उत्तर प्रदेश में महिलाओं पर अत्याचार कम हुए हैं या बढे हैं, नहीं कह सकता, आंकड़ों का हिसाब रखने वाले बताएँगे। लेकिन महिलाओं पर अत्याचार प्रदेश के लिए कोई नयी बात नहीं है। प्रदेश ही क्यों, पुरे देश के लिए कोई नयी बात नहीं है। और महिलाएं ही क्यों, दलितों पर अत्याचार भी देश के किसी
भी हिस्से में होना कोई नयी बात नहीं है।
फिर क्या वजह है की अचानक से कोई मामला उत्तर प्रदेश में तूल पकड़ लेता है। शेमस्ट्रीम मीडिया और सोशल मीडिया पर आग लग जाती है और माहौल बनाने वाले लोग एजेंडा चलने लगते हैं कि प्रदेश में क़ानून का राज नहीं है और प्रदेश में कोई सुरक्षित नहीं है-
दलित हो या महिला - दोनों हो तो और भी ज्यादा।
दरअसल २०१७ में मुख्यमंत्री बनने के बाद से ही योगी महाराज ने अपराध और अपराधियों के खिलाफ बिगुल बजा दिया था। अपराध पर नकेल कसने के लिए महाराज जी ने पूरी ताकत झोंक रखी है। माफिया गिरोहों के खिलाफ पुलिस ने अभूतपूर्व कार्यवाही की है।
छोटे बड़े सभी अपराधियों पर सामान रूप से कार्यवाही हो रही है - नॉएडा से लेकर डोरिअ तक। जनता को ये सब दिख भी रहा है और आम जनता इन प्रयासों से खुश भी है।
फिर क्या कारण है की रह रहकर प्रदेश को आग में झोंकने का प्रयास किया जाता है? २०१७ में योगी के मुख्यमंत्री बनते ही माहौल बनाने
वाली इंडस्ट्री को झटका लग गया। वो उसी दिन से यह साबित करने में लगे हुए हैं की योगी एक अयोग्य और असफल मुख्यमंत्री हैं, यहाँ तक की योगी को इस पद पर रहने का कोई हक़ नहीं है।
लेकिन हुआ इसका उल्टा, योगी ने न केवल अपने आप को एक कुशल प्रशाशक के रूप में स्थापित किया है बल्कि
कई मामलो में यह देखा गया कि योगी देश के अन्य मुख्यमंत्रियों से कहीं आगे हैं। चाहे कुम्भ का आयोजन हो, एंटी सीएए दंगे रोकना, कणों व्यवस्था दुरुस्त करना, प्रवासी मजदूरों कि समस्या हो, कोविड कि रोकथाम के उपाय हों - सभी मोर्चों पर महाराज जी सफल साबित हुए हैं।
तो ऐसे में योगी जी और साथ साथ उत्तर प्रदेश कि छवि धूमिल कैसे कि जाये? यह सवाल माहौल बनाने वाली मंडली के मन में बराबर चलता रहता है। इन्होने स्ट्रेटेजी बनायीं की जो एक बात के लिए योगी प्रशासन की प्रदेश के लोग सबसे ज्यादा तारीफ़ करते हैं, उसी पर प्रहार किया जाये - वो है
कानून व्यवस्था।
तो ये तो बहुत आसान काम है। प्रदेश में प्रतिदिन कहीं न कहीं आपराधिक घटनाएं होती रहती हैं - विशेषकर दलितों और महिअलों पर। तो शेम स्ट्रीम मीडिया रोज़ इस बात को लेकर मुद्दा कयूं नहीं बनाता? रोज़ सोशल मीडिया पर ऐसी आग क्यों नहीं लगती जैसी आज लगी है?
रोज़ अपराधियों की जाति क्यों नहीं देखी जाती है?
इसका जवाब यह है की यदि ख़राब कानून व्यवस्था को दुरुस्त करना आपका उद्देश्य हो तो आप रोज़ इन घटनाओं के जरिये अपनी आवाज़ उठा सकते हैं। लेकिन आपका एजेंडा कानून व्यवस्था है ही नहीं। आपको कोई मतलब नहीं कि पुलिस सुधार के लिए और
न्यायिक सुधार के लिए सरकार काम कर रही है कि नहीं?
आपका एजेंडा है - प्रथम, योगी को कैसे अयोग्य और असफल साबित किया जाए? द्वितीय, हिन्दू समाज में जातिगत विघटन को और कैसे बढ़ाया जाये? तृतीय, इन के जरिये प्रदेश में दंगे आगजनी करवाकर अराजकता कैसे फैलाया जाये?
