एक बार बैंक के एक बड़े उच्चाधिकारी साहब जो कि HR डिपार्टमेंट में थे रिटायर हो गए। किस्मत से कुछ दिन बाद एक एयरलाइन कंपनी में नौकरी मिल गई। पिछले अनुभव के आधार पर वहां भी उन्हें HR डिपार्टमेंट दिया गया।
डिपार्टमेंट सँभालते ही उनका दिमाग खराब हो गया। "इतना सारा स्टाफ? यहाँ तो हर काम के लिए अलग स्टाफ है। इन लोगों को मैनपावर मैनेजमेंट आता ही नहीं। इसीलिए तो ज्यादातर एयरलाइन घाटे में चल रही हैं।" तुरंत अर्दली को बुलाया।
-"एक हवाईजहाज उड़ाने के लिए कितना स्टाफ चाहिए?"
-"सर, ग्राउंड स्टाफ होता है और फ्लाइट स्टाफ होता है। ग्राउंड पे दो लोग चेक इन के लिए, दो लोग लगेज के लिए, दो लोग बोर्डिंग के लिए, दो लोग ग्राउंड नेविगेशन के लिए, दो एयर नेविगेशन, दो फ्लाइट क्लीनर, दो लोग रिफ्यूलिंग, चार लोग प्लेन मेंटेनेंस और दो लोग स्पेयर में चाहिए।
फ्लाइट में दो लोग प्लेन उड़ाने के लिए, और चार एयर होस्टेस इन-फ्लाइट सर्विस के लिए। इसके अलावा थोड़ा बहुत स्टाफ इधर उधर के काम के लिए भी चाहिए होता है।"
-"तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है? जब प्लेन हवा में होगा तो ग्राउंड स्टाफ फालतू बैठा रहेगा और जब प्लेन ग्राउंड पे होगा तो फ्लाइट स्टाफ फ़ालतू बैठा रहेगा। ऐसे नहीं चलेगा। मैनपावर रेशनलाइजेशन करना होगा। हमारे हिसाब से इन सब की जरूरत नहीं। ये पूरे काम के लिए दो लोग बहुत है।"
-"दो लोग? सिर्फ?" अर्दली का दिमाग ही चकरा गया। लेकिन साहब की बात को कैसे टाले? नोट करने लगा।
-"कल से जहाज के पायलट को बोलो पेसेंजर को चेक इन करवाने के लिए।"
"सर लेकिन लगेज के लिए तो अलग से आदमी चाहिए।"
"ठीक है एक उसके लिए एक टेम्पोरटी लगेज के लिए रख दो। पीछे से एक आदमी प्लेन का मेंटेनेंस और क्लीनिंग करेगा। चेक इन करवाने के बाद पायलट बोर्डिंग काउंटर पे जा के बोर्डिंग करवाएगा।"
-"सर अगर पायलट चेक इन के बाद बोर्डिंग करवाएगा तो प्लेन तो बोर्डिंग तक लेके कौन आएगा?"
-"मेंटेनेंस वाले को बोलो। इतना प्लेन चलना तो आता ही होगा उसे। वो मेंटेनेंस के बाद प्लेन को सरका के बोर्डिंग गेट तक ले आएगा।"
-"ओके सर। लेकिन बोर्डिंग के बाद प्लेन को रनवे पर ले जाने के लिए तो ग्राउंड स्टाफ की जरूरत पड़ेगी।"
-"बोर्डिंग के बाद पायलट फ्लाइट में चढ़ जाएगा। मेंटेंनेंस वाला एयर नेविगेशन के लिए चला जाएगा। टेम्पेररी स्टाफ ग्राउंड नेविगेशन कर लेगा।"
-"सर लेकिन अगर प्लेन में पायलट के अलावा कोई नहीं होगा तो वहां कस्टमर सर्विस कौन देगा?"
