नमस्कार दोस्तों
दोस्तों आज मैं कुछ दिन पहले घटी एक ऐसी घटना का ज़िक्र करना चाहता हूं जिसने मेरी अंतरात्मा को झकझोर के रख दिया और मुझे ये सोचने पे मजबूर कर दिया के हम किस दिशा में चल रहे हैं। शनिवार रविवार की छुट्टी थी तो पापा बोले के चलो गांव घूम आते है जो मेरे घर से क़रीब
नब्बे km ही है। पुरखों की अर्जित किए हुए खेत हैं थोड़े जिसपे इस वक़्त धान रोपाई की हुई है। वैसे तो मेरा मन बिल्कुल भी नहीं था जाने का लेकिन पापा तो पापा ठहरे हो गए शुरू के तुमको अपने ज़मीन का खेत का पता होना चाहिए कहां है कितना है और bla bla तो भई इतना सुनने के बाद शनिवार को हम
पहुंचे गांव। यहीं पर मुझे वो शख्स मिला जिसने एक सवाल से मेरी बोलती बंद कर दी मैं बिल्कुल निरुत्तर हो गया। आज भी उसके उस सवाल का जवाब ना ढूंढ पाया तो ये सोच कर आप सब से शेयर करना चाहता हूं के शायद कुछ बोझ हल्का हो जाए। हालांकि हमारे खेत खलियन अच्छे खासे है सालों पहले हमारे
दादा जी गांव छोड़ के शहर आ गए और बिजली विभाग में नौकरी कर ली। वहीं नौकरी पेशा जीवन शैली हमारे दादाजी से पापा को और पापा से हमें विरासत में मिली और किसी तरह हमने बैंक ज्वॉइन कर लिया। उस दिन जब हम भरी धूप में खेत घूम रहे थे तो वहीं आहर पे पेड़ के छांव में एक 14-15 साल का लड़का जो
शायद 9th ya 10th का स्टूडेंट होगा मस्त पढ़ाई कर रहा था। अब अपना मन खेत देखने में तो लग नहीं रहा था तो मैं चला गया उसके पास थोड़ा बात करने। बात बात में पता चला के भोला नाम है उसका और उसके पिताजी हमारे खेत के बगल वाले खेत में दिहाड़ी मजदूरी का काम करते थे और उनकी माली हालत ऐसी थी
कि अगर उसके पिताजी को एक हफ्ते काम ना मिले तो उनके घर में चूल्हा ना जल पाए। बात करते करते उसको पता चला के हम बैंक में काम करते हैं तो बैंक से रिलेटेड कई सवाल पूछ लिए उसने मुझसे बैंक में क्या काम करना पड़ता कैसे करते हो और ना जाने क्या क्या उसके सवालों का जवाब देते देते मैंने भी
कुछ पूछना चाहा तो मेरे मुंह से वहीं सवाल निकला को बचपन में घर पे कोई अंकल या रिश्तेदार आ के पूछते थे के बेटा बड़े हो कर क्या बनना चाहते हो। उसने कहा भईया आपको तो पता है ना घर का हालत किसी तरह scholarship मिली थी तो गांव के सरकारी स्कूल में पढ़ रहा और आगे भी ऐसी कोई स्कॉलरशिप मिल
जाए तो बगल वाले सरकारी कॉलेज से इंटर और ग्रेजुएशन करेंगे क्योंकि इंजीनियरिंग या MBA करने का औकात नहीं है हमारा। उसके बाद हम भी आपकी तरह सरकारी नौकरी की तैयारी करेंगे जैसे बैंक, रेलवे ,ssc या कुछ और। अगर हमारी नौकरी लग गई तो हमारे परिवार को भी सारी मुश्किलों से छुटकारा मिल जाएगा
और उनके लिए हम भी कुछ कर पाएंगे। एक बच्चे के मुंह से ऐसा सुन के में अवाक रह गया उसकी उम्र में जब मैं था तो मुझे अगले दिन का नहीं पता होता था के मैं क्या करूंगा और इसने अपने भविष्य की पूरी तैयारी कर रखी थी। उससे बात करते करते अनायास ही मेरे मुंह से निकल गया के सरकार तो सब नौकरी
