इस थ्रेड में हम देखेंगे कि कैसे राजनीतिक इस्लाम समकालीन युग में भी एक गैर-मुस्लिम देश को नष्ट करके मुस्लिम बहुल बना लेता है।
2. किसी गैर-मुस्लिम द्वारा शासित देश में मुस्लिम को रहने की अनुमति नहीं है। ऐसा इसलिए है क्योंकि गैर-मुस्लिम, इस्लामिक योजना में, मुसलमानों से नीचे माने जाते हैं। और मुसलमानों से वाँछित है कि वे हर उस देश को मुस्लिम बहुल देश में बदलने का प्रयास करें जो अभी गैर-मुस्लिम बहुल है।
3. लेबनान पश्चिम एशिया में भूमध्यसागरीय तट पर स्थित एक छोटा सा देश है। १९७० के दशक में, इज़राइल को छोड़कर, यह इस क्षेत्र का एकमात्र गैर-मुस्लिम बहुसंख्यक देश था। और यह एकमात्र लोकतंत्र भी था। और यह उसका लोकतंत्र था जिसके कारण अंततः यह देश मुस्लिम बहुल हो गया।
4. लेबनान एक प्राचीन देश है जिसका उल्लेख बाइबल में किया गया है। इसकी बेका घाटी समुद्र के पास पहाड़ी क्षेत्र के रूप में प्रसिद्ध है। १९७५ तक लेवेंटाइन संस्कृति का अर्थ ही था लेबनान । मौसम और संस्कृति में भी सौम्य। अच्छा भोजन, आतिथ्य और विविध संस्कृति।
5. इसकी राजधानी बेरूत को पूर्व का पेरिस कहा जाता था। संसाधन संपन्न होने के बाद भी, यह सदैव एक उत्कृष्ट नगर था क्योंकि लेबनान लेवान का एक हिस्सा है, जो अफ्रीका, एशिया और यूरोप को जोड़ता है और इसलिए सदैव तीन महाद्वीपों के चौराहे पर होने के कारण यह व्यापार और समृद्धि का केंद्र रहा।
6. लेबनान सांस्कृतिक रूप से विविध था। यह मैरोनाइट ईसाइयों का एकमात्र घर था, जो पूर्वी सीरियाई ईसाईयत की एक प्राचीन शाखा थी जिसे उसके मूल घर अन्ताकिया (जो अब तुर्की में पूर्णतः मुस्लिम नगर और क्षेत्र है) में पूर्णतः मिटा दिया गया था।
7. लेबनान एशिया में बचे कुचे ग्रीक कैथोलिकों का अंतिम घर भी था। उनमें से बहुत कम ही अब बचे हैं। तुर्की द्वारा सभी गैर-मुसलामानों का अपने देश में नरसंहार करने के बाद लेबनान, एशिया में बचे अंतिम ग्रीक ऑर्थोडॉक्स लोगों का भी घर था।
8. तुर्क साम्राज्य के पतन के बाद, लेबनान और सीरिया फ्रांसीसी उपनिवेश बन गए। लेकिन १९४४ तक उपनिवेशवाद से मुक्ति का समय प्रारम्भ हो चुका था और फ्रांसीसी देश छोड़ने की तैयारी कर रहे थे।
9. उनकी स्वतंत्रता पर सीरिया के पूर्व फ्रांसीसी जनादेश को दो स्वतंत्र देशों में विभाजित किया गया था, जिसमें लेबनान ईसाई बहुल देश और सीरिया मुस्लिम बहुल देश था। लेबनान एक लोकतंत्र था जबकि सीरिया एक तानाशाही था। जैसा कि सदैव ऐसे विभाजन में देखने को मिलता है|
10. और जैसे ही लेबनान स्वतंत्र हुआ, पड़ोसी इस्लामिक देशों ने आक्रमण करना प्रारम्भ कर दिया और इसकी जनसांख्यिकी को बदलकर इसे एक इस्लामी देश में बदल दिया। यहीं पर हमें इस्लाम की शरणार्थी रणनीति को समझने की आवश्यकता है।
11. इस्लामिक तंत्र गैर-मुस्लिम देशों में इस्लामी विस्तार के लिए पैदल सैनिकों के रूप में मुस्लिम शरणार्थियों का उपयोग करता है। एक मानवीय संकट, जैसे कि गृहयुद्ध, या डूबती अर्थव्यवस्था, को इस्लामी विस्तार के साधन में बदल दिया जाता है।
