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चाइना की भारत के खिलाफ मोतियों की माला और उस माला का मणि चाइना पाकिस्तान इकनोमिक कॉरिडोर।

मोदी सरकार का किसी भी कीमत पे CPEC को रोकने का संकल्प और परिणामस्वरूप चीन की बौखलाहट।

आइये वक़्त में ज़रा पीछे चल कर आपको पूरी यात्रा दिखाते हैं।

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लगभग सन 2005 का वक़्त

चीन ने दक्षिण चीन सागर से लेकर मलक्का स्ट्रेट, बंगाल की खाड़ी और अरब की खाड़ी तक, यानि की पूरे हिंद महासागर में बंदरगाह, हवाई पट्टी, निगरानी-तंत्र इत्यादि तैयार करने की योजना बनाई।

(चित्र देखें)

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हालांकि चीन का हमेशा से यह कहना रहा है कि इसका उद्देश्य सिर्फ नए ऊर्जा स्रोतों को ढूंढना तथा समुन्द्री आवागमन की सुरक्षा है परंतु यह बात छुपी हुई नही है कि इसके द्वारा चीन की रणनीति हिन्द महासागर में भारत के प्रभुत्व समाप्त करना है जिससे वह युद्ध स्थिति में भारत को घेर सके।

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वर्ष 2014

चीन ने मोतियों की माला के मणि यानी कि CPEC की घोषणा की। दक्षिण पाकिस्तान के ग्वादर से पश्चिमी चीन के काशगर को जोड़ने वाली यह लगभग 2500 किमी लंबी परियोजना गिलगित, पाक अधिकृत कश्मीर तथा बलोचिस्तान से गुजरती है। इसलिए भारत ने इसे अपनी संप्रभुता पर हमला घोषित किया है।

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मोदी सरकार को आते ही विरासत में मोतियों की माला तथा CPEC की समस्या मिली।

मोतियों की माला के खिलाफ भारत की नेकलेस ऑफ डायमंड्स वाली रणनीति के बारे में बाद में लिखता हूँ। आइये अभी देखते हैं कि CPEC से चीन के क्या फायदे हैं, भारत के क्या नुकसान है तथा मोदी जी की क्या रणनीति है

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1: अभी चाइना का तेल इम्पोर्ट भारतीय महासागर से होकर, श्रीलंका के पीछे से, साउथ चाइना सी के रास्ते गुजरता है, जिससे की उसे तेल के ट्रांसपोर्टेशन की कीमत बहुत ज्यादा पड़ती है। बदले हालात में अब तेल सीधे होरमुज़ खाड़ी से ग्वादर पोर्ट के रास्ते सड़क मार्ग से चाइना पहुँच सकता है।

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2: चूँकि ग्वादर पोर्ट चाइना के सैनिक नियंत्रण में रहेगा इसलिए सामरिक दृष्टीकोन से यह भारत के लिए काफी नुकसानदेह है। युद्ध की स्तिथि में चीन अपनी नौसेना के द्वारा भारत को राजस्थान तरफ से घेर सकता है। इसके अलावा चीन अपनी नौसेना लगाकर भारत की तेल की आपूर्ति भी बंद कर सकता है

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3: चूँकि CPEC गिलगित तथा POK से होकर गुजरता है, इसलिए यह हमारी संप्रभुता का खुलेआम उल्लंघन है। तथा ऐसी किसी भी स्थायी परियोजना के कारण हमें अपने इन क्षेत्रों से हमेशा के लिए हाथ धोना पड़ सकता है।
आइये 2014 से अब तक के मोदी सरकार के CPEC को पंक्चर करने के कदम देखते हैं।

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मई, 2016

चीन नियंत्रित ग्वादर पोर्ट के रणनीतिक घेराव के लिए मोदी जी ने वहाँ से मात्र 75 किमी पश्चिम में स्थित ईरान के चाबहार पोर्ट के विकास का कार्य प्रारंभ किया। 2003 में शुरू हुए इस प्रोजेक्ट को वर्षो तक UPA सरकार ने ठंढे बस्ते में डाले रखा था।

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अगस्त, 2016

नीति को पूरी तरह से परिवर्तित करते हुए मोदी जी ने लाल किले से दिए अपने भाषण में बलोचिस्तान के नागरिकों का अभिनंदन किया। इस उल्लेख मात्र की रणनीति बनाने हेतु 40 उच्च अधिकारियों ने महीने भर मशक्कत की थी।

