थ्रेड: #Hierarchy
समाजशास्त्र में एक सिद्धांत है। "Power is zero sum game" का। मतलब जैसे ऊर्जा उत्पन्न या नष्ट नहीं की जा सकती केवल एक स्वरुप से दूसरे स्वरुप में परिवर्तित की जा सकती है वैसे ही शक्ति भी केवल एक व्यक्ति से दूसरी व्यक्ति को ट्रांसफर की जा सकती है।
अगर किसी व्यक्ति कि शक्ति बढ़ रही है बदले में किसी न किसी कि शक्ति कम भी हो रही है। मानव समाज विकास के प्रारंभिक चरण को "प्रिमिटिव कम्युनिज्म" कहा जाता है जहाँ सबके पास सामान शक्ति हुआ करती थी।
धीरे धीरे शक्ति का असंतुलन बढ़ता गया और सत्ता कुछ लोगों के हाथ में केंद्रित होकर रह गई। धीरे धीरे एक पूरी शक्ति की एक पूरी हायरार्की बन गई। सबसे ऊपर राजा, फिर सामंत, फिर राज कर्मचारी, फिर व्यापारी, फिर आम प्रजा।
ऊपर बैठने वाला व्यक्ति अपने से नीचे वाले का शोषण करता है और वो भी अपना अधिकार मान कर। ये व्यवस्था किसी न किसी रूप में हर समाज में मौजूद है।
इस हायरार्की में ऊपर बैठे लोगों का ये विश्वास है कि ये सत्ता उन्हें आम लोगों ने उनके गुणों के आधार पर उनको दी है ताकि वे लोग समाज का विकास कर सकें। लोकतंत्र के पीछे की मूल धारणा भी यही है।
अब समाज का विकास कितना हुआ कितना नहीं ये तो विवाद का विषय है लेकिन सत्ताधारियों का खूब विकास हुआ है। लेकिन चूंकि हम बैंकर हैं तो बैंक की बात करेंगे। समाज के बाकी वर्गों की तरह बैंकों में भी एक वेल-डिफाइंड हायरार्की है।
और बाकी हाईरारकियों की तरह यहाँ भी ऊपर वाले नीचे वालों का शोषण करते हैं, और वो भी अपना पूरा अधिकार समझ कर। हायरार्की दिखाने का कोई भी मौका ये लोग नहीं छोड़ते हैं। आपका बॉस आपके साथ मजाक कर सकता है लेकिन वही मजाक आप अपने बॉस के साथ नहीं कर सकते।
न सिर्फ कार्य क्षेत्र में बल्कि निजी क्षेत्र में भी ये हायरार्की मेन्टेन रखी जाती है। इसका एक उदाहरण है बीमा का टारगेट पूरा करने के उपहार स्वरुप "DGM के साथ डिनर"। वो डिनर टेबल पे भी आपका DGM बने रहना चाहता है। आप शाम का खाना भी सर-सर करते हुए खाएंगे।
अभी हाल ही में इस हायरार्की का एक बेहतरीन नमूना हमें @bankofbaroda ने दिखाया। राजस्थान के झुंझुनू क्षेत्र के एक RM साहब अपनी हायरार्की के मुताबिक अपने से नीचे वालों का शोषण कर रहे थे और शोषण करने में सारी सीमायें पर कर गए।
बेचारे नीचे वाले कुछ दिन तो झेले लेकिन जब पानी सर से ऊपर निकल गया तो 27 बहादुर लोगों ने अपनी नौकरी दांव पर लगाते हुए संगठित होकर इस शोषण का विरोध किया। लेकिन हायरार्की में ऊपर बैठे लोगों के हिसाब से उस एक RM की वैल्यू 27 कर्मचारियों से ज्यादा थी।
नतीजन RM पर कोई कार्यवाही नहीं की गई। उलटे RM के खिलाफ अपना गुस्सा जाहिर कर रहे आम बैंकर्स को सोशल मीडिया पॉलिसी का पाठ पढ़ाने लगे। बाद में विरोध मुखर हुआ तो बैंक ने बताया कि मामले को "amicably resolve" कर लिया गया है।
लेकिन झूठ जल्द ही पकड़ा गया क्योंकि फिर @bankofbaroda के 1200 कर्मचारियों ने एक साथ उस एक RM के खिलाफ प्रदर्शन किया। लेकिन ताज्जुब की बात ये रही कि @bankofbaroda के लिए उन 1200 कर्मचारियों से ज्यादा वैल्यू उस एक RM की थी।
