My Authors
Read all threads
19 जुलाई
इतिहास स्मृति
जलियांवाला के प्रतिशोधी ऊधमसिंह 🙏

ऊधमसिंह का जन्म ग्राम सुनाम (जिला संगरूर, पंजाब) में 26दिसम्बर, 1899 को सरदार टहलसिंह के घर में हुआ था। मात्र दो वर्ष की अवस्था में ही इनकी माँ का और सात साल का होने पर पिता का देहान्त हो गया
@_Krantikari @PunjabTourisms
ऐसी अवस्था में किसी परिवारजन ने इनकी सुध नहीं ली। गली-गली भटकने के बाद अन्ततः इन्होंने अपने छोटे भाई के साथ अमृतसर के पुतलीघर में शरण ली। यहाँ एक समाजसेवी ने इनकी सहायता की।

19 वर्ष की तरुण अवस्था में ऊधमसिंह ने 13 अपै्रल, 1919 को बैसाखी के पर्व पर जलियाँवाला बाग,
अमृतसर में हुए नरसंहार को अपनी आँखों से देखा। सबके जाने के बाद रात में वे वहाँ गये और रक्तरंजित मिट्टी माथे से लगाकर इस काण्ड के खलनायकों से बदला लेने की प्रतिज्ञा की। कुछ दिन उन्होंने अमृतसर में एक दुकान भी चलायी। उसके फलक पर उन्होंने अपना नाम ‘राम मोहम्मद सिंह आजाद’ लिखवाया था।
इससे स्पष्ट है कि वे स्वतन्त्रता के लिए सब धर्म वालों का सहयोग चाहते थे।

ऊधमसिंह को सदा अपना संकल्प याद रहता था। उसे पूरा करने हेतु वे अफ्रीका से अमरीका होते हुए 1923 में इंग्लैंड पहुँच गये। वहाँ क्रान्तिकारियों से उनका सम्पर्क हुआ।
@R_HLata @bjymapofficial @BjymHO
1928 में वे भगतसिंह के कहने पर वापस भारत आ गये; पर लाहौर में उन्हें शस्त्र अधिनियम के उल्लंघन के आरोप में पकड़कर चार साल की सजा दी गयी। इसके बाद वे फिर इंग्लैंड चले गये। तब तक जलियांवाला बाग में गोली चलाने वाला जनरल डायर अनेक शारीरिक व मानसिक रोगों से ग्रस्त होकर
23 जुलाई, 1927 को आत्महत्या कर चुका था; पर पंजाब का तत्कालीन गवर्नर माइकेल ओडवायर अभी जीवित था।

13 मार्च, 1940 को वह शुभ दिन आ गया, जिस दिन ऊधमसिंह को अपना संकल्प पूरा करने का अवसर मिला। इंग्लैंड की राजधानी लन्दन के कैक्स्टन हॉल में एक सभा होने वाली थी।
इसमें जलियाँवाला बाग काण्ड के दो खलनायक सर माइकेल ओडवायर तथा भारत के तत्कालीन सेक्रेटरी अ१फ स्टेट लार्ड जेटलैंड आने वाले थे। ऊधमसिंह चुपचाप मंच से कुछ दूरी पर जाकर बैठ गये और उचित समय की प्रतीक्षा करने लगे।

माइकेल ओडवायर ने अपने भाषण में भारत के विरुद्ध बहुत विषवमन किया।
भाषण पूरा होते ही ऊधमसिंह ने गोली चला दी। ओडवायर वहीं ढेर हो गया। अब लार्ड जैटलैंड की बारी थी; पर उसका भाग्य अच्छा था। वह घायल होकर ही रह गया। सभा में भगदड़ मच गयी। ऊधमसिंह चाहते, तो भाग सकते थे; पर वे सीना तानकर वहीं खड़े रहे और स्वयं को गिरफ्तार करा दिया।
न्यायालय में वीर ऊधमसिंह ने आरोपों को स्वीकार करते हुए स्पष्ट कहा कि मैं पिछले 21 साल से प्रतिशोध की आग में जल रहा था। माइकेल ओडवायर और जैटलैंड मेरे देश भारत की आत्मा को कुचलना चाहते थे। इसका विरोध करना मेरा कर्त्तव्य था।
इससे बढ़कर मेरा सौभाग्य क्या होगा कि मैं अपनी मातृभूमि के लिए मर रहा हूँ।

ऊधमसिंह को 31 जुलाई, 1940 को पेण्टनविला जेल में फाँसी दे दी गयी। मरते समय उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा - 10 साल पहले मेरा प्यारा दोस्त भगतसिंह मुझे अकेला छोड़कर फाँसी चढ़ गया था।
अब मैं उससे वहाँ जाकर मिलूँगा। वह मेरी प्रतीक्षा कर रहा होगा।

स्वतन्त्रता प्राप्ति के 27 साल बाद 19 जुलाई, 1974 को उनके भस्मावशेषों को भारत लाया गया। पाँच दिन उन्हें जनता के दर्शनार्थ रखकर ससम्मान हरिद्वार में प्रवाहित कर दिया।

@prettypadmaja @AB_BJP @Aabhas24
Missing some Tweet in this thread? You can try to force a refresh.

Keep Current with MKG 2.0 🇮🇳

Profile picture

Stay in touch and get notified when new unrolls are available from this author!

Read all threads

This Thread may be Removed Anytime!

Twitter may remove this content at anytime, convert it as a PDF, save and print for later use!

Try unrolling a thread yourself!

how to unroll video

1) Follow Thread Reader App on Twitter so you can easily mention us!

2) Go to a Twitter thread (series of Tweets by the same owner) and mention us with a keyword "unroll" @threadreaderapp unroll

You can practice here first or read more on our help page!

Follow Us on Twitter!

Did Thread Reader help you today?

Support us! We are indie developers!


This site is made by just two indie developers on a laptop doing marketing, support and development! Read more about the story.

Become a Premium Member ($3.00/month or $30.00/year) and get exclusive features!

Become Premium

Too expensive? Make a small donation by buying us coffee ($5) or help with server cost ($10)

Donate via Paypal Become our Patreon

Thank you for your support!