ऐसा क्या गलत कह दिया रीजनल हेड साहब ने? दादी-नानियाँ तो मरती रहती हैं। हमारे महापुरुषों ने कहा है कि स्वयं से बड़ी हर स्त्री को माँ समान मानना चाहिए। रीजनल हेड ने दादी-नानी समान मान लिया। थोड़ा ज्यादा ही सम्मान दिया है। इस पर भी बवाल?
अब दुनिया में लगभग साढ़े तीन अरब महिलाएं हैं जिनमें से हमसे ज्यादा उम्र वाली कम से कम लगभग एक अरब तो होंगी ही। उन एक अरब में से रोज कई मरती भी होंगी। अगर आप ये कह रहे हैं कि उन सभी तो तो हमें गोद में नहीं खिलाया तो ये आपकी संकीर्ण सोच तो दर्शाता है।
रीजनल हेड साहब भारतीय संविधान में अटूट विश्वास रखते हैं जिसके आर्टिकल 14 में लिखा है कि कानून की नजर में सभी भारतीय बराबर हैं। अब रीजनल हेड तो कानून से भी ऊपर की चीज हैं इसलिए उनके लिए पूरी दुनिया के सभी मनुष्य बराबर हैं।
कृष्ण ने भी गीता में कहा है कि "सब जन्म मुझ ही से पाते हैं, फिर लौट मुझ ही में आते हैं"। तो ऐसे में किसी के मरने का क्या शोक करना। वहीँ मीटिंग तो युगों युगों में यदा-कदा ही होने वाली अतिविशिष्ट घटना है।
जब सारे ग्रह सूर्य के साथ एक लाइन में होते हैं, जब अमावस्या के दिन भी पूर्ण चन्द्रमा दिखाई देता है तब कभी जाकर मीटिंग का संयोग बन पाता है। ऐसे महँ अवसर पर मीटिंग नामक महोत्सव का आयोजन किया जाता है।
इस खगोलीय घटना के दर्शन कर मीटिंग के महोत्सव में शामिल होने वाले व्यक्ति और उसके समस्त पूर्वज एवं वंशजों को मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। जो निर्बुद्धि, निर्लज्ज, पतित मनुष्य इस अवसर को जाया कर देता है उसका सर्वथा नाश होना तय है।
ऐसे में रीजनल हेड साहब ने दादी के मरने के कारण मीटिंग अटेंड नहीं करने वाले अज्ञानी पुरुष को "लीव विथाउट पे" करके उचित दंड दिया है। ऐसे रीजनल हेड की सदा ही जय हो।
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हफ्ते का पहला शनिवार, शाम को साढ़े सात बजे RO के व्हाट्सप्प ग्रुप पर मैसेज आता है: "कल परम आदरणीय GM सर के आदेशानुसार सभी ब्रांच मैनेजर अपने अपने क्षेत्रों में हाउसिंग लोन का कैंप लगाएंगे।
महायशस्वी GM सर कैम्पों की विजिट भी करेंगे इसलिए प्रत्येक BM कम से कम एक स्टाफ के साथ अपने कैंप पर उपस्थित रहने चाहिए। सोमवार को अतिपरमगुण संपन्न GM सर कल के हाउसिंग लोन कैंप की रिव्यु मीटिंग लेंगे जिसमें नॉन-परफार्मिंग BM को कारण बताओ नोटिस जारी किया जाएगा
और अव्वल ब्रांचों को चरणवन्दनीय GM सर द्वारा सम्मानित किया जाएगा। रिव्यु मीटिंग सोमवार को शाम ठीक साढ़े चार बजे रखी जायेगी इसलिए सभी BM समय पर RO में अपनी हाजिरी देवें।"
दुनिया की सबसे कम जवाबदेही वाली नौकरी कौनसी है? नेता? नौकरशाह? जज? वकील? जी नहीं। इन सब में एकाउंटेबिलिटी जीरो हो सकती है लेकिन इससे भी कम एकाउंटेबिलिटी वाली नौकरी है जिसमें जवाबदेही नेगेटिव में है। अब आप पूछेंगे कि एकाउंटेबिलिटी नेगेटिव कैसे हो सकती है।
भाई आजकल ज्यादातर नौकरियां ऐसी हो गई हैं कि जिनमें आप काम सही करो तब भी गालियां पड़ती हैं, सजा भी मिलती है। नेता जज नौकरशाह कि नौकरियां ऐसी हैं कि काम ना भी करो या गलत काम करो तो भी न कोई सजा है ना कोई पूछने वाला।
लेकिन एक नौकरी ऐसे भी है जिसमें काम गलत आप करते हैं और गालियां किसी और को पड़ती हैं। ये नौकरी है 'पत्तलकार' की। 'पत्तलकार' वो प्रजाति है जो दिखने में पत्रकार जैसी होती है लेकिन काम बिल्कुल उलट। पत्तलकार का काम होता है समाज में गलत सूचना पहुंचाना।
एक बार बैंक के एक बड़े उच्चाधिकारी साहब जो कि HR डिपार्टमेंट में थे रिटायर हो गए। किस्मत से कुछ दिन बाद एक एयरलाइन कंपनी में नौकरी मिल गई। पिछले अनुभव के आधार पर वहां भी उन्हें HR डिपार्टमेंट दिया गया।
डिपार्टमेंट सँभालते ही उनका दिमाग खराब हो गया। "इतना सारा स्टाफ? यहाँ तो हर काम के लिए अलग स्टाफ है। इन लोगों को मैनपावर मैनेजमेंट आता ही नहीं। इसीलिए तो ज्यादातर एयरलाइन घाटे में चल रही हैं।" तुरंत अर्दली को बुलाया।
-"एक हवाईजहाज उड़ाने के लिए कितना स्टाफ चाहिए?"
