My Authors
Read all threads
श्रीमद भगवद गीता -प्रथम अध्याय

७अक्षौहिणी सेना पांडवों की, ११अक्षौहिणी सेना कौरवों की| ये दोनों सेनाएं जब कुरुक्षेत्र के मैदान में युद्ध के लिए एकत्रित हुईं तो राजा धृतराष्ट्र ने कहा की हे संजय धर्म के क्षेत्र में युद्ध की इच्छा से एकत्र हुए मेरे और पाण्डु पुत्रों ने क्या किया|
संजय ने कहा हे राजन, पांडवों की सेना को व्यूहित देखकर दुर्योधन द्रोणाचार्य के समीप जाकर कहने लगे कि हे आचार्य देखिये, आपके बुद्धिमान शिष्य ध्रुपद पुत्र ने पांडवों की बड़ी सेना की कैसे व्यूह रचना की है |
इस सेना में अर्जुन, भीम, बड़े बड़े धनुर धारी वीर, युगधान, विराट, महारथी चेकितान, बलवान पुरोहित कुंती भोज, नरों मैं श्रेष्ठ शैव्या, पराक्रमी युधामन्यु, बलवान उत्तममोजा, राजा ध्रुपद, द्रौपदी के पांचो पुत्र तथा महाभाहु अभिमन्यु, सब के सब महारथी हैं |
अब आपके समनार्थ मैं सेना के प्रधान सेनापतियों के नाम वर्णन करता हूँ| आप, भीष्म, करण, युद्धविजयी कृपाचार्य, अश्वधामा, विकर्ण, सोमदत्त का पुत्र भूरी श्रवा और बहुत से शूरवीर मेरे लिए प्राण तक देने को तैयार हैं| ये लोग शस्त्र चलाने में बहुत चतुर हैं और युद्ध विद्या में प्रवीण हैं |
हमारी सेना जिसके भीष्म रक्षक हैं, अपार बल है और उनकी सेना जिसके भीम रक्षक हैं, थोड़ा सा बल है| अब आप सब अपने अपने मोर्चों पर सावधान होकर सेनापति भीष्म की रक्षा कीजिये| कुरुवुध भीष्म पिताहमा ने धुरयोधन को प्रसन करते हुए ऊँचे स्वर में शंख बजाया |
फिर चारों और शंख, नगाड़े, ढोल, गोमुख आदि अनेक बाजे बजने लगे जिनका बड़ा भयंकर शब्द हुआ| इसके अनंतर, शवेत घोड़ों के रथ पर बैठे माधव श्री कृष्ण और अर्जुन ने भी अपने दिव्य शंखों को बजाया| श्री कृष्ण ने पांचजन्य और अर्जुन ने देवदत्त नामक शंख को बजाया |
और भीष्ण कर्म करने वाले भीम ने पांडुक नामक शंख को बजाया,
कुंती पुत्र धर्मराज युधिष्ठिर ने अनंत विजय, नकुल ने सहगोश, सहदेव ने मणि पुष्पक तथा महान धनुरधर काशिराज, शिखण्डी, धृष्टियधुन, अपराजित सात्यकि, राजा ध्रुपद, द्रौपदी के पांचो पुत्र तथा महाबाहु अभिमन्यु...
इन सब वीरों ने भी अपने दिव्य शंखों को बजाया| इन शंखों के भारी शब्द से आकाश और पृथ्वी गूंज उठे और धृतराष्ट्र के पुत्रों के हृदये काँप उठे| अर्जुन ने दोनों सेनाओं को युद्ध के लिए उपस्तिथ देखकर श्री कृष्ण जी से कहा के हे अच्युत मेरा रथ दोनों सेनाओं के बीच में खड़ा कीजिये..
जिससे मैं युद्ध करने वालों को देख लूँ कि इस रणभूमि में मुझे किन किन के साथ युद्ध करना चाहिए| दुर्बधी धुरयोधन से प्रीती करने वाले जो संग्राम के लिए यहाँ उपस्तिथ हैं उनको देख लूँ|
संजय ने कहा हे राजन, अर्जुन की बात सुनकर श्री कृष्ण जी ने उत्तम रथ को भीष्म, द्रोण आदि वीरों के सामने खड़ा करके कहा के हे वीर संग्राम के लिए उद्द्यत इन कौरवों को देख लो| अर्जुन ने चाचा, बाबा, गुरु, मामा, भाई, पोत्र, शवसुर और सम्भंदियों को शस्त्रों से सुसज्जित खड़े देखा..
और उसने दोनों ही सेनाओं में अपने ही सब बांधवोँ को देख कर परम दयार्द्र हो अत्यंत खेद के साथ ये वचन कहे... हे कृष्ण इन दोनों सेनाओं में अपने ही सब बांधवोँ को देख कर मेरा शरीर व्याकुल हो रहा है, रोमांच खड़े होते हैं, गांडीव हाथ से गिरा जा रहा है और त्वचा जली जा रही है|
हे केशव, मुझमें खड़े रहने का सामर्थ्य नहीं है| मेरा मन चक्कर खा रहा है और सब लक्षण मैं उलटे देख रहा हूँ| और संग्राम में स्वजनों का वध करने से कोई लाभ भी नहीं होगा| और हे कृष्ण मैं जीतकर राज्य व् सुख भी नहीं चाहता हूँ |
हमें राज्य भोग, जीवन से क्या काम क्यूंकि जिनके लिए राज्य भोग, सुख की इच्छा की जाती है, वे सब संग्राम में प्राण और धन की ममता छोड़ मरने को तैयार हैं| पिता, पुत्र, पितामह, मामा, भाई, पोत्र, शवसुर और सम्भंदी ये सब मुझे मारें तो भी हे मधुसूदन मैं इन्हें मारने की इच्छा नहीं करूँगा|
हे जनार्दन, त्रिलोकी के राज्य के लिए भी मैं इन्हें मारने की इच्छा नहीं करूँगा| हे जनार्दन, त्रिलोकी के राज्य के लिए भी मैं इन्हें मारना नहीं चाहता फिर इस पृथ्वी के लिए तो कहना ही क्या| धृतराष्ट्र के पुत्रों को मारने से हमारा क्या होगा! इन आताताइयों का वध करने से पाप ही होगा |
इसलिए हमें अपने भाई धृतराष्ट्र के पुत्रों को मारना अनुचित है|
स्वजनों को मार कर क्या हम सुखी रह सकते हैं! सब लोभ के वशीभूत हैं और कुल का नाश करने में तथा मित्रद्रोह करने में पाप को नहीं देखते| कुल का नाश जानते हुए भी हमें क्यों इस पातक से दूर नहीं रहना चाहिए!
कुल नाश होने से कुल के प्राचीन धर्म नष्ट हो जाते हैं| फिर धर्म नाश होने से कुल में पाप बढ़ता है| पाप से कुल की स्त्रियां व्यभचारिणी हो जाती हैं जिनसे वर्णशंकर संतान उत्पन होती है| वह वर्णशंकर उन पुरषों को, उस कुल को नरक में पहुंचाते हैं क्यूंकि श्राद्ध तरप्नादि बंद हो जाते हैं.
वर्णशंकर बनाने वाले दोषों से कुल ध्वंसकों के जाती धर्म, कुल धर्म निरंतर नाश हो जाते हैं| हे जनार्दन मैंने बराबर सुना है कुल धर्म नाश होने से निष्चय नरक वास करना पढता है| क्या हम इतना बड़ा पातक करने को तैयार हैं जो राज्य सुख के लाभ से अपने स्वजनों को ही मारने की कोशिश कर रहे हैं?
मुझे शस्त्र रहित एवं उपायहीन को इस रणभूमि में बांध कर डाल दें तो मेरा बहुत कल्याण हो|

