थ्रेड: मुद्दई ईमानदार वकील बेईमान
डिस्क्लेमर: इस घटना में थोड़ा मसाला भी डाला गया है।
एक बार एक ब्रांच में एक फ्रॉड का केस हुआ। हुआ यूं कि एक गुड़गांव की कंपनी ने मुंबई कि एक कंपनी के नाम के कुछ चेक इशू किये। चेक अपने रेगुलर कूरियर वाले के हवाले कर दिए।
अब चूंकि कूरियर वाला रेगुलर था इसलिए उसको पता था कि लिफाफे में चेक हैं, शायद पहले भी ले जाता रहा हो। लेकिन इस बार उसका ईमान डोल गया। उसने जुगाड़ लगा के payee के नाम के फर्जी पैन वगैरह बनवा लिए और गुजरात में उसी कंपनी के नाम से एक करंट अकाउंट खुलवा लिया।
ब्रांच के अकाउंटेंट साहब ने भी डॉक्यूमेंट वेरिफिकेशन करते टाइम ज्यादा दिमाग नहीं लगाया, क्यूंकि भीड़ इतनी कि टाइम ही नहीं मिलता। हो सकता है करंट अकाउंट का लॉगिन डे रहा हो। दो दिन बाद उसी कूरियर वाले ने वो चेक उस खाते में जमा कर दिए।
इस बार फिर अकाउंटेंट साहब ने जल्दी में चेक की क्यू पास कर दी। ये भी नहीं देखा कि चेक जारी करने की डेट अकाउंट ओपनिंग की डेट से हफ्ते भर पहले की है। लेकिन अकाउंटेंट के पास टाइम भी कहाँ होता है ये सब वेरीफाई करने का। कुछ समय बाद वो बंदा खाता बंद करके चला गया।
कुलमिला के 10 -12 लाख का केस था। जब कंपनी को चेक नहीं मिले तो उसने पड़ताल करवाई। जांच में पता चला कि चेक तो मुंबई पहुँचने के बजाय गुजरात के एक छोटे से गांव की ब्रांच में पे हो गया है। कार्यवाही हुई। गाज गिरी अकाउंटेंट साहब पर।
मतलब अगर आपने पुलिस से झूठ बोला तो आप जेल जाओगे, कोर्ट से झूठ बोला तो आप जेल जाओगे, लेकिन अगर बैंक से झूठ बोला तो बैंक वाला जेल जायेगा। खैर, अकाउंटेंट साहब को जेल तो नहीं हुई लेकिन सस्पेंड हो गए। इन्क्वायरी बैठी। बेचारे सीधे थे।
अपनी ईमानदारी की दुहाई देने यूनियन वालों के पास पहुंचे। यूनियन वाले ताव में आ गए- "ऐसे कैसे सस्पेंड कर दिया? नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट नहीं पढ़ा क्या उन्होंने? आप चिंता मत करिये। हम CGM साहब से बात करेंगे।" असली समस्या यहाँ से शुरू हुई।
जो यूनियन वाले साहब CGM के पास अकाउंटेंट की वकालत करने पहुंचे थे, उनकी खुद की हरमजदगी के किस्से पूरे सर्किल में मशहूर थे। भ्रष्टाचार, ब्लैकमेलिंग, सौदेबाजी में PhD कर रखी थी। ऊंचे अधिकारी उनसे खुन्नस खाये बैठे थे। लेकिन चूंकि यूनियन में बैठे थे इसलिए बचे हुए थे।
तो सारांश ये था कि ईमानदार अकाउंटेंट साहब की वकालत करने पहुंचे थे महाभ्रष्ट साहब। CGM साहब ने तुरंत अकउंटेंट साहब को दोषी ठहरा दिया। सारा पैसा अकाउंटेंट साहब के PF खाते से काटा गया। भविष्य के सारे इन्क्रीमेंट और प्रमोशन रोक दिए गए और साथ ही एक स्केल डिमोट भी किये गए।
बेइज्जती हुई सो अलग। शर्म के मारे अकाउंटेंट साहब ने इस्तीफ़ा दे दिया। वकील की बदनामी की कीमत मुद्दई को चुकानी पड़ी। जांच अगर अपने हिसाब से चलती तो शायद अकाउंटेंट साहब बच जाते।
यह किस्सा सिर्फ एक फ्रॉड का नहीं है। एक सीख भी है। हो सकता है कई लोग मेरी इस बात से सहमत न हों और मुझे भला-बुरा भी कहें, लेकिन ये जो आये दिन हम बैंकर लोग अपनी मांगों के समर्थन के लिए कुछ विशेष लोगों (नाम नहीं लूँगा) का आह्वान करते रहते हैं ये हमारे लिए भी घातक हो सकता है।
इनमें से कई कश्मीर की स्वतंत्रता की वकालत करते हैं, कुछ दलितिस्तान को भारत से अलग करने की। एक मोहरतमा ने भारत को आतंकवादी देश बताया है, एक श्रीमान दलितों को सवर्णों के विरुद्ध "डायरेक्ट एक्शन" की सलाह देते हैं।
