पिछले कुछ दिनों से बैंकरों पे होने वाली शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना से परेशान हो कर सोचते सोचते मै नोटaबंदी के समय में पहुंच गया। उस समय भी बैंकरों को 52 दिनों तक आर्थिक मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना के दौर से गुजरना पड़ा था। और उस त्याग के बदले इनाम स्वरूप इस योजना की विफलता का
श्रेय हम बैंकरों को ही दिया गया।
हालांकि व्यक्तिगत रूप से मैं इस योजना का पक्षधर था और ये मानता था कि इसके सही कार्यान्वयन से काले धन के ऊपर करारा आघात किया जा सकता है। इस योजना के विफल होने से तमतमाई सरकार, अर्थशास्त्री और सारे एजेंसी ने आनन फानन में जैसे एक आसान शिकार समझ कर
बैंकरों के विरूद्ध जमकर कार्रवाई करी। कई बैंकरों पे केस दर्ज़ हुआ सज़ा भी हुई। परन्तु किसी ने भी इस विफलता के असली कारणों को जानने का प्रयास नहीं किया।
मैं कोई अर्थशास्त्री या जांच एजेंसी वाला तो नहीं हूं लेकिन प्रैक्टिकली जो दिखा और जो मुझे समझ आया आज उसे बताने की कोशिश कर रहा।
सबसे पहले जो भी मित्र उस समय बैंकिंग सर्विस में थे उन्होंने कभी गौर किया होगा कि बैंको के बाहर किसी उच्च मध्यम वर्गीय या उच्च वर्गीय ग्राहकों को लाइन में लगे नहीं देखा। लाइन में सिर्फ़ गरीब और निचले तबके के दैनिक भत्ते पर जीवनयापन करने वाले लोग ही दिखते थे। किसी ने ये सोचना
जरूरी नहीं समझा के इन लोगों के पास इतने पैसे कहां से आए। मैं बताता हूं इस योजना के दो साल पहले से सरकार ने जन धन खाते के नाम पर सभी गरीबों के खाते खुलवाए जो इस समय इस्तेमाल किए गए थे। नोटबंदी के वक़्त सरकार ने घोषणा करी की 2.5 लाख तक कैश जमा करने पर कोई पूछताछ नहीं होगी। अब
ऐसे गरीब लोग जिनके परिवार में सदस्यों के खाते थे उनके मालिकों ने इन्हे पैसे दिए अपने खाते में जमा करने को। अब एक छोटा सा गणित लगाते हैं एक व्यवसाई जिसके यहां 250 लोग काम करते हैं और सबके परिवार में औसतन चार लोग हैं तो कुल खाते हुए 1000 और सबके खाते में 2.5 लाख जमा हुए तो कुल रकम
हुई 25 करोड़ जो बिना किसी जांच की नज़रों में आए काले से सफ़ेद हो गई। ये तो बस एक उदाहरण था सरकार ने राह दिखाई और ऐसा सबने किया पर क्या इसके लिए बैंकर जिम्मेदार था?
दूसरा बिंदु: हमारे देश के पढ़े लिखे CA लोगों ने कानूनी रूप से खूब झोल किया कंपनी के मार्च16 के बैलेंस शीट में कैश इन
हैंड की inflated आंकड़े दिखाए जिससे कंपनी को कैश जमा करने में किसी भी जांच से मुक्ति मिल गई और काला धन सफ़ेद हो गया। नोटबंदी के आखिरी दिनों में ऐसी कंपनी पर ये दांव उल्टा भी पड़ा और लोगों से प्रीमियम दर पर 500-1000 के नोट लेने पड़े थे इन्हे क्योंकि इनको खाते में कैश जमा करना था।
अब क्या इस धांधली के लिए बैंकर जिम्मेदार था?
