष्ट्र को नमस्ते कहा । जबकि एक महर्षि का पद राजा(क्षत्रिय) से कितना बड़ा है। धृतराष्ट्र एक क्षत्रिय थे किन्तु महर्षि ने नमस्ते की थी।
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• गीता में अर्जुन ने कृष्ण को नमस्ते किया -

नमो नमस्तेऽस्तु सहस्त्रकृत्वः , पुनष्च भूयोऽपि नमो नमस्ते। नमःपुरस्तादथ पृष्ठतस्ते, नमोऽस्तु ते सर्वत एव सर्व।।

इस प्रकार नमस्ते शब्द का व्यवहार वेद, ब्राह्मण, उपनिषद्, रामायण तथा महाभारत सभी ग्रन्थों में है।
॥ नमस्ते ॥
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