थ्रेड: #परफॉरमेंस
मेरी पिछली कंपनी में एक GM साहब थे। बहुत हाई परफ़ॉर्मर। मतलब जिस माइन के लिए कंपनी ने पांच साल पहले बोल दिया था कि अब इसमें मिट्टी के अलावा कुछ नहीं बचा उसमें से भी पांच साल से प्रोडक्शन देकर टॉप पे रखा हुआ था। 48 की उम्र में GM बन गए थे।
ना खाने का होश, ना पहनने का। फैमिली कहाँ पड़ी है कोई आईडिया नहीं। मतलब, GM साहब को आईडिया होगा लेकिन हमको आईडिया नहीं था क्योंकि हमने तो उन्हें कभी घर जाते देखा नहीं। छुट्टी वगैरह कुछ नहीं। ना खुद लेते थे ना स्टाफ को देते थे। स्टाफ की नाक में दम किया हुआ था।
बिना गालियों के तो बात ही नहीं करते थे। खौफ का दूसरा नाम। कंजूस इतने कि क्लब नाईट में भी खाने में केवल पूरी और परवल की सब्जी बनवाते थे। मतलब पूरी तरफ से कंपनी को समर्पित।
अब सामान्यतया ये होता है कि अगर कोई 50 से कम की उम्र में GM बन जाए तो लोग उनके चेयरमैन बनने के कयास लगाने लगते हैं। शायद GM साहब को भी उम्मीद रही होगी। तभी तो भरी धूप में प्लास्टिक की टोपी लगाए डोज़र चलवा रहे थे।
आस पास बाकी का स्टाफ खड़ा तारीफ कर रहा था कि देखो कितने मेहनती हैं GM साहब। लेकिन हाय री किस्मत 8 साल से GM ही थे। हर बार इंटरव्यू देकर आते, लेकिन कभी डायरेक्टर नहीं बन पाते। हमको बहुत आश्चर्य होता। एक दिन किस्मत से AGM HR के घर पर बोतल खोल के बैठे थे।
बातों बातों में GM साहब का किस्सा चल निकला।
उत्सुकतावश हमने पूछा कि ये राय साहब (बदला हुआ नाम) का प्रमोशन क्यों नहीं होता?
AGM सर ने मजाक में कहा कि अरे वो टकले हैं ना इसलिए।
हमने पूछा -"मतलब?"
AGM: अरे कभी देखा इनको ठीक से? ना कपडे ढंग के पहनते हैं, न कभी बाल बनाते हैं।
मुंह में गुटखा और हाथ में सिगरेट। बात करते हैं तो ऐसा लगता है कोई सड़क छाप गुंडा बात कर रहा हो। ऐसे बनेंगे डायरेक्टर?
मैं: अरे लेकिन परफॉरमेंस तो दे ही रहे हैं।
AGM: तभी तो सबसे मुश्किल माइन का GM बना रखा है। कोई और होता तो कब की माइन बंद हो गई होती।
कंपनी को पता है कि किससे क्या काम लेना है।
मैं: और परफॉरमेंस?
AGM : एक लेवल से ऊपर कंपनी को परफॉरमेंस नहीं चाहिए होती। डायरेक्टर का काम परफॉरमेंस देना नहीं होता। डायरेक्टर कंपनी को रिप्रेजेंट करता है।
नेताओं, सरकारी अधिकारियों, बड़े उद्योगपतियों से मिलता है। बड़े कॉन्क्लेव और सेमिनार में कंपनी की तरफ से भाषण देता है। जो आदमी कभी एंटिक्विटी से आगे नहीं बढ़ा उसको जॉनी वॉकर पिला के क्या फायदा?
मैं: तभी भार्गव सर (बदला हुआ नाम) को एक बार में ही प्रमोशन मिल गया।
AGM : जबकि भार्गव सर के टाइम में माइंस घाटे में चल रही थी। प्रमोशन के लिए ज्यादा मेहनत करना बेवकूफी है। मुर्गी और अंडे वाले कहानी सुनी है?
