टॉप ऑफिशियल यानी उच्चाधिकारी एक ऐसा बेचारा प्राणी है जिसकी बेचारगी का किसी को अंदाजा तक नहीं। बात सुनने में थोड़ी अजीब लग रही होगी क्योंकि अपने उच्चाधिकारियों को हम अक्सर विलन की तरह ही देखते आये हैं।
उल्टे सीधे टारगेट देने वाले, हफ्ते में चार चार मीटिंगें बुलाने वाले, मीटिंगों में गलियां सुनाने वाले, ट्रासंफर, प्रमोशन और सैलरी रोकने की धमकियाँ देने वाले, बिना वजह छुट्टियों के दिन बुलाने वाले, बैंक में देर रात तक रुकने के लिए विवश करने वाले विलन।
लेकिन क्या आपने ये जानने की कोशिश की है कि ये ऐसे क्यों हो जाते हैं? जब हम नए नए PO या क्लेरिकल में ज्वाइन करते हैं तो आपस में किसी को देखकर लगता ही नहीं कि सुबह शाम अपने BM, RM आदि इत्यादि को गरियाने वाला ये फलाना बैचमेट आगे जा के उनकी ही तरह आततायी बनेगा।
धीरे धीरे सब साथी अपने अपने रस्ते चले जाते हैं और एक दिन पता चलता है कि हमारे ही बैच का एक बंदा आज AGM बन गया है जो खूंखार RM के नाम से प्रसिद्ध है। हम यही सोचते रह जाते हैं कि वो गाय जैसा दिखने वाला लड़का अचानक से रावण कैसे बन गया? तो आइये खोलते हैं कुछ राज।
बैंक ज्वाइन करते ही इन पर प्रमोशन का भूत सवार हो जाता है। क्योंकि जैसे माँ-बाप अपने नादान बच्चे को ये कहकर बेवकूफ बनाते हैं कि एक बार दसवीं की बोर्ड में अच्छे नंबर आ जाएँ फिर तो ऐश है, एक बार IIT निकल जाए फिर तो ऐश है, एक बार बैंक में नौकरी लग जाये फिर तो ऐश है।
वैसे ही उस बेचारे को ये समझा दिया जाता है कि एक बार स्केल 4 बन जाओ फिर तो ऐश है। बस वही से उसे जल्दी प्रमोशन पाने का चस्का लग जाता है। 3 इडियट्स के चतुर की तरह। वायरस का लेक्चर उसने घोंट के पिया है जिसमें वो घोंसले से अंडे गिराकर कम्पीटीशन का मतलब समझाता है।
उच्चाधिकारियों की जी -हुजूरी, देर रात तक रुक कर टारगेट पूरा करने का जूनून, संडे को आकर ब्रांच का बिज़नेस बढ़ाने और बॉस को खुश करने की लालसा उसकी आदत बन जाती है। इसी बीच उसकी शादी भी होती है,
बच्चे भी हो जाते हैं, माँ बाप के बाल भी सफ़ेद होने शुरू हो जाते हैं, लेकिन ये सब देखने-सोचने का टाइम उसके पास नहीं। उसे तो जल्दी से जल्दी प्रमोशन पाना है। एक बार प्रमोशन मिल जाए फिर घर को भी संभाल लेंगे।
लेकिन दूसरों के अंडे गिराते गिराते वो खुद का घोंसला संभालना भूल जाता है, कुछ तो अपना घोंसला बनाना ही भूल जाते हैं। उनके बच्चे तो होते हैं लेकिन वो अपने बाप की शक्ल तक नहीं देख पाते। क्योंकि जब तक बाप सोकर उठता है बच्चे स्कूल चले जाते हैं।
और जब बाप रात को घर पहुँचता है बच्चे सो चुके होते हैं। छुट्टी वाले दिन भी बाप को ऑफिस जाना रहता है क्योंकि DGM ने होम लोन का कैंप लगाने कहा है और फर्स्ट आने वाले को DGM से सर्टिफिकेट मिलेगा।
कभी कभार बैंकर बाप घर पर रहता भी है तो ऑफिस की इतनी टेंशन लेकर रहता है कि अपने ही घर वालों को काटने दौड़ता है। बीवी अपने पति और बच्चे अपने बाप के बिना जीना सीख जाते हैं। वो अपने लिए एक ऐसी जिंदगी बना लेते हैं जिसमें उस आदमी का अस्तित्व नहीं है।
ऐसे में अगर कभी बाप गलती से किसी दिन घर पर रुक भी जाता है तो घरवालों कि जिंदगी में एक खलल से ज्यादा कुछ नहीं होता। एक अनजान से आदमी की उपस्थिति से असहज घरवाले बस इसी इंतजार में रहते हैं कि कब ये आदमी अपने ऑफिस जाएगा और हम अपनी सामान्य जिंदगी जी सकेंगे।