तीसरा बिंदु: उस दौरान कई जांच एजेंसियों ने छापे मार कर करोड़ों रुपए जब्त किए जो 2000 के नए सीरियल वाले नोटों के रूप में थे। मुझे अच्छे से याद है कि मैं जिस शाखा में था वहां 2-3 दिन में एक बार बमुश्किल 15-20 लाख रुपए मिलते थे लोगों की
जरूरतें पूरी करने के लिए और अमूमन हर बैंक की शाखाओं की यही स्तिथि थी तो क्या किसी शाखा से करोड़ों रुपए के गैरकानूनी अदला बदली की संभावना हो सकती थी? जी नहीं असल में ये किसी करंसी चेस्ट के लिए भी मुमकिन नहीं था। ये गैर कानूनी काम बहुत ऊंचे लेवल पर संपादित हुई थी। क्या इसके लिए
बैंकर जिम्मेदार था?
अब मैं एक बात पूछना चाहूंगा की एक सामान्य बैंकर होते हुए भी अगर मैं ये विस्लेषण कर सकता हूं तो जांच एजेंसियों की नज़र में ये बात ना आए इसकी कितनी संभावना है। असल में मेरी नज़र में ये योजना काले धन को उजागर करने की नहीं थी बल्कि उसे सफ़ेद करने की योजना थी और
इस योजना में हम बैंकर बली के बकरे की तरह काटे गए। जिस बैंकिंग फ्रेटरनिटी ने जनता की सेवा के लिए अपना सर्वस्व झोंक दिया आज वही जनता के नज़रों में अपराधी बन गया।
और भी कुछ प्वाइंट हैं जिनका जिक्र अगले भाग में करने का प्रयास रहेगा।
आपके क्या विचार हैं जरूर बताइएगा।
आपका खूब खूब आभार
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*❀ दूसरों को सही-गलत साबित करने में ❀*
*✦जल्दबाजी न करें✦*
*एक प्रोफेसर, अपनी क्लास में कहानी सुना रहे थे, जो कि इस प्रकार है –*
*एक बार समुद्र के बीच में एक बड़े जहाज पर बड़ी दुर्घटना हो गयी। कप्तान ने, शिप खाली करने का आदेश दिया,
जहाज पर एक युवा दम्पति था, जब लाइफबोट पर चढ़ने का नम्बर युवा दम्पति का आया, तो देखा गया नाव पर केवल एक☝️ व्यक्ति के लिए ही जगह है, इस मौके पर आदमी ने औरत को छोड़ दिया और नाव पर कूद गया।*
*डूबते हुए जहाज पर खड़ी औरत ने जाते हुए अपने पति से चिल्लाकर एक वाक्य कहा।*
*अब प्रोफेसर ने रुककर अपने सभी स्टूडेंट्स से पूछा:- तुम लोगों को क्या लगता है, उस स्त्री ने अपने पति से क्या कहा होगा?*
*ज्यादातर विद्यार्थी फ़ौरन चिल्लाये की, स्त्री ने कहा होगा, मैं तुमसे नफरत करती हूँ ! I hate you !*
बड़ी बेचैनी से रात कटी।
बमुश्किल सुबह एक रोटी खाकर, घर से अपने शोरूम के लिए निकला।
आज किसी के पेट पर पहली बार लात मारने जा रहा हूँ।
ये बात अंदर ही अंदर कचोट रही है।
ज़िंदगी में यही फ़लसफ़ा रहा मेरा कि, अपने आस पास किसी को, रोटी के लिए तरसना ना पड़े,
पर इस विकट काल मे अपने पेट पर ही आन पड़ी है।
दो साल पहले ही अपनी सारी जमा पूंजी लगाकर कपड़े का शोरूम खोला था,मगर दुकान के सामान की बिक्री अब आधी हो गई है।अपने कपड़े के शोरूम में दो लड़के और दो लड़कियों को रखा है मैंने ग्राहकों को कपड़े दिखाने के लिए। लेडीज
डिपार्टमेंट की दोनों लड़कियों को निकाल नहीं सकता। एक तो कपड़ो की बिक्री उन्हीं की ज्यादा है, दूसरे वो दोनों बहुत गरीब हैं। दो लड़कों में से एक पुराना है, और वो घर में इकलौता कमाने वाला है।
