#बुद्ध ओर #नीली_फंगस
बुद्ध धर्म 2 प्रकार का है; पहला भारत के बाहर और दूसरा भारत के अंदर।
अगर आपको भारत के बाहर के बुद्ध धर्म का उदय समझना है तो आपको इस्कॉन को समझना होगा। इस्कॉन श्रीकृष्ण भक्ति के प्रचार की संस्था है।
इस्कॉन के सदस्य सिर्फ श्रीकृष्ण को ही ईश्वर मानते हैं और वे किसी अन्य हिन्दू देवी देवता की पूजा नहीं करते। वे शिव, दुर्गा, गणेश, काली, हनुमान को नहीं पूजते। इसका अर्थ ये नहीं निकलना चाहिए कि वे बाकी हिन्दू देवी देवताओं के विरोध में हैं।
प्राथमिक तौर पर उनके इष्टदेव श्रीकृष्ण ही हैं।
इस्कॉन 5 दशकों पहले बना और इसके दुनियाँ में सैकड़ों मंदिर और हजारों यूरोपीय ईसाई अब श्रीकृष्ण भक्त, यानी हिन्दू हैं।
यही इस्कॉन अगर 2000 साल बना होता तो शायद आज सारे यूरोपीय लोग हिन्दू यानी श्रीकृष्ण भक्त होते जो सिर्फ श्रीकृष्ण को ही मानते किसी दूसरे हिन्दू देवी देवता नहीं और सिर्फ श्रीकृष्ण को मानने वाली आध्यात्मिक विचारधारा को शायद आज कृष्णाइज़्म कहते।
अशोक ने बुद्ध धर्म का प्रचार इस्कॉन की तर्ज़ पर किया। बुद्ध को अपना इष्टदेव माना इसका अर्थ ये नहीं की अशोक बाकी हिन्दू देवी देवताओं के खिलाफ था। इस प्रचार के बाद कई हिन्दू देशों श्रीलंका, बर्मा, थाईलैंड, कंबोडिया, Japan, Tibet ने बुद्ध को अपना इष्टदेव मान लिया
और सिर्फ बुद्ध को मानने की प्रैक्टिस ही बुद्ध धर्म के रूप में अब हमारे सामने है। बुद्ध ने कोई बुद्ध धर्म शुरू नहीं किया। बुद्ध, खुद बौद्ध नहीं थे। बुद्ध धर्म की सारी किताबें बुद्ध के निर्वाण के बाद लिखी गईं।
लुंबिनी में 563 ईसा पूर्व इक्ष्वाकु वंशीय क्षत्रिय शाक्य कुल के राजा शुद्धोधन के घर में हुआ था। शुद्धोधन श्रीराम पुत्र कुश के वंशज थे उनकी माँ का नाम महामाया था जो कोलीय वंश से थीं, जिनका इनके जन्म के सात दिन बाद निधन हुआ,
उनका पालन महारानी की छोटी सगी बहन महाप्रजापती गौतमी ने किया।
सिद्धार्थ विवाहोपरांत एक मात्र प्रथम नवजात शिशु राहुल और धर्मपत्नी यशोधरा को त्यागकर संसार को जरा, मरण, दुखों से मुक्ति दिलाने के मार्ग एवं सत्य दिव्य ज्ञान की खोज में रात्रि में राजपाठ का मोह त्यागकर वन की ओर
चले गए। वर्षों की कठोर साधना के पश्चात बोध गया (बिहार) में बोधि वृक्ष के नीचे उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई और वे सिद्धार्थ गौतम से भगवान बुद्ध बन गए।
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बौद्ध का जन्म हिन्दू क्षत्रिय परिवार में हुआ और बाद में ब्राह्मण बने।
उन्होंने ब्राह्मणों की तरह भिक्षा ले कर जीवन यापन किया और अहिंसा की शिक्षाएं दी।
बुद्ध कोई नाम नहीं है, एक पदवी है जिसका अर्थ है ज्ञान से परिपूर्ण। बुद्ध से पहले भी 27 बुद्ध हुए हैं और वे सभी बुद्ध ब्राह्मण या क्षत्रिय थे।
अगर आप इंडोनेशिया की सैकड़ों साल पुरानी बुद्ध की मूर्तियां देखें तो पाएंगे कि बुद्ध हर मूर्ति में ब्राह्मणों की तरह जनेऊ पहने हैं और माथे पर तिलक लगाएं हैं। इसे आप google भी कर सकतें हैं। ये सबूत है कि बुद्ध आजीवन सनातनी रहे।