12. इस्लामी देश में भी अगर गृहयुद्ध हो तो वह पड़ोसी गैर-मुस्लिम देशों के लिए इस्लामी उपनिवेश के वाहन में बदल जाता है। गृहयुद्ध भारी संख्या में लोगों को अकथनीय अत्याचारों और महान मानवीय त्रासदी से विस्थापित करता है।
13. त्रासदी वास्तविक है लेकिन इसका उपयोग एक गुप्त लक्ष्य के लिए किया जाता है। ये शरणार्थी तब इस्लामिक देशों की सीमाओं से बाहर भाग जाते हैं और वे गैर-मुस्लिम देशों से शरण की अपील करते हैं।
14. इससे कई लक्ष्य प्राप्त होते हैं: सबसे पहले शरणार्थियों को गैर-मुस्लिम नैतिकता और विधि द्वारा संचालित लोकतंत्र में श्रेष्ठ जीवन मिलता है| वे स्वतंत्र देश के सभी फलों का आनंद लेते हैं। और वे एक गैर-मुस्लिम देश में मुस्लिम जनसँख्या को बढ़ाकर, इस्लाम के लक्ष्य को आगे बढ़ाते हैं।
15. १९७०-७१ में लेबनान में ईसाई बहुसंख्यकों के साथ ठीक ऐसा ही हुआ। जॉर्डन और सीरिया ने अपनी मुस्लिम जनसँख्या को लेबनान की ओर धकेल दिया, जो इज़राइल को छोड़कर इस क्षेत्र का एकमात्र गैर-मुस्लिम बहुसंख्यक देश है, और इसने यहाँ की जनसांख्यिकी को इस्लाम के पक्ष में बदल दिया।
16. आतंकवादी संगठनों (शिया और सुन्नी) ने मुसलमानों को प्रमुख सरकारी संस्थानों में घुसपैठ और नियंत्रण लेने के लिए आंदोलन प्रारम्भ करने के लिए प्रोत्साहित किया, वामपंथ के नाम पर। लेबनान में इस्लामिक आतंकवादियों के पैदल सैनिक 'वामपंथी' हो गए, इस्लामी लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए।
17. अकारण ही बहुसंख्यक ईसाई 'दक्षिणपंथी' घोषित कर दिए गए। आतंकवादियों को पता था कि एक ऐसी विश्व में जो नाजी-फासीवादी गठबंधन द्वारा प्रारम्भ किए गए विश्व युद्ध से अभी-अभी उबरा है, वह ‘दक्षिणपंथी’ गुट का कभी भी समर्थन नहीं करेगा, और ‘वामपंथी’ नाम के पीछे भागेगा।
18. ठीक ऐसा ही हुआ। वैश्विक मीडिया ने लेबनान के ईसाई 'बहुसंख्यक' को फासीवादी कहा जो मुस्लिम वामपंथी अल्पसंख्यक के अधिकारों को हड़प रहे थे। मुसलमानों को वैश्विक सहानुभूति मिली और लेबनान के ईसाईयों को सभी की भर्त्सना।
19. सच्चाई यह थी कि १९७१ तक लेबनान में ईसाई केवल ५२-५४% थे और मुस्लिम शरणार्थियों द्वारा उन पर लगातार आक्रमण किया जा रहा था। लेबनान में केवल कुछ लाख ईसाई थे जबकि यह ५० इस्लामी देशों के एक महासागर से घिरा हुआ था जिसमें करोड़ों मुसलमान थे।
20. इसलिए कुछ लाख अलग-थलग पड़े लेबनानी ईसाइयों के एक 'दक्षिणपंथी' ईसाई 'बहुसंख्यक' समुदाय को 'वामपंथी' 'उत्पीड़ित' मुसलमानों की तेजी से बढ़ती जनसँख्या के विरुद्ध 'उत्पीड़क' के रूप में चित्रित किया गया, जिन्होंने वैश्विक इस्लाम के ट्रांस-नेशनल नेटवर्क का लाभ उठाया।
21. मुसलमान एक के बाद एक लेबनान के नगरों पर अधिकार करने लगे। पहले पश्चिमी बेरूत, फिर सिडोन, फिर सोर। ये प्राचीन ईसाई नगर पूरी भाँती से इस्लामीकृत हो चुके थे। मुसलमान अब लगभग ४४% हो गए थे। और इतनी जनसँख्या होते ही उन्होंने गृहयुद्ध प्रारम्भ कर दिया।