जो नया वाला लड़का है दीपक, मैंने विचार उसी पर किया है। शायद उसका एक भाई भी है,
हमारे बैंकर दोस्त @SinghForSewa03 जी की डायरी के कुछ पन्ने आपको प्रस्तुत कर रहे।
ये प्रसंग एक ग्रामीण क्षेत्र की शाखा के रोकड़िया और प्रधान के बीच की वार्ता का है।
प्रधान जी: कैशियर साहब नमस्कार
कैशियर: नमस्कार प्रधान जी.. बताएं
प्र. जी: सर मेरे गांव से एक माता जी नगद भुगतान के लिए आईं थी अभी, आपने मना कर दिया नगद देने से (माताजी तमतमाए हुए पीछे बैठी थी)
कै.: प्रधान जी ये 2017 से नहीं खाता में कोई लेन देन नहीं की थीं तो खाता निष्क्रिय हो गया है। KYC करना होगा, मैंने इनको बता दिया है। आज ये कोई दस्तावेज
नहीं लाई है तो संभव ना हो पाएगा।
प्र. जी: राशन कार्ड तो है।
कै.: राशन कार्ड तो मान्य दस्तावेज़ नहीं है।
प्र. जी: इतना दूर गांव है कैशियर साहब खाली परेशान कर रहें हैं थोड़ा" मानवीय तौर" पर भी हो सकता है। आप भुगतान कर दीजिए मैं कल KYC भिजवा दूंगा। (गांव से शाखा सात km दूर है
नमस्कार दोस्तों
दोस्तों आज मैं कुछ दिन पहले घटी एक ऐसी घटना का ज़िक्र करना चाहता हूं जिसने मेरी अंतरात्मा को झकझोर के रख दिया और मुझे ये सोचने पे मजबूर कर दिया के हम किस दिशा में चल रहे हैं। शनिवार रविवार की छुट्टी थी तो पापा बोले के चलो गांव घूम आते है जो मेरे घर से क़रीब
नब्बे km ही है। पुरखों की अर्जित किए हुए खेत हैं थोड़े जिसपे इस वक़्त धान रोपाई की हुई है। वैसे तो मेरा मन बिल्कुल भी नहीं था जाने का लेकिन पापा तो पापा ठहरे हो गए शुरू के तुमको अपने ज़मीन का खेत का पता होना चाहिए कहां है कितना है और bla bla तो भई इतना सुनने के बाद शनिवार को हम
पहुंचे गांव। यहीं पर मुझे वो शख्स मिला जिसने एक सवाल से मेरी बोलती बंद कर दी मैं बिल्कुल निरुत्तर हो गया। आज भी उसके उस सवाल का जवाब ना ढूंढ पाया तो ये सोच कर आप सब से शेयर करना चाहता हूं के शायद कुछ बोझ हल्का हो जाए। हालांकि हमारे खेत खलियन अच्छे खासे है सालों पहले हमारे
अच्छे से याद है , बारिश बहुत कम हुई थी उस साल में , दिन 22 जुलाई 2012.
जिला रायगढ़ के पास 50 किमी दूर सारंगढ़ तहसील ।
नई नई जोइनिंग थी ,जोश लबालब भरा था ।
फिर क्या बस पकड़ी और निकल लिए ।
अपना मन भी साहब बना हुआ था, भाई सरकारी नौकरी ग्रामीण बैंक में , ऑफिसर वाली , कहाँ मिलती है इतनी आसानी से ?
पर पता नहीं था जोश ठंडा होने वाला है , जैसे ही यात्रा समाप्त हुई , बस स्टैंड पे उतरे अगल बगल का माहौल देखा ,कीचड़ वाली रोड और एक
धूल भरी हवा का तेज़ चमाट पड़ा मानो जैसे तेज़ नींद से उठा दिया हो ।
हिम्मत करके हमने भी पता पूंछा, मन ही मन सोचा अरे कोई नहीं शहर का क्या? शाखा मस्त होनी चाहिए ।
दिल को मानते हुए चल दी पैदल पास ही पूंछताछ करने के बाद गंतव्य स्थान पहुँचे ।
शाखा में एंट्री, मानो जैसे खुद को