पहले ज़माने की इस्लामी हुकूमत मुसलमानों से ज़कात वसूल करती थी और ग़ैर मुसलमानों से जिज़्या,ज़कात और जिज़िया दोनों वित्तीय टैक्स हैं,ज़कात मालदार मुसलमान पर हर साल अपने कुल माल के 2.5% के बराबर निकालना अनिवार्य है। इस माल से समाज के ग़रीब और ज़रूरत मन्द लोगों की मदद की जाती है 👇
जबकि ग़ैर मुसलमानों से लिया जाने वाला जिज़्या स्वंय उनकी सुरक्षा और अऩ्य ज़रूरतों पर ख़र्च करने के लिए लिया जाता था,दोनों में फ़र्क़ ये है कि ज़कात मुसलमानों के लिए एक इबादत है जबकि जिज़्या केवल शासन या सरकार को मानने और उसके प्रति वफ़ादार बने रहने का प्रतीक है. #Islam_teach_Us
शरीअत की मंशा एक बहतरीन समाज बनाना है जिसमें व्याभिचार और ग़लत धन्धों की कोई अनुमति नहीं होगी,शरीअत के क़ानून वाली सरकार में पब नहीं चलेंगे,वेश्यावृत्ति नहीं होगी, सै"क्स व्यापार नहीं होगा,विवाह केवल मर्दों और औरतों के बीच ही मान्य होगा। 1/3
शरीअत के क़ानून वाली सरकार में महिलाओं को बहुत अधिक सम्मान दिया जाएगा, उनके सम्मान की पूरी सुरक्षा की जाएगी, उनका यौन उत्पीड़न करने वालों को कड़े से कड़े दण्ड दिए जाएंगे, महिलाओं को बुर्क़ा पहनने के लिए मजबूर नहीं किया जाएगा, लेकिन उनसे शालीन लिबास पहनने की अपेक्षा की जाएगी 2/3
ग़ैर-मुस्लिम महिलाओं को इसके लिए क़तई मजबूर नहीं किया जाएगा। उन्हें अपनी पसन्द के कपड़े पहनने बाल और चहरा वग़ैर खुले रखने की इजाज़त होगी लेकिन नग्न अथवा अर्धनग्न कपड़ों में बाहर निकलने की अनुमित नहीं होगी,यह इसलिए होगा कि महिलाओं का सम्मान बढ़े. 3/3 #Islam_teach_us
शरीअत के क़ानून में गैर मुस्लिमों के नागरिक अधिकार मुसलमानों के नागरिक अधिकारों के बराबर हैं उनसे कम नहीं है। ग़ैर-मुस्लिम नागरिकों के जीवन की आवश्यकताएं पूरी करना शरीअत का क़ानून लागू करने वाली सरकार के लिए उतना ही ज़रूरी है जितना मुस्लिम नागरिकों की आवश्यकताओं को पूरा करना। 1/3
शरीअत के क़ानून के अनुसार राज्य का हर नागरिक सरकार की संरक्षा में होता है। पैदा होने से लेकर मौत तक की ज़िम्मेदारी और जवाबदेही सरकार और हाकिम की है। हर एक को रोज़गार, शिक्षा और जीवन की बहतर से बहतर सहूलत देने में सरकार मुस्लिम और ग़ैर-मुस्लिम में भेद- भाव नहीं कर सकती। 2/3
किसी भी अपराध के सम्बन्ध में क़ानून एक ही तरह से लागू होता है चाहे वह अपराधी या पीड़ित मुसलमान हो या ग़ैर-मुस्लिम। किसी भी निर्दोष की हत्या के मामले में चाहे वह मुसलमान नागरिक की हो, या ग़ैर मुस्लिम नागरिक की,हत्या करने वाले की सज़ा शरीअत में एक ही है, इसमें भेदभाव नहीं है 3/3
जवाब::दो तरह से हुआ है,एक तो विभिन्न क़ौमों और लोगों के द्वारा इस्लाम स्वीकार किए जाने से और दूसरे वंशगत रूप से यानि मुसलमानों की आबादी बढ़ने से 1/3
पहली बार अन्तिम पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने जब अरब में इस्लाम का पैग़ाम लोगों को दिया तो जिन लोगों ने इस्लाम को मान लिया वे मुसलमान कहलाए। उसके बाद इस्लाम का जो फैलाव हुआ वह लोगों के द्वारा इस्लाम को अपना लेने से ही हुआ। 2/3
इस्लाम को अपना लेने का फ़ैसला करना हर आदमी की अपनी आज़ाद मर्ज़ी पर निर्भर है। क्योंकि यह इस्लाम के बुनियादी उसूलों में से है कि किसी को ज़बरदस्ती मुसलमान नहीं बनाया जा सकता।
देश का हर राजनीतिक दल मुसलमानों के प्रति अपना प्रेम दिखा रहा है कुछ पार्टियों को छोड़ कर,मुसलमानों के दु:ख पर आंसू बहाए जा रहे हैं,ऐसा हर चुनाव से पहले होता ही है, हर बार मुसलमानों को बरगलाने के दांव खेले जाते हैं, हाल तो यह है कि एक बार घड़ियाल के आंसू पर यकीन हो जाए 1/3
और वोट लेकर उन्हें फें'का जा सकता है, हकीकत भी यही है मुसलमान जज्बाती ज्यादा हैं,इसीलिए राजनीतिक दलों को लगता है कि उन्हें बेवकूफ बनाना आसान है,अफसोस तो इस बात का है मुस्लिम समुदाय में ही कुछ ऐसे लोग हैं,जो अपने स्वार्थ की खातिर पूरे समुदाय के भविष्य का सौदा कर लेते है 3/3
गिरगिट के रंग पर भरोसा किया जा सकता है, लेकिन देश के राजनीतिक दलों की चालबाजी पर एक फ़ीसद भी यकीन करना मूर्खता होगी. दरअसल, राजनीतिक दलों की नज़रों में मुसलमान इंसान नहीं महज एक वोटबैंक हैं, जिन्हें कुछ झूठे वादे करके, बहला-फुसला कर, RSS का खौफ दिखाकर भ्रमित किया जा सकता है 2/3