दुनिया की सबसे कम जवाबदेही वाली नौकरी कौनसी है? नेता? नौकरशाह? जज? वकील? जी नहीं। इन सब में एकाउंटेबिलिटी जीरो हो सकती है लेकिन इससे भी कम एकाउंटेबिलिटी वाली नौकरी है जिसमें जवाबदेही नेगेटिव में है। अब आप पूछेंगे कि एकाउंटेबिलिटी नेगेटिव कैसे हो सकती है।
भाई आजकल ज्यादातर नौकरियां ऐसी हो गई हैं कि जिनमें आप काम सही करो तब भी गालियां पड़ती हैं, सजा भी मिलती है। नेता जज नौकरशाह कि नौकरियां ऐसी हैं कि काम ना भी करो या गलत काम करो तो भी न कोई सजा है ना कोई पूछने वाला।
लेकिन एक नौकरी ऐसे भी है जिसमें काम गलत आप करते हैं और गालियां किसी और को पड़ती हैं। ये नौकरी है 'पत्तलकार' की। 'पत्तलकार' वो प्रजाति है जो दिखने में पत्रकार जैसी होती है लेकिन काम बिल्कुल उलट। पत्तलकार का काम होता है समाज में गलत सूचना पहुंचाना।
उदाहरण के तौर पर
"इस महीने 20 दिन बंद रहेंगे बैंक। निपटा लें अपने सभी जरूरी काम।"
"सरकार ने बढ़ाया वेतन, बैंक कर्मियों पे छप्पर फाड़ के धन वर्षा।"
"अगर ये नहीं किया तो बैंक बंद कर देगी आपका खाता और जब्त कर लेगी जमा राशि।"
"बैंक में ये वाला खाता खुलाने पर मिलेगा पांच लाख का लोन वो भी बिना किसी ब्याज पर।"
अब इन ख़बरों का असर ये होता है कि लोग बिना काम के बैंक पहुँच जाते हैं। अपने मोबाइल में इन्हीं पत्तलकारों के लिखे हुए झूठ लहराते हुए। उनको आधार पर लोन लेना है,
किसी हवा-हवाई स्कीम के बारे में पूछना है, खाते से सारा पैसा निकाल लेना है क्योंकि उनको लगता है अगले 10 दिन बैंक बंद रहने वाले हैं। कोरोना में बैंकों में भीड़ बढ़ाने के पीछे जितना योगदान सरकार का था उतना ही इन पत्तलकारों का भी था।
कोरोना में शहीद हुए बैंकरों के खून में जितने हाथ सरकार के सने हैं उतने ही इन पत्तलकारों के भी। और ऐसा नहीं है कि ये पत्तलकार 2014 के बाद ही पैदा हुए हैं। ये मानव सभ्यता के आदि से हमारे साथ हैं। जब सूचना का आविष्कार हुआ तो साथ में गलत सूचना का भी आविष्कार हुआ था।
रावण ने युद्ध में सीताजी की हत्या की गलत सूचना फैलाई। फिर बाद में किसी ने सीताजी के चरित्र पर ऊँगली उठाई। महाभारत में अश्वत्थामा की मृत्यु की झूठी खबर सुनकर द्रोणाचार्य ने हथियार छोड़ दिए।
युद्ध में अगर किसी तरह विपक्षी सेना में ये खबर फैला दी जाए कि सेनापति या राजा को बंदी बना लिया गया है तो आधा युद्ध तो वहीं जीत लिया जाता था। प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध में गलत सूचना का जम कर इस्तेमाल हुआ। पत्तलकारों के पास गज़ब की ताक़त होती है।
ये लोग आम जनता की राय बदल सकते हैं, युद्ध का रुख मोड़ सकते हैं। आपने TV पर युद्ध की रिपोर्टिंग देखी होगी। कितनी शानदार रिपोर्टिंग होती है। लोगों को युद्ध खेल जैसा लगने लगता है। आम भाषा में इसे "रोमांटिसाइजिंग ऑफ़ वॉर" कहते हैं।
यही रिपोर्टिंग देखकर तो लोग कह देते हैं "भारत को पकिस्तान पर अटैक कर देना चाहिए। चीन पर अटैक कर देना चाहिए। फलाने देश में घुस जाना चाहिए। ढिमाके पर कब्ज़ा कर लेना चाहिए।" इनको पता ही नहीं की असली युद्ध क्या होता है।
कैसे लोग मरते हैं, आम जिंदगी कितनी मुश्किल हो जाती है, कैसे महंगाई आसमान छूने लगती है। टीवी पर रूस यूक्रेन युद्ध की रिपोर्टिंग देख के भारत को चीन या पकिस्तान पर अटैक करने की सलाह देने वाले लोग वही हैं जो दिल्ली में नमक की कमी की अफवाह को सच मान कर