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इस उल्लेख का आशय बलोचिस्तान के नागरिकों द्वारा पाकिस्तान के खिलाफ आजादी की लड़ाई को नैतिक समर्थन प्रदान करना था। पाक का कहना रहा है कि भारत अफगानिस्तान में मौजूद RAW के नेटवर्क द्वारा बलोचियो की ट्रेनिंग तथा हथियार मुहैया कराने का कार्य करता है 😉

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बलोची जनता CPEC को अपने संसाधनों की लूट मानती है। मोदी सरकार की रणनीति यह है कि चूँकि ग्वादर पोर्ट बलोचिस्तान में है, यदि बलोचिस्तान एक अलग देश बने तो CPEC खुद से ही धराशायी हो जाएगा। आपने समाचारों में अक्सर सुना होगा कि बलोची CPEC और उसमें लगे चीनी मजदुरों पर हमला करते है।

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4 जून, 2016

मोदी जी ने अफगानी राष्ट्रपति अशरफ घनी के साथ मिलकर इंडिया अफगानिस्तान फ्रेंडशिप डैम का उद्घाटन किया। सनद रहे कि हम भूटान के बाद अफगान को ही सबसे ज्यादा आर्थिक सहायता प्रदान करते हैं। इस मित्रता के कारण ही भारत के खुफिया एजेंसियों का नेटवर्क वहाँ काफी मजबूत है।

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2016 की आखिरी तिमाही

सितंबर में पाकी आतंकियों ने उरी पर हमला किया और जब भारत इस मुद्दे पर पाक को पूरी तरह अलग थलग करने का प्लान बना रहा था तभी रूस ने यह कह कर भारत को जोरदार झटका दिया कि वह CPEC को अपने यूरेशियन इकनोमिक यूनियन प्रोजेक्ट के साथ जोड़ना चाहता है।

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रूस की इस नाराजगी के पीछे कारण यह था कि भारत द्वारा अफगानिस्तान में अमेरिका की मौजूदगी को वैधानिकता प्रदान करना रूस के हितों के प्रतिकूल था। रूस को अमेरिका को अफगानिस्तान से बाहर निकालने के लिए भारत का साथ चाहिए था, परंतु हमे अफगान में जमे रहने के लिए अमेरिका की जरूरत थी।

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जुलाई, 2017

पुतिन के दबाव में आये बिना मोदी जी ने रूस के बजाय इस्राएल की ऐतिहासिक यात्रा की। मोदी जी ने कहा कि भारत इस्राएल के उत्कृष्ट गुणवत्ता ओर कम कीमत वाले हथियार खरीदना चाहता है।

इसरायली राष्ट्रपति ने एयरपोर्ट पर आ कर मोदी जी का हिंदी बोल कर स्वागत किया

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इसके साथ ही भारत ने रूस के साथ 2016 मे किये गए S400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम खरीदने के अपने करार पर भी पीछे हटने के संकेत दिये।

अपने सबसे बड़े हथियार क्रेता को दूर जाते देख मई 2018 में एक अनौपचारिक मुलाकात के दौरान पुतिन ने भारत से S400 की खरीद को पुख़्ता करने की गुजारिश की

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मोदी जी ने यह शर्त रखी कि 40 हज़ार करोड़ के S400 की खरीद तभी संभव है जब रूस CPEC पर लिए गए अपने स्टैंड से वापस हटे।

पुतिन की पुष्टि के बाद अक्टूबर 2018 में भारत ने रूस के साथ S400 की खरीद का आधिकारिक करार किया।

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उधर S400 की खरीद से आग बबूला हुए अमेरिका ने भारत पर सैंक्शन्स लगाने की धमकी दी। परंतु भारत ने अमेरिका से रक्षा खरीद को 5 वर्ष में 5 गुना बढ़ा कर खुद को एक ऐसे मार्केट की तरह प्रस्तुत किया जिससे अमेरिका द्वारा एकतरफा सैंक्शन्स लगाना संभव नही हुआ।

2014- 3%
2019 - 15%

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अगस्त 2017 - वापस आते हैं अफ़गानिस्तान

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने पाकिस्तान के ऊपर तालिबान को संरक्षण देने का आरोप लगा कर पाक के ऊपर जबरदस्त दवाब बनाया। दबाव बढ़ाने के लिए ट्रम्प ने भारत से अफगानिस्तान में बड़ी भूमिका निभाने की अपील कर के भारत के लिए बिसात खोल दी

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सितंबर 2018

ट्रम्प ने जलमय ख़ालिज़ाद को अफगान मामलों का सलाहकार नियुक्त कर के आधिकारिक तौर पर एक दशक से सोए हुए "अफगानिस्तान शांति समझौते" की शुरुआत की। इस समझौते के लिए तालिबान, अमेरिका, चीन, रूस और पाकिस्तान टेबल पर आयें और जो टेबल पर नहीं आये वो थे अफगानी सरकार और भारत