एक महाशय आतंकवादियों के लिए वकालत करते मिलते हैं तो दूसरे आतंकवादियों के मरने पर शोक सभा का आयोजन करते हैं। एक भाईसाहब बिना गाली के बात ही नहीं करते तो एक मैडमजी देश की आर्थिक राजधानी को POK के समकक्ष बताती हैं।
हो सकता है आप व्यक्तिगत रूप से इनकी कुछ बातों का समर्थन करते हों मगर बैंकर्स के कॉज में इनको घुसाना मैं ठीक नहीं मानता। हम स्वयं Establishment का हिस्सा हैं, Anti-Establishment तत्वों का समर्थन एक विरोधाभास पैदा करता है। इससे बैंकर्स की छवि और खराब होगी।
आम जन के जेहन में बैंकर की छवि ऐसे ही बहुत अच्छी नहीं है। मैं किसी का विरोधी या समर्थक नहीं हूँ। मेरा एकमात्र उद्देश्य बैंकर कम्युनिटी को संगठित कर उसकी आवाज मजबूत बनाना है।
कई बार ऐसा होता है कि कोई पोस्ट मुझे अच्छी लगती है और मैं उसे रीट्वीट और शेयर करना चाहता हूँ, परन्तु टैग किये हुए व्यक्तियों को देख कर रुक जाता हूँ। और मैं जानता हूँ कि ऐसा सबके साथ होता है। राजनेताओं का आह्वान गलत नहीं है क्यूंकि वे भी Establishment का पार्ट हैं।
लेकिन कई हमारे मित्र ऐसे हैं जिनके 100 ट्वीट किसी राजनीतिक दल के समर्थन में होते हैं और गिना चुना एक ट्वीट बैंकिंग के मुद्दे को लेकर। ऐसे सभी लोगों को मैंने "mute" करना शुरू कर दिया है। आशा है आप मेरी बात को सकारात्मक तरीके से लेंगे।
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थ्रेड: #बेगानी_शादी
नौकरीपेशा आदमी के लिए जिंदगी की हर चीज मुसीबत की तरह ही लगती है। फलाने की शादी है। ज्यादा करीब हुआ तो छुट्टी लेनी पड़ेगी, नहीं तो ऑफिस से जल्दी निकलकर शादी में जाना पड़ेगा। अगर फैमिली रिलेशन है तो वाइफ को भी साथ ले जाना पड़ेगा।
नहीं तो कोशिश तो अकेले ही अटेंडेंस लगाने की रहती है। आठ बजे ऑफिस से छूटो, फिर शादी में जाओ। लिफाफा भी तो देना है। घर पहुँचते पहुँचते 11 बज जाते हैं। त्यौहारों का तो और भी बुरा हाल है। एक दिन की छुट्टी में क्या त्यौहार मनाये आदमी।
दिवाली पे अक्सर एक दिन की छुट्टी आती है। कई जगह दो दिन की और कई जगह तो कोई छुट्टी ही नहीं। एक दिन की छुट्टी में क्या दिवाली मनाये आदमी?
थ्रेड: #हंस_चला_बगुले_की_चाल
भारत एक मानसून आधारित देश हैं जहाँ साल में एक तिहाई समय मानसून का होता है। मानसून में जबरदस्त बरसात होती है। साल भर के हिस्से की बरसात चार महीनों में ही हो जाती है। बाकी समय लगभग सूखा ही रहता है।
यहाँ के मानसून को समझना विदेशियों के लिए हमेशा से एक टेढ़ी खीर ही रहा। विशेषकर अंग्रेज तो मानसून से इतने परेशान थे कि भारत की कृषि व्यवस्था की रीढ़ तोड़कर ही माने। लेकिन भारतीयों के लिए मानसून जीवनशैली का एक अभिन्न अंग था। हमारी जीवनशैली मानसून के हिसाब से ढली हुई थी।
मानसून के "चौमासे" में न तीर्थ यात्रा होती थी और ना ही शुभ कार्य जैसे विवाह इत्यादि। इन चार महीनों में हो देवताओं से सोने की परंपरा शुरू हुई थी वो आज भी जारी है। राम ने भी लंका पर चढ़ाई चार महीने के लिए रोकी थी और मानसून के दौरान माल्यवान पर्वत पर इंतज़ार किया था।
थ्रेड: #अंधी_पीसे_कुत्ता_खाय
भूखी जनता राजा के पास पहुंची: महाराज!!! विदेशी सब लूट के ले गए। खाने को कुछ नहीं है। कुछ कीजिये।
राजा (मंत्रियों से): सबके भोजन का इंतज़ाम करो। और सबको अन्न उगाने के लिए पर्याप्त भूमि, बीज खाद दो ताकि भविष्य में कोई भूखा न रहे।
कुछ समय बाद राज्य के सभी धनी व्यापारी राजा के पास पहुंचे: महाराज!!! हम तो बर्बाद हो गए।
राजा: क्या हुआ?