-"एक बार टेक ऑफ होने के बाद प्लेन तो ऑटो पायलट पे डाल दो। फिर तो पायलट फ्री है न। पायलट को बोलो वो केबिन से बाहर निकल के समोसे और चाय बेचे। क्रॉस-सेलिंग इनकम हमारे लिए बहुत जरूरी है।"
-"सर पूरे प्लेन को पायलट अकेला कैसे हैंडल करेगा?"
-"क्यों नहीं कर सकता? जा के बैंक में देखो ब्रांच मैनेजर अकेला क्या-क्या करता है। ज्यादा दिक्कत हो तो पायलट को कुछ दिन बैंक में ट्रेनिंग पे भेज देते हैं। सब सीख जाएगा।"
अर्दली चहक उठा। "सर धन्य हैं आप। ऐसी मैनपावर प्लानिंग तो आजतक किसी ने नहीं की।"
अंत में अर्दली ने एक सवाल और पूछ लिया, "लेकिन सर अगर कोई कंप्लेंट आई तो?"
उच्चाधिकारी साहब बोले, "तो पायलट माफीनामा लेकर उस पेसेंजर के घर तक जाएगा और सन्तुष्टिपत्र लेकर आएगा। सारा काम तो हम लोग कर रहे हैं यहाँ। पायलट को करना ही क्या है।"
-"और सुनो। लॉगिन डे भी रखा जाएगा।"
अर्दली ने अपने पूरे करियर में ये शब्द पहली बार सुना था। "सर ये लॉगिन डे क्या होता है?"
-"लॉगिन डे वाले दिन हमको लोगों को अपना प्रोडक्ट जबरदस्ती ख़रीदवाना होता है। एक दिन चिकन सैंडविच, एक दिन वेज सैंडविच, एक दिन कोल्ड कॉफ़ी, एक दिन एप्पल जूस।"
-"लेकिन सर शाकाहारी आदमी को चिकन सैंडविच कैसे बेचेंगे?"
-"टैलेंट और इच्छाशक्ति हो तो क्या नहीं हो सकता। कस्टमर को चिकन के फायदे बताओ। चिकन में प्रोटीन होता है। कस्टमर को समझाओगे तो जरूर मान जाएगा। और अगर फिर भी नहीं खरीदे तो वेज के नाम पे चिकन सैंडविच पकड़ा दो।
लेकिन लॉगिन डे के दिन जीरो फिगर नहीं चाहिए हमको। एक काम करो। कंट्रोल टावर में एक आदमी बिठा दो। हर घंटे की रिपोर्ट चाहिए कि कितने सैंडविच बेचे।"
-"लॉगिन डे के दिन सबसे ज्यादा सैंडविच बेचने वाले पायलट को ईनाम दिया जाएगा।"
-"सैंडविच बेचने वाले पायलट को ईनाम? सर सुनने में कुछ अजीब सा नहीं लग रहा? ईनाम तो बेस्ट लैंडिंग, पंक्चुअलिटी वगैरह के लिए दिया जाना चाहिए न सर?"
-"जब बैंक में बीमा बेचने पर ईनाम दिया जा सकता है तो यहाँ सैंडविच बेचने वाले को क्यों नहीं? अच्छा एक बात बताओ, फ्लाइट की एक टिकट से कितनी कमाई होती है?"
-"सर पांच हजार के टिकट पर करीब साढ़े चार हजार का खर्चा आता है। इस हिसाब से पांच सौ रूपये प्रति टिकट।"
-"और सैंडविच से?"
-"पंद्रह रूपये का सैंडविच हवाईजहाज में चारसौ का बेचते हैं तो एक सैंडविच पर तीन सौ पिच्यासी रूपये।"
-"तो मुनाफा किसमें ज्यादा हुआ?"
-"समझ गया सर।आप तो महान हैं।अच्छा ये बताइये कि ईनाम में क्या देंगे? बोनस? सैलरी में बढ़ोतरी?"
