1950 में सोहराब मोदी की फिल्म 'भिखारियों का सरदार' रिलीज़ हुई थी। फिल्म बुरी तरह फ्लॉप रही थी और आज इसका कोई प्रिंट मौजूद भी नहीं है।
फिल्म की कहानी थी -
एक व्यापारी एक भिखारी को सड़क से उठाकर एक राज्य का राजा बना देता है,
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लेकिन चूंकि भिखारी को राजपाट का कोई अनुभव या अंदाजा नहीं होता, इसलिए वह पूरे राज्य का बंटाधार कर देता है।
दुश्मन राजा की सेना उसके राज्य की सीमा पर पड़ने वाले गाँवों को कब्ज़िया लेती है और जनता भुखमरी की शिकार हो जाती है।
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इस कारण सैकड़ों लोग खाने की तलाश में अपने घरों से निकल जाते हैं और रास्ते में मारे जाते हैं।
फिल्म के अंत तक भिखारी एकदम राजसी गेटअप में आ जाता है, दाढ़ी बढ़ा कर। लेकिन तब तक राज्य की माली हालत इतनी खराब हो जाती है कि वह चाहकर भी कुछ नहीं कर पाता।
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पूरा राज्य भिखारियों का राज्य बन चुका होता है, बिल्कुल उसकी ही तरह।
फिल्म का अंत कैसे हुआ इसकी जानकारी मुझे नहीं है, क्योंकि स्टोरीबुक के आखिरी पन्ने फटे हुए हैं।
किसी को पता हो तो बताइएगा! 🙏
😂😂😂
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आपको लगता है कि इतने साफ़ सबूतों के बावजूद अर्नब गोस्वामी पर केंद्र सरकार कोई कार्रवाई करेगी?
फिर आप बड़े भोले हैं! पहली तो पुलवामा पर अर्नब की टिप्पणियाँ साफ़ करती हैं कि अगर यह फाल्स फ्लैग अटैक (खुद के फायदे के लिए अपने ही लोगों पर हमला) न हो तब मामला ज़्यादा संगीन है!
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ऐसे कि इसका मतलब हुआ कि पाकिस्तान के तमाम आतंकवादी संगठन भाजपा के साथ गठबंधन में हैं- तब हमला करते हैं जब भाजपा को सबसे ज़्यादा ज़रूरत भी हो और सबसे बड़ा फायदा भी!
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मुंबई हमला याद है? वह भी 2009 मार्च में आ रहे लोकसभा चुनावों के ठीक पहले हुआ था- जिसमे लफ़्फ़ाज़ भाई चलते हमले के बीच ताज होटल के सामने लफ़्फ़ाज़ी कर रहे थे!
आगे? आगे ये कि भाजपा हमेशा देशद्रोहियों के साथ रही है!
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भक्तगण आजकल ये जेल टैग इंटरनेट पर खूब घुमा रहे हैं।
अरे सावरकर को अंडमान जेल 4 जुलाई 1911 को भेजा गया,
और भैये, तुम 24 दिसम्बर 1910 ही को बिल्ला बनवा दिए? 😂🤦♂️
यदि यह मान लें कि गिरफ्तारी के दिन से सजा गिनी जानी है, तो वह 13 मार्च 1910 की डेट है।
यह बिल्ला फर्जी है!!
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अपराध की धारा पर ध्यान दें। 302 याने मर्डर, और 121 याने किसी दूसरे को अपराध के लिए उकसाना।
सावरकर इंटरनेशनल क्रिमिनल था। मर्डर केस में ब्रिटेन में गिरफ्तार, फ्रांस से फरार, कस्टडी से भागा, पकड़ा गया और इंटरनेशनल कोर्ट से ब्रिटेन ने पजेशन लिया। केस चलाया और जेल में रखा।
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यातनाओं के बिंदु सभी 32 हजार कैदियों के लिए लागू थे। इनमे से कोई माफी मांगकर नही लौटा, सिवाय एक के...
उसका नाम कायर सावरकर था।
वैसे, साथ के लोगों का लेखन है कि सावरकर को रिलेटिव कम्फर्ट एवलेबल था। 30 साल अंडमान में काटने वाले त्रैलोक्य नाथ बैनर्जी की किताब पढ़ी जाए।
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अगर मैं डेटा प्राइवेसी की बात करूं तो मेरी समझ से व्हाट्सएप का बहिष्कार करना उतना ही लॉजिकल है जितना एक कहावत है कि आप अपना लहंगा ऊपर उठा कर मुंह छिपाने की कोशिश कर रहे हैं!
