In September 2017, Modi visited Sidi Saiyyed mosque in Ahmedabad alongwith Japanese PM Shinzo Abe.
In February 2018 he visited Sultan Qaboos Grand mosque in Muscat during his official visit there.
In June 2018 during his visit to Singapore, PM Modi visited Chulia mosque there.
Liberal secular hypocrites never raised any questions on these occasions.
This is not to show Modi as a champion of appeasement politics but to call out the hypocrisy of India's so called liberal secular jamaatis like Owaisi, Rana, Naqvi & Sagarika etc.
• • •
Missing some Tweet in this thread? You can try to
force a refresh
हर साल दीपावली के त्यौहार में हिंदुओं को सरकार और न्यायालय से भीख माँगने पर मजबूर कर दिया जाता है- पटाखे जलाने के लिए। बच्चे एक एक फुलझड़ी के लिए तरस जाते हैं। लेकिन सरकार का न्यायालय का हृदय नहीं पिघलता। #crackerban
ये सब किया जाता है, प्रदूषण रोकने के नाम पर। पूरे साल प्रशासन कुम्भकर्ण की नींद सोया रहता है, दीपावली आते ही अचानक प्रशासन की नींद खुलती है और आनन फ़ानन में दीपावली के पटाखों पर प्रतिबंध लगाकर सब अपने कर्तव्य की इति श्री कर लेते हैं। #crackerban
लेकिन ऐसे बेतुकेपन का कोई वैज्ञानिक आधार है? उससे बड़ा प्रश्न यह है कि क्या प्रशासन का उद्देश्य वास्तव में प्रदूषण को रोकना है? साल भर में केवल एक दिन मनाए जाने वाला उत्सव पूरे साल के प्रदूषण का कारण कैसे हो सकता है? यदि नहीं तो हर साल इसी त्यौहार को निशाना क्यूँ बनाया जाता है?
उत्तर प्रदेश में महिलाओं पर अत्याचार कम हुए हैं या बढे हैं, नहीं कह सकता, आंकड़ों का हिसाब रखने वाले बताएँगे। लेकिन महिलाओं पर अत्याचार प्रदेश के लिए कोई नयी बात नहीं है। प्रदेश ही क्यों, पुरे देश के लिए कोई नयी बात नहीं है। और महिलाएं ही क्यों, दलितों पर अत्याचार भी देश के किसी
भी हिस्से में होना कोई नयी बात नहीं है।
फिर क्या वजह है की अचानक से कोई मामला उत्तर प्रदेश में तूल पकड़ लेता है। शेमस्ट्रीम मीडिया और सोशल मीडिया पर आग लग जाती है और माहौल बनाने वाले लोग एजेंडा चलने लगते हैं कि प्रदेश में क़ानून का राज नहीं है और प्रदेश में कोई सुरक्षित नहीं है-
दलित हो या महिला - दोनों हो तो और भी ज्यादा।
दरअसल २०१७ में मुख्यमंत्री बनने के बाद से ही योगी महाराज ने अपराध और अपराधियों के खिलाफ बिगुल बजा दिया था। अपराध पर नकेल कसने के लिए महाराज जी ने पूरी ताकत झोंक रखी है। माफिया गिरोहों के खिलाफ पुलिस ने अभूतपूर्व कार्यवाही की है।
अपने यहाँ जातिगत भेदभाव एक बड़ी समस्या रही है, इससे मुँह नहीं मोड़ा जा सकता। हिन्दू धर्म की सबसे ज्यादा आलोचना यदि किसी बात को लेकर होती है तो वो यही है। यद्यपि, पिछले कई दशकों में हमने इसको कम करने के लिए भरपूर प्रयास किये हैं और ऐसा नहीं है की हमे सफलता नहीं मिली है।
हाँ, सफलता जैसी मिलनी चाहिए, वैसी नहीं मिली परन्तु हम यह जरूर कह सकते हैं कि समाज के एक बड़े तबके में अब इस भेदभाव के लिए स्थान नहीं है।
दलितों आदिवासिओं को अभी भी इस दंश का सामना करना पड़ता है, इसी का फ़ायदा उठाकर धर्मान्तरण करने वाले अपने व्यापार का प्रसार करने में सफल हुए हैं।
इसलिए विशेषकर दलितों और आदिवासिओं को समाज में उनका गौरवशाली स्थान पुनर्स्थापित करने के लिए हमे और प्रयास करने होंगे।
यहाँ दो बातों पर ध्यान देना विशेष आवश्यक है, जो इस बीमारी का समूल नाश करने में सहायक होंगी –
बचपन में पढ़ा करते थे कि भारत एक कृषि प्रधान देश है, आज है या नहीं पता नहीं। हमेशा यही सुनने को मिलता था कि किसानों की तरक्की के बग़ैर इस देश का भला नहीं हो सकता। किसानों की आर्थिक उन्नति भारत की उन्नति के लिए अत्यावश्यक है। किसान का बेटा होकर यह सब सुनना अच्छा लगता था।
लेकिन पिछले साठ सत्तर सालों में किसानों की दशा दिशा सुधारने को लेकर कोई विशेष कार्य नहीं हुआ। हरित क्रांति के नाम पर रासायनिक खाद झोंककर कुछ राज्यों के किसानों ने उत्पादन बढ़ा लिया, इसके अलावा किसान और किसानी की उन्नति के लिए कोई गंभीर प्रयास नहीं हुआ।
साल दर साल एमएसपी बढ़ाकर कर्तव्य की इतिश्री करने वाले नेता, गांव और किसान के नाम पर सबसे ज्यादा वोट मांगते रहे। वही नेता यदि किसानों के लिए भूले भटके कोई सरकार एक आध अच्छा कदम उठाती है तो उसका दम भर विरोध करते हैं। आखिर यह विरोधाभास क्यों?
बम्बई में जितने स्टार नहीं बनते हैं, उससे ज्यादा ब्यूरोक्रेट्स प्रयागराज, बैंकर पटना और इंजीनियर कोटा में बनते हैं। लेकिन ऐसा क्या खास है फिल्मी सितारों में कि उनकी आलोचना नहीं कर सकता कोई। आप जैसे ही उनसे कोई सवाल करेंगे तो वह बम्बई की बेइज्जती माना जायेगा। बम्बई रूठ जाएगी।
ब्यूरोक्रेट्स से सवाल पूछने या उनकी आलोचना करने पर प्रयागराज ने कभी बुरा नहीं माना। ऐसे ही बैंकर्स और इंजीनियरों की आलोचना होने पर कभी पटना या कोटा ने भी बुरा नहीं माना।
ये बम्बई के पेट में फिर क्यों दर्द होने लगता है? इस दर्द की वजह क्या है?
दरअसल ये बॉम्बे स्पिरिट और मराठा प्राइड के नाम पर फिल्मी दुनिया के काले कारनामों को दबाने की कोशिश की जाती है।
आप नेताओं को दिन भर पानी पी पीकर बुरा भला कह सकते हैं, गाली दे सकते हैं, सवाल पूछ सकते हैं लेकिन अभिनेताओं से नहीं पूछ सकते क्योंकि थाली में छेद हो जाएगा।
6-Dec-92 was a day of national pride, not national shame. I have no regret, no repentance, no sorrow, no grief ~ Shri Kalyan Singh, the man who made it possible for us to see our dream of Ram Mandir turns into reality.
This footage is testimony to one of the bravest displays of Hindu pride &bhakti. Some of the greatest Rambhakts doing Lanka Dahan act on a Dhancha which stood as a nail in the heart of an entire civilisation.