दिग्विजयी सम्राट सुधन्वा चौहान (चाहमान), जिन्होंने यूरोप पर सनातन का परचम लहराया,को इतिहास के पन्नो पर स्थान क्यो नही दिया गया
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जगतगुरु आदि शंकराचार्य और शिष्य सुधन्वा ऐसे नाम हैं जिनके बिना भारतीय इतिहास का वर्णन अधूरा है
सम्राट सुधन्वा सन ५००-४७० ई. पूर्व दक्षिणी अवन्ति के शासक थे। माहिष्मती नगरी उनकी राजधानी थी जो वर्तमान में मध्यप्रदेश में महेश्वर नाम से ज्ञात हैं ।
राजा सुधन्वा चौहान का उल्लेख
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मठाम्नाय – महानुशासनम: में भी मिलता है
सम्राट सुधन्वा चौहान ने सन ४९८ ई.पूर्व ग्रीस के शासक Thymoetes से युद्ध किया था। इस युद्ध का वर्णन “Battle of Thunder” के नाम से किया जाता है। सुधन्वा चौहान ने विजय प्राप्त कर एथेंस ग्रीस पर कब्ज़ा कर लिया था।
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Thymoetes के अधीन जितने भी राज्य आते थे जैसे बुल्गरिया, मैसिडोनिया, एवं ग्रीस जो उस समय दक्षिण यूरोप की राजधानी हुआ करता था उन सबको जीत लिया था।
एथेंस par विजय कर सुधन्वा चौहान ने सनातन वैदिक ध्वज लहरा कर विश्व विजय के लिए मुहिम छेड़ी थी।
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सुधन्वा ने धर्म युद्ध के नियमो का पालन कर किसी भी देश की संस्कृति को ध्वस्त नहीं किया। हिन्दू राजा की दुश्मनी देश के राजा से होती थी, देश विजय करने के पश्चात वहाँ की नारियों का शील भंग नहीं करते थे। जिस देश को विजय करते थे उस देश की प्रजा के साथ भी संतान तुल्य व्यावहार किया
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राजा सुधन्वा चौहान ने उत्तर, दक्षिण, पूर्व एवं पश्चिम यूरोप तक चारों दिशाओं को जीता। युद्ध कला में पारंगत तलवार से वार की गति बिजली से भी तेज। आदि शंकराचार्य से ज्ञान प्राप्त कर रणविद्या में पारंगत थे सुधन्वा सम्राट, साथ ही वेदों से 18 युद्ध कलाओं के विषयों के ज्ञाता थे।
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उनको २० प्रकार की घुड़सवारी युद्धकला आती थी। हाथी, अस्त्र-शस्त्र संचालन, व्यूह रचना, युद्ध नेतृत्व, तकनीक के ज्ञाता थे। युद्ध के कई तरीकों में पारंगत थे जैसे मल्ल युद्ध, द्वन्द्व युद्ध, मुष्टिक युद्ध, प्रस्तरयुद्ध, रथयुद्ध, रात्रि युद्ध।
जैसे उनका जन्म युद्ध के लिए ही हुए था 7/n
सम्राट सुधन्वा व्यूह रचना में भी पारंगत थे। इसका उद्देश्य अपनी कम से कम हानि में शत्रु को अधिक से अधिक नुकसान पंहुचाना होता था। इनमें से कई तकनीक सुधन्वा अपने शासनकालीन में इस्तेमाल में लाये जैसे बाज़, सर्प, बज्र, चक्र, काँच, सर्वतोभद्र, मकर, ब्याल, गरूड व्यूह आदि।
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सम्राट सुधन्वा चौहान ने विश्व विजय करने के लिए अनंत युद्ध लड़े थे
इनका शौर्य और पराक्रम भारतीय इतिहास में ही नहीं विश्व इतिहास में शामिल है
दुःख का विषय है कि भारत में ऐसे सम्राट का इतिहास नही पढ़ाया गया क्योंकि सरकार के वामपन्थी इतिहासकारो के अनुसार केवल मुग़ल ही महान थे।
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डॉ. दसरथ शर्मा नें ‘Early Chauhan Dynasties’ में अभिलेखीय साक्ष्यों के आलोक में राजा वासुदेव से लेकर उनकी २२वीं पीढ़ी में आने वाले दिग्विजयी दिल्ली सम्राट पृथ्वीराज चौहान (तृतीय) तक की एक सूची प्रस्तुत की है।
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प्रसिद्ध राजस्थानी इतिहासकार श्यामल दास ने ‘वीर विनोद’ में माहिष्मती पर राज्य करने वाले चौहान राजवंश की एक प्राचीन सूची प्रस्तुत की है जिसमें प्रथम शासक चाहमान की छठवीं पीढ़ी में सुधन्वा तथा ४१ वीं पीढ़ी में वासुदेव आतें हैं। इसकी प्रथम आवृत्ति १८८६ ई० में प्रकाशित हुई थी।
