ये थ्रेड बहुत कंट्रोवर्सिअल होने वाला है। जिसको भी आपत्ति है कृपया कमेंट या डीएम में बता दें। भगवान् के लिए FIR न करें।
भारत के संविधान के अनुच्छेद 51A का भाग a कहता है कि प्रत्येक भारतीय नागरिक को संविधान का पालन करना चाहिए
और भारत के ध्वज और राष्ट्रगान का सम्मान करना चाहिए। और इसके लिए अलग से दो कानून भी बनाये गए हैं 1. The Emblems and Names (Prevention of Improper Use) Act, 1950 और 2. Prevention of Insults to National Honour Act, 1971.
इन दोनों में से राष्ट्र ध्वज से जुड़े नियमों को मिला कर 2002 में Flag code of India 2002 बनाया गया। इस कोड में ध्वज की लम्बाई, चौड़ाई, रंग, अनुपात, सिलाई का तरीका, झंडे के कपडे का प्रकार, बुनाई में धागों की संख्या, झंडे के कपडे का घनत्व,
प्रति वर्ग सेंटीमीटर में धागों की संख्या से लेकर झंडा कब लगा सकते हैं, कहाँ लगा सकते हैं, कैसे लगा सकते हैं, कैसे हटा सकते हैं, कब झुका सकते हैं, किस दिशा में लगा सकते हैं, किस हाथ में रखना है, चलते हुए झंडे के सामने कैसे खड़े होना है, झंडे को कैसे सलामी देनी है,
चलती कार में किस साइड में झंडा लगाना है, डोमेस्टिक हवाई जहाज पे कैसे झंडा लगाना है, ट्रेन में कैसे झंडा लगाना है, दूसरे देश के झंडों के साथ हमारा झंडा कैसे लगाना है, दूसरे झंडों के साथ हमारा झंडा कैसे लगाना है, और भी कई नियम हैं।
और अगर आपने कोई भी गलती की तो ये राष्ट्रीय ध्वज का 'अपमान' माना जाएगा। और जब आप किसी भी राष्ट्र सम्मान से जुड़े हुए प्रतीक का 'अपमान' करते हैं तो क्या हो सकता है ये आप भी जानते हैं। कानून तो बाद में आएगा पहले तो भीड़ ही आपका न्याय कर देगी।
जब माननीय सुप्रीम कोर्ट ने सिनेमाघरों में राष्ट्रगान बजाना अनिवार्य कर दिया था तो कितने लोग सिर्फ इसलिए पीटे गए थे क्योंकि विकलांगता की वजह से राष्ट्रगान के लिए खड़े नहीं हो पाए थे। हिन्दू धर्म की आलोचना का एक बहुत बड़ा कारण ये भी है कि इसमें आडम्बर बहुत ज्यादा हैं।
कोई भी पूजा पाठ के लिए विशेष पद्धति, मंत्र इत्यादि होते हैं जो अक्सर पंडित ही जानते हैं। पूजा किस मुहूर्त में करनी है, किस देवता की पहले पूजा करनी है, कब कौनसा मंत्र बोलना है, ये सब पंडित ही जानते हैं। आम आदमी तो हवाएं के सामने बैठकर बस स्वाहा ही करता रहता है।
अगर कुछ भी गलत हो जाए तो भगवान् के 'नाराज' होने या पूजा के 'असफल' होने का खतरा बना रहता है। जैसे ब्राह्मण के अलावा अन्य किसी को पुजारी बनने का अधिकार नहीं होता वैसे ही 2002 से पहले आम आदमी को तिरंगा फहराने का अधिकार तक नहीं था। अभी सरकार ने 'हर घर तिरंगा' अभियान चलाया था।
सैकड़ों फोटो ट्विटर पर शेयर की गई जिनमें तिरंगे को लेकर सैकड़ों सवाल उठे। आनंद महिंद्रा भी तिरंगे के आकार और अनुपात को लेकर आलोचना का शिकार हुए थे। लोग चढ़ बैठे थे उनपर। कुछ लोग तो इतने गुस्से में थे कि अगर उनको महिंद्रा साहब सामने मिल जाते तो वहीँ पर शाप दे देते।
अरे भाई सैंकड़ों नियम हैं तो गलतियां होने की संभावनाएं भी तो सैंकड़ों हो जाती हैं। DP में तिरंगा लगाने बोला गया, लेकिन ट्विटर की DP तो गोल होती है और नियमानुसार तिरंगे आकर चौकोर होना चाहिए वो भी 2 : 3 के अनुपात में।