-"नहीं।हमारे साथ शाम को डिनर और एक सर्टिफिकेट।"
-"हैं!"
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प्राइवेट और पब्लिक बैंक के काम अलग अलग हैं, वर्किंग कल्चर और कंडीशन अलग हैं, सरकार और जनता का नजरिया अलग है। इस हिसाब से दोनों को एक तराजू में तोलना सही नहीं।
प्राइवेट बैंक मुनाफे के लिए होते हैं। इसलिए इनके फाइनेंसियल आपको अच्छे मिलेंगे।
सरकारी बैंक पब्लिक सर्विस के लिए होते हैं। इसलिए सामाजिक योजनाओं में आपको सरकारी बैंकों का प्रतिनिधित्व ज्यादा मिलेगा।
लेकिन चूंकि पिछले कुछ सालों से एक विशेष वर्ग द्वारा सरकारी बैंकों के बारे में भ्रामक कैंपेन चलाया जा रहा है, इसलिए सरकारी बैंकों के मुनाफे पर जोर दे रहे हैं
ताकि लोगों को बता सकें कि सरकारी बैंक न केवल अपनी सामाजिक जिम्मेदारी पूरी करते हैं (जोकि उनका प्रमुख ऑब्जेक्टिव है) बल्कि सरकार को कमा कर भी दे रहे हैं।
हमारी लड़ाई प्राइवेट बैंकों से नहीं है। हमारी लड़ाई तो सरकारी बैंकों के निजीकरण से है।
चलो आपको एक सिनेरियो बताते हैं। सोचो कि आपका एक बैंक में अकाउंट है। आप उस खाते का इस्तेमाल केवल अपने गृहराज्य में ही कर सकते हैं। गृहराज्य से बाहर जाते ही आपसे इंटरस्टेट लाइसेंस माँगा जाएगा। साथ में टैक्स भी वसूला जाएगा।
लाइसेंस नहीं होने पर पेनल्टी लगाने से लेकर खाता भी जब्त किया जा सकता है। उस खाते के दस्तावेज आपसे कभी भी मांगे जा सकते हैं और दस्तावेज पूरे नहीं होने पर पेनल्टी भरनी पड़ेगी। और आप ये खाता ऐसे ही नहीं इस्तेमाल कर सकते।
खाते को चलाने के लिए आपको अलग से लाइसेंस लेना पड़ेगा और उसे हमेशा साथ रखना पड़ेगा। हर 15 साल में आपको खाता रिन्यू करवाना पड़ेगा और वो केवल आपकी होम ब्रांच में ही होगा। हर बार आपको खाते की रिन्युअल फीस भरनी पड़ेगी। आप ये खाता आसानी से ट्रांसफर नहीं करा सकते।
जुलाई का महीना। ब्रांच मैनेजर पर होम लोन का प्रेशर है। किस्मत से आज ही ब्रांच में होम लोन की फाइल आई है। अमाउंट छोटा ही है। कस्टमर स्थाई सरकारी कर्मचारी है। कागजात लगभग पूरे ही हैं।
फाइल देख के ब्रांच मैनेजर बोलता है कि कुछ दिन में लोन हो जाएगा। बड़े मन से ब्रांच मैनेजर फाइल को सोर्स करके प्रोसेसिंग सेंटर भेजता है। शाम को रिपोर्टिंग वाले व्हाट्सएप्प ग्रुप में भी ढोल पीट देता है "Home Loan sourced - 25 lakh"। अब शुरू होता है इंतज़ार।
एक हफ्ते बाद कस्टमर आता है, "सर, मेरे होम लोन का कुछ हुआ क्या?" ब्रांच मैनेजर प्रोसेसिंग सेंटर फ़ोन लगाता है। पता चलता है कि डेस्क अफसर 2 हफ्ते की छुट्टी पे है। तब से फाइल उसी की डेस्क पर पड़ी है। अगले हफ्ते आएगा तब प्रोसेसिंग में भेजी जायेगी।
