'सावन का अँधा' बड़ी खतरनाक प्रजाति है। विशेष रूप से भारत जैसे सूखाप्रधान देश में। सावन का अँधा गधा हरी घास के धोखे में कुछ उल्टा सीधा खा ले तो लेने के देने पड़ सकते हैं।
सावन का अँधा अपने खुद के लिए तो खतरनाक होता ही है, पर जब नेता बन जाए तो पूरे देश और समाज का बेड़ागर्क कर देता है। वो सूखी गर्मी में भी लोगों को रैनकोट बँटवायेगा। नेहरूजी १९२७ में रूस गए और वहाँ समाजवाद की क्रांति (वहाँ का सावन) के अंधे हो के आये।
राजीव गाँधी अमरीका में अंधे हुए थे इसलिए इतना लोन लिया की 1991 में देश दिवालिया होते होते बचा। मोदी जी वैसे तो बाहर ही रहते हैं (करोनाकाल की बात छोड़ दें), पर अंधे हुए अपने भक्तों की भक्ति से। उनपे प्राइवेटाइजेशन कि धुन सवार है। ये पता नहीं कहाँ जा कर रुकेंगे।
सावन के अंधे लगभग सभी जगह पाए जाते हैं। बैंकों में भी। ये लोग अक्सर आपको RO/ZO या ट्रेनिंग सेंटर वगैरह में कुर्सियां तोड़ते मिल जाएंगे। पोस्टिंग इनकी घर के नजदीक रहती है और ये रहते हैं ब्रांच की हकीकत से कोसों दूर।
इनका रिकॉर्ड रहता है कि कभी ब्रांच में पोस्टेड नहीं रहे, अगर रहे भी तो सिर्फ प्रमोशन के लिए mandatory experience के लिए, वो भी जन्नत टाइप ब्रांचों में। ये बैक ऑफिसों में रहके अंधे हो चुके होते हैं।
लोकल है, सबसे कांटेक्ट में रहते हैं, ऑफिस में फ्री रहते हैं इसलिए यूनियन में घुस जाते हैं क्यूंकि खाली दिमाग शैतान का घर। फिर ये रिप्रेजेंट करते हैं ब्रांचों में 12 घंटे खटने वाले, घर से 3००० किलोमीटर दूर पोस्टेड, दिन में 500 कस्टमर डील करने वाले,
दुनिया भर की पेनल्टी जेब से भरने वाले, कस्टमर से लेकर आला अधिकारीयों सब से गाली खाने वाले, २-२ दिन की छुट्टियों के लिए गिड़गिड़ाने वाले, कभी मैगी कभी चाय ब्रेड पे जिन्दा रहने वाले, बैंकरों को।
फिर बैंकरों के ऊपर लादा जाता है DBT बाँटने का काम, PMFBY की डाटा एंट्री का काम, आधार अपडेट करने का काम, बीमा बाँटने का काम, और कई ऐसे काम जिसका बैंकिंग से दूर दूर तक कोई लेना देना नहीं। क्यूंकि जो समझौता करने गया है वो तो सावन का अँधा है, उसको क्या पता सूखा कैसे पड़ता है।
अगर ब्रांच मैनेजर रोज के 5 लोगों को बीमे के लिए नहीं मना पाता है तो उसकी negotiation स्किल ख़राब है लेकिन वो 3 साल में 2.5% का सेटलमेंट करवाता है तो उससे बड़ा वाक्चातुर्य का धनी कोई नही। उसके लिए लिए तो बैंकिग से बढ़िया नौकरी कोई है ही नहीं। ब्रांच वाला मरे तो मरे।
जब तक बैक ऑफिसों में यूनियन वालों का कब्ज़ा रहेगा असली बैंकर सड़ता रहेगा। बैंकरों को सुरक्षा चाहिए। इन सड़े हुए यूनियनों में भरे हुए नकली बैंकरों से भी।
थ्रेड: #बेगानी_शादी
नौकरीपेशा आदमी के लिए जिंदगी की हर चीज मुसीबत की तरह ही लगती है। फलाने की शादी है। ज्यादा करीब हुआ तो छुट्टी लेनी पड़ेगी, नहीं तो ऑफिस से जल्दी निकलकर शादी में जाना पड़ेगा। अगर फैमिली रिलेशन है तो वाइफ को भी साथ ले जाना पड़ेगा।
नहीं तो कोशिश तो अकेले ही अटेंडेंस लगाने की रहती है। आठ बजे ऑफिस से छूटो, फिर शादी में जाओ। लिफाफा भी तो देना है। घर पहुँचते पहुँचते 11 बज जाते हैं। त्यौहारों का तो और भी बुरा हाल है। एक दिन की छुट्टी में क्या त्यौहार मनाये आदमी।
दिवाली पे अक्सर एक दिन की छुट्टी आती है। कई जगह दो दिन की और कई जगह तो कोई छुट्टी ही नहीं। एक दिन की छुट्टी में क्या दिवाली मनाये आदमी?
