भारत में रिकवरी की प्रक्रिया कैसी है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि "Enforcement of contracts" के मामले में भारत कि रैंकिंग 190 देशों में 163 है। "Enforcement of contracts" Ease of doing business के लिए एक बहुत महत्वपूर्ण पैरामीटर है।
कस्टमर्स की अक्सर शिकायत रहती है कि भारत में बैंकों में लोन के लिए या सिंपल अकाउंट खुलवाने के लिए जितने साइन करवाए जाते हैं उतने पूरी दुनिया में कहीं नहीं करवाए जाते। बड़े बिज़नेस लोन का सैंक्शन लेटर करीब 50 पन्नों का होता है।
उसमें हर पेज पर बोर्रोवेर और गारंटर का साइन चाहिए। सैंक्शन लेटर में लोन की सारी टर्म्स एंड कंडीशंस होती हैं। अगर आप सैंक्शन लेटर की टर्म्स एंड कंडीशंस पढ़ेंगे तो ऐसा लगेगा की बैंक आपकी आत्मा को गिरवी रख रहा है।
लेकिन फिर भी आपको DP नोट और DP डिलीवरी नोट लेना होता है क्योंकि 50 पन्नों का सैंक्शन लेटर पर्याप्त नहीं है। DP नोट में borrower ये प्रॉमिस करता है कि बैंक के मांगने पर वो बैंक को पैसा चुकाएगा। लेकिन इतना भी पर्याप्त नहीं।
DP नोट के बाद DP डिलीवरी नोट भी लगेगा जिसमें borrower ये कन्फर्म करता है कि उसने DP नोट साइन किया है। उसके बाद रिवाइवल लेटर होता है जो डॉक्यूमेंट की वैलिडिटी के लिए काम आता है।
यानी ऐसे तो आपको सारे लोन डॉक्यूमेंट लोन बंद होने के भी दशकों बाद तक रखने हैं लेकिन उनकी वैलिडिटी केवल 3 साल की ही है। उसके बाद वो कोर्ट के लिए बेकार हो जाते हैं। इसके अलावा छत्तीस तरह की अंडरटेकिंग होती हैं।
आपका डाटा इनकम टैक्स डिपार्टमेंट के साथ शेयर किया जायेगा उसकी अलग अंडरटेकिंग, क्रेडिट एजेंसियों के साथ शेयर किया जाएगा उसकी अलग अंडरटेकिंग। अगर बैंक के पास प्रॉपर्टी रख रहे हैं तब उसके अलग कागज साइन करने हैं।
मॉर्टगेज एग्रीमेंट एक कस्टमर आपके सामने साइन करेगा और एक घर जाकर पूरे होशो हवास में साइन करके पोस्ट से भेजेगा क्योंकि क्या पता बैंक में आपने कस्टमर से जोर जबरदस्ती करके उसकी जमीन गिरवी रख ली हो।
लेकिन जब लोन NPA होता है और मामला कोर्ट में जाता है तो ये सब कागज भी कम पड़ जाते हैं। यहाँ बहुत से लोग दलीलें दे रहे हैं कि लोन एजेंसियों या बैंकों को लीगल रास्ता अपनाना चाहिए।
इतने सारे कागज देखने के बाद भी कोर्ट को दशकों लग जाते हैं ये साबित करने में कि हाँ डिफाल्टर ने लोन लिया था, नहीं चुकाया और उसे पैसा भरना है। और अगर borrower बीच में लंदन या एंटीगुआ भाग गया तो कोर्ट हाथ खड़े कर लेता है कि भाई हम क्या करें।
अगर खुशकिस्मती से कोर्ट बैंक के favour में फैसला दे देता है जिसे कि डिक्री कहा जाता है तो भी ये पर्याप्त नहीं है। डिक्री के बाद कोर्ट से decree execution order अलग से लेना पड़ेगा। उसके बाद वो आर्डर पुलिस को दिखाना पड़ेगा।
तभी पुलिस (अगर उनका मूड हुआ तो) आपके साथ जब्ती के लिए जायेगी। 1890 में एक एक्ट आया था Revenue Recovery Act, जिसके तहत जिला कलेक्टर कि जिम्मेदारी बनती है कि अगर किसी का किसी पब्लिक ऑफिस की तरफ कोई पैसा बकाया है को उसे कलेक्टर वसूल करवाएगा।
