नोटबंदी जैसी तुग़लकी स्कीम जिससे सिर्फ एक पार्टी और चंद पूंजीपतियों को हुआ, लेकिन पूरा देश एक एक पैसे के लिए तरस गया, धंधे बर्बाद हो गए, बैंकरों ने अपनी जान खपा दी, दिन रात पत्थरबाजी झेली, रोज गालियां खाई,
साहब के कपड़ों की तरह दिन में कई कई बार बदले नियमों को झेला, नुक्सान की भरपाई जेब से करी। और जैसा कि होना था, भारी मीडिया मैनेजमेंट और ट्रोल्स की फ़ौज के बावजूद नोटबंदी फेल साबित हुई।
जब नोटबंदी फेल हुई थी तो बड़ी बेशर्मी से इन लोगों ने नोटबंदी की विफलता का ठीकरा बैंकों के माथे फोड़ दिया।
"अजी वो तो बैंक वाले ही भ्रष्ट हैं वरना जिल्लेइलाही ने तो ऐसे स्कीम चलाई थी कि देश से अपराध ख़त्म ही हो जाना था।"
"अजी वो तो बैंक वाले ही निकम्मे थे जो इतनी महान क्रांतिकारी योजना को ठीक से लागू नहीं कर पाए वरना नोटबंदी के बाद देश तो विश्वगुरु लगभग बन ही गया था।"
देश के छोटे उद्योग धंधों के मुंह पे तमाचा मारती हुई,
देश को आर्थिक विकास में कई वर्ष पीछे धकेलती हुई नोटबंदी की आज छठी वर्षगाँठ है। इतने दिनों में काफी कुछ बदल गया लेकिन एक चीज जो शास्वत है वो है साहब के भक्तों की बेशर्मी। उस समय नोटबंदी के लिए बैंक वालों को जिम्मेदार ठहरा रहे थे,
बैंकों को बेचने और बैंक वालों को नौकरी से निकालने कि सिफारिशें कर रहे थे। टैक्सपेयर के पैसे को लेकर इतना रोना रोया कि एक बार तो बैंक वालों भी लगने लगा कि कहीं सच में ही तो हम लोग जनता के टैक्स का पैसा IT डिपार्टमेंट को भेजने से पहले अपना हिस्सा तो नहीं काट लेते।
वो अलग बात है टैक्सपेयर के पैसे से बैंक वालों की सैलरी नहीं आती बल्कि बैंकों के मुनाफे से इन लोगों को फ्री में UPI UPI खेलने मिल रहा है। दो दिन पहले देश के सबसे ज्यादा बदनाम बैंक का रिजल्ट आया।
सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए। साढ़े चार लाख करोड़ मार्केट कैपिटल वाली कंपनी ने मुनाफे में 17 लाख करोड़ वाली कंपनी को पीछे छोड़ दिया। और वो भी तब जब एक से बढ़कर एक चुनावी रेवड़ियां सरकारी बैंको के ज़रिये बांटी गई, PM स्वनिधि के नाम पर बैंकरों पर FIR की गई, बैंकों के बाहर कचरा डाला गया।
और बदले में क्या मिला? ढेर सारा NPA, स्टाफ में कटौती, वेज रिवीजन में साढ़े तीन साले की देरी, जबरदस्त काम का दबाव। और ये सब झेलने के बावजूद, जब बैंकों ने जबरदस्त मुनाफा कमा के दिया तो, आ गए साहब और साहिब के भक्त बैंकों को गरियाने और क्रेडिट लूटने।
ताई ने तुरंत ट्वीट करते हुए बैंकों के मुनाफे का सारा श्रेय सरकार को दे दिया। और मजे की बात ये कि उस ट्वीट में न तो बैंकों का नाम लिया और न ही बैंकरों के लिए कोई बात कही। बस अपनी तारीफ करी और चलती बनी। और उसके बाद आये साहिब के भक्त।
