#लक्ष्मण_रेखा ....
लक्ष्मण रेखा आप सभी जानते हैं इसका असली नाम (सोमतिती विद्या है) यह भारत की प्राचीन विद्याओ में से जिसका अंतिम प्रयोग महाभारत युद्ध में हुआ था।
सोमतिती विद्या लक्ष्मण रेखा...
महर्षि श्रृंगी कहते हैं कि एक वेदमन्त्र है--सोमंब्रही वृत्तं रत: स्वाहा वेतु सम्भव👇
ब्रहे वाचम प्रवाणम अग्नं ब्रहे रेत: अवस्ति,,
यह वेदमंत्र कोड है उस सोमना कृतिक यंत्र का, पृथ्वी और बृहस्पति के मध्य कहीं अंतरिक्ष में वह केंद्र है जहां यंत्र को स्थित किया जाता है, वह यंत्र जल,वायु और अग्नि के परमाणुओं को अपने अंदर सोखता है, कोड को उल्टा कर देने पर एक खास प्रकार
से अग्नि और विद्युत के परमाणुओं को वापस बाहर की तरफ धकेलता है।
जब महर्षि भारद्वाज ऋषिमुनियों के साथ भृमण करते हुए वशिष्ठ आश्रम पहुंचे तो उन्होंने महर्षि वशिष्ठ से पूछा"राजकुमारों की शिक्षा दीक्षा कहाँ तक पहुंची है?महर्षि वशिष्ठ ने कहा कि यह जो ब्रह्मचारी राम है-इसने आग्नेयास्त्र
वरुणास्त्र ब्रह्मास्त्र का संधान करना सीख लिया है।
यह धनुर्वेद में पारंगत हुआ है महर्षि विश्वामित्र के द्वारा,ब्रह्मचारी लक्ष्मण है यह एक दुर्लभ सोमतिती विद्या सीख रहा है,उस समय पृथ्वी पर चार गुरुकुलों में वह विद्या सिखाई जाती थी।
महर्षि विश्वामित्र के गुरुकुल में महर्षि वशिष्ठ
के गुरुकुल में महर्षि भारद्वाज के यहां और उदालक गोत्र के आचार्य शिकामकेतु के गुरुकुल में।
श्रृंगी ऋषि कहते हैं कि लक्ष्मण उस विद्या में पारंगत था एक अन्य ब्रह्मचारी वर्णित भी उस विद्या का अच्छा जानकार था।
अवस्ति--इस मंत्र को सिद्ध करने से उस सोमना कृतिक यंत्र में जिसने अग्नि के वायु के जल के परमाणु सोख लिए हैं उन परमाणुओं में आकाशीय विद्युत मिलाकर उसका पात बनाया जाता है,फिर उस यंत्र को एक्टिवेट करें और उसकी मदद से एक लेजर बीम जैसी किरणों से उस रेखा को पृथ्वी पर गोलाकार खींच दें।
उसके अंदर जो भी रहेगा वह सुरक्षित रहेगा,लेकिन बाहर से अंदर अगर कोई जबर्दस्ती प्रवेश चाहे तो उसे अग्नि और विद्युत का ऐसा झटका लगेगा कि वहीं राख बनकर उड़ जाएगा ।ब्रह्मचारी लक्ष्मण इस विद्या के इतने पारंगत हो गए थे कि कालांतर में यह विद्या सोमतिती न कहकर लक्ष्मण रेखा कहलाई जाने लगी।
महर्षि दधीचि,महर्षि शांडिल्य भी इस विद्या को जानते थे,श्रृंगी ऋषि कहते हैं कि योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण इस विद्या को जानने वाले अंतिम थे।
उन्होंने कुरुक्षेत्र के धर्मयुद्ध में मैदान के चारों तरफ यह रेखा खींच दी थी, ताकि युद्ध में जितने भी भयंकर अस्त्र शस्त्र चलें उनकी अग्नि उनका
युद्धक्षेत्र से बाहर जाकर दूसरे प्राणियों को संतप्त न करे,,
मुगलों द्वारा करोडों करोड़ो ग्रन्थों के जलाए जाने पर और अंग्रेजों द्वारा महत्वपूर्ण ग्रन्थों को लूट लूटकर ले जाने के कारण कितनी ही अद्भुत विधाएं जो हमारे यशस्वी पूर्वजों ने खोजी थी वो सब लुप्त हो गई,जो बची हैं 👇
उसे संभालने में प्रखर बुद्धि के युवाओं को जुट जाना चाहिए।
अहमदाबाद :- कौन है अहमद ?
मुरादाबाद :- मुराद कौन है ?
औरंगाबाद :- औरंगजेब कौन है ?
फैजाबाद :- कौन है फैज ?
फारूकाबाद :- कौन है फारूक ?
आदिलाबाद :- कौन है आदिल ?
साहिबद :- कौन है साहब ?
हैदराबाद :- हैदर कौन है ?
सिकंदराबाद :- सिकंदर कौन है ?
फिरोजाबाद :- फिरोज कौन है ?👇
मुस्तफाबाद :- कौन है मुस्तफा ?
अहमदनगर :- अहमद कौन है ?
तुगलकाबाद :- तुगलक कौन है ?
फतेहाबाद :- कौन है फतेह ?
