My Authors
Read all threads
शुभ प्रभात मित्रों,
आइए आज शुभारंभ करते हैं @Shrimaan की लिखी इस ट्वीट श्रृंखला का..
व्याकरणिक एवं वस्तुपरक त्रुटियों के लिए
आप सभी सुधीजनों से अग्रिम क्षमा प्रार्थना के साथ प्रस्तुत है..
महाभारत के वार्तालाप ..🙏🥁
देखा जाए तो इन आपसी संवादों की सूची अंतहीन है।महाभारत अपने पात्रों के बीच अर्थपूर्ण,सटीक और विचारोत्तेजक संवादों से परिपूर्ण घटनाओं से भरा हुआ है। स्वयं में प्रचूर बुद्धिमत्ता समाए ये संवाद आज भी प्रासंगिक हैं।
उन में से कुछ जो मुझे याद आ रहे हैं वे यहां प्रस्तुत हैं:
@Shrimaan
1. शकुनि और भीष्म
यह संवाद पांडवों के वार्णावत से हस्तिनापुर लौटने के पश्चात् हुआ जब उनका विवाह द्रोपदी से हो चुका था।
लाक्षागृह के पश्चात् पांडवों को मृत मान कर दुर्योधन को हस्तिनापुर का युवराज घोषित किया जा चुका था।
@Shrimaan
स्वाभाविक रूप से दुर्योधन द्वारा युवराज पद का त्याग न करने की चर्चा चल रही थी।
शकुनि : दुर्योधन बच्चों की तरह हठ पकड़ कर बैठ गया है। (बालहठ)

@Shrimaan
भीष्म : हे गांधार कुमार शकुनि! यदि एक बच्चे को बड़े होने ही नहीं दिया जायगा तो वह सदैव बालक ही रहेगा।अतिवृष्टि अर्थात् बाढ़ में कोई घर बह जाता है तो दोष बाढ़ का नहीं घर का है।अगर बाढ़ का दोष होता तो सारे ही घर बह जाते..

@Shrimaan
2. भीष्म-विदुर संवाद
यह संवाद विदुर द्वारा युधिष्ठिर को धृतराष्ट्र की ओर से द्यूत क्रीड़ा हेतु निमंत्रित कर लौटने पर हुआ।
भीष्म विदुर को बिना परिणाम विचारे ऐसा करने के लिए खरी खोटी सुनाते हैं।
विदुर: किंतु खेल दुर्योधन द्वारा खेला जाएगा पितामह।
@Shrimaan
भीष्म : अवश्य। खेल दुर्योधन द्वारा खेला जाएगा किंतु पासे शकुनि के होंगे और वही उन्हें चलाएगा।
विदुर : किंतु पितामह..

@Shrimaan
भीष्म : इस किंतु-परंतु से आगे बढ़ो विदुर। युद्ध सदैव राजाओं के बीच होता है किंतु लड़ाई सेनाओं द्वारा लड़ी जाती है। इसलिए सभागृह में यह प्रश्न उठाने की भूल मत करना।
मानता हूँ कि तुम धृतराष्ट्र के दूत बन कर गए थे..
(क्रमशः)
@Shrimaan
भीष्म: यह भी मानता हूँ कि तुम अपने उत्तरदायित्व की सीमाएं भी नहीं लांघ सकते थे
किन्तु तुम्हें विचार करना चाहिए था कि तुम केवल हस्तिनापुर के प्रधानमंत्री नहीं हो। तुम पांडवों और कौरवों के काकाश्री भी हो..
क्रमशः ..
@Shrimaan
..हस्तिनापुर के प्रति तुम्हारी निष्ठा क्या तुमसे ये नहीं कहा कि युधिष्ठिर को सचेत करना भी तुम्हारा कर्तव्य है? तुम किसके प्रति निष्ठावान हो
हस्तिनापुर अथवा धृतराष्ट्र?
विदुर : प्रश्न निष्ठाओं का नहीं है पितामह।
भीष्म : तो प्रश्न किस बात का है विदुर ?
आपसी तनाव की समाप्ति के लिए मैंने साम्राज्य का विभाजन भी स्वीकार कर लिया।मैंने यह अन्याय होने दिया क्योंकि दृष्टिहीन धृतराष्ट्र का एक ही सपना है कि वह दुर्योधन को हस्तिनापुर के सिंहासन पर देखे।
क्रमशः ..
@Shrimaan
... किन्तु दुर्योधन अपनी महत्वाकांक्षा का हाथ बढ़ा कर इन्द्रप्रस्थ को भी हथिया लेना चाहता है।
क्या तुम्हें राजसूय यज्ञ की जलती हुई अग्नि के साथ दुर्योधन के ह्रदय में धधक रही ज्वाला दिखाई नहीं दी?

