#सहाबिये#रसूल हज़रत सअद की मां का #इंतेक़ाल हो गया तो आप #नबी सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम की #बारगाह में पहुंचे और पूछा कि या रसूल #अल्लाह सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम मेरी मां मर गई तो कौन सा #सदक़ा उनके लिए #अफज़ल है, तो
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हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि पानी,इस पर हज़रते सअद ने एक कुंआ खुदवाया और कहा कि ये उम्मे सअद के लिए है|
📕 अबु दाऊद,जिल्द 1,सफह 266
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हुज़ूर ﷺ का गुज़र दो क़ब्रो पर हुआ तो आपने फरमाया कि इन दोनों पर अज़ाब हो रहा है और किसी बड़े गुनाह की वजह से नहीं बल्कि मामूली गुनाह की वजह से,एक तो पेशाब की छींटों से नहीं बचता था और दूसरा चुगली करता था,फिर आपने एक तर शाख तोड़ी और आधी आधी करके दोनों
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क़ब्रों पर रख दी और फरमाया कि जब तक ये शाखें तर रहेगी तस्बीह करती रहेगी जिससे कि मय्यत के अज़ाब में कमी होगी.
📕 बुखारी,जिल्द 1,सफह 34
"इससे कई बातें साबित हुई पहली तो ये कि हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ग़ैब दां हैं जब ही तो क़ब्र के अन्दर का अज़ाब देख लिया और दूसरी
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ये कि जब शाख क़ब्र पर रखी जा सकती है तो फूल भी उसी किस्म से है लिहाज़ा कब्र पर फूल डालना भी साबित हुआ और तीसरी ये कि जब तर शाख की तस्बीह से अज़ाब में कमी हो सकती है तो फिर मुसलमान अगर अपने मरहूम के ईसाले सवाब के लिए क़ुर्आन पढ़कर बख्शे तो क्योंकर मुर्दों पर से अज़ाब ना
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हटेगा और चौथी ये भी कि चुगली करना और पेशाब की छींटों से ना बचना अज़ाबे क़ब्र का बाईस बन सकता है लिहाज़ा इनसे बचें"
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एक शख्श नबी सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम की बारगाह में हाज़िर हुआ और कहा कि या रसूल अल्लाह सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम मेरी मां का इंतेक़ाल हो गया है और उसने कुछ वसीयत ना की अगर मैं उसकी तरफ से कुछ सदक़ा करूं तो क्या उसे सवाब पहुंचेगा फरमाया कि हां.
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📕 बुखारी,किताबुल विसाया,हदीस नं0 2756
हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम हर साल दो बकरे क़ुर्बानी किया करते जो कि चितकबरे और खस्सी हुआ करते थे एक अपने नाम से और एक अपनी उम्मत के नाम से.
📕 बहारे शरियत,हिस्सा 15,सफह 130
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"अब इस रिवायत से क्या क्या मसले हल हुए ये भी समझ लीजिये पहला ये कि अगर सवाब नहीं पहुंचता तो नबी सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम क्यों अपनी उम्मत के नाम से बकरा ज़बह कर रहे हैं दूसरा ये कि जो लोग ग्यारहवीं शरीफ के जानवर को हराम कहते हैं कि ग़ैर की तरफ मंसूब हो गया तो फिर
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क़ुर्बानी भी ना करनी चाहिये कि वहां भी हर आदमी अपने या अपने अज़ीज़ों के नाम से ही क़ुर्बानी करता है और तीसरा ये भी कि क़ुर्बानी के लिए नबी सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने जिन बकरों को काटा वो खस्सी थे ये भी याद रखें"
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जंगे तबूक के मौके पर जब खाना कम पड़ गया तो हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने जिसके पास जो था सब मंगवाकर अपने सामने रखा और दुआ फरमाई तो खाने में खूब बरकत हुई