200 रूपये किलो नमक खरीदने के लिए दुकानों पर भीड़ लगा लेते हैं। पत्तलकारों चाहें तो किसी बेगुनाह को बिना किसी सबूत लोगों की नजरों में गुनहगार साबित कर सकते हैं और टेररिस्ट को देश के दिलों की धड़कन साबित कर सकते हैं।
इनकी पत्तलकारिता लोगों को आत्महत्या तक करने पर मजबूर कर देती है। ये पत्तलकारों का एक ही सिद्धांत होता है। पैसा। चाहे जहाँ से भी मिले। किसी भी कीमत पर मिले। सरकार से मिले तो सरकार के साथ हो जाएंगे पड़ौसी देश से मिले तो उसके भी साथ हो जाएंगे।
आपातकाल के दौरान बड़े बड़े पत्रकार सरकार से पैसे लेकर आपातकाल की तारीफें किया करते थे (जिनमें एक नाम स्वर्गीय विनोद दुआ का भी शामिल है)। और इन पत्तलकारों को इसका ईनाम भी मिलता है। रजत शर्मा को 2015 में पद्म भूषण दिया गया।
उससे पहले 2009 में शेखर गुप्ता को पद्म भूषण और विनोद दुआ को पद्म श्री मिला। 2008 में बरखा दत्त और राजदीप सरदेसाई को पद्मश्री दिया गया। 2006 में शोभना भारतीय को पद्म श्री दिया गया। और इन पत्तलकारों की राजनैतिक निकटताएं और इनकी पत्तलकारिता कहीं भी छुपी हुई नहीं है।
जो महत्त्व शरीर के लिए रक्त प्रवाह का होता है वही महत्त्व समाज के लिए सूचना प्रवाह का होता है। शरीर में अगर गन्दा खून बहे तो शरीर खराब हो जाता है। समाज में अगर गलत सूचना का प्रवाह हो तो समाज भी सड़ जाता है।
इस हिसाब से बैंकों में हर महीने 20 दिन की छुट्टियां दिखाना, नीरव मोदी, विजय माल्या और DHFL घोटालों के लिए बैंकों को जिम्मेदार ठहराना तो बहुत मामूली सा काम है, ये लोग क्या क्या करके बैठे हैं इसका हिसाब इस डाक्यूमेंट्री में देखिये।
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एक बार बैंक के एक बड़े उच्चाधिकारी साहब जो कि HR डिपार्टमेंट में थे रिटायर हो गए। किस्मत से कुछ दिन बाद एक एयरलाइन कंपनी में नौकरी मिल गई। पिछले अनुभव के आधार पर वहां भी उन्हें HR डिपार्टमेंट दिया गया।
डिपार्टमेंट सँभालते ही उनका दिमाग खराब हो गया। "इतना सारा स्टाफ? यहाँ तो हर काम के लिए अलग स्टाफ है। इन लोगों को मैनपावर मैनेजमेंट आता ही नहीं। इसीलिए तो ज्यादातर एयरलाइन घाटे में चल रही हैं।" तुरंत अर्दली को बुलाया।
-"एक हवाईजहाज उड़ाने के लिए कितना स्टाफ चाहिए?"
-"सर, ग्राउंड स्टाफ होता है और फ्लाइट स्टाफ होता है। ग्राउंड पे दो लोग चेक इन के लिए, दो लोग लगेज के लिए, दो लोग बोर्डिंग के लिए, दो लोग ग्राउंड नेविगेशन के लिए, दो एयर नेविगेशन, दो फ्लाइट क्लीनर, दो लोग रिफ्यूलिंग, चार लोग प्लेन मेंटेनेंस और दो लोग स्पेयर में चाहिए।
प्राइवेट और पब्लिक बैंक के काम अलग अलग हैं, वर्किंग कल्चर और कंडीशन अलग हैं, सरकार और जनता का नजरिया अलग है। इस हिसाब से दोनों को एक तराजू में तोलना सही नहीं।
प्राइवेट बैंक मुनाफे के लिए होते हैं। इसलिए इनके फाइनेंसियल आपको अच्छे मिलेंगे।
सरकारी बैंक पब्लिक सर्विस के लिए होते हैं। इसलिए सामाजिक योजनाओं में आपको सरकारी बैंकों का प्रतिनिधित्व ज्यादा मिलेगा।
लेकिन चूंकि पिछले कुछ सालों से एक विशेष वर्ग द्वारा सरकारी बैंकों के बारे में भ्रामक कैंपेन चलाया जा रहा है, इसलिए सरकारी बैंकों के मुनाफे पर जोर दे रहे हैं
ताकि लोगों को बता सकें कि सरकारी बैंक न केवल अपनी सामाजिक जिम्मेदारी पूरी करते हैं (जोकि उनका प्रमुख ऑब्जेक्टिव है) बल्कि सरकार को कमा कर भी दे रहे हैं।
