(१) दोल यंत्र
(२) स्वेदनी यंत्र
(३) पाटन यंत्र
(४) अधस्पदन यंत्र
(५) ढेकी यंत्र
(६) बालुक यंत्र
(७) तिर्यक् पाटन यंत्र
(८) विद्याधर यंत्र
(९) धूप यंत्र
(१०) कोष्ठि यंत्र
(११) कच्छप यंत्र
(१२) डमरू यंत्र
अन्य
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पारे का प्रयोग शरीर को निरोगी और दीर्घायुष्य बनाने में होता था।
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करोति शुल्वं त्रिपुटेन काञ्चनम्॥
सुवर्ण रजतं ताम्रं तीक्ष्णवंग भुजङ्गमा:।
लोहकं षडि्वधं तच्च यथापूर्व तदक्षयम्॥(रसरत्नाकार-३-७-८९-१०)
अर्थात् – धातुओं के अक्षय रहने का क्रम निम्न प्रकार से है- सुवर्ण, चांदी, ताम्र, वंग, सीसा, तथा लोहा।
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रासायनिक क्रिया द्वारा धातु के हानिकारक गुण दूर कर उन्हें राख में बदलने पर उस धातु की राख को भस्म कहा जाता है
मुख्य औषधि
लौह भस्म (क्ष्द्धदृद)
सुवर्ण भस्म (क्रदृथ्ड्ड)
रजत भस्म (च्त्थ्ध्ड्ढद्ध)
ताम्र भस्म (क्दृद्रद्रड्ढद्ध)
सीस भस्म (ख्र्ड्ढठ्ठड्ड) प्रयोग होता है।
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अष्टो सीसक भागा: कांसस्य द्वौ तुरीतिकाभाग:।
मया कथितो योगोऽयं विज्ञेयो वज्रसड्घात:॥
अर्थात् एक यौगिक जिसमें आठ भाग शीशा, दो भाग कांसा और एक भाग लोहा हो उसे मय द्वारा बताई विधि का प्रयोग करने पर वह वज्रसङ्घात बन जाएगा।
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@Dharma_Yoddhaa
छांदोग्य उपनिषद् में धात्विक मिश्रणन का स्पष्ट वर्णन मिलता है। रासायनिक क्रियाओं के ज्ञान के प्रमाण के साथ हम रसायन शास्त्र का प्रारंभ मान सकते हैं
@rightwingchora