22. वामपंथी इतिहासकार अभी भी लेबनानी गृहयुद्ध के बारे में कहते हैं कि यह ईसाइयों ने प्रारम्भ किया था। (बिल्कुल # नुपुरशर्मा केस की भाँती)। लेकिन ईसाइयों पर मुस्लिम हमले इतने तीव्र हो गए थे कि ईसाइयों के पास स्वयं की रक्षा करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था।
23. जैसे-जैसे नगर के बाद नगर ईसाइयों से मुक्त होते गए, उन्होंने अपने बचे-कुचे क्षेत्रों की सशस्त्र रक्षा प्रारम्भ कर दी। गृहयुद्ध प्रारम्भ हो गया। ईसाईयों को सैन्य, भौगोलिक और वैचारिक रूप से अलग-थलग कर दिया गया क्योंकि विश्व मीडिया उन्हें आतताइयों के रूप में चित्रित कर रहा था।
24. और मुसलमान विश्व स्तर पर सभी इस्लामी देशों के साथ जुड़े हुए थे और एक मुस्लिम देश सीरिया के साथ उनकी भौगोलिक निकटता थी जो उन्हें हथियार, आतंकवादी और अधिक मुस्लिम शरणार्थियों को उपलब्ध करा रहा था जिससे कि इस्लाम लेबनान को इस्लामी क्षेत्र बाने में सफल रहे|
25. गृहयुद्ध तक दस वर्ष तक चला और जब तक यह समाप्त हुआ तब तक स्थिति उलट हो चुकी थी और मुसलमान बहुसंख्यक हो गए थे और ईसाई अल्पसंख्यक हो गए थे। स्थिति हर वर्ष और बिगडती जा रही है क्योंकि ईसाई हर वर्ष अमेरिका की ओर पलायन कर रहे हैं।
26. लेबनान में अब ६३% मुस्लिम बहुसंख्यक हैं और वर्तमान इस्लामी शरणार्थी संकट और अधिक समस्या पैदा कर रहा है। हर वर्ष ईसाई भागकर दक्षिण अमेरिका की ओर भाग रहे हैं, जिसे उनके लिए सुरक्षित स्थान के रूप में देखा जा रहा है| हिजबुल्लाह और सुन्नी आतंकवादी संगठन शक्तिशाली होते जा रहे हैं।
27. युद्ध के परिणाम पहले ही तय हो गए थे। स्थानीय ईसाई मिलिशिया का एक ढीला गठबंधन, पश्चिम से निराश, संगठित मुसलामानों के विरुद्ध खड़ा नहीं हो सकता था चूंकि इस्लामी समुदाय विश्व को जीतने के मिशन के लिए समर्पित था।
28. युद्ध के बाद, मुसलमानों ने ईसाई मिलिशिया को हथियार छोड़ने के लिए बाध्य किया, जबकि हिज़्बुल्लाह जैसे इस्लामी आतंकवादी संगठन वस्तुतः देश पर शासन करने लगे और इसे इज़राइल पर आक्रमण करने के लिए ईरान के स्प्रिंग बोर्ड के रूप में प्रयोग किया।
29. यहां सीखने की बात यह है: इस्लाम के साथ कोई भी युद्ध स्थानीय नहीं है। इस्लाम सदैव विश्व स्तर पर सोचता है। गैर-मुसलमानों के स्थानीय बहुमत का कोई मतलब नहीं है, यदि आप मुस्लिम देशों से घिरे भौगोलिक क्षेत्र में हैं। ऐसे विषय में गैर-मुसलमान सदैव अल्पसंख्यक होते हैं।
30. लेबनान की कहानी में भारत को सीखने के लिए बहुत कुछ है। हमारी स्थितियाँ भयावह रूप से समान हैं । भारत एक अकेला हिंदू बहुल देश है जो कट्टरपंथी इस्लामी देशों से घिरा हुआ है। वैश्विक इस्लाम का सहारा लेते हुए भारतीय मुसलमान वैश्विक और आक्रामिक बहुसंख्यक हैं परन्तु ऐसा कहते नहीं हैं।