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हमारी सरकारों ने ऑलरेडी सभी भारतीयों का डेटा विदेशी कंपनीज के हाथ बेच रखा है।
गूगल की तरफ से मेल आया है जिसके अनुसार मेरा 2020 का पूरा विवरण है कि मैं कहाँ कहाँ किस शहर में गया, कितने किमी ट्रैन से, कितने किमी कार से, कितना फ्लाइट से, कितना किमी बाइक से ट्रेवल किया है।
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कितना देर कहाँ किस जगह शॉपिंग की है, कहाँ कितनी देर किसी होटल रेस्टोरेंट में बैठा हूँ वगैरह उनके पास प्रॉपर हर मिनट मिनट की सर्विलांस है।
हिटलर-मुसोलिनी और तानाशाहों के किस्सों का सुखांत इस बिंदु पर हो जाता है। मगर क्या आपने कभी ख्याल किया, कि एक आक्रामक, हिंसक राष्ट्रवाद और धार्मिक रेसियल सुपीरियरटी का नशा फटने के बाद, उसकी नस्लों का क्या होता है??
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30 अप्रैल 1945 को हिटलर ने आत्महत्या कर ली। बर्लिन शहर के लोग अचकचाये हुए, रूसी सैनिकों के सामने सर झुकाकर निकल रहे थे। उन्हें कुछ दिन पहले तक जीत, जीत और सिर्फ जीत की खबरें आती थीं। रेडियो यही बताता था।
रेडियों उन्हें 12 सालों से सिर्फ यही बताता था!
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वे आर्य हैं, बेजोड़ हैं, वे दुनिया जीतने और राज करने को बने हैं। उनके साथ धोखा हुआ है, उन्हें प्राचीन गौरव वापस पाना है। उनका लीडर हिटलर जीनियस, ब्रेवहार्ट, ईमानदार देशभक्त है। उसकी सारी बातों पर भरोसा करते।
मोदी सरकार में इस कदर विकास हुआ है कि देश वापस उसी मुकाम पर आ चुका है, जहां से चला था।
सांख्यिकी और कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय ने 2020-21 के लिए अग्रिम वित्तीय अनुमान जारी किया है।
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नारंगी भक्तों के लिए बता दूं कि ये अग्रिम वित्तीय अनुमान ही इस साल के बजट का आधार बनते हैं। इसलिए छाती न फुलाएं।
इस वित्त वर्ष की पहली छमाही में भारत ने लॉक डाउन के कारण माल और उत्पाद सेवाओं में 11 लाख करोड़ गंवाए। नतीजतन 60 लाख करोड़ का ही उत्पादन हुआ।
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दूसरी तिमाही में 74.4 लाख करोड़ के आसपास उत्पादन की उम्मीद है, यानी 8.5 लाख करोड़ का घाटा है।
यानी 2020-21 में भारत की अर्थव्यवस्था 134.4 लाख करोड़ की होगी। 2019-20 में यह 145.7 लाख करोड़ थी। मतलब 11 लाख करोड़ से ज़्यादा का नुकसान हो चुका है।
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क्या वे इस मिट्टी के नही हैं??
क्या उनका बढ़ना देश के विकास का प्रतीक नहीं है??
एंकर बुक्के फाड़कर जनता से पूछ रहा था। सवाल जायज है..🙄
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यह भी जायज बात है कि इनका व्यापार कोई आज का खड़ा नहीं है अपने बीस पचास सालों के बिजनेस के बाद इस मकाम पर पहुंचे हैं।
मगर अम्बाडॉनी प्रतीक बन गए हैं।
मोनोपॉली के !!!
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अथॉरिटी, कंट्रोल, मोनोपॉली, एकछत्र राज। इसके नीचे विभाजित, कमजोर, प्रश्नविहीन, एड़ियां घिसता, दया का आकांक्षी, रोबोटिक नागरिक समाज।
यह सत्ता में काबिज लोगों के गैंग की, भावी भारत की रूपरेखा है।