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भारत ने यह स्टैंड लिया कि वह किसी भी ऐसे टेबल पर नहीं बैठेगा जहाँ तालिबान जैसे किसी आतंकी संगठन का प्रतिनिधित्व हो। भारत के हिसाब से कोई भी समझौता अफगान सरकार द्वारा तथा अफगान सरकार के नेतृत्व में ही होना चाहिए। इस स्टैंड के लिए दुनिया के विश्लेषकों ने भारत की अलोचना की

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कहा यह गया कि मोदी वास्तविकताओं को नही समझते और उन्हें तालिबान को केवल एक आतंकी संगठन समझने की भूल नहीं करनी चाहिए। पर मोदी जी के मन में तो दूर की कौड़ी थी।

मैं कहता हूँ कि जब इस देश में कोई भी विपक्षी उनकी रणनीति नही भाँप सकता तो तुम विदेशी क्या ही समझोगे 😉

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30 सितंबर 2019

यह मियाद थी अमेरिका और तालिबान के बीच समझौता स्थापित होने की। तालिबान के साथ अमेरिका, चीन, रूस और पाकिस्तान टेबल पर तो बैठे पर कोई समझौता नहीं हो पाया। ट्रम्प ने समझौते के फेल होने की घोषणा की और अमेरिकी सैनिको को अफ़ग़ानिस्तान में बनाये रखने की धमकी दी।

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समझौता क्यों फेल हुआ?
छोटा जवाब - भारत की ग़ैरमौजूदगी

लंबा जवाब यह है कि भारत के अफगानी सरकार और अफगानी जनता के साथ अत्यंत मधुर संबंध है। विश्लेषको को समझ में आया कि वास्तविकता तालिबान नही अपितु अफगानी सरकार का महत्व है जिसे सही समय पर भारत के अलावा और कोई नही समझ पाया।

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एक तरफ 2001 से अमेरिका और नाटो वहाँ बमबारी कर रहे थे, जबकि हमने विकास उन्मुख कार्य किये। 2002 के बॉन समझौते के बाद से हमने अफगानिस्तान को 3 बिलियन डॉलर की सहायता की

• संसद निर्माण
• सड़क निर्माण
• डैम निर्माण
• छात्रवृत्ति
• मेडिकल सहायता
• क्रिकेट का विकास

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भारत की अफगानी जनता और सरकार में गुडविल तथा भारतीय एजेंसियों की अफगानिस्तान में भारी पकड़ के कारण, बिना भारत को टेबल पर लिए सभी अफगानी गुटों का एकमत होना असंभव है।

झुँझला कर ट्रम्प ने कहा कि भारत को एक बड़ा रोल प्ले करते हुए अफगानिस्तान में अपनी शांति सेना भेजनी चाहिए।

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24 फरवरी, 2020

ट्रम्प की पिछली अपील के बाद भारत और अमेरिका की बैक डोर वार्ता हुई। ट्रम्प ने समझौते की तारीख तय की 29 फरवरी और डील साइन करने से पहले मोदी जी से चर्चा करने भारत आये।

ऊपर से केम छो ट्रम्प से छिपा हुआ यह कार्यक्रम दरअसल समझौते के मोल भाव का महत्वपूर्ण चरण था।

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29 फरवरी, 2020

• कतर की राजधानी दोहा में सारे पक्ष एकजुट होते हैं
• तालिबान और अमेरिका शांति समझौते की आधिकारिक घोषणा करते हैं
• अफगानी सरकार भी इसका स्वागत करती है 😉
• भारत भी अपना प्रतिनिधि भेजता है हालाँकि ऊपरी तौर पर भारत ने इसका स्वागत नही किया।

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समझौते में क्या बातें आयी?

• अमेरिका 14 महीनों में चरणबद्ध तरीके से अपने सैनिक वापस लेगा
• अफगान सरकार तथा तालिबान युद्धविराम की घोषणा के अलावा बंदियों की अदलाबदली करेंगे

इन घोषणाओं के सफल होने के लिए अमेरिका भारत की मदद पर काफी निर्भर है, जिसके बिना पुनः फेल हो सकता है

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अमेरिका को भारत से क्या मदद चाहिए?

• भारत की शांति सेना अमेरिकी सेना की जगह ले
• भारत अफगानिस्तान के नवीन संवैधानिक, जनतांत्रिक, न्यायिक तथा सुरक्षा ढांचे को खड़ा करे
• भारत वहाँ की सिविल सोसाइटी जैसे कि महिलाएं, अल्पसंख्यक, इत्यादि के प्रतिनिधित्व को स्थपित करे

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एवरीथिंग कम्स एट अ कॉस्ट। भारत अगर अफगानिस्तान शांति समझौते में अपनी अति महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए तैयार हुआ है तो उसे बदले में क्या चाहिए?

