कुंती पुत्र धर्मराज युधिष्ठिर ने अनंत विजय, नकुल ने सहगोश, सहदेव ने मणि पुष्पक तथा महान धनुरधर काशिराज, शिखण्डी, धृष्टियधुन, अपराजित सात्यकि, राजा ध्रुपद, द्रौपदी के पांचो पुत्र तथा महाबाहु अभिमन्यु...
स्वजनों को मार कर क्या हम सुखी रह सकते हैं! सब लोभ के वशीभूत हैं और कुल का नाश करने में तथा मित्रद्रोह करने में पाप को नहीं देखते| कुल का नाश जानते हुए भी हमें क्यों इस पातक से दूर नहीं रहना चाहिए!
संजय ने कहा हे राजन, ऐसा कहकर, अत्यंत दुखी होकर अर्जुन ने उसी समय धनुष बाण फेंक दिया और रथ के पिछले भाग में जा बैठा|
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः🙏