हमारे पुरातन इतिहास में भूलोक में प्रमुखतः दो प्रकार के मनुष्यों का शासन था ।
१. सुर
२. असुर
सुर धार्मिक होते थे, दयावान होते थे, अपने सामर्थ्य का उपयोग समस्त निवासियों के हित में करते थे।
असुर उद्यंडी होते थे, कपटी होते थे, भगवान से वर प्राप्त करने के पश्चात उसका दुरुपयोग १/न
भगवान के विरुद्ध भी करने से नहीं डरते थे।
सुर सुखी संपन्न होते थे, अन्याय देखने पर अपने लोगों के विरुद्ध भी खड़े होते थे मतलब न्याय प्रेमी थे, न्याय व्यवस्था पे विश्वास करते थे| असुर स्वार्थी होते थे , अन्यायी और दुराचारियों के साथ देने से डरते नहीं थे । खुद को हमेशा शोषित २/न
दिखाते थे की उनके साथ हमेशा अन्याय किया जाता है ।
सुर जहाँ रहते थे राजतंत्र में भी प्रजातंत्र होता था, सारे निर्णय राजगुरु और ऋषियों के सलाह अनुसार किया था, वैदिक नियमों का पालन होता था। जहाँ असुरों को राज होता था वहाँ असुरराज का निर्णय ही अंतिम होता था । असुर हमेशा आक्रमण ३/न
कर सुर/देवताओं को प्रताड़ित करना ही इनका मुख्य उद्देश्य होता था। चोरी छिपे ऋषियों के यज्ञ भंग करना, साधारण मनुष्यों का उत्पीड़न करना आतंक फैलाना इनका प्रमुख काम था। आतंक फैलाने के लिए ये हर प्रकार के माया, छल, क्षद्मवेश उपयोग करते थे।
स्थिति आज भी यही है, युग बदला तरीक़े ४/न
बदले।
समझना आपको है, सोचें समझें निर्णय लें कौन इस युग में सुर है और कौन असुर ।
ऊपर लिखे गए विचारों में किसी धर्म /मज़हब, जाति, व्यक्ति विशेष को लक्षित नहीं किया गया है 😉