जो लोग होम लोन रिकवरी में काम करते हैं वो जानते हैं कि होम लोन में जब्ती से पहले एक RRC बना के कलेक्टर के पास भेजा जाता है जिसमें कलेक्टर बैंक को ये अनुमति देता है कि वो घर पर कब्ज़ा करने में स्थानीय पुलिस की मदद ले सकते हैं।
लेकिन शायद की कभी कोई RRC आज तक कभी कलेक्टर ऑफिस से साइन होके आई हो पुलिस के सहयोग की तो बात ही छोड़ दीजिये। सब कुछ ठीक हो गया माल या प्रॉपर्टी कि जब्ती भी हो गई तो अब उसकी नीलामी एक अलग मुसीबत है। माल्या की प्रॉपर्टी इतनी कोशिशों के बाद भी कोई खरीदने को तैयार नहीं।
बड़े लोन के लिए आजकल NCLT नमक एक तमाशा होता है। सालों तक मामला घसीटने के बाद NCLT जी ये आदेश सुनाते हैं कि भाई अगर बैंक का 100 रुपया बकाया था तो आप केवल 5 रूपये ही चुका दो। बाकी बैंक का हेअरकट। NCLT, DRT, लोक अदालत और भी जाने कितने कानूनी रस्ते हैं लेकिन सब ढाक के तीन पात।
ये सब लीगल रस्ते है। और ये सब सरकार या कोर्ट फ्री में नहीं करते। NCLT की अलग फीस होती है। कोर्ट में केस करने के लिए अलग से फीस देनी होती है।
लोन डाक्यूमेंट्स के साथ जो स्टम्पिंग फी होती है वो इसी काम के लिए ली जाती है कि borrower और बैंक के बाइक जो भी एग्रीमेंट हुआ है उसका पालन करवाने कि जिम्मेदारी सरकार की है।
इसीलिए इन सब पचड़ों में पड़ने से बेहतर निजी एजेंसियां हार्ड रिकवरी में विश्वास करती हैं क्योंकि लीगल तरीके में में तो जितना पैसा आएगा नहीं उससे ज्यादा तो वकीलों को देना पड़ जाएगा।
अगर रिकवरी के दौरान मारपीट या जनहानि जैसी घटनाओं को रोकना है तो सबसे पहले इस लीगल सिस्टम को सुधारना जरूरी है। और वो संभव है नहीं।
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रोज किसी न किसी बैंक से किसी न किसी उच्चाधिकारी के सनकीपन की खबर आरही है। कोई स्टाफ की सैलरी रोक देने की बात करता है, कोई रात के 12 बजे ब्रांच खुलवा रहा है, कोई बीमा नहीं करने पर स्टाफ का खाता डेबिट करने की धमकी दे रहा है,
एक भाईसाहब चाहते हैं कि अगर उनको व्हाट्सप्प पर रिपोर्ट नहीं मिली तो ब्रांच मैनेजर उनके ऑफिसर आकर उनके श्रीचरणों में ब्रांच की डेली रिपोर्ट प्रस्तुत करे। एक अन्य महाशय का मानना है कि दादी-नानी तो मरती रहती हैं, ब्रांच के टारगेट ज्यादा जरूरी हैं।
एक साहब ने बताया कि माँ मर गई तो कौनसी बड़ी बात हो गई, बूढी ही तो थी, छुट्टी नहीं मिलेगी, जाओ ब्रांच चलाओ और बीमा बेचो। एक स्टाफ छुट्टी पे थी और ट्रेन से अपने निजी काम से कहीं जा रही थी तो उन्हें जबरदस्ती DGM की मीटिंग ज्वाइन करवाई गई।
ये थ्रेड बहुत कंट्रोवर्सिअल होने वाला है। जिसको भी आपत्ति है कृपया कमेंट या डीएम में बता दें। भगवान् के लिए FIR न करें।
भारत के संविधान के अनुच्छेद 51A का भाग a कहता है कि प्रत्येक भारतीय नागरिक को संविधान का पालन करना चाहिए
और भारत के ध्वज और राष्ट्रगान का सम्मान करना चाहिए। और इसके लिए अलग से दो कानून भी बनाये गए हैं 1. The Emblems and Names (Prevention of Improper Use) Act, 1950 और 2. Prevention of Insults to National Honour Act, 1971.