होम पोस्टिंग तो मिली। घर से 40 किलोमीटर दूर ही सही। नई ब्रांच में शुरू शुरू में तो दिक्कत आती है। अभी रोज नौ बजते हैं। धीरे धीरे शायद सात बजे तक बंद कर पायेगा ब्रांच को। लेकिन मम्मी के घुटनों का दर्द बढ़ता हो जा रहा है।
एक बार दिखाना तो पड़ेगा ही। संडे को डॉक्टर नहीं देखता और छुट्टी वाले शनिवार को कम्बख्त किसी न किसी बहाने से ब्रांच बुला लेते हैं। एक दिन छुट्टी लेके दिखाना ही पड़ेगा। इतनी सारी CL पड़ी हैं। कल बोलेगा HR मैनेजर को। चाबी न होती तो बिना बोले ही चला जाता।
साली चाबी न हुई हथकड़ी हो गई। HR मैनेजर को कॉल किया। तीन चार बार बिजी आने के बाद फाइनली कॉल लगा।
-"सर, ABC ब्रांच से फलाना बोल रहा हूँ। मम्मी की तबियत खराब है। एक दिन की छुट्टी चाहिए।"
पांच साल के लम्बे इंतज़ार बाद किसी तरह होम पोस्टिंग मिली थी। ओडिशा के सुदूर इलाके से निकल कर अपने राज्य पहुंचा तो बहुत राहत अनुभव कर रहा था। एक हफ्ता पोस्टिंग के इंतजार में हेड ऑफिस में गुजारने के बाद होम डिस्ट्रिक्ट का लोकल ऑफिस अलॉट हो गया था।
अब वहाँ से ब्रांच अलॉट होनी थी। "भगवान् ने यहाँ तक साथ दिया है तो आगे भी देगा ही", सोचकर रीजन ऑफिस पहुंचा। उसने आगे का पूरा SOP सोच रखा था। "चॉइस पूछेंगे तो तो XYZ ब्रांच बताऊंगा। अकाउंटेंट या फील्ड अफसर कि पोस्ट बढ़िया रहेगी। घर के नजदीक भी रहूंगा।
घरवालों के सारे अकाउंट वहीँ ट्रांसफर करवा लूँगा। घर के भी काम कर दिया करूंगा।" लेकिन उसकी उम्मीदों पर तब पानी फिर गया जब RM ने बुलाया। "तुमको ABC ब्रांच में मैनेजर बना रहे हैं। बहुत बढ़िया ब्रांच है। तीन साल से हमारी One of the Best performing ब्रांच है।
कस्टमर साहिबा: मैं इंटरनेट बैंकिंग का ID password भूल गई हूँ। रिसेट करवाना है।
बैंक स्टाफ: ओके, पिछली बार कब लॉगिन किया था?
कस्टमर साहिबा: याद नहीं, तीन चार साल हो गया।
बैंक स्टाफ: कोई बात नहीं। मोबाइल पर बैंक की इंटरनेटबैंकिंग की वेबसाइट खोलो। उसमें फॉरगेट पासवर्ड पे जाओ। फिर उसमें फॉरगेट यूजरनाम पे जाओ।
कस्टमर साहिबा: इसमें तो CIF और अकाउंट नंबर मांग रहा है?
बैंक स्टाफ: हाँ तो डालो न।
कस्टमर साहिबा: मेरे पास नहीं है।
बैंक स्टाफ: क्यों? पासबुक नहीं लाई?
कस्टमर साहिबा: नहीं।
बैंक स्टाफ: कल पासबुक लेकर आना। बाकी का काम तब होगा।
कस्टमर साहिबा: घर पर भी नहीं है पासबुक। शायद खो गई।
बैंक स्टाफ: अच्छा आधार और पैन कार्ड दीजिये।
कस्टमर साहिबा: ओरिजिनल नहीं है। मोबाइल में फोटो है।