अक्षपाद Profile picture
Jun 22, 2021 22 tweets 9 min read Read on X
Since this pDf varNasankar @RamaInExile has blocked me. But someones sent me this thread, I'm going to answer it

People who aren't even loyal to their Gurus it's natural for them to abuse Smartas.
++++++ Image
Demolition of smartas is far beyond your Reach,I saw once this Buddhist said "BSST defeated smartas badly",I was amazed. when I came to kNow about debate BsSt quoted fake "Chaitanyopanishad" in dEbate😂 He made fun of himseLf.

Average claim of an Isckoni.
Fellow vaishnavas like @kaundabhatta had already refuted his claims on Varna Vyavastha. He ran away declaring them as "Smartas".

Maybe he got his janeu donE in isckon😂So he is afraid to lose his false identity,Okay anyway let's continue.
वेदों में स्पष्ट ब्रह्मन् ब्राह्मणो ब्रह्मवर्चसी (यजु २२/२२) का वर्णन है ,ब्राह्मोऽजातौ( अष्टा० ६।४।१७१) के अनुसार यहां जन्मना ब्राह्मण के ही ब्राह्मणत्व प्राप्त करने की बात है, ब्राह्मण गुण प्राप्त करने के बाद ब्राह्मण होने की नहीं। इस प्रकार अन्य जातियों का भी वर्णन है।
इतिहास से कितने भी प्रमाण भी ला दिए जाएं वह अपवाद ही माने जाएंगे।असंख्य व्यक्तियों में से 10 का तप (न कि कर्म) द्वारा वर्ण परिवर्तन अपवाद ही सिद्ध होता है,नियम नहीं।
अधिकतर उदाहरण झूठे होते हैं,फिर भी 100 अपवाद और अन्य शास्त्रों के वचन भी वेद के एक वचन का बाध नहीं कर सकते।
अपनी जनसंख्या बढ़ाने के लिए,मलेच्छों को प्रभावित करने के लिए वैदिक सिद्धांतों और स्मार्तों से द्वेष स्वाभाविक है। जो अपने गुरु के नहीं हो सके,वह किसी अन्य के क्या होंगे।

जीव गोस्वामी जी ने भक्ति रसामृत सिंधु की व्याख्या में ImageImage
भगवदभक्त होने के बाद भी अन्य जन्म में उत्कर्ष और कर्मकांड में अधिकार माना है(१/१/२१) उनका कहना है कि शुद्ध वंश वाले ब्राह्मण को भी उपनयन,गायत्री के बाद ही कर्म में अधिकार आता है।ऐसी स्थिति में यदि अन्य जातियों के दोष समाप्त भी हो जाएं फिर भी उन्हें कर्म का अधिकार नहीं हो सकता। ImageImage
बलदेव विद्याभूषण ने अपने ब्रह्मसूत्र भाष्य में "शूद्र का न ही संस्कार होता है,न ही वेद में अधिकार" यह लिखा है। वेदाध्यन्न आदि ब्राह्मणों के कर्म हैं अत: आपके अनुसार शूद्र ब्राह्मण कैसे बन सकता है? इसमें क्या विधिवाक्य है? Image
आपके ही विश्वनाथ चक्रवर्ती जी ने गीता भाष्य में कहा भी है "तीन गुणों के कारण "जन्म से ही प्राप्त हुए स्वभाव" के कारण अधिकार प्राप्त करने से परमेश्वर आराधना कर कृतार्थ होते हैं। किंतु आप तो सबको ही उनके कर्म त्याग कर "ब्राह्मण" बनाने में लगे हैं। Image
संस्कार दीपिका में गोपाल भट्ट गोस्वामी जी लिखते हैं कि सामान्य ब्राह्मणत्व के तीन कारण हैं "तप श्रुति और "योनि" अपवाद स्वरूप उन्होंने वैष्णव शूद्र के समान अधिकार की बात तो की है किंतु कोई प्रमाण नहीं दिया Image
सत्क्रियासार दीपिका में "गोपाल भट्ट गोस्वामी" जी ने लिखा है कि "गर्भ से 8 वे वर्ष में ब्राह्मण बालकों का उपनयन हो, गर्भ से ही ब्राह्मण व्यवहार क्यों? एवं 16 वर्ष की आयु के पश्चात उन्होंने उपनयन में अधिकार नहीं माना है(यद्यपि प्रायश्चित का विधान है।।यहां ब्राह्मणों का प्रसंग है Image
आजकल तो Isckon आदि बूढ़े मलेच्छ व्यक्तियों को भी जनेऊ पहना देती है।जीव गोस्वामी जी ने अपनी "वैष्णव तोषिणी टीका में "जन्मना ब्राह्मणों ज्ञेय:" आदि स्मृतियों के संदर्भ दिए हैं।
भक्तिविनोद ठाकुर जी ने "जैवधर्म" में भगवदभक्ति से भी कर्म में अधिकार नहीं माना है। Image
आज इनके पूर्वाचार्य जहां कहीं भी होंगे इनपर घृणा से ही देखते होंगे। जनसंख्या बढ़ाने के लोभ में अथवा स्मार्तो से घृणा के कारण "Demolish" कौन हुआ है? हम या आपके आचार्य?