मैं: हाँ, वो सोने का अंडा देने वाली मुर्गी।
AGM : अबे नहीं यार। एक बार एक मुर्गी थी।
उसको बहुत खुजली थी कि मालिक को खुश करना है, उसकी नज़रों में ऊँचा उठना है। एक दिन बहुत कोशिश करके मुर्गी ने बहुत बड़ा अंडा दिया। मुर्गी को उम्मीद थी कि ये अंडा देख के मालिक उसे पक्का प्रमोशन दे देगा। लेकिन मालिक आया, अंडा उठाया और लेकर चला गया।
प्रमोशन तो हुआ नहीं ऊपर से पिछवाड़े का दर्द जिंदगी भर नहीं गया।
बाद में हमने वो कंपनी छोड़ दी। कुछ साल बात पता चला की वो माइंस बंद होने के बाद GM साहब वैसे ही एक दूसरी घटिया माइन पकड़ा दी गई। घटिया खदानों से माल निकलवाते निकलवाते एक दिन रिटायर हो गए।
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थ्रेड: #Hierarchy
समाजशास्त्र में एक सिद्धांत है। "Power is zero sum game" का। मतलब जैसे ऊर्जा उत्पन्न या नष्ट नहीं की जा सकती केवल एक स्वरुप से दूसरे स्वरुप में परिवर्तित की जा सकती है वैसे ही शक्ति भी केवल एक व्यक्ति से दूसरी व्यक्ति को ट्रांसफर की जा सकती है।
अगर किसी व्यक्ति कि शक्ति बढ़ रही है बदले में किसी न किसी कि शक्ति कम भी हो रही है। मानव समाज विकास के प्रारंभिक चरण को "प्रिमिटिव कम्युनिज्म" कहा जाता है जहाँ सबके पास सामान शक्ति हुआ करती थी।
धीरे धीरे शक्ति का असंतुलन बढ़ता गया और सत्ता कुछ लोगों के हाथ में केंद्रित होकर रह गई। धीरे धीरे एक पूरी शक्ति की एक पूरी हायरार्की बन गई। सबसे ऊपर राजा, फिर सामंत, फिर राज कर्मचारी, फिर व्यापारी, फिर आम प्रजा।
बैंकों में दो तरह के लोग मिलते हैं। एक वो जो बड़ी सोच लेकर चलते हैं। उनको टारगेट से ज्यादा मतलब नहीं होता। हर कस्टमर को सर्विस देते हैं। अकाउंट खोलने के लिए लॉगिन डे का इंतज़ार नहीं करते। जिस दिन फॉर्म आता है अकाउंट खोल देते हैं। जो काम आता है उसे करने में विश्वास रखते हैं।
उनकी टेबल पे आपको "ये मेरा काम नहीं है, फलाने से बात करो", "टाइम नहीं है, कल आना" टाइप की चीजें सुनने को नहीं मिलती। कई बार दो कदम आगे जाकर कस्टमर और साथी स्टाफ की मदद करते हैं। इनके लिए कस्टमर का सेटिस्फैक्शन और बैंक की इमेज सर्वोपरि होती है।
फिर दूसरे तरीके के लोग आते हैं। हर बात में नियम झाड़ते हैं। टारगेट पूरा करने के लिए घटिया से घटिया लोन भी कर देंगे, बद्तमीज कस्टमर के पैरों में गिरकर भी इन्शुरन्स के लिए गिड़गिड़ाएंगे। लेकिन जैसे ही टारगेट पूरा हुआ उस दिन अच्छे से अच्छे कस्टमर को भी घुसने नहीं देंगे।
रोज किसी न किसी बैंक से किसी न किसी उच्चाधिकारी के सनकीपन की खबर आरही है। कोई स्टाफ की सैलरी रोक देने की बात करता है, कोई रात के 12 बजे ब्रांच खुलवा रहा है, कोई बीमा नहीं करने पर स्टाफ का खाता डेबिट करने की धमकी दे रहा है,
एक भाईसाहब चाहते हैं कि अगर उनको व्हाट्सप्प पर रिपोर्ट नहीं मिली तो ब्रांच मैनेजर उनके ऑफिसर आकर उनके श्रीचरणों में ब्रांच की डेली रिपोर्ट प्रस्तुत करे। एक अन्य महाशय का मानना है कि दादी-नानी तो मरती रहती हैं, ब्रांच के टारगेट ज्यादा जरूरी हैं।
