होम पोस्टिंग तो मिली। घर से 40 किलोमीटर दूर ही सही। नई ब्रांच में शुरू शुरू में तो दिक्कत आती है। अभी रोज नौ बजते हैं। धीरे धीरे शायद सात बजे तक बंद कर पायेगा ब्रांच को। लेकिन मम्मी के घुटनों का दर्द बढ़ता हो जा रहा है।
एक बार दिखाना तो पड़ेगा ही। संडे को डॉक्टर नहीं देखता और छुट्टी वाले शनिवार को कम्बख्त किसी न किसी बहाने से ब्रांच बुला लेते हैं। एक दिन छुट्टी लेके दिखाना ही पड़ेगा। इतनी सारी CL पड़ी हैं। कल बोलेगा HR मैनेजर को। चाबी न होती तो बिना बोले ही चला जाता।
साली चाबी न हुई हथकड़ी हो गई। HR मैनेजर को कॉल किया। तीन चार बार बिजी आने के बाद फाइनली कॉल लगा।
-"सर, ABC ब्रांच से फलाना बोल रहा हूँ। मम्मी की तबियत खराब है। एक दिन की छुट्टी चाहिए।"
-"छुट्टी के लिए तो RM सर से बात करनी पड़ेगी। ब्रांच मैनेजर्स को छुट्टी वही देते हैं।"
-"ओके सर।"
डरते डरते RM को कॉल लगाया।
"सर एक दिन की छुट्टी चाहिए।"
"अभी से छुट्टी? अभी तो तुमको आये हुए एक महीना भी नहीं हुआ। क्यों चाहिए छुट्टी?"
"मम्मी को डॉक्टर को दिखाना है।"
"ठीक है। देखते हैं। शाम को हर मैनेजर से बात कर लेना। कोई अरेंजमेंट होगा तो दे देंगे छुट्टी। लेकिन वो प्रोबेबल NPA वाला काम पूरा करते जाना। कोई नया NPA नहीं चाहिए मुझे।"
"थैंक यू सर।"
"ये सर तो बहुत अच्छे हैं। इतनी जल्दी छुट्टी मिल जायेगी ये तो सोचा ही नहीं था।"
दिन भर खूब काम करने के बाद, शाम को HR मैनेजर को कॉल किया।
-"सर कल के लिए कौन आ रहा है?"
-"कल के लिए अरेंज नहीं हो पायेगा। फलानी ब्रांच में ऑडिट चल रही है तो स्टाफ वहां बिजी है। RM सर ने कहा है कि ऑडिट ख़तम हो जाए तो छुट्टी ले लेना।"
जैसे वज्रपात सा हुआ। बिना कुछ बोले फोन रख दिया। "एक आदमी को एक दिन के लिए रिलीव करने के लिए स्टाफ नहीं है इनके पास?" अगले हफ्ते किस्मत से एक दिन कि छुट्टी मिल गई। लेकिन ढेर सारी शर्तों के साथ। "एक दिन की ही तो बात है।
एक दिन में ऐसा कौनसा तूफ़ान आ जाएगा ब्रांच में" सोचकर सारे जरूरी पासवर्ड डेपुटेशन पे आये हुए स्टाफ को देकर छुट्टी पे निकल गया। सुबह 10 बजे से ही फ़ोन आना शुरू हो गए।
-"फलाने का क्या हुआ", "ढिमाके काम का क्या हुआ", आज फलाने का लॉगिन डे है, इतना करना है"।
"सर आज में छुट्टी पर हूँ, फलाने साहब से से बात कर लीजिये।"
टारगेट के दानदाताओं और डाटा के भिखारियों को नए साहब का नंबर बांटते बांटते ही 12 बज गए। जिम्मेदार ब्रांच मैनेजर है न। फोन बंद नहीं कर सकता। फिर भी सब कुछ सही जा रहा था। मम्मी को डॉक्टर को दिखा आया था।
आर्थराइटिस बताया था। इस उम्र में हो ही जाता है। चार बजे अचानक बम फटा। "RM का फ़ोन!!! लेकिन क्यों? कल के पेंडिंग काम तो सारे कर दिए थे।" एक झटके में सारी बैंकिंग दिमाग में घूम गई। फोन उठाया।
-"तुमने तो कहा था सारे खातों में रिकवरी हो गई।"
-"जी सर। जिन खातों में पैसे थे उनमें रिकवरी कर ली थी।"
-"तो फलां खाता NPA कैसे हो गया? खाते में पैसा पड़ा था फिर भी तुमने रिकवरी नहीं की। बिज़नेस तो ऐसे भी नहीं लाते हो पुराने का भी मेंटेनेंस ठीक से नहीं कर सकते? बैक ऑफिस वाले तुम्हारा बकाया काम करते फिरें?"