📕 मिश्कात,जिल्द 1,सफह 538
"वहां कुंआ भी सामने ही मौजूद था और यहां खाना भी और दोनों जगह दुआ की गई मगर ना तो
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कुंअे का पानी ही हराम हुआ और ना ही खाना"
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ULEMA KE NAZDEEK FATIHA AUR ESALE SAWAB:
रिवायत - हज़रते इमाम याफई रज़ियल्लाहु तआला अन्हु अपनी किताब क़ुर्रतुल नाज़िर में लिखते हैं कि एक मर्तबा सरकारे ग़ौसे आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने 11 तारीख को हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम की बारगाह में नज़्र पेश की,जिसको
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बारगाहे नब्वी से क़ुबूलियत की सनद मिल गई फिर तो सरकारे ग़ौसे आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु हर महीने की 11तारीख को हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम की बारगाह में नज़राना पेश करने लगे,चुंकि आपका नज़्रों नियाज़ का मामूल हमेशा का था सो मुसलमानो ने इसे आपकी तरफ़ ही मंसूब कर दिया
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जिसे ग्यारहवीं शरीफ कहा जाने लगा,खुद सरकार ग़ौसे आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु का फरमान है कि मैंने कितनी ही इबादात और मुजाहिदात किये मगर जो अज्र मैंने भूखो को खाना खिलाने में पाया उतना किसी अमल से ना पाया काश कि मैं सारी जिन्दगी सिर्फ लोगों को खाना खिलाने में ही सर्फ कर देता
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📕 हमारे ग़ौसे आज़म,सफह 282
"क्या ये दलील कम है कि खुद हुज़ूर ग़ौसे पाक रज़ियल्लाहु तआला अन्हु हर महीने हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम की नज़्र यानि फातिहा ख्वानी का एहतेमाम करते थे,और आपके बाद भी पिछले 800 साल से ज़्यादा के बुज़ुर्गाने दीन और उल्माये किराम का अमल
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इसी पर रहा है सिवाए मुट्ठी भर वहाबियों को छोड़कर,और ज़रूरत पड़ने पर खुद उनके यहां भी फातिहा होती है जैसा कि अब मैं उनकी किताबों से ही दलील देता हूं",
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FATIHA AUR ESALE SAWAB KA SUBUT WAHABIYO KI KITAB SE:
➤इस्माईल देहलवी ने लिखा पस जो इबादत कि मुसलमान से अदा हो और इसका सवाब किसी फौत शुदा की रूह को पहुंचाये तो ये बहुत ही बेहतर और मुस्तहसन तरीक़ा है.....और आमवात की फातिहों और उर्सों और नज़रो नियाज़ से इस काम की खूबी में
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कोई शक व शुबह नहीं
📕 सिराते मुस्तक़ीम सफह 93
"वाह वाह,एक तरफ तो लिख रहे हैं कि फातिहा अच्छी चीज़ है और दूसरी तरफ हराम और शिर्क का फतवा भी,इन वहाबियों की अक़्ल पर पत्थर पड़ गये हैं"
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क़ासिम नानोतवी ने लिखा हज़रत जुनैद बग़दादी रहमतुल्लाह अलैहि के किसी मुरीद का रंग यकायक बदल गया आपने सबब पूछा तो कहने लगा कि मेरी मां का इंतेक़ाल हो गया है और मैं देखता हूं कि फरिश्ते मेरी मां को जहन्नम की तरफ लिए जा रहे हैं तो हज़रत जुनैद के पास 1 लाख या 75000 कल्मा तय्यबह
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पढ़ा हुआ था आपने दिल ही दिल में उसकी मां को बख्श दिया फिर क्या देखते हैं कि वो जवान खुश हो गया फिर आपने पूछा कि अब क्या हुआ तो वो कहता है कि अब मैं देखता हूं कि फरिश्ते मेरी मां को जन्नत की तरफ लिए जा रहे हैं तो हज़रत फरमाते हैं कि आज दो बातें साबित हो गई पहली तो इसके
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मुक़ाशिफा की इस हदीस से और दूसरी इस हदीस की सेहत इसके मुक़ाशिफा से