व्यापारी: महाराज!!! लोग खुद ही अन्न उगा रहे हैं और खा रहे हैं। साथ ही बुरे समय के लिए अन्न बचा भी रहे हैं। लोग आत्मनिर्भर हो रहे हैं। हमारी किसी को जरूरत ही नहीं।
फिर हमारा क्या होगा?
राजा: तो मैं क्या करूँ? जनता को अन्न उगाने से तो नहीं रोक सकता।
व्यापारी: लेकिन अन्न बचाने से तो रोक सकते हैं। ताकि हमारी भी दुकान चल सके। याद रखिये की आपका सिंहासन रथ वगैरह सब हमने ही स्पांसर किया हुआ है।
तो हुआ यूं कि पिछले महीने हमारी मोबाइल फ़ोन की एलिजिबिलिटी रिन्यू हुई। और हमारा फ़ोन भी काफी पुराना हो चुका था। छः साल से एक ही फ़ोन को चला रहे थे। हमारे फ़ोन को लोग ऐसे नजरों से देखते थे
जैसे कि हड़प्पा की खुदाई से निकला हुआ कोई नमूना देख लिया हो। लेकिन हम भी उस पुराने फ़ोन को घूंघट के ऑउटडेटेड रिवाज़ की तरह चलाये जा रहे थे। लेकिन समस्या तब हुई जब मोबाइल बैंकिंग के एप्प ने एंड्राइड 8 को ब्रिटिशराज घोषित करके आज़ादी की मांग कर दी।
अब तो हमें नया फ़ोन चाहिए ही था। अब चूंकि हम मोबाइल की दुनिया में चल रही क्रांति से नावाक़िफ़ थे इसलिए हमने यूट्यूब का रुख किया। वहां हमको अलग ही लेवल की भसड़ मिली। उनके बारे में बाद में बात करेंगे।
नोटबंदी जैसी तुग़लकी स्कीम जिससे सिर्फ एक पार्टी और चंद पूंजीपतियों को हुआ, लेकिन पूरा देश एक एक पैसे के लिए तरस गया, धंधे बर्बाद हो गए, बैंकरों ने अपनी जान खपा दी, दिन रात पत्थरबाजी झेली, रोज गालियां खाई,
साहब के कपड़ों की तरह दिन में कई कई बार बदले नियमों को झेला, नुक्सान की भरपाई जेब से करी। और जैसा कि होना था, भारी मीडिया मैनेजमेंट और ट्रोल्स की फ़ौज के बावजूद नोटबंदी फेल साबित हुई।
जब नोटबंदी फेल हुई थी तो बड़ी बेशर्मी से इन लोगों ने नोटबंदी की विफलता का ठीकरा बैंकों के माथे फोड़ दिया।
"अजी वो तो बैंक वाले ही भ्रष्ट हैं वरना जिल्लेइलाही ने तो ऐसे स्कीम चलाई थी कि देश से अपराध ख़त्म ही हो जाना था।"
थ्रेड: #ड्यू_डिलिजेंस
बैंक में ड्यू डिलिजेंस बहुत जरूरी चीज है। बिना ड्यू डिलिजेंस के हम लोन देना तो दूर की बात है कस्टमर का करंट खाता तक नहीं खोलते।
लोन देने से पहले पचास सवाल पूछते हैं। पुराना रिकॉर्ड चेक करते हैं। चेक बाउंस हिस्ट्री चेक करते हैं।
और लोन देने के बाद भी उसकी जान नहीं छोड़ते। किसी कस्टमर के खाते में अगर एक महीने किश्त ना आये तो उसकी CIBIL खराब हो जाती है। और तीन महीने किश्त न आये तो खाता ही NPA हो जाता है और फिर उसे कोई लोन नहीं देता। #12thBPS
अगर डॉक्यूमेंट देने में या और कोई कम्प्लाइंस में ढील बरते तो बैंक पीनल इंटरेस्ट चार्ज भी करते हैं। लेकिन बैंकों का ये ड्यू डिलिजेंस केवल कस्टमर के लिए ही है। पिछले 56 सालों से बैंकरों का अपना रीपेमेंट टाइम पर नहीं आ रहा। हर पांच साल में बैंकरों का वेज रिवीजन ड्यू हो जाता है।