थ्रेड: #हंस_चला_बगुले_की_चाल
भारत एक मानसून आधारित देश हैं जहाँ साल में एक तिहाई समय मानसून का होता है। मानसून में जबरदस्त बरसात होती है। साल भर के हिस्से की बरसात चार महीनों में ही हो जाती है। बाकी समय लगभग सूखा ही रहता है।
यहाँ के मानसून को समझना विदेशियों के लिए हमेशा से एक टेढ़ी खीर ही रहा। विशेषकर अंग्रेज तो मानसून से इतने परेशान थे कि भारत की कृषि व्यवस्था की रीढ़ तोड़कर ही माने। लेकिन भारतीयों के लिए मानसून जीवनशैली का एक अभिन्न अंग था। हमारी जीवनशैली मानसून के हिसाब से ढली हुई थी।
मानसून के "चौमासे" में न तीर्थ यात्रा होती थी और ना ही शुभ कार्य जैसे विवाह इत्यादि। इन चार महीनों में हो देवताओं से सोने की परंपरा शुरू हुई थी वो आज भी जारी है। राम ने भी लंका पर चढ़ाई चार महीने के लिए रोकी थी और मानसून के दौरान माल्यवान पर्वत पर इंतज़ार किया था।
थ्रेड: #अंधी_पीसे_कुत्ता_खाय
भूखी जनता राजा के पास पहुंची: महाराज!!! विदेशी सब लूट के ले गए। खाने को कुछ नहीं है। कुछ कीजिये।
राजा (मंत्रियों से): सबके भोजन का इंतज़ाम करो। और सबको अन्न उगाने के लिए पर्याप्त भूमि, बीज खाद दो ताकि भविष्य में कोई भूखा न रहे।
कुछ समय बाद राज्य के सभी धनी व्यापारी राजा के पास पहुंचे: महाराज!!! हम तो बर्बाद हो गए।
राजा: क्या हुआ?
व्यापारी: महाराज!!! लोग खुद ही अन्न उगा रहे हैं और खा रहे हैं। साथ ही बुरे समय के लिए अन्न बचा भी रहे हैं। लोग आत्मनिर्भर हो रहे हैं। हमारी किसी को जरूरत ही नहीं।
फिर हमारा क्या होगा?
राजा: तो मैं क्या करूँ? जनता को अन्न उगाने से तो नहीं रोक सकता।
व्यापारी: लेकिन अन्न बचाने से तो रोक सकते हैं। ताकि हमारी भी दुकान चल सके। याद रखिये की आपका सिंहासन रथ वगैरह सब हमने ही स्पांसर किया हुआ है।
तो हुआ यूं कि पिछले महीने हमारी मोबाइल फ़ोन की एलिजिबिलिटी रिन्यू हुई। और हमारा फ़ोन भी काफी पुराना हो चुका था। छः साल से एक ही फ़ोन को चला रहे थे। हमारे फ़ोन को लोग ऐसे नजरों से देखते थे
जैसे कि हड़प्पा की खुदाई से निकला हुआ कोई नमूना देख लिया हो। लेकिन हम भी उस पुराने फ़ोन को घूंघट के ऑउटडेटेड रिवाज़ की तरह चलाये जा रहे थे। लेकिन समस्या तब हुई जब मोबाइल बैंकिंग के एप्प ने एंड्राइड 8 को ब्रिटिशराज घोषित करके आज़ादी की मांग कर दी।
अब तो हमें नया फ़ोन चाहिए ही था। अब चूंकि हम मोबाइल की दुनिया में चल रही क्रांति से नावाक़िफ़ थे इसलिए हमने यूट्यूब का रुख किया। वहां हमको अलग ही लेवल की भसड़ मिली। उनके बारे में बाद में बात करेंगे।
नोटबंदी जैसी तुग़लकी स्कीम जिससे सिर्फ एक पार्टी और चंद पूंजीपतियों को हुआ, लेकिन पूरा देश एक एक पैसे के लिए तरस गया, धंधे बर्बाद हो गए, बैंकरों ने अपनी जान खपा दी, दिन रात पत्थरबाजी झेली, रोज गालियां खाई,
साहब के कपड़ों की तरह दिन में कई कई बार बदले नियमों को झेला, नुक्सान की भरपाई जेब से करी। और जैसा कि होना था, भारी मीडिया मैनेजमेंट और ट्रोल्स की फ़ौज के बावजूद नोटबंदी फेल साबित हुई।
जब नोटबंदी फेल हुई थी तो बड़ी बेशर्मी से इन लोगों ने नोटबंदी की विफलता का ठीकरा बैंकों के माथे फोड़ दिया।
"अजी वो तो बैंक वाले ही भ्रष्ट हैं वरना जिल्लेइलाही ने तो ऐसे स्कीम चलाई थी कि देश से अपराध ख़त्म ही हो जाना था।"
थ्रेड: #ड्यू_डिलिजेंस
बैंक में ड्यू डिलिजेंस बहुत जरूरी चीज है। बिना ड्यू डिलिजेंस के हम लोन देना तो दूर की बात है कस्टमर का करंट खाता तक नहीं खोलते।
लोन देने से पहले पचास सवाल पूछते हैं। पुराना रिकॉर्ड चेक करते हैं। चेक बाउंस हिस्ट्री चेक करते हैं।
और लोन देने के बाद भी उसकी जान नहीं छोड़ते। किसी कस्टमर के खाते में अगर एक महीने किश्त ना आये तो उसकी CIBIL खराब हो जाती है। और तीन महीने किश्त न आये तो खाता ही NPA हो जाता है और फिर उसे कोई लोन नहीं देता। #12thBPS
अगर डॉक्यूमेंट देने में या और कोई कम्प्लाइंस में ढील बरते तो बैंक पीनल इंटरेस्ट चार्ज भी करते हैं। लेकिन बैंकों का ये ड्यू डिलिजेंस केवल कस्टमर के लिए ही है। पिछले 56 सालों से बैंकरों का अपना रीपेमेंट टाइम पर नहीं आ रहा। हर पांच साल में बैंकरों का वेज रिवीजन ड्यू हो जाता है।