@Shrimaan
विदुर : मैंने वह अग्नि देखी थी पितामह।
भीष्म: और देखने के बाद भी तुमने केवल द्यूत का निमंत्रण दिया और लौट आए?
आज पहली बार तुमने मुझे निराश किया है विदुर। मेरे कंधों में हस्तिनापुर का शव उठाने की शक्ति नहीं है।
@Shrimaan
मेरे कंधों में इतनी शक्ति नहीं है।
द्यूत में कोई भी जीते पराजय मेरे हस्तिनापुर की होगी, मेरा हस्तिनापुर ही पराजित होगा।

@Shrimaan
ऐसा ही एक संवाद कर्ण और कृष्ण के बीच; कर्ण श्रीकृष्ण से अन्य अनेक प्रश्नों से पहले सर्वाधिक दुखदायक प्रश्न पूछता है जिसने उसे जीवन भर कष्ट दिया ।
कर्ण : जन्म लेते ही मेरी माता ने मुझे त्याग दिया। क्या यह मेरा दोष है कि मैं एक अवैध संतान हूँ?
@Shrimaan
कृष्ण ने बड़े ही धैर्य के साथ सीधे हुए स्वर में कर्ण के सभी प्रश्नों का उत्तर देने से पूर्व कहा कि उनका जन्म कारागार में हुआ और इस जगत में अपनी आँखे खोलने के पूर्व ही उनकी मृत्यु निश्चित कर दी गई थी।
श्रीकृष्ण कर्ण को समझाना चाहते थे कि--

@Shrimaan
... जीवन किसी के भी साथ न्याय नहीं करता.
वस्तुतः ऐसा संभव भी नहीं है क्यों कि हम सभी को यहां मनुष्य रूप में कुछ पाठ पढ़ने हैं और आवश्यक है कि हम ऐसा करें।
@Shrimaan
उन्होंने समझाया कि जीवन ने आपके साथ अन्याय किया है और किसी व्यक्ति ने तुम्हारे साथ अच्छा व्यवहार किया है जो समाज के लिए अनिष्टकारी है;अंत में तुम्हें उस व्यक्ति के स्थान पर अपने विवेक का चयन करना होगा।
यही सच्चा धर्म है।यही एक मात्र मार्ग है।
@Shrimaan
वास्तविकता तो यह है कि चाहे वे श्रीकृष्ण हों या कर्ण दोनों ही स्वयं को मनुष्य रूप में साकार कर रहे थे।
यह संसार एक मंच है और सभी इसके पात्र केवल जीवनरूपी विशाल नाटक में अपनी प्रारब्ध प्रदत्त भूमिकाएं निभा रहे हैं।

@Shrimaan
सृष्टि के कार्यों के अपने रूप हैं और हम सभी अपने आत्मिक पथ से संरेखित हैं।
जो यह समझ जाते हैं और स्वयं को अपने मार्ग के अनुसार संरूपित कर लेते हैं वे कर्म के बंधन से मुक्त हो जाते हैं।जो ऐसा नहीं कर पाते वे इस ज्ञान की प्राप्ति के लिए पुनः जन्म लेते हैं।
श्रीकृष्ण कर्ण संवाद अज्ञान और ज्ञान के बीच अंतर को समझने के लिए एक श्रेष्ठ और समुचित उदाहरण है।
स्वयं पर तरस खा कर दुखी होने से कभी कोई समाधान नहीं मिलता।

@Shrimaan
तथापि स्वयं को थामने के लिए बार बार उठ खड़े होना और सत्य कहना आपको अनावश्यक प्रपंच से मुक्त करता है।
जीवन एक सीख है और हमें आने वाले अनुभवों को स्वीकारना चाहिए ।

@Shrimaan
महाप्रस्थानिक पर्व में जब पांडव अपनी अंतिम यात्रा को उद्यत होते हैं तो एक श्वान भी उनके पीछे चलने लगता है।
जब पांडव वन को गए तो एक श्वान उनके पीछे
आया।
जब युधिष्ठिर के सारे भाई एक एक कर मृत्यु को प्राप्त हुए तो भी श्वान उनके पीछे था।
@Shrimaan Image
उनका एक ही सहगामी था, वह श्वान जो अभी भी उनके साथ था।
अचानक से इन्द्र युधिष्ठिर के समक्ष प्रकट हुए और उनसे अपने साथ आने को कहा, किंतु
युधिष्ठिर ने उस श्वान के बिना जाने से मना कर दिया।