31. भारतीय मुसलमान वामपंथियों के साथ गठबंधन करते हैं, जबकि हिंदुओं को दक्षिणपंथी के रूप में चित्रित करते हैं। वैश्विक मीडिया विश्व स्तर पर हिंदुओं को कुख्यात बनाता है और भारत के उत्पीड़ित मुस्लिम अल्पसंख्यक के मिथक को फैलाता है।
32. हिंदू ‘हिंदू-मुस्लिम समस्या’ को स्थानीय समस्या के रूप में देखते हैं। जबकि मुसलमान स्पष्ट हैं कि वे इस्लाम और मुसलमानों द्वारा विश्व विजय और वर्चस्व की वैश्विक लड़ाई लड़ रहे हैं। लेबनान में ईसाइयों की भाँती, हिंदू एक-दूसरे से लड़ रहे हैं, जबकि मुसलमान एकजुट हैं।
33. लेबनान में सीरिया ने हथियार और आतंकवादी उपलब्ध कराए और जॉर्डन ने मुस्लिम शरणार्थियों को उपलब्ध कराया। भारत में भी पाकिस्तान हथियार और आतंकवादी उपलब्ध कराता है जबकि बांग्लादेश हमें मुस्लिम शरणार्थी उपलब्ध कराता है। भारत के कई हिस्से लेबनान की भाँती इस्लामी हो गए हैं।
34. यदि हिंदुओं को हिंदुओं के रूप में जीवित रहने और हिंदू संस्कृति, सभ्यता और जीवन जीने के ढंग को संरक्षित रखना है, तो लेबनान का विषय उनके लिए एक गंभीर चेतावनी है।
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1. ग्रीस कैसे तुर्की बना: इस्लामिक समुदाय और देशों के विभाजन
इस्लाम के अधूरे एजेंडे - केस 3 - ग्रीस और बाल्कन बनाम तुर्की
कैसे तुर्की सेकुलर चरित्र का दावा करते हुए असमान विभाजन के बाद अपने पूर्व ईसाई उपनिवेशों का इस्लामीकरण कर रहा है।
2. आज जो तुर्की है वह कभी ग्रीस हुआ करता था। यह पहला भौगोलिक तथ्य है जिससे आपको परिचित होने की आवश्यकता है कि तुर्की तुर्की नहीं था। मूर्तिपूजक और ईसाई काल में तुर्की को अनातोलिया/एशिया माइनर कहा जाता था। जबकि पूर्वी तुर्की आर्मेनिया था।
3. तुर्कों का मूल निवास पूर्वी साइबेरिया में बैकाल झील के पास कहीं है। तुर्की में तुर्क आक्रमणकारी/ जनसँख्या हैं। तुर्क तुर्की के मूल निवासी नहीं हैं। वे आक्रमणकारी थे और बाहर से आकर वहाँ बसे हैं|
कैसे मुस्लिम तुर्की ने सिर्फ दो वर्षों में एक सम्पूर्ण प्राचीन ईसाई सभ्यता को नष्ट कर दिया
इस्लाम के अधूरे एजेंडे - केस २
यह एक भयावह कहानी है कि मुसलमान बहुल देश अल्पसंख्यकों के साथ कैसा व्यवहार करते हैं ।
2. २०वी सदी का पहला नरसंहार यूरोप में नाजियों द्वारा यहूदियों का नरसंहार नहीं था। पहला नरसंहार इस्लामी तुर्क साम्राज्य ने १९१५-१७ से प्राचीन ईसाई राष्ट्र अर्मेनिआ के विरुद्ध किया गया था।
3. आज जो पूर्वी तुर्की है वह पहले अर्मेनियाई ईसाइयों की मातृभूमि हुआ करता था| इस्लाम अथवा तुर्क यहाँ पर बाद में आये| अर्मेनिया एक प्राचीन ईसाई साम्राज्य है और ईसाईयत को राज्य के मज़हब के रूप में स्वीकार करने वाला पहला महान साम्राज्य है।
1. How to Understand the Hindu Temple – The Meaning of the term ‘aedicule’
In order to understand the Hindu temple, we need to first understand the meaning of the term aedicule this is frequently used about it.