प्राइवेट कर रही है तो जब तक तुम ग्रेजुएट होगे कोई सरकारी नौकरी तो बचेगी नहीं। तो वो बोला के भईया ये मोदीजी ऐसा क्यों कर रहे हैं क्या हम उनको रोक नहीं सकते। क्या हमारे जैसे गरीब हमेशा गरीब ही रहेंगे क्या हम कभी आगे नहीं बढ़ पाएंगे। उसके इन सवालों का कोई जवाब ही नहीं सूझा मुझे फ़िर
वो उदास हो कर बोला के भईया हमको पता है के हम प्राइवेट नौकरी खोजने के लिए शहर जा कर रुक नहीं पाएंगे और शायद शहर के लड़को से compete भी नहीं कर पाएंगे तो क्या पिताजी की तरह हमको भी जीवन भर दूसरो की गुलामी ही करनी होगी और इस बंजारों वाली ज़िन्दगी से कभी छुटकारा नहीं मिलेगा मुझे।
मुझे कुछ नहीं सुझा तो बस ये बोल कर के हौसला रखो दिल छोटा ना करो और खूब मेहनत करो एक दिन तुम ज़रूर कामयाब होगे वहां से चला गया। #StopPrivatisation_SaveGovtJob
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*❀ दूसरों को सही-गलत साबित करने में ❀*
*✦जल्दबाजी न करें✦*
*एक प्रोफेसर, अपनी क्लास में कहानी सुना रहे थे, जो कि इस प्रकार है –*
*एक बार समुद्र के बीच में एक बड़े जहाज पर बड़ी दुर्घटना हो गयी। कप्तान ने, शिप खाली करने का आदेश दिया,
जहाज पर एक युवा दम्पति था, जब लाइफबोट पर चढ़ने का नम्बर युवा दम्पति का आया, तो देखा गया नाव पर केवल एक☝️ व्यक्ति के लिए ही जगह है, इस मौके पर आदमी ने औरत को छोड़ दिया और नाव पर कूद गया।*
*डूबते हुए जहाज पर खड़ी औरत ने जाते हुए अपने पति से चिल्लाकर एक वाक्य कहा।*
*अब प्रोफेसर ने रुककर अपने सभी स्टूडेंट्स से पूछा:- तुम लोगों को क्या लगता है, उस स्त्री ने अपने पति से क्या कहा होगा?*
*ज्यादातर विद्यार्थी फ़ौरन चिल्लाये की, स्त्री ने कहा होगा, मैं तुमसे नफरत करती हूँ ! I hate you !*
बड़ी बेचैनी से रात कटी।
बमुश्किल सुबह एक रोटी खाकर, घर से अपने शोरूम के लिए निकला।
आज किसी के पेट पर पहली बार लात मारने जा रहा हूँ।
ये बात अंदर ही अंदर कचोट रही है।
ज़िंदगी में यही फ़लसफ़ा रहा मेरा कि, अपने आस पास किसी को, रोटी के लिए तरसना ना पड़े,
पर इस विकट काल मे अपने पेट पर ही आन पड़ी है।
दो साल पहले ही अपनी सारी जमा पूंजी लगाकर कपड़े का शोरूम खोला था,मगर दुकान के सामान की बिक्री अब आधी हो गई है।अपने कपड़े के शोरूम में दो लड़के और दो लड़कियों को रखा है मैंने ग्राहकों को कपड़े दिखाने के लिए। लेडीज
डिपार्टमेंट की दोनों लड़कियों को निकाल नहीं सकता। एक तो कपड़ो की बिक्री उन्हीं की ज्यादा है, दूसरे वो दोनों बहुत गरीब हैं। दो लड़कों में से एक पुराना है, और वो घर में इकलौता कमाने वाला है।
जो नया वाला लड़का है दीपक, मैंने विचार उसी पर किया है। शायद उसका एक भाई भी है,
