#क्षत्रिय_शूरवीर_मोहन_सिंह_मढाड़_जी

मढाड़ हरियाणा प्रदेश में बड़गूजर(राघव)राजपूतों की एक शाखा है । ये #राजस्थान मेवाड़ के गोडवाड क्षेत्र से कामा पहाड़ी(बांदीकुई और बयाना के बीच) होते हुए 9 वी सदी के आसपास कुरुक्षेत्र/जीन्द इलाके में आए और अपना राज्य स्थापित किया। 1/20
मढाड़ राज्य की सीमाएँ उत्तर मे अलावला गांव,उत्तर पश्चिम मे क्योडक,पश्चिम मे वग्धर नदी,दक्षिण मे हाट, अहर और कुदाना,दक्षिण पुर्व मे बडौली,पुर्व मे यमुना नदी और उत्तर मे ऊंचा समाना-कमोपुरा होती हुई करनाल तक लगभग 360 गांव में फैली हुई थी! 2/20
मढाडो के प्रशानिक केंद्र जींद कलायत राजौंद और घरौंडा बने और इन्हें नरदक धरा के राजवी कहा जाने लगा:
" कैथल चैंदेनों जीतियो, रोपी ढिंग ढिंग राड़। नरदक धरा का राजवी, मानवे मोड़ मढाड।।"

ठाकुर मोहन सिंह मढाड (कैथल), मुगल शासक बाबर के समकालीन राजपूत राजा थे।

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यह घटना उस समय की है जब बाबर लाहौर में था और आगरा जाने की तैयारी में था। 4 मार्च सन् 1530 ईस्वी को बाबर ने लाहौर से आगरा जोन के लिए प्रस्थान किया।
सरहिंद पहुँचने पर उसे समाना के काजी ने उससे मुलाकात कर बताया की कैथल के मोहन सिंह मढाड (मंडहिर) नामक राजपूत ने

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उसकी इमलाक (जागीर) पर हमला करके उसे लूटा पाटा और जलाया और उसके बेटे को मार डाला। काजी की बात सुन के आग बबूला हुए बाबर ने फ़ौरन ही तीन हजार घुड़सवारों के साथ अली कुली हमदानी को कैथल परगना में ठाकुर मोहन सिंह मढाड के गाँव भेजा।
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यादगार अहमद(तवारीखें-सलतीने-अफगाना) बताता है की अलसुबह मुग़लों की सेना ठाकुर मोहन सिंह मढाड के गाँव पहुँचीं और मुगल सेना की गाँव की ओर कूच की खबर सुनी तो वह भी अपने नौजवानों के साथ बाहर निकले और सामने आते ही मढाडों ने तेजी से वाणों की वर्षा करते हुए शाही सेना के पाँव उखाड़ दिए 6/
इस भयंकर युद्ध में 1 हजार तुर्क मारे गए शेष भाग कर पास के ही एक जंगल में छिप गए। तथा योजना बनाकर एक बार फिर मोहन सिंह के गाँव की और बढ़ने लगे। तुर्कों की इस धृष्टता को देखकर राजपूतों की आँखों में खून उतर आया और उन्होंने दुगने उत्साह से तुर्कों से मुकाबला किया।
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इस बार भी बहुत सारे शाही सैनिक मारे गए। बाकि सैनिको को लेकर अली खान हमदानी भाग चला और सरहिंद पहुँच कर ही साँस ली।