📕 तहज़ीरुन्नास,सफह 59
ये रिवायत बिलकुल सही व दुरुस्त है मगर सवाल ये है कि ईसाले सवाब की ये रिवायत इन वहाबियों ने अपनी किताब में क्यों लिखी,क्या उनके नज़दीक भी ईसाले सवाब पहुचता है और अगर पहुंचता है जैसा कि
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खुद लिखते हैं अभी आगे आता है तो फिर मुसलमानों पर इतना ज़ुल्म क्यों,क्यों जब कोई सुन्नी फातिहा ख्वानी का एहतेमाम करता है तो उस पर हराम और शिर्क का फतवा लगाया जाता है"
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रशीद अहमद गंगोही ने लिखा एक बार इरशाद फरमाया कि इक रोज़ मैंने शेख अब्दुल क़ुद्दूस के ईसाले सवाब के लिए खाना पकवाया था
तज़किरातुर रशीद,जिल्द 2सफह 417
➤दूसरी जगह रशीद अहमद गंगोही लिखा हैं खाना तारीखे मुअय्यन पर खिलाना बिदअत है मगर सवाब पहुंचेगा
फतावा रशीदिया,जिल्द 1सफह 88
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वाह वाह,बहुत खूब,खुद खाना पकवाकर सवाब बख्शा तो शिर्क नहीं हुआ और हम करें तो हराम बिदअत शिर्क,इन वहाबियों के नज़दीक हर बिदअत गुमराही है और जहन्नम में ले जाने वाली है मगर फिर भी बिदअत पर सवाब पहुंचवा रहे हैं,इन वहाबियों के गुरू घंटाल इमामों के ईमान का जनाज़ा तो पहले ही
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उठ चुका है मगर जो बद #अक़ीदह अभी जिंदा हैं उनके लिए #तौबा का दरवाज़ा खुला है लिहाज़ा वहाबियों ऐसी दोगली पालिसी से तौबा करो और अहले #सुन्नत व जमात के सच्चे #मज़हब पर कायम हो जाओ इसी में #ईमान की आफियतो भलाई है"
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73 FIRKE IN ISLAM
Ab aaj jo log sunniyon se ye kahte nazar aate hain ki kyun firkon me musalmano ko uljha rakha hai dar asal wo jaahil ahmaq aur be imaan kism ke log hain warna aisi aaftab raushan hadees se radd gardaani na karte,ye firka sunni nahin banate balki
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kuchh be imaan ahle sunnat wa jamaat se nikalkar ek alag gumraah jamaat bana daalte hain suuni usi ki nishaan dehi karta hai,aur firqa banna to huzoor sallallahu taala alaihi wasallam ke zamane mubarak me hi shuru ho gaya tha kuchh be imaan musalmano se alag ek jamaat
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bana chuke the jise munafiq kaha gaya aur un munafiqon ke haq me kayi aaytein naazil huyi aur kayi hadise paak marwi hai.
KANZUL IMAAN - To kya ALLAH ke kalaam ka kuchh hissa maante ho aur kuchh hisso ke munkir ho,to jo koi tumme se aisa kare to uska badla duniya ki zindagi
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🥀#अल्लाह की ज़ात और स़िफ़ात के बारे में अ़क़ीदे*
अल्लाह एक है। पाक, बे-मिस्ल, बे-ऐब है। हर कमाल, हर ख़ूबी का जामेअ़् है। कोई किसी बात में ना उसका शरीक, ना बराबर, ना उस से बढ़कर। वह अपनी तमाम स़िफ़ात-ए-कमालिया के साथ हमेशा से है और हमेशा रहेगा। हमेशगी सिर्फ़ उसकी
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ज़ात व स़िफ़ात के लिए है, उस के सिवा जो कुछ है पहले ना था जब उसने पैदा किया तो हुआ,वह अपने आप है उसको किसी ने पैदा नहीं किया, ना वह किसी का बाप, ना किसी का बेटा,ना उसकी कोई बीवी, ना रिश्तेदार सबसे बे-नियाज़,वह किसी बात में किसी का मोहताज नहीं, और सब उसके मोहताज, रोज़ी देना,