हमारे बैंकर दोस्त @SinghForSewa03 जी की डायरी के कुछ पन्ने आपको प्रस्तुत कर रहे।
ये प्रसंग एक ग्रामीण क्षेत्र की शाखा के रोकड़िया और प्रधान के बीच की वार्ता का है।
प्रधान जी: कैशियर साहब नमस्कार
कैशियर: नमस्कार प्रधान जी.. बताएं
प्र. जी: सर मेरे गांव से एक माता जी नगद भुगतान के लिए आईं थी अभी, आपने मना कर दिया नगद देने से (माताजी तमतमाए हुए पीछे बैठी थी)
कै.: प्रधान जी ये 2017 से नहीं खाता में कोई लेन देन नहीं की थीं तो खाता निष्क्रिय हो गया है। KYC करना होगा, मैंने इनको बता दिया है। आज ये कोई दस्तावेज
नहीं लाई है तो संभव ना हो पाएगा।
प्र. जी: राशन कार्ड तो है।
कै.: राशन कार्ड तो मान्य दस्तावेज़ नहीं है।
प्र. जी: इतना दूर गांव है कैशियर साहब खाली परेशान कर रहें हैं थोड़ा" मानवीय तौर" पर भी हो सकता है। आप भुगतान कर दीजिए मैं कल KYC भिजवा दूंगा। (गांव से शाखा सात km दूर है
पिछले कुछ दिनों से बैंकरों पे होने वाली शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना से परेशान हो कर सोचते सोचते मै नोटaबंदी के समय में पहुंच गया। उस समय भी बैंकरों को 52 दिनों तक आर्थिक मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना के दौर से गुजरना पड़ा था। और उस त्याग के बदले इनाम स्वरूप इस योजना की विफलता का
श्रेय हम बैंकरों को ही दिया गया।
हालांकि व्यक्तिगत रूप से मैं इस योजना का पक्षधर था और ये मानता था कि इसके सही कार्यान्वयन से काले धन के ऊपर करारा आघात किया जा सकता है। इस योजना के विफल होने से तमतमाई सरकार, अर्थशास्त्री और सारे एजेंसी ने आनन फानन में जैसे एक आसान शिकार समझ कर
बैंकरों के विरूद्ध जमकर कार्रवाई करी। कई बैंकरों पे केस दर्ज़ हुआ सज़ा भी हुई। परन्तु किसी ने भी इस विफलता के असली कारणों को जानने का प्रयास नहीं किया।
मैं कोई अर्थशास्त्री या जांच एजेंसी वाला तो नहीं हूं लेकिन प्रैक्टिकली जो दिखा और जो मुझे समझ आया आज उसे बताने की कोशिश कर रहा।
अच्छे से याद है , बारिश बहुत कम हुई थी उस साल में , दिन 22 जुलाई 2012.
जिला रायगढ़ के पास 50 किमी दूर सारंगढ़ तहसील ।
नई नई जोइनिंग थी ,जोश लबालब भरा था ।
फिर क्या बस पकड़ी और निकल लिए ।
अपना मन भी साहब बना हुआ था, भाई सरकारी नौकरी ग्रामीण बैंक में , ऑफिसर वाली , कहाँ मिलती है इतनी आसानी से ?
पर पता नहीं था जोश ठंडा होने वाला है , जैसे ही यात्रा समाप्त हुई , बस स्टैंड पे उतरे अगल बगल का माहौल देखा ,कीचड़ वाली रोड और एक
धूल भरी हवा का तेज़ चमाट पड़ा मानो जैसे तेज़ नींद से उठा दिया हो ।
हिम्मत करके हमने भी पता पूंछा, मन ही मन सोचा अरे कोई नहीं शहर का क्या? शाखा मस्त होनी चाहिए ।
दिल को मानते हुए चल दी पैदल पास ही पूंछताछ करने के बाद गंतव्य स्थान पहुँचे ।
शाखा में एंट्री, मानो जैसे खुद को