शाही सेना की हार सुनकर बाबर शर्मसार होते हुए ठाकुर मोहन सिंह मडाड के नाश का संकल्प लेते हुए तुरन्त 6000 घुड़सवार सैनिकों के साथ..
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अपने सिपहसालार तरसम बहादुर और नौरंगवेग को भेजा। सरहिंद से चलते तरसेम बेग ने सोचा की मोहन सिंह जरूर विशेष किस्म का बहादुर व्यक्ति है उसे सिर्फ बल से नहीं छल से मारना और हराना होगा।
ठाकुर मोहन सिंह मडाड के गांव के नजदीक आने पर तरसेम बेग ने अपने सैनिकों को तीन भागों में बाँट दिया।9/
जब शाही सेना का हरावल दस्ता गाँव के नजदीक पहुँचा तो योजना अनुसार उन्होंने मढाडों को ललकारा तब मढाडों की नस नस में चिंगारी दौड़ पङी और वह तुरन्त तैयार होकर बहार निकले और शाही सेना पर तीरों की बौछार करने लगे।राजपूतों के आने के साथ ही पूर्व योजनानुसार शाही सेना पश्चिम की ओर..
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भागने लगी और क्षत्रियों ने उनका तेजी से पीछा किया। इसी बीच तरसेम बेग की टुकड़ी ने राजपूत विहीन गाँव में आग लगा दी। जब राजपूतों ने गाँव से उमड़ता धुँआ देखा तो वे वापिस लौटे। उनके पीछे मुड़ते ही भागती हुई सेना लौटने लगी। इस प्रकार राजपूतों की सेना शाही सेना के बीच फंस गयी। 11/20
इसी समय नौरंगबेग अपनी सेना के साथ राजपूतों पर टूट पड़ा। चारों और से घिरने के बाद भी राजपूत वीरता और शौर्य से लड़े उधर गाँव धु धु करता जलता रहा। राजपूत शाही सेना के इस छल को नहीं समझ पाए और पूरा साहस और पराक्रम होते हुए भी इन्हें पराजित होना पड़ा।
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इस युद्ध में एक हजार वीर राजपूत शहीद हुए । ठाकुर मोहन सिंह अंत तक लड़ते रहे परन्तु कब तक ? आखिर उन्हें भी पृथ्वीराज चौहान की तरह कैदी बनना पड़ा। मोहन सिंह जी को कैद कर दिल्ली ले जाया गया क्योकि तब तक बाबर सरहिंद से रवाना होकर दिल्ली पहुँच गया था।
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बाबर ने इन्हें सजा ए मौत का फरमान सुनाया पर साथ यह भी कहा यदि ठाकुर मोहन सिंह मढाड इस्लाम कबूल कर लेतें है तो उनकी सजा माफ़ कर दी जायेगी। जिसे स्वाभिमानी राजपूत मोहन सिंह मढाड जी ने सहर्ष अस्वीकार कर वीरगति का आलिंगन किया।
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"सिजदा से गर वहिश्त मिले दूर कीजिये,
दोजख ही सही सर को झुकाना नहीं अच्छा।
बेटा तूं राजपूत, याद सदा ही राखिजे,
माथा झुके न सूत, चाहे शीश ही कटिजे।।"

ठाकुर मोहन सिंह ने अपना सर नहीं झुकाया। क्षत्रियों के इस वारिस को बाबर ने एक विषेश प्रकार की विधि से मौत देने का फैसला किया।
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उसने ठाकुर मोहन सिंह को कमर तक मिटटी में दफना दिया गया और शाही सेना ने उनपर तीरों की बौछारें शुरू कर दी। सैकड़ों तीर देखते ही देखते ठाकुर मोहन सिंह का शरीर भेदने लगे। उनके शरीर से खून की फुहारें छूटने लगीं परन्तु गर्दन और शीश बाबर के सामने तना खड़ा रहा। वह अभी भी नहीं झुका 16/20
जिससे बाबर झल्ला उठा। जब तक रक्त की अंतिम बूँद ठाकुर मोहन सिंह के शरीर से नहीं छुटी वह तन के खड़े रहे और देखने वाले भी हैरानी से देखते रहे की इतनी आघातों के बाद भी उनके चेहरे पर दर्द और पीड़ा नहीं छलक रही थी जैसे वह संवेदनहीन ही हो गए हो।
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अंत में ठाकुर मोहन सिंह जी का शीश धरती माँ को वंदन करते हुए छु पड़ा और उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए।
ठाकुर मोहन सिंह मर कर भी अमर हो गए। उन्होंने दो बार शाही सेना को अपने शौर्य से पराजित किया जिससे बाबर लज्जित हुआ

#क्षत्रिय_सर्वत्र_विजयते
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इस युद्ध में मुआँना गाँव के परम् योद्धा ठाकुर मामचन्द मडाड भी शाही सेना के साथ युद्ध करते हुए शहीद हुए वे ठाकुर मोहन सिंह के रिसालदार थे, जिनकी मृत्यु के बाद उनकी पत्नी कपूर कँवर सतीं हूईं। जिनकी देवली मुआँना गाँव तहसील सफीदों जिला जींद हरयाणा में आज तक बनीं हुई है।⚔🚩🚩
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जहाँ शादी के बाद हर नव विवाहिता राजपूत क्षत्राणी आशीर्वाद और सौभाग्य लेने जाती है।

जय रघुनाथजी की 🚩🙏
जय मां भवानी ⚔
जय क्षात्र धर्म ⚔🙏🚩
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