संजय ने कहा हे राजन, ऐसा कहकर, अत्यंत दुखी होकर अर्जुन ने उसी समय धनुष बाण फेंक दिया और रथ के पिछले भाग में जा बैठा|

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः🙏
Will share 2nd chapter of Gita gyaan tomorrow. Wrote this one from memory.
Missing some Tweet in this thread? You can try to force a refresh.

Enjoying this thread?

Keep Current with Vandana

Profile picture

Stay in touch and get notified when new unrolls are available from this author!

Read all threads

This Thread may be Removed Anytime!

Twitter may remove this content at anytime, convert it as a PDF, save and print for later use!

Try unrolling a thread yourself!

how to unroll video

1) Follow Thread Reader App on Twitter so you can easily mention us!

2) Go to a Twitter thread (series of Tweets by the same owner) and mention us with a keyword "unroll" @threadreaderapp unroll

You can practice here first or read more on our help page!

Follow Us on Twitter!

Did Thread Reader help you today?

Support us! We are indie developers!


This site is made by just two indie developers on a laptop doing marketing, support and development! Read more about the story.

Become a Premium Member ($3.00/month or $30.00/year) and get exclusive features!

Become Premium

Too expensive? Make a small donation by buying us coffee ($5) or help with server cost ($10)

Donate via Paypal Become our Patreon

Thank you for your support!