मेरे घर में भी तिरंगा आया। लेकिन मैं छत पे नहीं लगा पाया क्योंकि उसमें भी ना तो अशोक चक्र बीच में था न रंगों की पट्टियों का अनुपात सही था। और तो और तिरंगा किसी सिंथेटिक कपडे का बना लग रहा था जिसके लिए नियम इजाजत नहीं देते।
आप लाख कोशिश करलें लेकिन 15 अगस्त के अगले दिन आप तिरंगे को कूड़े के ढेर में जाने से नहीं रोक सकते। मैं ये नहीं कहता कि राष्ट्रध्वज का सम्मान नहीं करना चाहिए, लेकिन इतने नियम? हर आदमी वकील नहीं होता।
सविधान के ही अनुच्छेद 51A का भाग h कहता है कि नागरिकों को वैज्ञानिक मनोवृत्ति रखनी चाहिए। तिरंगे से जुड़े कुछ नियम जैसे कि बुनाई तीन धागे वाली ही होनी चाहिए, एक वर्ग सेंटीमीटर में 150 धागे हो होने चाहिए,
या एक वर्ग फुट के तिरंगे कपडे का वजन 205 ग्राम ही होना चाहिए, मुझे तो कहीं से भी वैज्ञानिक नहीं लगते। और ये तो आप भी जानते हैं हमारे देश में लोगों को आलोचना, मारपीट का तो बस बहाना चाहिए होता है।
विचार पूर्णतया निजी है। भावनाएं आहत करने के लिए कोटि कोटि क्षमा।
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टॉप ऑफिशियल यानी उच्चाधिकारी एक ऐसा बेचारा प्राणी है जिसकी बेचारगी का किसी को अंदाजा तक नहीं। बात सुनने में थोड़ी अजीब लग रही होगी क्योंकि अपने उच्चाधिकारियों को हम अक्सर विलन की तरह ही देखते आये हैं।
उल्टे सीधे टारगेट देने वाले, हफ्ते में चार चार मीटिंगें बुलाने वाले, मीटिंगों में गलियां सुनाने वाले, ट्रासंफर, प्रमोशन और सैलरी रोकने की धमकियाँ देने वाले, बिना वजह छुट्टियों के दिन बुलाने वाले, बैंक में देर रात तक रुकने के लिए विवश करने वाले विलन।
लेकिन क्या आपने ये जानने की कोशिश की है कि ये ऐसे क्यों हो जाते हैं? जब हम नए नए PO या क्लेरिकल में ज्वाइन करते हैं तो आपस में किसी को देखकर लगता ही नहीं कि सुबह शाम अपने BM, RM आदि इत्यादि को गरियाने वाला ये फलाना बैचमेट आगे जा के उनकी ही तरह आततायी बनेगा।
ऐसा क्या गलत कह दिया रीजनल हेड साहब ने? दादी-नानियाँ तो मरती रहती हैं। हमारे महापुरुषों ने कहा है कि स्वयं से बड़ी हर स्त्री को माँ समान मानना चाहिए। रीजनल हेड ने दादी-नानी समान मान लिया। थोड़ा ज्यादा ही सम्मान दिया है। इस पर भी बवाल?
अब दुनिया में लगभग साढ़े तीन अरब महिलाएं हैं जिनमें से हमसे ज्यादा उम्र वाली कम से कम लगभग एक अरब तो होंगी ही। उन एक अरब में से रोज कई मरती भी होंगी। अगर आप ये कह रहे हैं कि उन सभी तो तो हमें गोद में नहीं खिलाया तो ये आपकी संकीर्ण सोच तो दर्शाता है।
रीजनल हेड साहब भारतीय संविधान में अटूट विश्वास रखते हैं जिसके आर्टिकल 14 में लिखा है कि कानून की नजर में सभी भारतीय बराबर हैं। अब रीजनल हेड तो कानून से भी ऊपर की चीज हैं इसलिए उनके लिए पूरी दुनिया के सभी मनुष्य बराबर हैं।
हफ्ते का पहला शनिवार, शाम को साढ़े सात बजे RO के व्हाट्सप्प ग्रुप पर मैसेज आता है: "कल परम आदरणीय GM सर के आदेशानुसार सभी ब्रांच मैनेजर अपने अपने क्षेत्रों में हाउसिंग लोन का कैंप लगाएंगे।