हमारी लड़ाई प्राइवेट बैंकों से नहीं है। हमारी लड़ाई तो सरकारी बैंकों के निजीकरण से है।
चलो आपको एक सिनेरियो बताते हैं। सोचो कि आपका एक बैंक में अकाउंट है। आप उस खाते का इस्तेमाल केवल अपने गृहराज्य में ही कर सकते हैं। गृहराज्य से बाहर जाते ही आपसे इंटरस्टेट लाइसेंस माँगा जाएगा। साथ में टैक्स भी वसूला जाएगा।
लाइसेंस नहीं होने पर पेनल्टी लगाने से लेकर खाता भी जब्त किया जा सकता है। उस खाते के दस्तावेज आपसे कभी भी मांगे जा सकते हैं और दस्तावेज पूरे नहीं होने पर पेनल्टी भरनी पड़ेगी। और आप ये खाता ऐसे ही नहीं इस्तेमाल कर सकते।
खाते को चलाने के लिए आपको अलग से लाइसेंस लेना पड़ेगा और उसे हमेशा साथ रखना पड़ेगा। हर 15 साल में आपको खाता रिन्यू करवाना पड़ेगा और वो केवल आपकी होम ब्रांच में ही होगा। हर बार आपको खाते की रिन्युअल फीस भरनी पड़ेगी। आप ये खाता आसानी से ट्रांसफर नहीं करा सकते।
जुलाई का महीना। ब्रांच मैनेजर पर होम लोन का प्रेशर है। किस्मत से आज ही ब्रांच में होम लोन की फाइल आई है। अमाउंट छोटा ही है। कस्टमर स्थाई सरकारी कर्मचारी है। कागजात लगभग पूरे ही हैं।
फाइल देख के ब्रांच मैनेजर बोलता है कि कुछ दिन में लोन हो जाएगा। बड़े मन से ब्रांच मैनेजर फाइल को सोर्स करके प्रोसेसिंग सेंटर भेजता है। शाम को रिपोर्टिंग वाले व्हाट्सएप्प ग्रुप में भी ढोल पीट देता है "Home Loan sourced - 25 lakh"। अब शुरू होता है इंतज़ार।
एक हफ्ते बाद कस्टमर आता है, "सर, मेरे होम लोन का कुछ हुआ क्या?" ब्रांच मैनेजर प्रोसेसिंग सेंटर फ़ोन लगाता है। पता चलता है कि डेस्क अफसर 2 हफ्ते की छुट्टी पे है। तब से फाइल उसी की डेस्क पर पड़ी है। अगले हफ्ते आएगा तब प्रोसेसिंग में भेजी जायेगी।
होम पोस्टिंग तो मिली। घर से 40 किलोमीटर दूर ही सही। नई ब्रांच में शुरू शुरू में तो दिक्कत आती है। अभी रोज नौ बजते हैं। धीरे धीरे शायद सात बजे तक बंद कर पायेगा ब्रांच को। लेकिन मम्मी के घुटनों का दर्द बढ़ता हो जा रहा है।
एक बार दिखाना तो पड़ेगा ही। संडे को डॉक्टर नहीं देखता और छुट्टी वाले शनिवार को कम्बख्त किसी न किसी बहाने से ब्रांच बुला लेते हैं। एक दिन छुट्टी लेके दिखाना ही पड़ेगा। इतनी सारी CL पड़ी हैं। कल बोलेगा HR मैनेजर को। चाबी न होती तो बिना बोले ही चला जाता।
साली चाबी न हुई हथकड़ी हो गई। HR मैनेजर को कॉल किया। तीन चार बार बिजी आने के बाद फाइनली कॉल लगा।
-"सर, ABC ब्रांच से फलाना बोल रहा हूँ। मम्मी की तबियत खराब है। एक दिन की छुट्टी चाहिए।"
पांच साल के लम्बे इंतज़ार बाद किसी तरह होम पोस्टिंग मिली थी। ओडिशा के सुदूर इलाके से निकल कर अपने राज्य पहुंचा तो बहुत राहत अनुभव कर रहा था। एक हफ्ता पोस्टिंग के इंतजार में हेड ऑफिस में गुजारने के बाद होम डिस्ट्रिक्ट का लोकल ऑफिस अलॉट हो गया था।
अब वहाँ से ब्रांच अलॉट होनी थी। "भगवान् ने यहाँ तक साथ दिया है तो आगे भी देगा ही", सोचकर रीजन ऑफिस पहुंचा। उसने आगे का पूरा SOP सोच रखा था। "चॉइस पूछेंगे तो तो XYZ ब्रांच बताऊंगा। अकाउंटेंट या फील्ड अफसर कि पोस्ट बढ़िया रहेगी। घर के नजदीक भी रहूंगा।
घरवालों के सारे अकाउंट वहीँ ट्रांसफर करवा लूँगा। घर के भी काम कर दिया करूंगा।" लेकिन उसकी उम्मीदों पर तब पानी फिर गया जब RM ने बुलाया। "तुमको ABC ब्रांच में मैनेजर बना रहे हैं। बहुत बढ़िया ब्रांच है। तीन साल से हमारी One of the Best performing ब्रांच है।