आइए आज शुभारंभ करते हैं @Shrimaan की लिखी इस ट्वीट श्रृंखला का..
व्याकरणिक एवं वस्तुपरक त्रुटियों के लिए
आप सभी सुधीजनों से अग्रिम क्षमा प्रार्थना के साथ प्रस्तुत है..
महाभारत के वार्तालाप ..🙏🥁
उन में से कुछ जो मुझे याद आ रहे हैं वे यहां प्रस्तुत हैं:
@Shrimaan
यह संवाद पांडवों के वार्णावत से हस्तिनापुर लौटने के पश्चात् हुआ जब उनका विवाह द्रोपदी से हो चुका था।
लाक्षागृह के पश्चात् पांडवों को मृत मान कर दुर्योधन को हस्तिनापुर का युवराज घोषित किया जा चुका था।
@Shrimaan
शकुनि : दुर्योधन बच्चों की तरह हठ पकड़ कर बैठ गया है। (बालहठ)
@Shrimaan
@Shrimaan
यह संवाद विदुर द्वारा युधिष्ठिर को धृतराष्ट्र की ओर से द्यूत क्रीड़ा हेतु निमंत्रित कर लौटने पर हुआ।
भीष्म विदुर को बिना परिणाम विचारे ऐसा करने के लिए खरी खोटी सुनाते हैं।
विदुर: किंतु खेल दुर्योधन द्वारा खेला जाएगा पितामह।
@Shrimaan
विदुर : किंतु पितामह..
@Shrimaan
मानता हूँ कि तुम धृतराष्ट्र के दूत बन कर गए थे..
(क्रमशः)
@Shrimaan
किन्तु तुम्हें विचार करना चाहिए था कि तुम केवल हस्तिनापुर के प्रधानमंत्री नहीं हो। तुम पांडवों और कौरवों के काकाश्री भी हो..
क्रमशः ..
@Shrimaan
हस्तिनापुर अथवा धृतराष्ट्र?
विदुर : प्रश्न निष्ठाओं का नहीं है पितामह।
आपसी तनाव की समाप्ति के लिए मैंने साम्राज्य का विभाजन भी स्वीकार कर लिया।मैंने यह अन्याय होने दिया क्योंकि दृष्टिहीन धृतराष्ट्र का एक ही सपना है कि वह दुर्योधन को हस्तिनापुर के सिंहासन पर देखे।
क्रमशः ..
@Shrimaan
क्या तुम्हें राजसूय यज्ञ की जलती हुई अग्नि के साथ दुर्योधन के ह्रदय में धधक रही ज्वाला दिखाई नहीं दी?
@Shrimaan
भीष्म: और देखने के बाद भी तुमने केवल द्यूत का निमंत्रण दिया और लौट आए?
आज पहली बार तुमने मुझे निराश किया है विदुर। मेरे कंधों में हस्तिनापुर का शव उठाने की शक्ति नहीं है।
@Shrimaan
द्यूत में कोई भी जीते पराजय मेरे हस्तिनापुर की होगी, मेरा हस्तिनापुर ही पराजित होगा।
@Shrimaan
कर्ण : जन्म लेते ही मेरी माता ने मुझे त्याग दिया। क्या यह मेरा दोष है कि मैं एक अवैध संतान हूँ?
@Shrimaan
श्रीकृष्ण कर्ण को समझाना चाहते थे कि--
@Shrimaan
वस्तुतः ऐसा संभव भी नहीं है क्यों कि हम सभी को यहां मनुष्य रूप में कुछ पाठ पढ़ने हैं और आवश्यक है कि हम ऐसा करें।
@Shrimaan
यही सच्चा धर्म है।यही एक मात्र मार्ग है।
@Shrimaan
यह संसार एक मंच है और सभी इसके पात्र केवल जीवनरूपी विशाल नाटक में अपनी प्रारब्ध प्रदत्त भूमिकाएं निभा रहे हैं।
@Shrimaan
जो यह समझ जाते हैं और स्वयं को अपने मार्ग के अनुसार संरूपित कर लेते हैं वे कर्म के बंधन से मुक्त हो जाते हैं।जो ऐसा नहीं कर पाते वे इस ज्ञान की प्राप्ति के लिए पुनः जन्म लेते हैं।
स्वयं पर तरस खा कर दुखी होने से कभी कोई समाधान नहीं मिलता।
@Shrimaan
जीवन एक सीख है और हमें आने वाले अनुभवों को स्वीकारना चाहिए ।
@Shrimaan
जब पांडव वन को गए तो एक श्वान उनके पीछे
आया।
जब युधिष्ठिर के सारे भाई एक एक कर मृत्यु को प्राप्त हुए तो भी श्वान उनके पीछे था।
@Shrimaan
अचानक से इन्द्र युधिष्ठिर के समक्ष प्रकट हुए और उनसे अपने साथ आने को कहा, किंतु
युधिष्ठिर ने उस श्वान के बिना जाने से मना कर दिया।
@Shrimaan
शक्र ने कहा, ' मेरे समान स्थितियां और अमरत्व आपका होगा राजन् यदि आप इस श्वान को त्याग दें। इसमें कोई निर्दयता नहीं होगी।'
@Shrimaan
@Shrimaan
युधिष्ठिर ने कहा,'अपने साथी का परित्याग अंतहीन पाप है। यह एक ब्राह्मण की हत्या के समान पाप है।'
@Shrimaan
श्वान के बिना स्वर्ग में प्रवेश से मना कर युधिष्ठिर ने एक बार पुनः अपनी महानता सिद्ध की।
@Shrimaan
अर्जुन: मैंने तुम्हारे कारण अपने भाई कर्ण का वध किया।
श्रीकृष्ण: क्या तुम सोचते हो कि तुमने कर्ण का वध किया?
नहीं, तुमने नहीं, तुमसे पहले छः व्यक्तियों ने उसका वध किया।
@Shrimaan
तुम्हारी माता कुंती ने..कर्ण से वचन लिया कि वह तुम पर शास्त्र का प्रयोग दुबारा नहीं करेगा।
@ shrimaan
उसके रथ का पहिया युद्ध भूमि में धँसने पर उसकी सहायता न कर..(ब्राह्मण का श्राप )
@Shrimaan
इसलिए छः लोगों ने इस प्रकार तुम्हें उस का वध करने से बचाया। किंतु तुम यह मान कर शोक कर रहे हो कि तुमने उस का अंत किया।
@Shrimaan