यह तो रही आचार्यों की बात,अब संदर्भों पर आते हैं क्योंकि आचार्यों की बातों को भी झुठलाया जा सकता है।
ब्राह्मणों द्वारा कर्मों का परित्याग करने पर वह क्षत्रिय,वैश्य,शूद्र हुए ठीक है।किंतु एक जन्म में हुए यह कहां लिखा है? अनेकों पीढ़ियां जब स्वकर्म उपनयन, अग्निहोत्र आदि परित्याग करे तो वह मलेच्छ भी बन सकती है। कर्म से अपकर्ष अनेकों पीढ़ियों में संभव है उत्कर्ष नहीं। Image
अन्य (१८९/८) भी अर्थवाद मात्र है भागवत 7/11/35 की भांति सत्वादि गुणों का उत्कर्ष ही इसका लक्ष्य है। सत्वादि गुणों से युक्त शूद्र भी गौण ब्राह्मणत्व से युक्त हो सकता है। किंतु यहां यह ध्यान रखना चाहिए कि "उन गुणों का ब्राह्मण में न होना कहा गया"। यदि गुणों के कारण ब्राह्मण संज्ञा+ Image
होती तो यह व्यवहार ही नहीं बनता। वन पर्व २११ में भी षष्ठी विभक्ति प्रयोगानुसार कर्म में ही उत्कर्ष है। ब्रह्म वित्त ब्राह्मण हो जाता है। ध्यान दीजिए श्लोक में "शूद्रयोनि प्रयुक्त" है शूद्र गुणकर्मानुसार जन्म तदनुसार संस्कार से हैं। उन्हे वैश्य,क्षत्रिय भाव प्राप्त होना++y ImageImage
योनि प्राप्त होना नहीं।
वन पर्व 215 में व्याध के पूर्वजन्म में ब्राह्मण होने का वृतांत है।यह सुनकर ब्राह्मण ने कहा कि "मैं आपको ब्राह्मण ही मानता हूं" क्योंकि ऋषि ने कहा था कि पूर्वजन्म का स्मरण होने पर तू ब्राह्मण हो जाएगा।
कैसे यह Isckon वाले तोड़ मरोड़ कर उद्धरण देते हैं। ImageImage
As I have shown their acharyas have prohibited this.

Study of the Vedas is prohibited for shudra (as I have shown in the commentary of balaDeva) mantras too. So how can he be brahmana? ImageImage
यह तुम्हारे आचार्य की अवैदिकता ही दिखाता है,श्रीपाद माध्वाचार्य जी के नाम पर भ्रम फैलाना बंद करो। यह अधिकरण जनश्रुति आदि के "जन्म शूद्र" न होने का ही निश्चय करने के लिए है। जन्मना शूद्र के ही वेदाध्यन्न का निषेध अधिकरण में हैं। संकेत आदि से सत्यकाम वाला प्रसंग देखें Image
वज्रसूची में तो गुण कर्म आदि सभी से ब्राह्मण मानने से मना किया है।वज्रसूची में ब्रह्मज्ञानमूलकता से ही ब्राह्मणत्व की बात कही गई है वहाँ वर्ण व्यवस्था में कर्म के प्रयोजन से जो ब्राह्मण वर्ण है उसका प्रतिपादन नहीं किया गया है। इसीलिए तो वहाँ केवल ब्राह्मण शब्द को लेकर ही विचार है
ऐसी न जाने कितनी गप्पे इस्कॉन वाले मारते फिरते हैं,सत्य यह है सभ्य परंपरा प्राप्त गौडीय वैष्णव भी इनसे स्वयं को दूर करने का प्रयास करते हैं।

जिसका स्वयं का वर्ण अशुद्ध हो वह अन्यों पर संदेह करेगा ही। इसके विपरीत वाक्य में कोई प्रमाण नहीं है किंतु शुद्ध कुल का होने में परंपरा है। Image

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Jun 23, 2021
अवैदिक इस्कॉनी जब भयभीत हो जाता है तो फिर Unblock कार उत्तर देने जा साहस भी नहीं करता।

ऐसा यह अनेकों बार कर चुका है,हार पिट कर किसी को भी स्मार्त घोषित करना,उल्टे सीधे शब्द यहां वहां की बातें करना। गप्पों के अतिरिक्त इनके पास है ही क्या?
चैतन्योपनिषद, ब्रह्म संहिता🤡 Image
वर्णसंकर का इतना साहस नहीं हुआ कि मध्यस्थ आदि का नाम और विजय पत्र दिखा दे। होगा भी कैसे,सब ISCKon की गप्पे जो है,सत्य से इन्हे क्या।
कभी रामानंद तो कभी वल्लभ संप्रदाय के विरुद्ध भी इन्होने यह गप्पे लगाई है। संप्रदायों के मध्य इनकी गप्पों का क्या मूल्य है सब जानते हैं। Image
मान भी लें कि यह अनपढ़ किसी गली में शास्त्रार्थ जीत गएएसी स्थिति में तो हमारे सिद्धान्त वाले अनेकों विषयों पर नित्य शास्त्रार्थ जीत गए होते हैं तो वह ही क्यों न मान लिया जाय।
इस गप्प को यह गुरु परंपरा प्राप्त कैसे कह रहा है? मैने स्पष्ट दिखाया है कि यह अपने गुरुओं के ही नहीं हुए। Image
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