कश्मीर?
नही!

भारत को गिलगित बल्टिस्तान वापस चाहिए। भारत को इस क्षेत्र के पुनर्विलय में अंतरराष्ट्रीय समुदाय का समर्थन चाहिए

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5 अगस्त, 2019

अमित शाह संसद में धारा 370 और 35A हटाने का बिल पेश करते हैं और लगे हाथ जम्मू कश्मीर राज्य का पुनर्गठन कर के गिलगित बल्टिस्तान को कश्मीर से अलग कर देते हैं।

इस विषय पर अधिक जानकारी 👇



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गिलगित बल्टिस्तान को अलग करने के मायने

• कश्मीर मामला नेहरू के UN चले जाने के कारण ज्यादा जटिल है जबकि गिलगित का लीगल स्टेटस अपेक्षाकृत ज़्यादा साफ तौर पर भारत के पक्ष में है

• गिलगित के बाद हमारे लिए कश्मीर का सामरिक महत्व नगण्य है

• CPEC का लिंक बीच में से टूट जाना

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अमेरिका को इससे क्या लाभ?

• अपने सैनिक अफगानिस्तान से वापस लाना ट्रम्प का चुनावी वादा है और नवंबर में चुनाव हैं
• CPEC प्रोजेक्ट ध्वस्त होने से चीन की इलाकाई प्रभुता को भारी नुकसान पहुँचेगा
• भारी बचत: अमेरिका अब तक अफगानिस्तान युद्ध पर 2 ट्रिलियन डॉलर खर्च कर चुका है

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रूस को क्या लाभ?

• अमेरिका का अफगानिस्तान से निकलना रूस के लिए दूरगामी तौर पर लाभदायक
• रूस की अर्थव्यवस्था गिर कर 12वे स्थान पर पहुँच गयी है। भारत अपनी हथियारों की खरीद बढ़ाएगा|
• नए S400 के अलावा भारत Pantsir मिसाइल डिफेंस सिस्टम की बड़ी खेप खरीद सकता है

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अपने "मोतियों की माला" के मणि CPEC और भविष्य के उपनिवेश पाकिस्तान को हाथों से जाते देख चीन की बौखलाहट बढ़ गयी है। परिणामतः उसने लद्दाख बॉर्डर पर भड़काऊ गतिविधियां चालू की तथा नेपाल को भड़काया। दोनों जगह उसे हफ्ते में मुँह की खानी पड़ी। अभी हो रही घटनाओं की बिग पिक्चर समझें

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चीन से समझौता कैसे होगा?

• कोविड सोर्स की जांच मे भारत न्यूट्रल रहेगा
• दुनिया भर में चीन के खिलाफ बढ़ रहे दबाव के बीच भी भारत One China पालिसी का सम्मान करेगा
• BRI परिजोजना के दुसरे प्रोजेक्ट्स में भारत सम्मिलित हो सकता है

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इन संभावनाओं पर मोदी जी और इलेवन जिंगपिंग की बात 2018 में वुहान के रहस्यमयी अनौपचारिक मुलाकात के दौरान हो चुकी है और फिलहाल की घटनाएं मात्र आखिरी रस्साकस्सी है।

आपने गौर किया होगा कि भारत ने बार्गेन चिप के तौर पर मीनाक्षी लेखी जी को ताइवानी शपथ ग्रहण समारोह में भेजा था 😜

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नरेंद्र मोदी - टफ़ नेगोसीएटर
अजित डोवाल - गहरी जमीनी समझ
एस जयशंकर - चीन विशेषज्ञ
अमित शाह - घरेलू राजनीति विशेषज्ञ
जनरल रावत - समस्त सेना अध्यक्ष

अपने पांडवों में विश्वास रखिये, अगर भविष्य घटनाक्रम में कोई भीषण परिवर्तन नहीं आया तो *2022 तक गिलगित बल्टिस्तान हमारा होगा*|

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पाकिस्तान के पास तो परमाणु हथियार हैं, इन सब के बीच पाकिस्तान का क्या रिएक्शन होगा? क्या पाकिस्तान भारत से युद्घ नही छेड़ देगा?

इस फील्ड सेटिंग में पाकिस्तान नितांत अकेला और कमजोर होगा क्योंकि केक कटेगा सब मे बटेगा।

और वैसे भी साँढ़ों के खेल में पिल्ले का क्या काम?

41/41 Fin
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