भारत के अधिकांश समाचार पत्र पत्रिकाएं जाति विशेष के कल्याण में तन मन से लगे रहते हैं, यही नहीं वे भारत के अछूतों के विरुद्ध अहितकारी प्रलाप भी करते रहते हैं,
दीनमित्र,जागरूप,डेक्कन रैयत,विजयी मराठा,ज्ञान प्रकाश,इंदू प्रकाश तथा सुबोध पत्रिका तक में कभी कभी थोड़ा बहुत ही विचार 1/4
विमर्श होता था,बाकी जगह ब्राम्हणेत्तर जातियों के ही विचार विमर्श की लिए होती थी,भारत में अश्पृश्यता की भयंकरता तो देखिए-डा.बाबासाहब अम्बेडकर नें मूकनायक के प्रकाशन सम्बन्धी विज्ञापन लोकमान्य तिलक के समाचार पत्र केसरी में छापनें के लिए बाकायदा फीस देकर दिया लेकिन लोकमान्य तिलक 1/2
नें बाबासाहब का वह विज्ञापन छापा नहीं था,इसलिए 31 जनवरी सन 1920 को "मूकनायक" नामक समाचार पत्र का संपादन शुरू किया,ऐसे ब्राम्हणेत्तर को भला किस प्रकार लोकमान्य कहा जा सकता है,जो अपनें अखबार तक में जगह देनें के लिए तैयार नहीं हो,दरअसल यह मनुवादी वर्ण व्यवस्था की अश्पृश्यता 1/3
का बेहिसाब जहर था जो हर जगह हर स्तर पर हमेशा से वमन किया जाता रहा है-
--------मिशन अम्बेडकर.
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