इतनी डाँट सुनने के बाद याद ही नहीं रहा कि किस खाते की बात हो रही थी और कल क्या किया था। मुंह से बस इतना ही निकला "सॉरी सर।"
"कल ब्रांच के बाद ऑफिस आके मुझसे मिलो।"
ऐसा लगा जैसे खाता NPA होना कोई बहुत बड़ा पाप हो गया हो और ये पाप आज तक के मानव इतिहास में उससे पहले किसी ने नहीं किया हो।
किसी तरह आधा काम अधूरा छोड़ के ब्रांच बंद करके ऑफिस पंहुचा। RM साहब किसी मीटिंग में गए हुए थे। बैठा रहा। रात को करीब सवा नौ बजे RM साहब आये।
हाथ में गिफ्टनुमा कोई डब्बा था। किसी क्रॉस सेलिंग की पार्टी से आ रहे थे शायद। मूड ठीक ही था। थोड़ा डांटा। कल की घटना को लेकर एक मेमो थमा दिया। आखिरी लाइन खटक गई "अगर आज के बाद ऐसा हुआ तो साल भर छुट्टियों के लिए तरस जाओगे।"
चुपचाप निकल आया। दोबारा छुट्टी मांगी ही नहीं।
एक छुट्टी के लिए भी RM से बात करे, उस RM से जिसे बात करने की तमीज ही नहीं। घर के पास पोस्टिंग थी तो सारे रिश्तेदार हर फंक्शन में बुलाते थे। उनको थोड़े ही पता था कि साहब शाखा प्रबंधक नहीं बल्कि "शाखा पर बंधक" हैं। छुट्टी तो छोडो किसी दिन जल्दी घर जाने की भी सम्भावना नहीं थी।
घर पर घरवालों की गलियां सुनता, ऑफिस में ऊपर वालों की। किसी तरह ब्रांच चलाता रहा। अब आदत हो गई थी। दो महीने बाद फिर छुट्टी की जरूरत पड़ी। इस बार थोड़ी लम्बी छुट्टी चाहिए थी। वाइफ बहुत दिनों से कहीं घूम के आने के लिए जिद कर रही थी।
रोज की ऑफिस की गालियों और घर की चिक-चिक झिक-झिक से परेशान हो चुका था। दिसंबर का महीना। छुट्टी के लिए अप्लाई कर दिया। फ़ोन किया तो इस बार साफ़ मना हो गई। "तुम्हारे सारे टारगेट अधूरे हैं। जब से आये हो LI में ब्रांच भी एक्टिवेट नहीं हुई है। क्वार्टर एंडिंग है।
NPA रिकवरी में भी कुछ ख़ास नहीं किया है। अगले क्वार्टर में तुम्हारी ब्रांच की ऑडिट भी पेंडिंग है। उसके बाद चले जाना।" इतने कारण तो युद्ध करने के लिए गीता में कृष्ण ने अर्जुन को नहीं गिनाये होंगे जितने RM ने छुट्टी न देने के लिए गिना दिए।
लेकिन परिस्थितियां ऑडिट तक इंतज़ार करने को तैयार न थीं। अगले ही महीने ससुरजी गुजर गए। बैंक के नियमों के हिसाब से एक हफ्ते की छुट्टी मिलनी थी। सात दिन तो पूरे हुए भी नहीं थे। पांचवे दिन ही फ़ोन आ गया
-"जहाँ भी हो अभी के अभी वापिस आओ। कल से ऑडिट आ रही है तुम्हारी ब्रांच में।"
-"लेकिन सर मेरे ससुरजी गुजर गए हैं। अभी..."