एक साहब बता रहे थे कि कैसे सरकार ने "आलसी और कामचोर" बैंकरों को डरा धमका कर काम करवाया जिससे बैंक मुनाफे में आये। आइंस्टीन के नाम से एक क्वोट चलता है कि "दुनिया में दो चीजें अनंत हैं, एक ब्रह्माण्ड और दूसरा लोगों की मूर्खता, और ब्रह्माण्ड के बारे में अभी तक पता नहीं चल पाया है।"
और साहब के भक्तों ने 'लोगों की मूर्खता' की अनंतता को सत्य साबित कर दिया है।
साहब के भक्त अनंत और साहब के भक्तों की बेशर्मी उससे भी ज्यादा अनंत।
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थ्रेड: #ड्यू_डिलिजेंस
बैंक में ड्यू डिलिजेंस बहुत जरूरी चीज है। बिना ड्यू डिलिजेंस के हम लोन देना तो दूर की बात है कस्टमर का करंट खाता तक नहीं खोलते।
लोन देने से पहले पचास सवाल पूछते हैं। पुराना रिकॉर्ड चेक करते हैं। चेक बाउंस हिस्ट्री चेक करते हैं।
और लोन देने के बाद भी उसकी जान नहीं छोड़ते। किसी कस्टमर के खाते में अगर एक महीने किश्त ना आये तो उसकी CIBIL खराब हो जाती है। और तीन महीने किश्त न आये तो खाता ही NPA हो जाता है और फिर उसे कोई लोन नहीं देता। #12thBPS
अगर डॉक्यूमेंट देने में या और कोई कम्प्लाइंस में ढील बरते तो बैंक पीनल इंटरेस्ट चार्ज भी करते हैं। लेकिन बैंकों का ये ड्यू डिलिजेंस केवल कस्टमर के लिए ही है। पिछले 56 सालों से बैंकरों का अपना रीपेमेंट टाइम पर नहीं आ रहा। हर पांच साल में बैंकरों का वेज रिवीजन ड्यू हो जाता है।
थ्रेड: #परफॉरमेंस
मेरी पिछली कंपनी में एक GM साहब थे। बहुत हाई परफ़ॉर्मर। मतलब जिस माइन के लिए कंपनी ने पांच साल पहले बोल दिया था कि अब इसमें मिट्टी के अलावा कुछ नहीं बचा उसमें से भी पांच साल से प्रोडक्शन देकर टॉप पे रखा हुआ था। 48 की उम्र में GM बन गए थे।
ना खाने का होश, ना पहनने का। फैमिली कहाँ पड़ी है कोई आईडिया नहीं। मतलब, GM साहब को आईडिया होगा लेकिन हमको आईडिया नहीं था क्योंकि हमने तो उन्हें कभी घर जाते देखा नहीं। छुट्टी वगैरह कुछ नहीं। ना खुद लेते थे ना स्टाफ को देते थे। स्टाफ की नाक में दम किया हुआ था।
बिना गालियों के तो बात ही नहीं करते थे। खौफ का दूसरा नाम। कंजूस इतने कि क्लब नाईट में भी खाने में केवल पूरी और परवल की सब्जी बनवाते थे। मतलब पूरी तरफ से कंपनी को समर्पित।
थ्रेड: #Hierarchy
समाजशास्त्र में एक सिद्धांत है। "Power is zero sum game" का। मतलब जैसे ऊर्जा उत्पन्न या नष्ट नहीं की जा सकती केवल एक स्वरुप से दूसरे स्वरुप में परिवर्तित की जा सकती है वैसे ही शक्ति भी केवल एक व्यक्ति से दूसरी व्यक्ति को ट्रांसफर की जा सकती है।
अगर किसी व्यक्ति कि शक्ति बढ़ रही है बदले में किसी न किसी कि शक्ति कम भी हो रही है। मानव समाज विकास के प्रारंभिक चरण को "प्रिमिटिव कम्युनिज्म" कहा जाता है जहाँ सबके पास सामान शक्ति हुआ करती थी।
