पांच साल के लम्बे इंतज़ार बाद किसी तरह होम पोस्टिंग मिली थी। ओडिशा के सुदूर इलाके से निकल कर अपने राज्य पहुंचा तो बहुत राहत अनुभव कर रहा था। एक हफ्ता पोस्टिंग के इंतजार में हेड ऑफिस में गुजारने के बाद होम डिस्ट्रिक्ट का लोकल ऑफिस अलॉट हो गया था।
अब वहाँ से ब्रांच अलॉट होनी थी। "भगवान् ने यहाँ तक साथ दिया है तो आगे भी देगा ही", सोचकर रीजन ऑफिस पहुंचा। उसने आगे का पूरा SOP सोच रखा था। "चॉइस पूछेंगे तो तो XYZ ब्रांच बताऊंगा। अकाउंटेंट या फील्ड अफसर कि पोस्ट बढ़िया रहेगी। घर के नजदीक भी रहूंगा।
घरवालों के सारे अकाउंट वहीँ ट्रांसफर करवा लूँगा। घर के भी काम कर दिया करूंगा।" लेकिन उसकी उम्मीदों पर तब पानी फिर गया जब RM ने बुलाया। "तुमको ABC ब्रांच में मैनेजर बना रहे हैं। बहुत बढ़िया ब्रांच है। तीन साल से हमारी One of the Best performing ब्रांच है।
सारे टारगेट आसानी से पूरा करती है। कभी कस्टमर कंप्लेंट नहीं आती। स्टाफ भी बहुत सपोर्टिव है। इससे अच्छी पोस्टिंग तुमको नहीं मिल सकती थी। जाओ, जाके पिछले BM से भी अच्छा रिजल्ट देकर दिखाओ। Best of Luck." मैप में गूगल करके देखा तो घर से 40 किलोमीटर दूर एक कस्बे वाली ब्रांच थी।
एक बारगी तो माथे पर पसीना आ गया। "घर पहुंचकर भी घर नहीं पहुंचे। वैसे RM बोल तो रहा है कि बहुत अच्छी ब्रांच है। अब कितनी अच्छी है ये तो जा के पता चलेगा। और अभी अभी ट्रांसफर हुए आदमी को आते ही BM कौन बनाता है? न मुझे एरिया का कुछ पता, न यहाँ के बैंकिंग कल्चर का।
साला आते ही चाबी मिल गई। वहां भी चाबी मिली हुई थी। पता नहीं ये चाबियों से कब छुटकारा मिलेगा।" यही सब सोचते-सोचते बाइक उठाई और घर आ गया। घर वालों के साथ बातचीत करने के बाद निर्णय लिया कि रोज up-down किया जाएगा। और कोई चारा भी नहीं। ब्रांच पहुंचा, चार्ज लिया।
पहुँचते ही पता चला कि ब्रांच में एक अकाउंटेंट है जिनके रिटायरमेंट में 2 साल ही बाकी है, VRS के लिए अप्लाई कर रखा है, मिला नहीं तो वो छुट्टी पर ही रहते हैं। एक कैशियर (जो कि लोकल है) के अलावा दो क्लर्क और हैं मगर उनमें से एक डेपुटेशन पर ही रहता है
और दूसरी एक मैडम हैं जो कभी पांच भी नहीं बजने देती। बैंच मैनेजर के केबिन में ट्रॉफियों का ढेर लगा हुआ है। CGM क्लब, चेयरमैन क्लब वगैरह के सर्टिफिकेट लगे हुए हैं। चार्ज लेते ही "बहुत अच्छी ब्रांच है" की हक़ीक़त सामने आ जाती है। ब्रांच को हाल ही में डीग्रेड किया गया है।
भरपूर NPA है। एक कस्टमर आता है जिसे FD का पैसा निकलवाना है लेकिन उसके पास FD नहीं है। FD की रसीद मांगने पर एक पेपर दे देता है। पता चलता है उसका पैसा म्यूच्यूअल फण्ड की एक क्लोज्ड स्कीम में डाला गया है जिसका लॉक इन पीरियड 3 साल है, जिसमें से दो साल अभी बाकी हैं।
कोरोना की मेहरबानी से रिटर्न अभी नेगेटिव में हैं। कस्टमर काफी हंगामा करता है। किसी तरह कैश ऑफिसर समझा बुझा कर मामला शांत करता है। शाम को भूख लगने लगती है तो याद आता है कि लंच तो किया ही नहीं। अगले दिन फिर एक कस्टमर आ जाती है।