-"लेकिन वेकिन कुछ नहीं। या तो कल सुबह 8 बजे ब्रांच आओ नहीं तो रीजन तो छोडो स्टेट में भी नहीं टिकने दूंगा। छुट्टियां बाद में पूरी कर लेना।"
इमरजेंसी का नाम लेकर ससुराल वालों से माफ़ी मांगकर अगले दिन ब्रांच पहुंचा।
पहुँच के पता चला कि ऑडिट तो दो दिन बाद आने वाली है। गुस्सा बहुत आया। ऑडिट के लिए एक भी एक्स्ट्रा स्टाफ नहीं मिला। 15 दिन बिना घर जाए ब्रांच में रह के ऑडिट करवाई। जो होना था वही हुआ। पिछले BM की "परफॉरमेंस" ने कमाल दिखाया, ब्रांच की रेटिंग B से C हो गई। साहब बहुत नाराज हुए।
"चाबी फलाने को दे दो। कल से 90 किलोमीटर दूर वाली उस ब्रांच में डेपुटेशन पे जाओ। कल से वहाँ ऑडिट शुरू हो रही है। जा के ऑडिट करवाओ।" अगले दिन डेपुटेशन पर पहुंचे तो पता चला कि ऑडिट के दौरान ही BM साहब एक हफ्ते की छुट्टी पे हैं। बीमा कंपनी की तरफ से बैंकाक टूर जो मिला था।
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जुलाई का महीना। ब्रांच मैनेजर पर होम लोन का प्रेशर है। किस्मत से आज ही ब्रांच में होम लोन की फाइल आई है। अमाउंट छोटा ही है। कस्टमर स्थाई सरकारी कर्मचारी है। कागजात लगभग पूरे ही हैं।
फाइल देख के ब्रांच मैनेजर बोलता है कि कुछ दिन में लोन हो जाएगा। बड़े मन से ब्रांच मैनेजर फाइल को सोर्स करके प्रोसेसिंग सेंटर भेजता है। शाम को रिपोर्टिंग वाले व्हाट्सएप्प ग्रुप में भी ढोल पीट देता है "Home Loan sourced - 25 lakh"। अब शुरू होता है इंतज़ार।
एक हफ्ते बाद कस्टमर आता है, "सर, मेरे होम लोन का कुछ हुआ क्या?" ब्रांच मैनेजर प्रोसेसिंग सेंटर फ़ोन लगाता है। पता चलता है कि डेस्क अफसर 2 हफ्ते की छुट्टी पे है। तब से फाइल उसी की डेस्क पर पड़ी है। अगले हफ्ते आएगा तब प्रोसेसिंग में भेजी जायेगी।
पांच साल के लम्बे इंतज़ार बाद किसी तरह होम पोस्टिंग मिली थी। ओडिशा के सुदूर इलाके से निकल कर अपने राज्य पहुंचा तो बहुत राहत अनुभव कर रहा था। एक हफ्ता पोस्टिंग के इंतजार में हेड ऑफिस में गुजारने के बाद होम डिस्ट्रिक्ट का लोकल ऑफिस अलॉट हो गया था।
अब वहाँ से ब्रांच अलॉट होनी थी। "भगवान् ने यहाँ तक साथ दिया है तो आगे भी देगा ही", सोचकर रीजन ऑफिस पहुंचा। उसने आगे का पूरा SOP सोच रखा था। "चॉइस पूछेंगे तो तो XYZ ब्रांच बताऊंगा। अकाउंटेंट या फील्ड अफसर कि पोस्ट बढ़िया रहेगी। घर के नजदीक भी रहूंगा।
घरवालों के सारे अकाउंट वहीँ ट्रांसफर करवा लूँगा। घर के भी काम कर दिया करूंगा।" लेकिन उसकी उम्मीदों पर तब पानी फिर गया जब RM ने बुलाया। "तुमको ABC ब्रांच में मैनेजर बना रहे हैं। बहुत बढ़िया ब्रांच है। तीन साल से हमारी One of the Best performing ब्रांच है।
कस्टमर साहिबा: मैं इंटरनेट बैंकिंग का ID password भूल गई हूँ। रिसेट करवाना है।
बैंक स्टाफ: ओके, पिछली बार कब लॉगिन किया था?