मतलब हायरार्की इतनी ज्यादा रिजिड हो गई है कि एक RM 1200 कर्मचारियों पर भारी पड़ रहा है। ऐसी रिजिड हायरार्की अक्सर तानाशाही में देखने को मिलती है। एक हिटलर 61 लाख यहूदियों पर भारी पड़ गया था। वैसे हायरार्की जितनी रिजिड होती है उतनी ही जल्दी उसका अंत भी होता है।
हिटलर को भी अंत में आत्महत्या करनी पड़ी थी। ये RM भी आज नहीं तो कल रिटायर होगा। और ऐसी लोगों को इज्जतदार विदाई तो नसीब नहीं ही होती। वैसे इस RM के जब अंत होगा तब होगा, लेकिन सबसे पहले उन 27 वीरों को और फिर 1200 लोगों को सलाम जिन्होंने शक्ति का संतुलन बनाने की कोशिश की।
और लानत @bankofbaroda के प्रबंधन को जिसने एक बद्तमीज अत्याचारी RM पर कार्यवाही करने से ज्यादा अपने 1200 कर्मचारियों की अनदेखी करना बेहतर समझा। शायद उनको अहसास नहीं लेकिन शक्ति का संतुलन बिगड़ चुका है।
एक RM का ट्रांसफर शायद इतना मुश्किल ना होता लेकिन इन 1200 कर्मचारियों का विश्वास जीतना बहुत मुश्किल होगा।इस घटना ने बाकी के बैंकर्स को भी ये जता दिया है कि हायरार्की के सामने उनकी कोई औकात नहीं। लेकिन आंदोलन की यही खासियत होती है कि आज 1200 आये हैं कल 12 हजार आएंगे और फिर 12 लाख।
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बैंकों में दो तरह के लोग मिलते हैं। एक वो जो बड़ी सोच लेकर चलते हैं। उनको टारगेट से ज्यादा मतलब नहीं होता। हर कस्टमर को सर्विस देते हैं। अकाउंट खोलने के लिए लॉगिन डे का इंतज़ार नहीं करते। जिस दिन फॉर्म आता है अकाउंट खोल देते हैं। जो काम आता है उसे करने में विश्वास रखते हैं।
उनकी टेबल पे आपको "ये मेरा काम नहीं है, फलाने से बात करो", "टाइम नहीं है, कल आना" टाइप की चीजें सुनने को नहीं मिलती। कई बार दो कदम आगे जाकर कस्टमर और साथी स्टाफ की मदद करते हैं। इनके लिए कस्टमर का सेटिस्फैक्शन और बैंक की इमेज सर्वोपरि होती है।
फिर दूसरे तरीके के लोग आते हैं। हर बात में नियम झाड़ते हैं। टारगेट पूरा करने के लिए घटिया से घटिया लोन भी कर देंगे, बद्तमीज कस्टमर के पैरों में गिरकर भी इन्शुरन्स के लिए गिड़गिड़ाएंगे। लेकिन जैसे ही टारगेट पूरा हुआ उस दिन अच्छे से अच्छे कस्टमर को भी घुसने नहीं देंगे।
रोज किसी न किसी बैंक से किसी न किसी उच्चाधिकारी के सनकीपन की खबर आरही है। कोई स्टाफ की सैलरी रोक देने की बात करता है, कोई रात के 12 बजे ब्रांच खुलवा रहा है, कोई बीमा नहीं करने पर स्टाफ का खाता डेबिट करने की धमकी दे रहा है,
एक भाईसाहब चाहते हैं कि अगर उनको व्हाट्सप्प पर रिपोर्ट नहीं मिली तो ब्रांच मैनेजर उनके ऑफिसर आकर उनके श्रीचरणों में ब्रांच की डेली रिपोर्ट प्रस्तुत करे। एक अन्य महाशय का मानना है कि दादी-नानी तो मरती रहती हैं, ब्रांच के टारगेट ज्यादा जरूरी हैं।
एक साहब ने बताया कि माँ मर गई तो कौनसी बड़ी बात हो गई, बूढी ही तो थी, छुट्टी नहीं मिलेगी, जाओ ब्रांच चलाओ और बीमा बेचो। एक स्टाफ छुट्टी पे थी और ट्रेन से अपने निजी काम से कहीं जा रही थी तो उन्हें जबरदस्ती DGM की मीटिंग ज्वाइन करवाई गई।
भारत में रिकवरी की प्रक्रिया कैसी है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि "Enforcement of contracts" के मामले में भारत कि रैंकिंग 190 देशों में 163 है। "Enforcement of contracts" Ease of doing business के लिए एक बहुत महत्वपूर्ण पैरामीटर है।
