कुछ पन्ने बैंकर की डायरी से
बात सन 2016 की है महीना था नवंबर उस समय मेरी पोस्टिंग गुजरात के एक खूबसूरत शहर सूरत में थी। वो समय मुझे याद है की दीवाली और छठ जैसे महापर्व के बाद का था। चूंकि बिहार मेरा जन्मस्थल है तो ये दो पर्व पर हर साल घर आना एक नियम जैसा बन गया था। अब दीवाली के
पहले बिहार आना और छठ महापर्व के बाद बिहार से वापस जाना एक महायुद्ध जैसा होता है जो बिहार से बाहर रहने वाले हर शक्स को अच्छे से पता होता है। मेरी छुट्टियां स्वीकृत थी और तय समयनुसार टिकट भी करा रखा था।
8 नवंबर 2016 शाम 8 बजे हमारे प्रधानमंत्री जी ने एक घोषणा करी के आज रात 12 बजे के बाद 500 और 1000 के नोट लीगल टेंडर नहीं रहेंगे। पूरे देश में अफरा तफरी का ऐसा माहौल बन गया जो मुझे सन1984 में इंदिरा जी की हत्या के बाद के माहौल की अनायास ही याद दिला गया। सरकार के पास इस नीति के सफल
कार्यान्वयन के लिए कोई योजना निर्मित नहीं थी और ये घोषणा हो गई।
किसी आपातकाल में जैसे एक नोटिस निकाल कर सारे सैनिकों की छुट्टी रद्द की जाती है वैसे ही हमे भी एक फरमान आया के आपकी छुट्टी रद्द की गई है और तत्काल आप अपने शाखा में पहुंचे। मैंने भी आनन फानन में हाथ पैर चलाना शुरू
किया कई एजेंट्स को बोला ट्रेन की टिकट कटाने पर सारी ट्रेनें पहले से भरी हुई थी तत्काल भी नहीं हो पाया। अब तत्काल में फ्लाइट की टिकट लेना मतलब 35000-40000 का खर्चा जो मेरे बस का नहीं था। तब तक इतने फोन आने लगे थे तो मुझे कुछ नहीं सूझा और मैंने सड़क मार्ग से जाने का फ़ैसला किया।
किसी तरह टुकड़ों में अपनी यात्रा की योजना बनाई और दो दिन लगातार बस से मैं किसी तरह सूरत पहुंचा। उस यात्रा का वर्णन फ़िर कभी करूंगा।
अगले दिन मैं शाखा पहुंचा यात्रा की थकावट अपने चरम पर थी लेकिन शाखा के बाहर का माहौल और भी भयावह था। बता दूं की मेरे शाखा के बाहर करीब 3000 sq feet
से ज्यादा बड़े क्षेत्र में पार्किंग का स्थान था और पूरा पार्किंग लोगों के हुजूम से खचाखच भरा पड़ा था। मैं एक कदम आगे बढ़ाता और चार कदम पीछे कर दिया जाता। वो तो भला हो कुछ लोगों ने मुझे पहचान लिया और किसी तरह शाखा में प्रवेश मिला।
शाखा के भीतर का भी माहौल अजीब था सभी स्टाफ सहमे
हुए भी थे की ऐसी भीड़ का सामना कैसे करेंगे और ऐसे में कुछ ग़लत हो जाएगा तो उसकी जिम्मेवारी किसकी होगी। खैर सभी शंकाओं को ताक पर रख के हमने दिन शुरू किया। आम दिनों से वो दिन कुछ ज्यादा ही लंबा था।
दिन तो किसी तरह गुज़रा लेकिन शाम होते ही हमारे प्रधान रोकड़िया ने एक और धमाका कर
दिया कि कैश शॉर्ट है। दो दिन की यात्रा की थकावट और बिना कुछ खाए पिए दिन भर काउंटर पर खड़े रह कर मेरी ऊर्जा जवाब दे चुकी थी पर क्या किया जा सकता था फ़िर शुरू हुआ खोजने का काम जो रात के 1.30 बजे तक चला। थक हार कर हमने कैश बंद करने का निर्णय लिया क्योंकि अगले दिन फ़िर वहीं घमासान
झेलना था। अब कैश कैसे मिलाया ये बताने की जरूरत नहीं।
ये तो बस एक दिन की कहानी थी ऐसे ही अगले 60 दिनों तक अपने स्वास्थ्य की परवाह किए बिना हर साप्ताहिक बंदी में आ कर घमासान युद्ध लड़ा। सामान्य जन मानस एक दिन कतार में लग के हम बैंकर्स को कोसता रहता था कि हम ढीले है कामचोर हैं हमसे