घरवाले भी उसे बस इसलिए झेलते हैं क्योंकि वो आदमी घर में पैसे लेकर आता है। इधर प्रमोशन का भूख बैंकर इसी उम्मीद में रहता है कि बस एक बार GM DGM खुश हो जाए, घर वालों को तो बाद में भी देख सकते हैं। धीरे धीरे उसे प्रमोशन मिल जाता है। वो भी उच्चाधिकारी बन जाता है।
बचपन में सुनी हुई बात कि 'बस एक बार प्रमोशन हो जाए फिर तो मजे हैं' को वो भूल चुके हैं, क्योंकि अब उन्हें नई सीख मिली है कि एक बार CGM बन जाए फिर मजे हैं। प्रमोशन पाकर, अपने आगे पीछे चाटुकारों की भीड़ देखकर,
चमचमाता हुआ ऑफिस देखकर उन्हें लगने लगता है कि वो बैंक के लिए कितने जरूरी हो चुके हैं। उन्हें लगने लगता है कि उनके बिना तो बैंक चल ही नहीं सकती। लेकिन एक दिन आता है। बैंक उन्हें सेवानिवृत्ति के साथ धन्यवाद का पत्र थमा कर विदा कर देता है।
फिर उन्हें घरवालों की याद आती है। लेकिन घर वाले तो उनसे दूर, बहुत दूर हो चुके हैं। बैंक में रिपोर्ट का फॉलोअप लेते लेते वो घर वालों का फ़ॉलोअप लेना ही भूल गए हैं। घर पर वो घर वालों को नहीं सुहाते हैं। अपनी इम्पोर्टेंस को साबित करने के लिए वो बैंक का रुख करते हैं।
वहां तो लोग उन्हें पहुँचते ही सर आँखों पर बिठा लेंगे, पूजने लगेंगे, जैसे पहले करते थे। लेकिन ब्रांच में घुसते ही पता चलता है कि यहाँ तो लाइन लगी है। BM के पास बात करने का भी टाइम नहीं है। साहब बताते हैं कि मैं बैंक का रिटायर्ड उच्चाधिकारी हूँ। BM उनके लिए चाय पानी मंगवा देता है।
लेकिन इससे ज्यादा नहीं। उन्हें अचानक महसूस होता है कि वो अब बैंक के लिए महत्वपूर्ण नहीं रहे। घरवालों को भी अब उनके कोई मतलब नहीं रहा क्योंकि बच्चे अब खुद ही कमाने लगे हैं। तो उनके लाये पैसे की जरूरत भी नहीं रही।
जो एक चीज, जिसके चलते घर वाले उनको झेल रहे थे उसकी भी अब जरूरत खत्म हो गई है। वो ना घर का रहा ना बैंक का। अब ऐसे आदमी को बेचारा नहीं कहा जाए तो क्या कहा जाए?
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ऐसा क्या गलत कह दिया रीजनल हेड साहब ने? दादी-नानियाँ तो मरती रहती हैं। हमारे महापुरुषों ने कहा है कि स्वयं से बड़ी हर स्त्री को माँ समान मानना चाहिए। रीजनल हेड ने दादी-नानी समान मान लिया। थोड़ा ज्यादा ही सम्मान दिया है। इस पर भी बवाल?
अब दुनिया में लगभग साढ़े तीन अरब महिलाएं हैं जिनमें से हमसे ज्यादा उम्र वाली कम से कम लगभग एक अरब तो होंगी ही। उन एक अरब में से रोज कई मरती भी होंगी। अगर आप ये कह रहे हैं कि उन सभी तो तो हमें गोद में नहीं खिलाया तो ये आपकी संकीर्ण सोच तो दर्शाता है।
रीजनल हेड साहब भारतीय संविधान में अटूट विश्वास रखते हैं जिसके आर्टिकल 14 में लिखा है कि कानून की नजर में सभी भारतीय बराबर हैं। अब रीजनल हेड तो कानून से भी ऊपर की चीज हैं इसलिए उनके लिए पूरी दुनिया के सभी मनुष्य बराबर हैं।
हफ्ते का पहला शनिवार, शाम को साढ़े सात बजे RO के व्हाट्सप्प ग्रुप पर मैसेज आता है: "कल परम आदरणीय GM सर के आदेशानुसार सभी ब्रांच मैनेजर अपने अपने क्षेत्रों में हाउसिंग लोन का कैंप लगाएंगे।
महायशस्वी GM सर कैम्पों की विजिट भी करेंगे इसलिए प्रत्येक BM कम से कम एक स्टाफ के साथ अपने कैंप पर उपस्थित रहने चाहिए। सोमवार को अतिपरमगुण संपन्न GM सर कल के हाउसिंग लोन कैंप की रिव्यु मीटिंग लेंगे जिसमें नॉन-परफार्मिंग BM को कारण बताओ नोटिस जारी किया जाएगा
और अव्वल ब्रांचों को चरणवन्दनीय GM सर द्वारा सम्मानित किया जाएगा। रिव्यु मीटिंग सोमवार को शाम ठीक साढ़े चार बजे रखी जायेगी इसलिए सभी BM समय पर RO में अपनी हाजिरी देवें।"