धीरे धीरे शक्ति का असंतुलन बढ़ता गया और सत्ता कुछ लोगों के हाथ में केंद्रित होकर रह गई। धीरे धीरे एक पूरी शक्ति की एक पूरी हायरार्की बन गई। सबसे ऊपर राजा, फिर सामंत, फिर राज कर्मचारी, फिर व्यापारी, फिर आम प्रजा।
बैंकों में दो तरह के लोग मिलते हैं। एक वो जो बड़ी सोच लेकर चलते हैं। उनको टारगेट से ज्यादा मतलब नहीं होता। हर कस्टमर को सर्विस देते हैं। अकाउंट खोलने के लिए लॉगिन डे का इंतज़ार नहीं करते। जिस दिन फॉर्म आता है अकाउंट खोल देते हैं। जो काम आता है उसे करने में विश्वास रखते हैं।
उनकी टेबल पे आपको "ये मेरा काम नहीं है, फलाने से बात करो", "टाइम नहीं है, कल आना" टाइप की चीजें सुनने को नहीं मिलती। कई बार दो कदम आगे जाकर कस्टमर और साथी स्टाफ की मदद करते हैं। इनके लिए कस्टमर का सेटिस्फैक्शन और बैंक की इमेज सर्वोपरि होती है।
फिर दूसरे तरीके के लोग आते हैं। हर बात में नियम झाड़ते हैं। टारगेट पूरा करने के लिए घटिया से घटिया लोन भी कर देंगे, बद्तमीज कस्टमर के पैरों में गिरकर भी इन्शुरन्स के लिए गिड़गिड़ाएंगे। लेकिन जैसे ही टारगेट पूरा हुआ उस दिन अच्छे से अच्छे कस्टमर को भी घुसने नहीं देंगे।
रोज किसी न किसी बैंक से किसी न किसी उच्चाधिकारी के सनकीपन की खबर आरही है। कोई स्टाफ की सैलरी रोक देने की बात करता है, कोई रात के 12 बजे ब्रांच खुलवा रहा है, कोई बीमा नहीं करने पर स्टाफ का खाता डेबिट करने की धमकी दे रहा है,
एक भाईसाहब चाहते हैं कि अगर उनको व्हाट्सप्प पर रिपोर्ट नहीं मिली तो ब्रांच मैनेजर उनके ऑफिसर आकर उनके श्रीचरणों में ब्रांच की डेली रिपोर्ट प्रस्तुत करे। एक अन्य महाशय का मानना है कि दादी-नानी तो मरती रहती हैं, ब्रांच के टारगेट ज्यादा जरूरी हैं।
एक साहब ने बताया कि माँ मर गई तो कौनसी बड़ी बात हो गई, बूढी ही तो थी, छुट्टी नहीं मिलेगी, जाओ ब्रांच चलाओ और बीमा बेचो। एक स्टाफ छुट्टी पे थी और ट्रेन से अपने निजी काम से कहीं जा रही थी तो उन्हें जबरदस्ती DGM की मीटिंग ज्वाइन करवाई गई।
भारत में रिकवरी की प्रक्रिया कैसी है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि "Enforcement of contracts" के मामले में भारत कि रैंकिंग 190 देशों में 163 है। "Enforcement of contracts" Ease of doing business के लिए एक बहुत महत्वपूर्ण पैरामीटर है।
कस्टमर्स की अक्सर शिकायत रहती है कि भारत में बैंकों में लोन के लिए या सिंपल अकाउंट खुलवाने के लिए जितने साइन करवाए जाते हैं उतने पूरी दुनिया में कहीं नहीं करवाए जाते। बड़े बिज़नेस लोन का सैंक्शन लेटर करीब 50 पन्नों का होता है।
उसमें हर पेज पर बोर्रोवेर और गारंटर का साइन चाहिए। सैंक्शन लेटर में लोन की सारी टर्म्स एंड कंडीशंस होती हैं। अगर आप सैंक्शन लेटर की टर्म्स एंड कंडीशंस पढ़ेंगे तो ऐसा लगेगा की बैंक आपकी आत्मा को गिरवी रख रहा है।