बेटी की शादी के लिए बचाने के लिए दो साल पहले "LIC" में कुछ पैसा डाला था ब्रांच मैनेजर के कहने पर। अगले महीने बेटी की शादी है। पैसा वापिस चाहिए। पॉलिसी के डॉक्यूमेंट पढ़ने पर पता चलता है कि इसका लॉक इन पीरियड तो पांच साल का है। यानी पांच साल से पहले पैसे मिल ही नहीं सकते।
महिला वहीँ रोने लगती है। ब्रांच मैनेजर व्यथित हो जाता है। लेकिन कर भी क्या सकता है। थोड़ी देर बाद एक व्यक्ति आता है। स्वयं को पिछले BM का दोस्त बताता है। "सर, पिछले BM को ये जो ट्रॉफियां मिली हैं वो हमने ही तो दिलवाई हैं।" पता चलता है कि वो एक एजेंट है।
लोन के लिए कस्टमर पकड़ के लाता है। उस पर कमीशन खाता है। थोड़ा शायद ब्रांच मैनेजर को भी देता रहा हो। बीमा के लिए भी वही मनाता है। शाम को सबके जाने के बाद लोन फाइल्स देखने लगता है। किसी फाइल में कुछ मिसिंग है किसी में कुछ। मगर सबमें एक चीज कॉमन है और वो है बीमा पॉलिसी।
सबका बीमा किया गया है। पिछले मैनेजर की परफॉरमेंस का रायता समेटते समेटते एक महीना यूं ही निकल जाता है। फिर आती है P-review मीटिंग।
RM: "तुमको इतनी बढ़िया ब्रांच दी थी लेकिन तुम वहां से भी रिजल्ट नहीं दे पाए। पूरे महीने में एक भी हाउसिंग लोन नहीं हुआ। एक भी Life insurance नहीं हुआ।
क्या करते हो ब्रांच में बैठे बैठे। You are a certified non performer." HR मैनेजर की तरफ देखते हुए, "इसकी ब्रांच में से सुधीर (कैशियर) को हटा के रवि (पुराना ब्रांच मैनेजर) की ब्रांच में ट्रांसफर करो। जब काम ही नहीं करता तो स्टाफ की क्या जरूरत।"
BM बेचारा घर जाते जाते सोच रहा था कि जब सुबह आठ बजे निकलकर रात 9 ही घर पहुंचना है तो क्या होम पोस्टिंग और क्या ही नॉन-होम पोस्टिंग।
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होम पोस्टिंग तो मिली। घर से 40 किलोमीटर दूर ही सही। नई ब्रांच में शुरू शुरू में तो दिक्कत आती है। अभी रोज नौ बजते हैं। धीरे धीरे शायद सात बजे तक बंद कर पायेगा ब्रांच को। लेकिन मम्मी के घुटनों का दर्द बढ़ता हो जा रहा है।
एक बार दिखाना तो पड़ेगा ही। संडे को डॉक्टर नहीं देखता और छुट्टी वाले शनिवार को कम्बख्त किसी न किसी बहाने से ब्रांच बुला लेते हैं। एक दिन छुट्टी लेके दिखाना ही पड़ेगा। इतनी सारी CL पड़ी हैं। कल बोलेगा HR मैनेजर को। चाबी न होती तो बिना बोले ही चला जाता।
साली चाबी न हुई हथकड़ी हो गई। HR मैनेजर को कॉल किया। तीन चार बार बिजी आने के बाद फाइनली कॉल लगा।
-"सर, ABC ब्रांच से फलाना बोल रहा हूँ। मम्मी की तबियत खराब है। एक दिन की छुट्टी चाहिए।"
कस्टमर साहिबा: मैं इंटरनेट बैंकिंग का ID password भूल गई हूँ। रिसेट करवाना है।
बैंक स्टाफ: ओके, पिछली बार कब लॉगिन किया था?
कस्टमर साहिबा: याद नहीं, तीन चार साल हो गया।
बैंक स्टाफ: कोई बात नहीं। मोबाइल पर बैंक की इंटरनेटबैंकिंग की वेबसाइट खोलो। उसमें फॉरगेट पासवर्ड पे जाओ। फिर उसमें फॉरगेट यूजरनाम पे जाओ।
कस्टमर साहिबा: इसमें तो CIF और अकाउंट नंबर मांग रहा है?