@Shrimaan
युधिष्ठिर ने कहा,'हे देवराज इंद्र, यह श्वान मेरे प्रति अत्यधिक समर्पित है। इसे मेरे साथ जाना चाहिए। मेरा ह्रदय इसके प्रति दया से भरा है।'
शक्र ने कहा, ' मेरे समान स्थितियां और अमरत्व आपका होगा राजन् यदि आप इस श्वान को त्याग दें। इसमें कोई निर्दयता नहीं होगी।'

@Shrimaan
युधिष्ठिर ने कहा, ' प्रभु, मेरे लिए जैसे धर्म का पालन करने वाले के लिए ऐसा अधार्मिक कृत्य यह अत्यधिक कठिन है. मुझे ऐसी समृद्ध की अभिच्छा नहीं है जिसके लिए मुझे मेरे साथी का त्याग करना पड़े।'

@Shrimaan
इंद्र ने कहा,'स्वर्ग में श्वान के लिए कोई स्थान नहीं है।'
युधिष्ठिर ने कहा,'अपने साथी का परित्याग अंतहीन पाप है। यह एक ब्राह्मण की हत्या के समान पाप है।'

@Shrimaan
"अतः हे इंद्रदेव, मैं अपने सुख की अभिलाषा से इस श्वान का त्याग नहीं करूंगा। स्वयं के जीवित रहते मैं इस श्वान से अलग नहीं होऊँगा।"

श्वान के बिना स्वर्ग में प्रवेश से मना कर युधिष्ठिर ने एक बार पुनः अपनी महानता सिद्ध की।

@Shrimaan
कुरुक्षेत्र के युद्ध में यह जानने के बाद कि कर्ण उनका सहोदर है --
अर्जुन: मैंने तुम्हारे कारण अपने भाई कर्ण का वध किया।
श्रीकृष्ण: क्या तुम सोचते हो कि तुमने कर्ण का वध किया?
नहीं, तुमने नहीं, तुमसे पहले छः व्यक्तियों ने उसका वध किया।
@Shrimaan
इंद्र ने.. कर्ण से दान में उसके कवच कुंडल छीन कर..
@Shrimaan

परशुराम ने..अपने श्राप से..
कि कर्ण का ब्रह्मास्त्र निष्फल होगा..

@Shrimaan
एक ब्राह्मण ने..जिसने अपना पुत्र कर्ण के कारण खो दिया था..उसने श्राप दिया था कि आवश्यकता होने पर उसका रथ काम नहीं करेगा..
तुम्हारी माता कुंती ने..कर्ण से वचन लिया कि वह तुम पर शास्त्र का प्रयोग दुबारा नहीं करेगा।
@ shrimaan

कर्ण के सारथी मद्रनरेश शल्य ने..
उसके रथ का पहिया युद्ध भूमि में धँसने पर उसकी सहायता न कर..(ब्राह्मण का श्राप )

@Shrimaan
Image
और अंत में, मैं, जिसने तुम्हें रथ को नीचे कर नागास्त्र से बचाया..
इसलिए छः लोगों ने इस प्रकार तुम्हें उस का वध करने से बचाया। किंतु तुम यह मान कर शोक कर रहे हो कि तुमने उस का अंत किया।

@Shrimaan
बस इतना ही..
अनुवाद आदरणीय @Shrimaan की पूर्वानुमति से किया गया।
आभार।
🙏
Missing some Tweet in this thread? You can try to force a refresh.

Enjoying this thread?

Keep Current with अक्षिणी.. 🇮🇳

Profile picture

Stay in touch and get notified when new unrolls are available from this author!

Read all threads

This Thread may be Removed Anytime!

Twitter may remove this content at anytime, convert it as a PDF, save and print for later use!

Try unrolling a thread yourself!

how to unroll video

1) Follow Thread Reader App on Twitter so you can easily mention us!

2) Go to a Twitter thread (series of Tweets by the same owner) and mention us with a keyword "unroll" @threadreaderapp unroll

You can practice here first or read more on our help page!

Follow Us on Twitter!

Did Thread Reader help you today?

Support us! We are indie developers!


This site is made by just two indie developers on a laptop doing marketing, support and development! Read more about the story.

Become a Premium Member ($3.00/month or $30.00/year) and get exclusive features!

Become Premium

Too expensive? Make a small donation by buying us coffee ($5) or help with server cost ($10)

Donate via Paypal Become our Patreon

Thank you for your support!