चतुर्थ, पुरे विश्व में भारत और हिन्दुओं को और अधिक शर्मसार कैसे किया जाये? ये वाला बाकी तीनों कारणों की जड़ है, क्योंकि ये २०१४ वाला भारत नहीं है, ये फ़ासिस्ट मोदी का भारत है।
आज हाथरस में जो हुआ है उसमें अपराधी सवर्ण और मृतका दलित है। ये परफेक्ट सेट अप है ऊपर दिए गए चारो अजेंडे को साधने का। पिछले दो दिन में ही इस तरह कि अन्य अनेक घटनाएं और हुई हैं - यूपी और अन्य प्रदेशो में भी, पर उन सभी घटनाओं के बारे में प्रमुखता से मुद्दा उठाना तो दूर आपने पढ़ा भी
नहीं होगा कहीं। उन मामलों में इस तरह का आउटरेज भी नहीं होगा - क्यूंकि "भगवाधारी फायरब्रांड हिन्दू महंथ योगी आदित्यनाथ के उत्तर प्रदेश में सवर्णों द्वारा दलितों पर अप्रत्याशित अत्याचार" का नैरेटिव नहीं बन पायेगा।
और यदि नैरेटिव नहीं बन पायेगा तो हिन्दुओं को बदनाम कैसे किया जाएगा,
अपने ही देश में सिर्फ हिंदू होने के लिए उन्हें शर्मशार कैसे करवाया जा सकेगा?
यही कारण है कि अपराध कि घटनाओं पर सेलेक्टिव रिपोर्टिंग होती है, सेलेक्टिव आउटरेज होता है, सेलेक्टिव तरीके से कैंडल मार्च निकाले जाते हैं, सेलेक्टिव प्लेकार्ड बनाये जाते हैं। लव जिहाद के इतने वीभत्स
मामले रोज़ आ रहे हैं लेकिन उनपर कोई रिपोर्टिंग नहीं होती। ऐसी अनेक और बाते हैं।
ये केवल योगी जी के साथ हो रहा हो ऐसा नहीं है। अटल जी के साथ भी हो चुका है, सालों तक "ईसाई खतरे में हैं" का नैरेटिव चलाया गया। मोदी जी के साथ अभी तक हो रहा है, "मुस्लिम डरा हुआ है" अभी तक चल रहा है।
हम सबको ये समझना होगा और शेम स्ट्रीम मीडिया - सोशल मीडिया पर लगी आग से खुद को और देश को समाज को बचाना होगा।
जिस योगी महाराज ने अपने विधायक को नहीं छोड़ा उन्नाव मामले में, वोट बैंक कि फ़िक्र नहीं की विकास दुबे मामले में, अंतराष्ट्रीय हो हल्ला से नहीं डरे एंटी सीएए प्रदर्शनों में,
उन पर मुझे पूरा विश्वास है कि इस मामले में और ऐसे सभी मामलों में उचित और यथाशीघ्र कार्यवाही करेंगे।
संयम रखें और समस्याओं के स्थायी समाधान पर अपनी ऊर्जा लगाएं। इस विकृति को दूर करने में जितनी पुलिस न्यायिक सुधारों की भूमिका है उतनी ही समाज के उत्तरदायित्व की भी है।
हर साल दीपावली के त्यौहार में हिंदुओं को सरकार और न्यायालय से भीख माँगने पर मजबूर कर दिया जाता है- पटाखे जलाने के लिए। बच्चे एक एक फुलझड़ी के लिए तरस जाते हैं। लेकिन सरकार का न्यायालय का हृदय नहीं पिघलता। #crackerban
ये सब किया जाता है, प्रदूषण रोकने के नाम पर। पूरे साल प्रशासन कुम्भकर्ण की नींद सोया रहता है, दीपावली आते ही अचानक प्रशासन की नींद खुलती है और आनन फ़ानन में दीपावली के पटाखों पर प्रतिबंध लगाकर सब अपने कर्तव्य की इति श्री कर लेते हैं। #crackerban
लेकिन ऐसे बेतुकेपन का कोई वैज्ञानिक आधार है? उससे बड़ा प्रश्न यह है कि क्या प्रशासन का उद्देश्य वास्तव में प्रदूषण को रोकना है? साल भर में केवल एक दिन मनाए जाने वाला उत्सव पूरे साल के प्रदूषण का कारण कैसे हो सकता है? यदि नहीं तो हर साल इसी त्यौहार को निशाना क्यूँ बनाया जाता है?