कस्टमर साहिबा: याद नहीं, तीन चार साल हो गया।
बैंक स्टाफ: कोई बात नहीं। मोबाइल पर बैंक की इंटरनेटबैंकिंग की वेबसाइट खोलो। उसमें फॉरगेट पासवर्ड पे जाओ। फिर उसमें फॉरगेट यूजरनाम पे जाओ।
कस्टमर साहिबा: इसमें तो CIF और अकाउंट नंबर मांग रहा है?
बैंक स्टाफ: हाँ तो डालो न।
कस्टमर साहिबा: मेरे पास नहीं है।
बैंक स्टाफ: क्यों? पासबुक नहीं लाई?
कस्टमर साहिबा: नहीं।
बैंक स्टाफ: कल पासबुक लेकर आना। बाकी का काम तब होगा।
कस्टमर साहिबा: घर पर भी नहीं है पासबुक। शायद खो गई।
बैंक स्टाफ: अच्छा आधार और पैन कार्ड दीजिये।
कस्टमर साहिबा: ओरिजिनल नहीं है। मोबाइल में फोटो है।
कुछ दिनों पहले एक बैंकर साथी ने पिछले कुछ दिनों से बंद पड़े हमारे ज्ञान चक्षु खोलने की कोशिश करते हुए बताया कि पुरानी पेंशन स्कीम से सरकारी कर्मचारी बर्बाद हो जाएंगे और नई पेंशन स्कीम पुरानी वाली से कहीं बेहतर है।
पहले तो हमने इस तर्क को श्रीमदमोदीगीता का प्रभाव मनाते हुए नज़रअंदाज़ करने की कोशिश की मगर बाद में अहसास हुआ कि इस प्रकार तो ना जाने कितने बैंकर भाई और अन्य सरकारी कर्मचारी 'राष्ट्रहित' में अपने भविष्य का बलिदान देकर दधीचि के छद्माभास में बैठे होंगे।
इसलिए आज हम 2014 के बाद ही खुले कई ज्ञानचक्षुओं को पुनः बंद करने की असफल कोशिश करने के लिए अपना वित्तीय वर्षांत के अंतिम सप्ताहांत के चार घंटे बर्बाद करके ये थ्रेड लेकर आये हैं।
एक सीनियर बैंकर जिनसे सिर्फ दो दिन मुलाकात हुई मगर एक जैसी परिस्थितियों का भुक्तभोगी होने के कारण अच्छी मित्रता हो गई, कुछ दिन पहले मिले। बताया कि कुछ दिन से छुट्टी पे चल रहे हैं। हमने पूछा कि फरबरी-मार्च में छुट्टी?
वो भी बैंक में? वो भी ब्रांच मैनेजर रहते हुए? और वो भी सिंगल अफसर ब्रांच में? हम उनके इस सौभाग्य पर मन ही मन ईर्ष्या में जल-भुन रहे थे कि उन्होंने बताया कि उनको डॉक्टर ने MDD और GAD बताया है। अब ADS, CBS, CCDP वगैरह तो समझ में आता है ये MDD और GAD पहली बार सुना था।
पूछने पर सर ने बताया कि MDD मतलब Major Depression Disorder और GAD मतलब General Anxiety Disorder. अब बात थोड़ी गंभीर हो गई थी। सर ने बताया कि बीमारी का अंदेशा तो काफी पहले से था लेकिन डॉक्टर को दिखाने का समय ही नहीं मिल पा रहा था।