अब आतें हैं दूसरे बिंदु, भारत के अंदर के बुद्ध धर्म पर। भारत मे बुद्ध को आज से 50 साल पहले तक महात्मा बुद्ध कहा जाता था क्योंकि हिंदुओं के लिए वे एक संत या महात्मा जैसे थे।
आज भी हम उन्हे महात्मा बुद्ध ही कहते हैं और उनकी मूर्ति ज़्यादातर हिंदुओं के घर में भगवान की तरह ही पूजनीय है और पूजी जाती है। मेरे घर में भी महात्मा बुद्ध की मूर्ति सभी देवता के साथ लगी हुई है।
भारत मे इसीलये कभी बुद्ध धर्म के नाम जैसी चीज नहीं रही। बुद्ध धर्म भारत मे राजनैतिक आंदोलनों ने शुरू किया जैसे कि भीम/मीम का आडम्बर भरा दलित आंदोलन।
भारत के अंदर तथाकथित बौद्ध, वास्तव में बौद्ध नहीं हैं।
इसका सबूत है कि जब-जब बुद्ध का अपमान हुआ तब-तब इन्होंने रत्ती भर भी विरोध भी नहीं किया चाहे शांतिदुतो द्वारा लखनऊ में बुद्ध की मूर्तियाँ तोड़ी जाए या बामियान में 2000 साल पुरानी बुद्ध की मूर्ति तोड़ी जाय या इंडियन मुजाहिदीन द्वारा बोध गया में हमला हो।
बुद्ध ने शाकाहार पर बल दिया, पर भारत के बौद्ध विशुध्द मांसाहारी हैं। ये तथाकथित बौद्ध एक ऐसी विचारधारा के लोग हैं जो बुद्ध धर्म को एक छद्मावरण के तौर इस्तेमाल कर रहे हैं ताकि हिन्दू धर्म पर हमला करतें रहें।
अब ये आप पार्टी के विधायक सहित सारी नीली फंगस , बुद्ध के बहाने हिन्दू धर्म पर हमला करते है। आज वह बेनकाब है,
ये छद्म शांतिदूतो या क्रिस्चनिकामरेड होते है इनका एक उद्देश्य है पहले हिन्दू धर्म से दूर करो फिर इन्हें धर्म विहीन कर आस्था के मार्ग से भटकाते हुए शरीयत के तले या बापिस्ता के मार्ग पर लाना
बुद्ध पूरी उम्र भगवा कपड़े पहने रहे बौद्ध अनुयायी आज भी भगवा गमछा डालते है फिर ये नीला रंग कहा से आया..
नीली फंगस से पूछो की क्या पत्थर का धम्म चक्र नीले रंग में था क्या
अरे झंडा बनाने बाले ने चक्र काले रंग का बनाया था पर चुकी काला रंग अशुभ मानते है इसलिए चक्र का रंग नीला किया गया था..
ओर इन गपोड़ों को लगता है बौद्ध धर्मका नीले से कोई रिश्ता है.
|| ॐ बुद्धाय नमः ||
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रामायण धारावाहिक की शुटिंग के समय निर्देशक रामानंद सागर के लिये सबसे मुश्किल काम था, काकभुशंडी और शिशु राम के दृश्य फिल्माना। दोनो ही निर्देशक के आदेश का तो पालन करने से रहे।
यूनिट के सौ से अधिक सदस्यो और स्टूडियो के लोग कौए को पकड़ने में घंटों लगे रहे।
पूरे दिन की कड़ी मेहनत के बाद वे चार कौओं को जाल में फँसाने में सफल हो गए। चारों को चेन से बाँध दिया गया, ताकि वे अगले दिन की शूट से पहले रात में उड़ न जाएँ। सुबह तक केवल एक ही बचा था और वह भी अल्युमीनियम की चेन को अपनी पैनी चोंच से काटकर उड़ जाने के लिए संघर्ष कर रहा था।
अगले दिन शॉट तैयार था। कमरे के बीच शिशु श्रीराम और उनके पास ही चेन से बँधा कौआ था। लाइट्स ऑन हो गई थीं। रामानंद सागर शांति से प्रार्थना कर रहे थे, जबकि कौआ छूटने के लिए हो-हल्ला कर रहा था।
महाभारत युद्ध समाप्त हो चुका था. युद्धभूमि में यत्र-तत्र योद्धाओं के फटे वस्त्र, मुकुट, टूटे शस्त्र, टूटे रथों के चक्के, छज्जे आदि बिखरे हुए थे और वायुमण्डल में पसरी हुई थी घोर उदासी .... !