अच्छे तो प्राइवेट बैंक वाले हैं और हमारा privatization कर देना चाहिए। इस नोटबंदी में प्राइवेट वालों ने क्या गुल खिलाए हैं ये कोई भी गूगल की सहायता से जान सकता है।
ऐसे ही पिछले कई सालों से सरकार की हर मौद्रिक नीतियों के गवाह हम रहे हैं
और ना जाने कई कुर्बानियां देनी पड़ी है हम बैंकर्स को और उन कुर्बानियों का सिला आज हमारे अस्तित्व पर लटकी तलवार के माध्यम से दे रही है ये सरकार। अतः आप सबसे से कहना है के privatization को एकपक्षिय रूप से देखने के बजाए इसके सम्पूर्ण प्रभाव का अवलोकन करने का प्रयास करें।
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*❀ दूसरों को सही-गलत साबित करने में ❀*
*✦जल्दबाजी न करें✦*
*एक प्रोफेसर, अपनी क्लास में कहानी सुना रहे थे, जो कि इस प्रकार है –*
*एक बार समुद्र के बीच में एक बड़े जहाज पर बड़ी दुर्घटना हो गयी। कप्तान ने, शिप खाली करने का आदेश दिया,
जहाज पर एक युवा दम्पति था, जब लाइफबोट पर चढ़ने का नम्बर युवा दम्पति का आया, तो देखा गया नाव पर केवल एक☝️ व्यक्ति के लिए ही जगह है, इस मौके पर आदमी ने औरत को छोड़ दिया और नाव पर कूद गया।*
*डूबते हुए जहाज पर खड़ी औरत ने जाते हुए अपने पति से चिल्लाकर एक वाक्य कहा।*
*अब प्रोफेसर ने रुककर अपने सभी स्टूडेंट्स से पूछा:- तुम लोगों को क्या लगता है, उस स्त्री ने अपने पति से क्या कहा होगा?*
*ज्यादातर विद्यार्थी फ़ौरन चिल्लाये की, स्त्री ने कहा होगा, मैं तुमसे नफरत करती हूँ ! I hate you !*
बड़ी बेचैनी से रात कटी।
बमुश्किल सुबह एक रोटी खाकर, घर से अपने शोरूम के लिए निकला।
आज किसी के पेट पर पहली बार लात मारने जा रहा हूँ।
ये बात अंदर ही अंदर कचोट रही है।
ज़िंदगी में यही फ़लसफ़ा रहा मेरा कि, अपने आस पास किसी को, रोटी के लिए तरसना ना पड़े,
पर इस विकट काल मे अपने पेट पर ही आन पड़ी है।
दो साल पहले ही अपनी सारी जमा पूंजी लगाकर कपड़े का शोरूम खोला था,मगर दुकान के सामान की बिक्री अब आधी हो गई है।अपने कपड़े के शोरूम में दो लड़के और दो लड़कियों को रखा है मैंने ग्राहकों को कपड़े दिखाने के लिए। लेडीज
डिपार्टमेंट की दोनों लड़कियों को निकाल नहीं सकता। एक तो कपड़ो की बिक्री उन्हीं की ज्यादा है, दूसरे वो दोनों बहुत गरीब हैं। दो लड़कों में से एक पुराना है, और वो घर में इकलौता कमाने वाला है।
जो नया वाला लड़का है दीपक, मैंने विचार उसी पर किया है। शायद उसका एक भाई भी है,
हमारे बैंकर दोस्त @SinghForSewa03 जी की डायरी के कुछ पन्ने आपको प्रस्तुत कर रहे।
ये प्रसंग एक ग्रामीण क्षेत्र की शाखा के रोकड़िया और प्रधान के बीच की वार्ता का है।
प्रधान जी: कैशियर साहब नमस्कार
कैशियर: नमस्कार प्रधान जी.. बताएं
प्र. जी: सर मेरे गांव से एक माता जी नगद भुगतान के लिए आईं थी अभी, आपने मना कर दिया नगद देने से (माताजी तमतमाए हुए पीछे बैठी थी)
कै.: प्रधान जी ये 2017 से नहीं खाता में कोई लेन देन नहीं की थीं तो खाता निष्क्रिय हो गया है। KYC करना होगा, मैंने इनको बता दिया है। आज ये कोई दस्तावेज
नहीं लाई है तो संभव ना हो पाएगा।