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मारना, जिलाना (ज़िंदा करना), उसी के इख़्तियार में है। वह सबका मालिक है जो चाहे करे। उसके ह़ुक्म में कोई दम नहीं मार सकता। बग़ैर उसके चाहे ज़र्रा नहीं हिल सकता। वह हर खुली-छुपी, होनी-अनहोनी को जानता है। कोई चीज़ उसके इल्म से बाहर नहीं। दुनिया-जहान, सारे आलम की हर चीज़
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*औरतों के लिए घुंगरू वाले पाज़ेब पहनना हराम व नाजाइज़ है*, हदीस शरीफ़ में है,
हजरत अब्दुल्लाह बिन ज़ुबैर रज़िअल्लाहु तआला अन्ह से रिवायत है कि हमारे यहां की लड़की हज़रत ज़ुबैर (रज़िअल्लाहु तआला अ़न्हु) की लड़की को हज़रत उमर रज़िअल्लाहु तआला अन्ह के पास लाई और उसके पांव में
घुंगरू थे तो हज़रत उमर ने काट दिया और फ़रमाया कि मैंने रसूलल्लाह सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम से सुना है कि हर घुंगरू में शैतान होता है,
*📓 मिश्कात सफ़ह 379,*
◆और हजरत बनानह जो कि हज़रत अब्दुर्रहमान बिन हयानुल अंसारी की बांदी हैं रिवायत करती हैं कि वह हजरत आयशा रज़िअल्लाहु
तआला अन्हा के पास थीं,
के हज़रत आयशा रज़िअल्लाहु तआला अन्हा के पास एक लड़की आई जिसके पांव में घुंगरू बज रहे थे फ़रमाया के उसे मेरे पास ना लाना जब तक के उसके घुंगरू काट ना देना मैंने रसूलल्लाह सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम से सुना है कि जिस घर में जर्स से यानी घंटी या घुंगरू
بَلٰى مَنْ اَوْفٰى بِعَهْدِهٖ وَ اتَّقٰى فَاِنَّ اللّٰهَ یُحِبُّ الْمُتَّقِیْنَ
کیوں نہیں ، جو اپنا وعدہ پورا کرے اور پرہیزگاری اختیارکرے توبیشک اللہ پرہیزگاروں سے محبت فرماتا ہے۔
{بَلٰى: کیوں نہیں۔} یہودیوں کی بات کہ’’ دوسرے #مذہب والوں سے بددیانتی کرنے پر ان سے کوئی
پوچھ گچھ نہیں ہوگی‘ ‘ بیان کی گئی ۔ اس کے بعد #اللہ تعالیٰ نے اپنا #قانون بیان فرمادیا کہ دوسروں سے #بددیانتی کرنے پر پوچھ گچھ کیوں نہیں ہوگی؟ #وعدہ پورا کرنا اور #امانت کا ادا کرنا دونوں چیزیں #پرہیزگاری کے ساتھ #تعلق رکھتی ہیں اور پرہیزگاری اللہ تعالیٰ کو نہایت #محبوب ہے تو
جو اللہ تعالیٰ کی #پسند پر چلے گا وہ اللہ تعالیٰ کا محبوب بنے گا اور جو اللہ تعالیٰ کی پسند کی #مخالفت کرے گا اس پر ضرور مواخذہ کیا جائے گا۔ اس سے معلوم ہوا کہ جو کسی سے وعدہ کیا جائے اسے ضرور پورا کیا جائے خواہ رب عَزَّوَجَلَّ سے کیا ہو یا عام انسانوں سے یا نبی سے یا اپنے پیر سے
Log kehrahe hain ke Hum Ahle Sunnat ke logon ne Musalmano ko Firqon mn baant dala aur aaj bhi firqe banake ummat ko Divide kar Rahe hai... Haeeqat bilkul Alag hai...
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➤ Wo Mohammad Ibn Abdul Wahab Najdi tha Jisne 250 saal pehle "Wahabism" firqa paida kiya.
➤ Wo Rasheed Ahmad Gangohi tha Jisne 1860's Me "Deobandi"firqa paida kiya.
➤ Wo Ilyas Khan Dehlvi tha Jisne 1926 mein
"Tablighi Jama'at"Banaya Jo Deobandi ka Propagative branch hai.
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➤ Wo Abul Ala Maududi tha Jisne 1942 mein "Jamat e Islami" firqa paida kiya.
#हदीस शरीफ़
हज़रत अबू हुरैरह رضی اللہ تعالیٰ عنہ से रिवायत है के हुज़ूर ﷺ ने इरशाद फ़रमाया:
आख़िरी ज़माना में एक गिरोह फ़रेब देने वालों और झूट बोलने का होगा वो तुम्हारे सामने ऐसी बातें लाएंगे जिनको ना तुमने
कभी सुना होगा ना तुम्हारे बाप दादा ने, तो ऐसे लोगों से बचो और उन्हें अपने क़रीब ना आने दो ताके वो तुम्हें गुमराह ना करें और न फ़ित्ने में डालें,
पैदा होगी जो मक्कारी व फ़रेब से उल्मा मशाइख़ और सालेहा बनकर अपने को मुसलमानों का ख़ैर ख़्वाह और मुस्लेह ज़ाहिर करेगी ताके अपनी झूटी बातें फैलाए और लोगों को अपने बातिल अक़ीदों और फ़ासिद ख़यालों की तरफ़ राग़िब करे,
(अश्अतुल लमआत जिल्द 1 सफ़ह 133)