गिद्ध , कुत्ते , सियारों की उदास और डरावनी आवाजों के बीच उस निर्जन हो चुकी उस भूमि में द्वापर का सबसे महान योद्धा "देवव्रत" (भीष्म_पितामह) शरशय्या पर पड़ा सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा कर रहा था -- अकेला .... !
तभी उनके कानों में एक परिचित ध्वनि शहद घोलती हुई पहुँची , "प्रणाम पितामह" .... !!
भीष्म के सूख चुके अधरों पर एक मरी हुई मुस्कुराहट तैर उठी , बोले , " आओ देवकीनंदन .... ! स्वागत है तुम्हारा .... !!
मैं बहुत देर से तुम्हारा ही स्मरण कर रहा था" .... !!
प्रथम - अपना फल स्वयं दे देते हैं... जैसे - आम, अमरुद, केला इत्यादि ।
द्वितीय - अपना फल छिपाकर रखते हैं... जैसे - आलू, अदरक, प्याज इत्यादि ।
जो फल अपने आप दे देते हैं, उन वृक्षों को सभी खाद-पानी देकर सुरक्षित रखते हैं, और ऐसे वृक्ष फिर से फल देने के लिए तैयार हो जाते हैं ।
किन्तु जो अपना फल छिपाकर रखते है, वे जड़ सहित खोद लिए जाते हैं, उनका वजूद ही खत्म हो जाता हैं।
ठीक इसी प्रकार...
जो व्यक्ति अपनी विद्या, धन, शक्ति स्वयं ही समाज सेवा में समाज के उत्थान में लगा देते हैं, उनका सभी ध्यान रखते हैं और वे मान-सम्मान पाते है।
वही दूसरी ओर...
बेहद चर्चित शीना बोरा हत्याकांड आप सबको याद ही होगा.
लेकिन, अगर अब दिमाग से वो थोड़ा उतर चुका है तो आपको एक बार जल्दी से रिफ्रेश करवा देता हूँ.
शीना बोरा... इंद्राणी मुखर्जी की बेटी थी जो उसके पहले पति से थी.
और, मीडिया में आई कहानी के अनुसार इंद्राणी मुखर्जी के पहले पति की बेटी शीना बोरा का अवैध संबंध उसके अंतिम पति के बेटे से थे.
और, इसमें शायद संपत्ति विवाद का भी कुछ एंगल था..
जिस कारण कहा जाता है कि... उसकी माँ इंद्राणी मुखर्जी ने अपनी ही सगी बेटी को मरवा दिया था.
और, हाँ... मैडम इंद्राणी मुखर्जी को शायद 7-8 पति थे.
मतलब कि हमलोग जैसे जूते बदलते हैं साल-दो साल में..
वैसे ही मैडम पति बदल लेती थी उससे बेहतर मिल जाने के बाद.
“अशोक वाटिका" में *जिस समय रावण क्रोध में भरकर, तलवार लेकर, सीता माँ को मारने के लिए दौड़ पड़ा*
तब हनुमान जी को लगा कि इसकी तलवार छीन कर, इसका सिर काट लेना चाहिये!
किन्तु, अगले ही क्षण, उन्होंने देखा
*"मंदोदरी" ने रावण का हाथ पकड़ लिया !*
यह देखकर वे गदगद हो गये! वे सोचने लगे, यदि मैं आगे बढ़ता तो मुझे भ्रम हो जाता कि
*यदि मैं न होता, तो सीता जी को कौन बचाता?*
बहुधा हमको ऐसा ही भ्रम हो जाता है, *मैं न होता तो क्या होता* ?
परन्तु ये क्या हुआ?
सीताजी को बचाने का कार्य प्रभु ने रावण की पत्नी को ही सौंप दिया! तब हनुमान जी समझ गये,
*कि प्रभु जिससे जो कार्य लेना चाहते हैं, वह उसी से लेते हैं!*
आगे चलकर जब "त्रिजटा" ने कहा कि "लंका में बंदर आया हुआ है, और वह लंका जलायेगा!"