इन दोनों में से राष्ट्र ध्वज से जुड़े नियमों को मिला कर 2002 में Flag code of India 2002 बनाया गया। इस कोड में ध्वज की लम्बाई, चौड़ाई, रंग, अनुपात, सिलाई का तरीका, झंडे के कपडे का प्रकार, बुनाई में धागों की संख्या, झंडे के कपडे का घनत्व,
टॉप ऑफिशियल यानी उच्चाधिकारी एक ऐसा बेचारा प्राणी है जिसकी बेचारगी का किसी को अंदाजा तक नहीं। बात सुनने में थोड़ी अजीब लग रही होगी क्योंकि अपने उच्चाधिकारियों को हम अक्सर विलन की तरह ही देखते आये हैं।
उल्टे सीधे टारगेट देने वाले, हफ्ते में चार चार मीटिंगें बुलाने वाले, मीटिंगों में गलियां सुनाने वाले, ट्रासंफर, प्रमोशन और सैलरी रोकने की धमकियाँ देने वाले, बिना वजह छुट्टियों के दिन बुलाने वाले, बैंक में देर रात तक रुकने के लिए विवश करने वाले विलन।
लेकिन क्या आपने ये जानने की कोशिश की है कि ये ऐसे क्यों हो जाते हैं? जब हम नए नए PO या क्लेरिकल में ज्वाइन करते हैं तो आपस में किसी को देखकर लगता ही नहीं कि सुबह शाम अपने BM, RM आदि इत्यादि को गरियाने वाला ये फलाना बैचमेट आगे जा के उनकी ही तरह आततायी बनेगा।
ऐसा क्या गलत कह दिया रीजनल हेड साहब ने? दादी-नानियाँ तो मरती रहती हैं। हमारे महापुरुषों ने कहा है कि स्वयं से बड़ी हर स्त्री को माँ समान मानना चाहिए। रीजनल हेड ने दादी-नानी समान मान लिया। थोड़ा ज्यादा ही सम्मान दिया है। इस पर भी बवाल?
अब दुनिया में लगभग साढ़े तीन अरब महिलाएं हैं जिनमें से हमसे ज्यादा उम्र वाली कम से कम लगभग एक अरब तो होंगी ही। उन एक अरब में से रोज कई मरती भी होंगी। अगर आप ये कह रहे हैं कि उन सभी तो तो हमें गोद में नहीं खिलाया तो ये आपकी संकीर्ण सोच तो दर्शाता है।
रीजनल हेड साहब भारतीय संविधान में अटूट विश्वास रखते हैं जिसके आर्टिकल 14 में लिखा है कि कानून की नजर में सभी भारतीय बराबर हैं। अब रीजनल हेड तो कानून से भी ऊपर की चीज हैं इसलिए उनके लिए पूरी दुनिया के सभी मनुष्य बराबर हैं।
हफ्ते का पहला शनिवार, शाम को साढ़े सात बजे RO के व्हाट्सप्प ग्रुप पर मैसेज आता है: "कल परम आदरणीय GM सर के आदेशानुसार सभी ब्रांच मैनेजर अपने अपने क्षेत्रों में हाउसिंग लोन का कैंप लगाएंगे।
महायशस्वी GM सर कैम्पों की विजिट भी करेंगे इसलिए प्रत्येक BM कम से कम एक स्टाफ के साथ अपने कैंप पर उपस्थित रहने चाहिए। सोमवार को अतिपरमगुण संपन्न GM सर कल के हाउसिंग लोन कैंप की रिव्यु मीटिंग लेंगे जिसमें नॉन-परफार्मिंग BM को कारण बताओ नोटिस जारी किया जाएगा
और अव्वल ब्रांचों को चरणवन्दनीय GM सर द्वारा सम्मानित किया जाएगा। रिव्यु मीटिंग सोमवार को शाम ठीक साढ़े चार बजे रखी जायेगी इसलिए सभी BM समय पर RO में अपनी हाजिरी देवें।"
दुनिया की सबसे कम जवाबदेही वाली नौकरी कौनसी है? नेता? नौकरशाह? जज? वकील? जी नहीं। इन सब में एकाउंटेबिलिटी जीरो हो सकती है लेकिन इससे भी कम एकाउंटेबिलिटी वाली नौकरी है जिसमें जवाबदेही नेगेटिव में है। अब आप पूछेंगे कि एकाउंटेबिलिटी नेगेटिव कैसे हो सकती है।
भाई आजकल ज्यादातर नौकरियां ऐसी हो गई हैं कि जिनमें आप काम सही करो तब भी गालियां पड़ती हैं, सजा भी मिलती है। नेता जज नौकरशाह कि नौकरियां ऐसी हैं कि काम ना भी करो या गलत काम करो तो भी न कोई सजा है ना कोई पूछने वाला।
लेकिन एक नौकरी ऐसे भी है जिसमें काम गलत आप करते हैं और गालियां किसी और को पड़ती हैं। ये नौकरी है 'पत्तलकार' की। 'पत्तलकार' वो प्रजाति है जो दिखने में पत्रकार जैसी होती है लेकिन काम बिल्कुल उलट। पत्तलकार का काम होता है समाज में गलत सूचना पहुंचाना।