जब संजीव सर्राफ़ ने रेख़्ता वेबसाइट शुरू की तो एक इंजीनियर होने के नाते उनका सपना था कि यह वेबसाइट उर्दू न पढ़ सकने वालों की समझ में भी आए। शेर फ़ारसी से बदल देवनागरी और रोमन लिपि में लिखना तो ज़्यादा मुश्किल न था लेकिन वह चाहते थे कि एक डिक्शनरी भी वेबसाइट से संलग्न हो जिससे
हर शब्द का अर्थ पढ़ने वाला समझ पाए। यह एक चुनौतीपूर्ण काम था।
भला ऐसा इंसान कहाँ मिलेगा जिसे कंप्यूटर की कोडिंग इस दर्जा आती हो कि रेख़्ता जैसी शानदार वेबसाइट संभाल सके और साथ ही वह हिंदी, उर्दू, फ़ारसी, और अंग्रेज़ी की इतनी समझ रखता हो कि डिक्शनरी तैयार कर सके?
ऐसे में संजीव सर्राफ़ की मुलाक़ात हुई एक IIT Bombay से कंप्यूटर इंजीनियर और JNU में पढ़ रहे एक इंसान से। इस लड़के को न सिर्फ़ आला दर्जे की कोडिंग आती थी बल्कि यह उर्दू,फ़ारसी,अरबी,हिंदी,अंग्रेज़ी जैसी कई ज़बान जानता था। बात हुई। उर्दू की ख़िदमत की बात थी तो लड़के ने
एक मामूली से मेहनताने पर यह ज़िम्मेदारी सर ले ली और देखते ही देखते रेख़्ता में जान फूँक दी।
इस बार फिर जश्ने रेख़्ता हो रहा है। हज़ारों की भीड़ जुटेगी। तमाशा होगा।
लेकिन वह लड़का किसी को याद नहीं। न वेबसाइट ने कभी उसका नाम लिया। उस लड़के का नाम शरजील ईमाम है।
#SharjeelImam
#JashneRekhta

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Feb 8
अखिलेश यादव ख़ूब अच्छे से जानते हैं कि उनका समाज (यादव) तो उन्हें धोका दे सकता है लेकिन मुसलमान उनका साथ नहीं छोड़ेगा। फ़ैज़ाबाद की रुदौली विधानसभा सीट से @AbbasAliRushdi का टिकट कटने की वजह भी यही है।
1/6
जब आप 2002 से लेकर 2017 तक हुए रुदौली विधानसभा इलेक्शन पे नज़र डालेंगे तो आपको समझ आ जायेगा कि सपा ने अब्बास रुश्दी भाई का टिकट क्यों काटा है।
2012 और 2017 विधानसभा इलेक्शन में बीजेपी के 'रामचन्द्र यादव' ने लगातार दो बार जीत हासिल की थी।
2/6
क्योंकि रुदौली विधानसभा की यादव जाति का वोट बीजेपी को शिफ़्ट हो गया था। जबकि 2002-07 के चुनाव में उसी सीट से सपा लगातार दो बार चुनाव जीती थी। क्योंकि दोनों बार बीजेपी से कोई यादव उम्मीदवार नहीं था। लेकिन लगातार दो बार बीजेपी के जीतने की वजह ये थी कि-
3/6
Read 6 tweets
Dec 6, 2021
सेना अपनी , जवान अपने और जानें भी अपनी..?😢
इरोम शर्मिला जी की लड़ाई हमेशा इसी बात को लेकर रही है, वह उत्तर-पूर्व भारत में मानवाधिकारों का मुख्य चेहरा हैं। इन्होंने सन 2000 से लेकर 2016 तक 16 सालों का लम्बा संघर्ष इसलिए किया था कि इस काले कानून की वजह से कोई निर्दोष न मरे।
1/4
अपनी आवाज़ को सड़कों से आगे बढ़ाकर सदन तक पहुँचा सकें ,शायद इसी उम्मीद से काँग्रेस और BJP के उम्मीदवारों के सामने 2017 विधानसभा चुनाव भी लड़ गयीं। लेकिन उनको सिर्फ 90 वोट मिले। और तो और उन्होंने उन 90 लोगों का शुक्रिया अदा किया और कहा कि ये लड़ाई अभी चलती रहेगी।
2/4
दरअसल 1958 में काँग्रेस एक कानून लायी जिसका नाम 'आर्म्ड फोर्सेस (स्पेशल पॉवर) एक्ट' यानी कि AFSPA है। यह कानून अशांत इलाकों में सुरक्षा-बलों को शक के आधार पर सीधे गोली चलाने की इजाज़त देता है।
और उत्तर-पूर्व नागालैंड सहित कई राज्यों में ये कानून पूरी तरह से लागू होता है।
3/4
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