दुनिया की सबसे कम जवाबदेही वाली नौकरी कौनसी है? नेता? नौकरशाह? जज? वकील? जी नहीं। इन सब में एकाउंटेबिलिटी जीरो हो सकती है लेकिन इससे भी कम एकाउंटेबिलिटी वाली नौकरी है जिसमें जवाबदेही नेगेटिव में है। अब आप पूछेंगे कि एकाउंटेबिलिटी नेगेटिव कैसे हो सकती है।
भाई आजकल ज्यादातर नौकरियां ऐसी हो गई हैं कि जिनमें आप काम सही करो तब भी गालियां पड़ती हैं, सजा भी मिलती है। नेता जज नौकरशाह कि नौकरियां ऐसी हैं कि काम ना भी करो या गलत काम करो तो भी न कोई सजा है ना कोई पूछने वाला।
लेकिन एक नौकरी ऐसे भी है जिसमें काम गलत आप करते हैं और गालियां किसी और को पड़ती हैं। ये नौकरी है 'पत्तलकार' की। 'पत्तलकार' वो प्रजाति है जो दिखने में पत्रकार जैसी होती है लेकिन काम बिल्कुल उलट। पत्तलकार का काम होता है समाज में गलत सूचना पहुंचाना।
एक बार बैंक के एक बड़े उच्चाधिकारी साहब जो कि HR डिपार्टमेंट में थे रिटायर हो गए। किस्मत से कुछ दिन बाद एक एयरलाइन कंपनी में नौकरी मिल गई। पिछले अनुभव के आधार पर वहां भी उन्हें HR डिपार्टमेंट दिया गया।
डिपार्टमेंट सँभालते ही उनका दिमाग खराब हो गया। "इतना सारा स्टाफ? यहाँ तो हर काम के लिए अलग स्टाफ है। इन लोगों को मैनपावर मैनेजमेंट आता ही नहीं। इसीलिए तो ज्यादातर एयरलाइन घाटे में चल रही हैं।" तुरंत अर्दली को बुलाया।
-"एक हवाईजहाज उड़ाने के लिए कितना स्टाफ चाहिए?"
-"सर, ग्राउंड स्टाफ होता है और फ्लाइट स्टाफ होता है। ग्राउंड पे दो लोग चेक इन के लिए, दो लोग लगेज के लिए, दो लोग बोर्डिंग के लिए, दो लोग ग्राउंड नेविगेशन के लिए, दो एयर नेविगेशन, दो फ्लाइट क्लीनर, दो लोग रिफ्यूलिंग, चार लोग प्लेन मेंटेनेंस और दो लोग स्पेयर में चाहिए।
प्राइवेट और पब्लिक बैंक के काम अलग अलग हैं, वर्किंग कल्चर और कंडीशन अलग हैं, सरकार और जनता का नजरिया अलग है। इस हिसाब से दोनों को एक तराजू में तोलना सही नहीं।
प्राइवेट बैंक मुनाफे के लिए होते हैं। इसलिए इनके फाइनेंसियल आपको अच्छे मिलेंगे।
सरकारी बैंक पब्लिक सर्विस के लिए होते हैं। इसलिए सामाजिक योजनाओं में आपको सरकारी बैंकों का प्रतिनिधित्व ज्यादा मिलेगा।
लेकिन चूंकि पिछले कुछ सालों से एक विशेष वर्ग द्वारा सरकारी बैंकों के बारे में भ्रामक कैंपेन चलाया जा रहा है, इसलिए सरकारी बैंकों के मुनाफे पर जोर दे रहे हैं
ताकि लोगों को बता सकें कि सरकारी बैंक न केवल अपनी सामाजिक जिम्मेदारी पूरी करते हैं (जोकि उनका प्रमुख ऑब्जेक्टिव है) बल्कि सरकार को कमा कर भी दे रहे हैं।
हमारी लड़ाई प्राइवेट बैंकों से नहीं है। हमारी लड़ाई तो सरकारी बैंकों के निजीकरण से है।
चलो आपको एक सिनेरियो बताते हैं। सोचो कि आपका एक बैंक में अकाउंट है। आप उस खाते का इस्तेमाल केवल अपने गृहराज्य में ही कर सकते हैं। गृहराज्य से बाहर जाते ही आपसे इंटरस्टेट लाइसेंस माँगा जाएगा। साथ में टैक्स भी वसूला जाएगा।
लाइसेंस नहीं होने पर पेनल्टी लगाने से लेकर खाता भी जब्त किया जा सकता है। उस खाते के दस्तावेज आपसे कभी भी मांगे जा सकते हैं और दस्तावेज पूरे नहीं होने पर पेनल्टी भरनी पड़ेगी। और आप ये खाता ऐसे ही नहीं इस्तेमाल कर सकते।
खाते को चलाने के लिए आपको अलग से लाइसेंस लेना पड़ेगा और उसे हमेशा साथ रखना पड़ेगा। हर 15 साल में आपको खाता रिन्यू करवाना पड़ेगा और वो केवल आपकी होम ब्रांच में ही होगा। हर बार आपको खाते की रिन्युअल फीस भरनी पड़ेगी। आप ये खाता आसानी से ट्रांसफर नहीं करा सकते।