उस्मानाबाद :- कौन है उस्मान ?
बख्तियारपुर :- बख्तियार कौन है ?
महमूदाबाद :- महमूद कौन है ?
मुजफ्फरपुर और मुजफ्फर नगर :- कौन है मुजफ्फर ?बुरहानपुर :- बुरहानि कौन है ?
कौन हैं ये सब? ये वे लोग हैं जिन्होंने आपकी करोड़ो हिंदू बहन बेटियों का बलात्कार किया और नग्न बाजार भरे,
आपकी संस्कृति को नष्ट कर दिया, आपके मंदिरों को नष्ट कर दिया,
आपकी मूर्तियों को भ्रष्ट कर दिया और हिंदुओं को इस्लाम में परिवर्तित कर दिया। आपकी करोड़ों गौ माताओं को काट दीया
इस वर्ष का अंतिम चंद्र ग्रहण
08 नवंबर 2022 मंगलवार
ग्रहण स्पर्श आरंभ : 14.39
खग्रास आरंभ : 15.46
ग्रहण मध्य : 16.29
खग्रास समाप्त : 17.12
ग्रहण मोक्ष समाप्त : 18.19
चन्द्र ग्रहण मेष राशि
व भरणी नक्षत्र में लग रहा है।
अक्सर चंद्र ग्रहण के समय
चंद्रमा के साथ केतु होता है।
सूर्य👇
के साथ राहू।
परंतु इस ग्रहण पर सूर्य के साथ केतु है और चंद्र के साथ राहू विराजमान है।
इसलिये ज्योतिषीय दृष्टि से इसे बहुत अच्छा नहीं माना जा रहा है।
यह अधिक और अप्रत्यशित घटनाओं का संकेत दे रहा है
ज्योतिष में मान्यता है कि
ग्रहण के फलों का प्रभाव 41 दिन तक रहता है
इसीलिए गर्भवती
महिलाओं को ग्रहण के दौरान अधिक श्रम न करने और सूर्य या चंद्र किरणों के आगे जाने से मना है
ताकि गर्भस्थ शिशुओं पर किरणों का कोई असर न पड़े।
खाने में तुलसी के पत्ते रखने की सलाह दी जाती है।
परंतु यदि खाद्य सामग्री फ्रिज मे या बंद रखी है तो चिंता न करें।
ग्रहण के दौरान ईश्वर का नाम
त्रिकुटेश्वर मंदिर शिव को समर्पित है।
इस मंन्दिर में एक ही पत्थर पर तीन शिवलिंग लगे हैं
इस मंदिर में सरस्वती को समर्पित एक मंदिर है और इसमें नक्काशीदार स्तंभ हैं।
वास्तुकला
इस मंदिर की वास्तुकला की योजना महान वास्तुकार अमारा शिल्पी जकनचारी👇
द्वारा बनाई गई थी ।
ये बादामी चालुक्य डेक्कन में प्रारंभिक स्थापत्य उपलब्धियों के प्रतिपादक थे। ऐहोल , बादामी और पट्टदकल उनकी कला के केंद्र थे।
मंदिर में जटिल मूर्तिकला के साथ अलंकृत स्तंभ हैं।गर्भगृह में तीन शिवलिंग हैं। मंदिर में पत्थर की स्क्रीन और नक्काशीदार मूर्तियाँ हैं।
त्रिस्तवेश्वर मंदिर परिसर के भीतर सरस्वती का एक मंदिर है, जिसमें उत्तम पत्थर के स्तंभ हैं।
पूर्व गर्भगृह में ब्रह्मा, महेश्वरा और विष्णु का प्रतिनिधित्व करने वाले तीन लिंग हैं; दक्षिण की ओर सरस्वती देवी को समर्पित है।
एक और मंदिर तीन देवियों को समर्पित है - सरस्वती, गायत्री और
शिवजी का प्रदोष व्रत
भाग 7
प्रदोष व्रत कथा
स्कंद पुराण के अनुसार
प्राचीन काल में एक विधवा ब्राह्मणी रोज अपने पुत्र को लेकर भिक्षा लेने जाती थी और संध्या को वापिस घर लौटती थी।
एक दिन जब वह अपने पुत्र के साथ भिक्षा लेकर लौट रही थी तो रास्ते में उसे नदी के किनारे के पास एक सुंदर 👇
बालक दिखाई दिया।
वह बालक विदर्भ देश का राजकुमार धर्मगुप्त था।
शत्रुओं ने उसके पिता को मारकर उसका राज्य हड़प लिया था।
उसकी माता की मृत्यु भी अकाल हुई थी।
ब्राह्मणी ने उस बालक को अपना लिया और उसका पालन-पोषण किया।
कुछ समय पश्चात ब्राह्मणी दोनों बालकों के साथ देवयोग से देव मंदिर गई।
वहां उनकी भेंट ऋषि शाण्डिल्य से हुई।
ऋषि शाण्डिल्य ने ब्राह्मणी को बताया कि जो बालक उन्हें मिला है वह विदर्भ देश के राजा का पुत्र है जो युद्ध में मारे गए थे और उनकी माता को ग्राह ने अपना भोजन बना लिया था।
ऋषि शाण्डिल्य ने ब्राह्मणी को प्रदोष व्रत करने की सलाह दी।
ऋषि आज्ञा से 👇