कस्टमर्स की अक्सर शिकायत रहती है कि भारत में बैंकों में लोन के लिए या सिंपल अकाउंट खुलवाने के लिए जितने साइन करवाए जाते हैं उतने पूरी दुनिया में कहीं नहीं करवाए जाते। बड़े बिज़नेस लोन का सैंक्शन लेटर करीब 50 पन्नों का होता है।
उसमें हर पेज पर बोर्रोवेर और गारंटर का साइन चाहिए। सैंक्शन लेटर में लोन की सारी टर्म्स एंड कंडीशंस होती हैं। अगर आप सैंक्शन लेटर की टर्म्स एंड कंडीशंस पढ़ेंगे तो ऐसा लगेगा की बैंक आपकी आत्मा को गिरवी रख रहा है।
ये थ्रेड बहुत कंट्रोवर्सिअल होने वाला है। जिसको भी आपत्ति है कृपया कमेंट या डीएम में बता दें। भगवान् के लिए FIR न करें।
भारत के संविधान के अनुच्छेद 51A का भाग a कहता है कि प्रत्येक भारतीय नागरिक को संविधान का पालन करना चाहिए
और भारत के ध्वज और राष्ट्रगान का सम्मान करना चाहिए। और इसके लिए अलग से दो कानून भी बनाये गए हैं 1. The Emblems and Names (Prevention of Improper Use) Act, 1950 और 2. Prevention of Insults to National Honour Act, 1971.
इन दोनों में से राष्ट्र ध्वज से जुड़े नियमों को मिला कर 2002 में Flag code of India 2002 बनाया गया। इस कोड में ध्वज की लम्बाई, चौड़ाई, रंग, अनुपात, सिलाई का तरीका, झंडे के कपडे का प्रकार, बुनाई में धागों की संख्या, झंडे के कपडे का घनत्व,
टॉप ऑफिशियल यानी उच्चाधिकारी एक ऐसा बेचारा प्राणी है जिसकी बेचारगी का किसी को अंदाजा तक नहीं। बात सुनने में थोड़ी अजीब लग रही होगी क्योंकि अपने उच्चाधिकारियों को हम अक्सर विलन की तरह ही देखते आये हैं।
उल्टे सीधे टारगेट देने वाले, हफ्ते में चार चार मीटिंगें बुलाने वाले, मीटिंगों में गलियां सुनाने वाले, ट्रासंफर, प्रमोशन और सैलरी रोकने की धमकियाँ देने वाले, बिना वजह छुट्टियों के दिन बुलाने वाले, बैंक में देर रात तक रुकने के लिए विवश करने वाले विलन।
लेकिन क्या आपने ये जानने की कोशिश की है कि ये ऐसे क्यों हो जाते हैं? जब हम नए नए PO या क्लेरिकल में ज्वाइन करते हैं तो आपस में किसी को देखकर लगता ही नहीं कि सुबह शाम अपने BM, RM आदि इत्यादि को गरियाने वाला ये फलाना बैचमेट आगे जा के उनकी ही तरह आततायी बनेगा।
ऐसा क्या गलत कह दिया रीजनल हेड साहब ने? दादी-नानियाँ तो मरती रहती हैं। हमारे महापुरुषों ने कहा है कि स्वयं से बड़ी हर स्त्री को माँ समान मानना चाहिए। रीजनल हेड ने दादी-नानी समान मान लिया। थोड़ा ज्यादा ही सम्मान दिया है। इस पर भी बवाल?
अब दुनिया में लगभग साढ़े तीन अरब महिलाएं हैं जिनमें से हमसे ज्यादा उम्र वाली कम से कम लगभग एक अरब तो होंगी ही। उन एक अरब में से रोज कई मरती भी होंगी। अगर आप ये कह रहे हैं कि उन सभी तो तो हमें गोद में नहीं खिलाया तो ये आपकी संकीर्ण सोच तो दर्शाता है।
रीजनल हेड साहब भारतीय संविधान में अटूट विश्वास रखते हैं जिसके आर्टिकल 14 में लिखा है कि कानून की नजर में सभी भारतीय बराबर हैं। अब रीजनल हेड तो कानून से भी ऊपर की चीज हैं इसलिए उनके लिए पूरी दुनिया के सभी मनुष्य बराबर हैं।