प्र. जी: राशन कार्ड तो है।
कै.: राशन कार्ड तो मान्य दस्तावेज़ नहीं है।
प्र. जी: इतना दूर गांव है कैशियर साहब खाली परेशान कर रहें हैं थोड़ा" मानवीय तौर" पर भी हो सकता है। आप भुगतान कर दीजिए मैं कल KYC भिजवा दूंगा। (गांव से शाखा सात km दूर है
पिछले कुछ दिनों से बैंकरों पे होने वाली शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना से परेशान हो कर सोचते सोचते मै नोटaबंदी के समय में पहुंच गया। उस समय भी बैंकरों को 52 दिनों तक आर्थिक मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना के दौर से गुजरना पड़ा था। और उस त्याग के बदले इनाम स्वरूप इस योजना की विफलता का
श्रेय हम बैंकरों को ही दिया गया।
हालांकि व्यक्तिगत रूप से मैं इस योजना का पक्षधर था और ये मानता था कि इसके सही कार्यान्वयन से काले धन के ऊपर करारा आघात किया जा सकता है। इस योजना के विफल होने से तमतमाई सरकार, अर्थशास्त्री और सारे एजेंसी ने आनन फानन में जैसे एक आसान शिकार समझ कर
बैंकरों के विरूद्ध जमकर कार्रवाई करी। कई बैंकरों पे केस दर्ज़ हुआ सज़ा भी हुई। परन्तु किसी ने भी इस विफलता के असली कारणों को जानने का प्रयास नहीं किया।
मैं कोई अर्थशास्त्री या जांच एजेंसी वाला तो नहीं हूं लेकिन प्रैक्टिकली जो दिखा और जो मुझे समझ आया आज उसे बताने की कोशिश कर रहा।
नमस्कार दोस्तों
दोस्तों आज मैं कुछ दिन पहले घटी एक ऐसी घटना का ज़िक्र करना चाहता हूं जिसने मेरी अंतरात्मा को झकझोर के रख दिया और मुझे ये सोचने पे मजबूर कर दिया के हम किस दिशा में चल रहे हैं। शनिवार रविवार की छुट्टी थी तो पापा बोले के चलो गांव घूम आते है जो मेरे घर से क़रीब
नब्बे km ही है। पुरखों की अर्जित किए हुए खेत हैं थोड़े जिसपे इस वक़्त धान रोपाई की हुई है। वैसे तो मेरा मन बिल्कुल भी नहीं था जाने का लेकिन पापा तो पापा ठहरे हो गए शुरू के तुमको अपने ज़मीन का खेत का पता होना चाहिए कहां है कितना है और bla bla तो भई इतना सुनने के बाद शनिवार को हम
पहुंचे गांव। यहीं पर मुझे वो शख्स मिला जिसने एक सवाल से मेरी बोलती बंद कर दी मैं बिल्कुल निरुत्तर हो गया। आज भी उसके उस सवाल का जवाब ना ढूंढ पाया तो ये सोच कर आप सब से शेयर करना चाहता हूं के शायद कुछ बोझ हल्का हो जाए। हालांकि हमारे खेत खलियन अच्छे खासे है सालों पहले हमारे
अच्छे से याद है , बारिश बहुत कम हुई थी उस साल में , दिन 22 जुलाई 2012.
जिला रायगढ़ के पास 50 किमी दूर सारंगढ़ तहसील ।
नई नई जोइनिंग थी ,जोश लबालब भरा था ।
फिर क्या बस पकड़ी और निकल लिए ।
अपना मन भी साहब बना हुआ था, भाई सरकारी नौकरी ग्रामीण बैंक में , ऑफिसर वाली , कहाँ मिलती है इतनी आसानी से ?
पर पता नहीं था जोश ठंडा होने वाला है , जैसे ही यात्रा समाप्त हुई , बस स्टैंड पे उतरे अगल बगल का माहौल देखा ,कीचड़ वाली रोड और एक
धूल भरी हवा का तेज़ चमाट पड़ा मानो जैसे तेज़ नींद से उठा दिया हो ।
हिम्मत करके हमने भी पता पूंछा, मन ही मन सोचा अरे कोई नहीं शहर का क्या? शाखा मस्त होनी चाहिए ।
दिल को मानते हुए चल दी पैदल पास ही पूंछताछ करने के बाद गंतव्य स्थान पहुँचे ।
शाखा में एंट्री, मानो जैसे खुद को