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४९० ई.पूर्व नबोनीदस अश्शूर साम्राज्य के राजा था
इतिहासकार श्रीविश्वनाथ काशीनाथ राजवाड़े के अनुसार “असुर वे हैं जिन्हें यूरोपीय “असीरियन”कहते हैं
प्राचीन यूनानी उन्हें “असुरियन “कहते थे और स्वयं अपने को “अश्शूर ” कहते थे
प्राचीन आर्य इन्हें “असुर"
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सुधन्वा चौहान की सेना से विश्व के सभी शक्तिशाली साम्राज्य भी थर्राते थे
अश्शूर नाबोनिदास की ५ लाख की विशाल सेना को परास्त कर सुधन्वा चौहान ने अश्शुरों को यूफ्रेटस नदी के पार तक खदेड़ा
सुधन्वा चौहान ने मेसोपोटामिया, बेबीलोनिया, एलाम, फ्रूगिया, पर्शिया एवं यूफ्रेटस नदी एवं...
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मिस्र टाईग्रीस नदी के पार सनातन वैदिक ध्वज को लहराकर अश्शूर राज्य को अपने साम्राज्य में सम्मिलित किया।
इससे अश्शूर साम्राज्य का अंत तो नहीं हुआ, ३ पीढ़ी के बाद अश्शूर साम्राज्य फिर तैयार हुआ सुधन्वा चौहान के बाद राजा चाहमान ने अश्शुरो का समूल नाश कर दिया था।
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इस बात का उल्लेख “The History of Archaeology Part 1”, “Babylonia from the Neo-Babylonian empire to Achaemenid rule” इन दो पुस्तकों में लिखा हैं।
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Hurst, K. Kris “The sword of South Asian King dynasty of Luna defeated Assyrian ruler Nabonidas and became reasons for decline and downfall of Assyrian Kingdom”
(चन्द्र का अन्य नाम लूना है चन्द्रवंशी राजा का उल्लेख किया है दक्षिण एशियाई राज्य का उल्लेख है जो भारतवर्ष है)।
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सुधन्वा चौहान ने फ्रांस, रूस, सर्बिया, क्रोएशिया, स्पेन, ब्रिटेन, जर्मनी, प्रशिय एवं समूचे यूरोप पर भगवा ध्वज लहराकर भारतवर्ष का साम्राज्य यूरोप तक फैलाया था
विश्व विजयी सम्राट सुधन्वा चौहान ने अफ्रीका, यूरोप, एशिया (चीन, जापान) समेत धरा पर सनातन धर्म ध्वजा फेहराई थी।
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सम्राट होते हुए भी अपने पद का दुरूपयोग नहीं किया। राजा होने के नाते वह चाहते तो किसान को बिना मूल्य चुकाए खाद्य सामाग्री ले सकते थे परन्तु ऐसा न करके वे किसान को पारिश्रमिक देकर खाद्य सामग्री लेते थे। यह एक महान सम्राट के गुण हैं यह सीख आदि शंकराचार्य की थी।
Thread on Calculation of time as per Surya Sidhant 🌞
Surya Sidhant is ancient science of Astronomy which is kept by Sun himself, was described to Maya by Partakes of Sun's nature after his penance for enquiring about this in the end of Krita Yuga
It was compiled many times 1/n
Types of time two
1. Continues and endless - destroyes all animate and inanimate things (cause of creation and preservation)
2. Can be Known - Two types
MURTA (measurable) begins with Prana=4 seconds
AMURTA (immeasurable)begins with Truti=1/33750th part of second
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6 Prana = Pala
6 Pala = Ghatika
60 Ghatika = Nakshatra Ahoratra (a side real Day and Night)
Months:-
30 Nakshatra Ahoratra = Nakshatra Masa
30 Savana Day(terrestrial day from sun-rise to sun-rise) = Savana month