[Picture: Kashi-Vishwanath - Lakkundi, Karnataka]
2. In Hindu temple, aedicule refers to the miniature shrine or a mini replica of the entire temple, temple śikhara or vimāna, which is to be found most prominently on its śikhara and outer walls of the garbha-gṛha.
[Picture: Kalleshvara Temple at Hide Hadagalli, Bellary]
3. It is found in all three major varieties of Nāgara, Vesara and Draviḍa and is so profusely used in Karnāṭa draviḍa tradition that Gerard Foekema calls the very style as ‘architecture decorated by architecture’.
One of the oldest temples in Karnataka, this wonderfully peaceful temple is located in Banavasi, a small village on the banks of the lazily flowing Varada River, in the quietest corner of the coastal district of Uttara Kanada, Karnataka.
2. Uttara Kannada is a state in itself, owing to its size, Western Ghats, tropical and semi-tropical rain forests and the ocean. When you climb the Ghats and come down to the other side, in main Karnataka you find many wonderful temples in traditional Dravida and Vesara styles.
3. Banavasi was the capital of one of the oldest temple building dynasties of India, Kadambas of Banavasi. It is believed that the first layers of this temple were built in 4th century and then it was renovated as late as 10th and 11th centuries by subsequent rulers of the area.
इस्लाम में कुछ भी अकस्मात् नहीं है। सब योजनाबद्ध है। हिंसा इसलिए नहीं हुई क्योंकि नुपुर शर्मा ने हदीस का हवाला दिया पर इसलिए क्योंकि इस्लाम विश्व प्रभुत्व के अपने लक्ष्य को आगे बढ़ाने के लिए इस तरह की घटना की प्रतीक्षा करता रहता है।
2. इस्लाम का लक्ष्य विश्व प्रभुत्व है; और अंततः पूरे विश्व का इस्लाम में धर्मांतरण। ऐसा इसलिए है क्योंकि इस्लाम के दृष्टिकोण से, पूरी विश्व एक मुस्लिम संपत्ति थी, जो उन्हें हदीस के अनुसार अल्लाह ने दी थी। तो इस प्रकार से, हम, गैर-मुसलमान उनकी भूमि पर अधिकार कर बैठे हुए हैं।
3. पूरे विश्व को विधिक तौर पर मुसलमानों की संपत्ति माना जाता है, जो पैगंबर मुहम्मद के जन्म से पहले ही अल्लाह ने उन्हें दिया था। इस मत के अनुसार, हम, गैर-मुसलमान, मुस्लिम भूमि पर बैठ हुए हैं। अल्लाह की दी हुई भूमि को वापस पाना उनका दैवीय अधिकार है।
1. 'Responsibility is Racist' – Supreme Court
What the Supreme Court today basically declared by letting Zubair go is that responsibility is racist. Everyone remembers how the Court and the Eminent Judges behaved towards Nupur?
2. Nupur Sharma was told that she was single-handedly responsible for plunging the entire country in chaos. How? By quoting an Islamic scripture. Yes, believe it or not, neither did they realize the irony, nor did they try to hide it out. They were brazen.
3. The brilliant minds of these eminent judges never made the logical extension that it is the Islamic scriptures which might be inciting violence if by quoting them Nupur incited something. Moral of the story: Hindu is always guilty.