अपने यहाँ जातिगत भेदभाव एक बड़ी समस्या रही है, इससे मुँह नहीं मोड़ा जा सकता। हिन्दू धर्म की सबसे ज्यादा आलोचना यदि किसी बात को लेकर होती है तो वो यही है। यद्यपि, पिछले कई दशकों में हमने इसको कम करने के लिए भरपूर प्रयास किये हैं और ऐसा नहीं है की हमे सफलता नहीं मिली है।
हाँ, सफलता जैसी मिलनी चाहिए, वैसी नहीं मिली परन्तु हम यह जरूर कह सकते हैं कि समाज के एक बड़े तबके में अब इस भेदभाव के लिए स्थान नहीं है।
दलितों आदिवासिओं को अभी भी इस दंश का सामना करना पड़ता है, इसी का फ़ायदा उठाकर धर्मान्तरण करने वाले अपने व्यापार का प्रसार करने में सफल हुए हैं।
इसलिए विशेषकर दलितों और आदिवासिओं को समाज में उनका गौरवशाली स्थान पुनर्स्थापित करने के लिए हमे और प्रयास करने होंगे।
यहाँ दो बातों पर ध्यान देना विशेष आवश्यक है, जो इस बीमारी का समूल नाश करने में सहायक होंगी –
बचपन में पढ़ा करते थे कि भारत एक कृषि प्रधान देश है, आज है या नहीं पता नहीं। हमेशा यही सुनने को मिलता था कि किसानों की तरक्की के बग़ैर इस देश का भला नहीं हो सकता। किसानों की आर्थिक उन्नति भारत की उन्नति के लिए अत्यावश्यक है। किसान का बेटा होकर यह सब सुनना अच्छा लगता था।
लेकिन पिछले साठ सत्तर सालों में किसानों की दशा दिशा सुधारने को लेकर कोई विशेष कार्य नहीं हुआ। हरित क्रांति के नाम पर रासायनिक खाद झोंककर कुछ राज्यों के किसानों ने उत्पादन बढ़ा लिया, इसके अलावा किसान और किसानी की उन्नति के लिए कोई गंभीर प्रयास नहीं हुआ।
साल दर साल एमएसपी बढ़ाकर कर्तव्य की इतिश्री करने वाले नेता, गांव और किसान के नाम पर सबसे ज्यादा वोट मांगते रहे। वही नेता यदि किसानों के लिए भूले भटके कोई सरकार एक आध अच्छा कदम उठाती है तो उसका दम भर विरोध करते हैं। आखिर यह विरोधाभास क्यों?
बम्बई में जितने स्टार नहीं बनते हैं, उससे ज्यादा ब्यूरोक्रेट्स प्रयागराज, बैंकर पटना और इंजीनियर कोटा में बनते हैं। लेकिन ऐसा क्या खास है फिल्मी सितारों में कि उनकी आलोचना नहीं कर सकता कोई। आप जैसे ही उनसे कोई सवाल करेंगे तो वह बम्बई की बेइज्जती माना जायेगा। बम्बई रूठ जाएगी।
ब्यूरोक्रेट्स से सवाल पूछने या उनकी आलोचना करने पर प्रयागराज ने कभी बुरा नहीं माना। ऐसे ही बैंकर्स और इंजीनियरों की आलोचना होने पर कभी पटना या कोटा ने भी बुरा नहीं माना।
ये बम्बई के पेट में फिर क्यों दर्द होने लगता है? इस दर्द की वजह क्या है?
दरअसल ये बॉम्बे स्पिरिट और मराठा प्राइड के नाम पर फिल्मी दुनिया के काले कारनामों को दबाने की कोशिश की जाती है।
आप नेताओं को दिन भर पानी पी पीकर बुरा भला कह सकते हैं, गाली दे सकते हैं, सवाल पूछ सकते हैं लेकिन अभिनेताओं से नहीं पूछ सकते क्योंकि थाली में छेद हो जाएगा।
6-Dec-92 was a day of national pride, not national shame. I have no regret, no repentance, no sorrow, no grief ~ Shri Kalyan Singh, the man who made it possible for us to see our dream of Ram Mandir turns into reality.
This footage is testimony to one of the bravest displays of Hindu pride &bhakti. Some of the greatest Rambhakts doing Lanka Dahan act on a Dhancha which stood as a nail in the heart of an entire civilisation.