महायशस्वी GM सर कैम्पों की विजिट भी करेंगे इसलिए प्रत्येक BM कम से कम एक स्टाफ के साथ अपने कैंप पर उपस्थित रहने चाहिए। सोमवार को अतिपरमगुण संपन्न GM सर कल के हाउसिंग लोन कैंप की रिव्यु मीटिंग लेंगे जिसमें नॉन-परफार्मिंग BM को कारण बताओ नोटिस जारी किया जाएगा
और अव्वल ब्रांचों को चरणवन्दनीय GM सर द्वारा सम्मानित किया जाएगा। रिव्यु मीटिंग सोमवार को शाम ठीक साढ़े चार बजे रखी जायेगी इसलिए सभी BM समय पर RO में अपनी हाजिरी देवें।"
दुनिया की सबसे कम जवाबदेही वाली नौकरी कौनसी है? नेता? नौकरशाह? जज? वकील? जी नहीं। इन सब में एकाउंटेबिलिटी जीरो हो सकती है लेकिन इससे भी कम एकाउंटेबिलिटी वाली नौकरी है जिसमें जवाबदेही नेगेटिव में है। अब आप पूछेंगे कि एकाउंटेबिलिटी नेगेटिव कैसे हो सकती है।
भाई आजकल ज्यादातर नौकरियां ऐसी हो गई हैं कि जिनमें आप काम सही करो तब भी गालियां पड़ती हैं, सजा भी मिलती है। नेता जज नौकरशाह कि नौकरियां ऐसी हैं कि काम ना भी करो या गलत काम करो तो भी न कोई सजा है ना कोई पूछने वाला।
लेकिन एक नौकरी ऐसे भी है जिसमें काम गलत आप करते हैं और गालियां किसी और को पड़ती हैं। ये नौकरी है 'पत्तलकार' की। 'पत्तलकार' वो प्रजाति है जो दिखने में पत्रकार जैसी होती है लेकिन काम बिल्कुल उलट। पत्तलकार का काम होता है समाज में गलत सूचना पहुंचाना।
एक बार बैंक के एक बड़े उच्चाधिकारी साहब जो कि HR डिपार्टमेंट में थे रिटायर हो गए। किस्मत से कुछ दिन बाद एक एयरलाइन कंपनी में नौकरी मिल गई। पिछले अनुभव के आधार पर वहां भी उन्हें HR डिपार्टमेंट दिया गया।
डिपार्टमेंट सँभालते ही उनका दिमाग खराब हो गया। "इतना सारा स्टाफ? यहाँ तो हर काम के लिए अलग स्टाफ है। इन लोगों को मैनपावर मैनेजमेंट आता ही नहीं। इसीलिए तो ज्यादातर एयरलाइन घाटे में चल रही हैं।" तुरंत अर्दली को बुलाया।
-"एक हवाईजहाज उड़ाने के लिए कितना स्टाफ चाहिए?"
-"सर, ग्राउंड स्टाफ होता है और फ्लाइट स्टाफ होता है। ग्राउंड पे दो लोग चेक इन के लिए, दो लोग लगेज के लिए, दो लोग बोर्डिंग के लिए, दो लोग ग्राउंड नेविगेशन के लिए, दो एयर नेविगेशन, दो फ्लाइट क्लीनर, दो लोग रिफ्यूलिंग, चार लोग प्लेन मेंटेनेंस और दो लोग स्पेयर में चाहिए।
प्राइवेट और पब्लिक बैंक के काम अलग अलग हैं, वर्किंग कल्चर और कंडीशन अलग हैं, सरकार और जनता का नजरिया अलग है। इस हिसाब से दोनों को एक तराजू में तोलना सही नहीं।
प्राइवेट बैंक मुनाफे के लिए होते हैं। इसलिए इनके फाइनेंसियल आपको अच्छे मिलेंगे।
सरकारी बैंक पब्लिक सर्विस के लिए होते हैं। इसलिए सामाजिक योजनाओं में आपको सरकारी बैंकों का प्रतिनिधित्व ज्यादा मिलेगा।
लेकिन चूंकि पिछले कुछ सालों से एक विशेष वर्ग द्वारा सरकारी बैंकों के बारे में भ्रामक कैंपेन चलाया जा रहा है, इसलिए सरकारी बैंकों के मुनाफे पर जोर दे रहे हैं
ताकि लोगों को बता सकें कि सरकारी बैंक न केवल अपनी सामाजिक जिम्मेदारी पूरी करते हैं (जोकि उनका प्रमुख ऑब्जेक्टिव है) बल्कि सरकार को कमा कर भी दे रहे हैं।
हमारी लड़ाई प्राइवेट बैंकों से नहीं है। हमारी लड़ाई तो सरकारी बैंकों के निजीकरण से है।