-"सर, ग्राउंड स्टाफ होता है और फ्लाइट स्टाफ होता है। ग्राउंड पे दो लोग चेक इन के लिए, दो लोग लगेज के लिए, दो लोग बोर्डिंग के लिए, दो लोग ग्राउंड नेविगेशन के लिए, दो एयर नेविगेशन, दो फ्लाइट क्लीनर, दो लोग रिफ्यूलिंग, चार लोग प्लेन मेंटेनेंस और दो लोग स्पेयर में चाहिए।
प्राइवेट और पब्लिक बैंक के काम अलग अलग हैं, वर्किंग कल्चर और कंडीशन अलग हैं, सरकार और जनता का नजरिया अलग है। इस हिसाब से दोनों को एक तराजू में तोलना सही नहीं।
प्राइवेट बैंक मुनाफे के लिए होते हैं। इसलिए इनके फाइनेंसियल आपको अच्छे मिलेंगे।
सरकारी बैंक पब्लिक सर्विस के लिए होते हैं। इसलिए सामाजिक योजनाओं में आपको सरकारी बैंकों का प्रतिनिधित्व ज्यादा मिलेगा।
लेकिन चूंकि पिछले कुछ सालों से एक विशेष वर्ग द्वारा सरकारी बैंकों के बारे में भ्रामक कैंपेन चलाया जा रहा है, इसलिए सरकारी बैंकों के मुनाफे पर जोर दे रहे हैं
ताकि लोगों को बता सकें कि सरकारी बैंक न केवल अपनी सामाजिक जिम्मेदारी पूरी करते हैं (जोकि उनका प्रमुख ऑब्जेक्टिव है) बल्कि सरकार को कमा कर भी दे रहे हैं।
हमारी लड़ाई प्राइवेट बैंकों से नहीं है। हमारी लड़ाई तो सरकारी बैंकों के निजीकरण से है।
चलो आपको एक सिनेरियो बताते हैं। सोचो कि आपका एक बैंक में अकाउंट है। आप उस खाते का इस्तेमाल केवल अपने गृहराज्य में ही कर सकते हैं। गृहराज्य से बाहर जाते ही आपसे इंटरस्टेट लाइसेंस माँगा जाएगा। साथ में टैक्स भी वसूला जाएगा।
लाइसेंस नहीं होने पर पेनल्टी लगाने से लेकर खाता भी जब्त किया जा सकता है। उस खाते के दस्तावेज आपसे कभी भी मांगे जा सकते हैं और दस्तावेज पूरे नहीं होने पर पेनल्टी भरनी पड़ेगी। और आप ये खाता ऐसे ही नहीं इस्तेमाल कर सकते।
खाते को चलाने के लिए आपको अलग से लाइसेंस लेना पड़ेगा और उसे हमेशा साथ रखना पड़ेगा। हर 15 साल में आपको खाता रिन्यू करवाना पड़ेगा और वो केवल आपकी होम ब्रांच में ही होगा। हर बार आपको खाते की रिन्युअल फीस भरनी पड़ेगी। आप ये खाता आसानी से ट्रांसफर नहीं करा सकते।
जुलाई का महीना। ब्रांच मैनेजर पर होम लोन का प्रेशर है। किस्मत से आज ही ब्रांच में होम लोन की फाइल आई है। अमाउंट छोटा ही है। कस्टमर स्थाई सरकारी कर्मचारी है। कागजात लगभग पूरे ही हैं।
फाइल देख के ब्रांच मैनेजर बोलता है कि कुछ दिन में लोन हो जाएगा। बड़े मन से ब्रांच मैनेजर फाइल को सोर्स करके प्रोसेसिंग सेंटर भेजता है। शाम को रिपोर्टिंग वाले व्हाट्सएप्प ग्रुप में भी ढोल पीट देता है "Home Loan sourced - 25 lakh"। अब शुरू होता है इंतज़ार।
एक हफ्ते बाद कस्टमर आता है, "सर, मेरे होम लोन का कुछ हुआ क्या?" ब्रांच मैनेजर प्रोसेसिंग सेंटर फ़ोन लगाता है। पता चलता है कि डेस्क अफसर 2 हफ्ते की छुट्टी पे है। तब से फाइल उसी की डेस्क पर पड़ी है। अगले हफ्ते आएगा तब प्रोसेसिंग में भेजी जायेगी।