एक साहब ने बताया कि माँ मर गई तो कौनसी बड़ी बात हो गई, बूढी ही तो थी, छुट्टी नहीं मिलेगी, जाओ ब्रांच चलाओ और बीमा बेचो। एक स्टाफ छुट्टी पे थी और ट्रेन से अपने निजी काम से कहीं जा रही थी तो उन्हें जबरदस्ती DGM की मीटिंग ज्वाइन करवाई गई।
भारत में रिकवरी की प्रक्रिया कैसी है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि "Enforcement of contracts" के मामले में भारत कि रैंकिंग 190 देशों में 163 है। "Enforcement of contracts" Ease of doing business के लिए एक बहुत महत्वपूर्ण पैरामीटर है।
कस्टमर्स की अक्सर शिकायत रहती है कि भारत में बैंकों में लोन के लिए या सिंपल अकाउंट खुलवाने के लिए जितने साइन करवाए जाते हैं उतने पूरी दुनिया में कहीं नहीं करवाए जाते। बड़े बिज़नेस लोन का सैंक्शन लेटर करीब 50 पन्नों का होता है।
उसमें हर पेज पर बोर्रोवेर और गारंटर का साइन चाहिए। सैंक्शन लेटर में लोन की सारी टर्म्स एंड कंडीशंस होती हैं। अगर आप सैंक्शन लेटर की टर्म्स एंड कंडीशंस पढ़ेंगे तो ऐसा लगेगा की बैंक आपकी आत्मा को गिरवी रख रहा है।
ये थ्रेड बहुत कंट्रोवर्सिअल होने वाला है। जिसको भी आपत्ति है कृपया कमेंट या डीएम में बता दें। भगवान् के लिए FIR न करें।
भारत के संविधान के अनुच्छेद 51A का भाग a कहता है कि प्रत्येक भारतीय नागरिक को संविधान का पालन करना चाहिए
और भारत के ध्वज और राष्ट्रगान का सम्मान करना चाहिए। और इसके लिए अलग से दो कानून भी बनाये गए हैं 1. The Emblems and Names (Prevention of Improper Use) Act, 1950 और 2. Prevention of Insults to National Honour Act, 1971.
इन दोनों में से राष्ट्र ध्वज से जुड़े नियमों को मिला कर 2002 में Flag code of India 2002 बनाया गया। इस कोड में ध्वज की लम्बाई, चौड़ाई, रंग, अनुपात, सिलाई का तरीका, झंडे के कपडे का प्रकार, बुनाई में धागों की संख्या, झंडे के कपडे का घनत्व,
टॉप ऑफिशियल यानी उच्चाधिकारी एक ऐसा बेचारा प्राणी है जिसकी बेचारगी का किसी को अंदाजा तक नहीं। बात सुनने में थोड़ी अजीब लग रही होगी क्योंकि अपने उच्चाधिकारियों को हम अक्सर विलन की तरह ही देखते आये हैं।
उल्टे सीधे टारगेट देने वाले, हफ्ते में चार चार मीटिंगें बुलाने वाले, मीटिंगों में गलियां सुनाने वाले, ट्रासंफर, प्रमोशन और सैलरी रोकने की धमकियाँ देने वाले, बिना वजह छुट्टियों के दिन बुलाने वाले, बैंक में देर रात तक रुकने के लिए विवश करने वाले विलन।
लेकिन क्या आपने ये जानने की कोशिश की है कि ये ऐसे क्यों हो जाते हैं? जब हम नए नए PO या क्लेरिकल में ज्वाइन करते हैं तो आपस में किसी को देखकर लगता ही नहीं कि सुबह शाम अपने BM, RM आदि इत्यादि को गरियाने वाला ये फलाना बैचमेट आगे जा के उनकी ही तरह आततायी बनेगा।