बैंक स्टाफ: हाँ तो डालो न।
कस्टमर साहिबा: मेरे पास नहीं है।
बैंक स्टाफ: क्यों? पासबुक नहीं लाई?
कस्टमर साहिबा: नहीं।
बैंक स्टाफ: कल पासबुक लेकर आना। बाकी का काम तब होगा।
कस्टमर साहिबा: घर पर भी नहीं है पासबुक। शायद खो गई।
बैंक स्टाफ: अच्छा आधार और पैन कार्ड दीजिये।
कस्टमर साहिबा: ओरिजिनल नहीं है। मोबाइल में फोटो है।
कुछ दिनों पहले एक बैंकर साथी ने पिछले कुछ दिनों से बंद पड़े हमारे ज्ञान चक्षु खोलने की कोशिश करते हुए बताया कि पुरानी पेंशन स्कीम से सरकारी कर्मचारी बर्बाद हो जाएंगे और नई पेंशन स्कीम पुरानी वाली से कहीं बेहतर है।
पहले तो हमने इस तर्क को श्रीमदमोदीगीता का प्रभाव मनाते हुए नज़रअंदाज़ करने की कोशिश की मगर बाद में अहसास हुआ कि इस प्रकार तो ना जाने कितने बैंकर भाई और अन्य सरकारी कर्मचारी 'राष्ट्रहित' में अपने भविष्य का बलिदान देकर दधीचि के छद्माभास में बैठे होंगे।
इसलिए आज हम 2014 के बाद ही खुले कई ज्ञानचक्षुओं को पुनः बंद करने की असफल कोशिश करने के लिए अपना वित्तीय वर्षांत के अंतिम सप्ताहांत के चार घंटे बर्बाद करके ये थ्रेड लेकर आये हैं।
एक सीनियर बैंकर जिनसे सिर्फ दो दिन मुलाकात हुई मगर एक जैसी परिस्थितियों का भुक्तभोगी होने के कारण अच्छी मित्रता हो गई, कुछ दिन पहले मिले। बताया कि कुछ दिन से छुट्टी पे चल रहे हैं। हमने पूछा कि फरबरी-मार्च में छुट्टी?
वो भी बैंक में? वो भी ब्रांच मैनेजर रहते हुए? और वो भी सिंगल अफसर ब्रांच में? हम उनके इस सौभाग्य पर मन ही मन ईर्ष्या में जल-भुन रहे थे कि उन्होंने बताया कि उनको डॉक्टर ने MDD और GAD बताया है। अब ADS, CBS, CCDP वगैरह तो समझ में आता है ये MDD और GAD पहली बार सुना था।
पूछने पर सर ने बताया कि MDD मतलब Major Depression Disorder और GAD मतलब General Anxiety Disorder. अब बात थोड़ी गंभीर हो गई थी। सर ने बताया कि बीमारी का अंदेशा तो काफी पहले से था लेकिन डॉक्टर को दिखाने का समय ही नहीं मिल पा रहा था।
बैंकर, विशेषकर ब्रांच मैनेजर्स जब आपस में मिलते हैं तो अक्सर मैनेजमेंट के खिलाफ अपना दुखड़ा रोते हैं जिसमें स्टाफ की कमी और कंट्रोलर के घटिया व्यवहार के साथ साथ सैटरडे संडे को जबरदस्ती बैंक खुलवाने वाला मुद्दा भी होता है।
उनमें से अक्सर कई लोग ये दावे करते हुए पाए जाते हैं कि चाहे जो हो जाए वो छुट्टी के दिन ब्रांच नहीं खोलते। ऐसे ब्रांच मैनेजरों को देखकर प्रेरणा मिलती है। लेकिन वही प्रेरणा बेवफा हो जाती है जब पता चलता है कि जो मैनेजर चौड़े होकर मैनेजमेंट के खिलाफ सीना ठोक रहे थे,
वही शनिवार रविवार के दिन व्हाट्सएप ग्रुप में साहब की नजरों में गुड बॉय बनने के लिए फोटो डाले बैठे रहते हैं
"branch opened for pending work",
"branch opened for compliance"
"branch opened for loan sourcing"
"branch opened for फलाना धिमका कैंपेन"
"branch opened for साहब की खुशी"