The caterwauling in the name of God, holding up posters, coordinated crying and victim playing, women and children out in the cold protesting against ‘state brutality’ and the online shills spreading fake news #HaldwaniEncroachment
the Haldwani issue has all the makings of snowballing into a Shaheen Bagh like situation. Since the 28th of December 2022, the residents of Haldwani, Uttarakhand, mostly Muslims, have been protesting against the authorities,who in accordance with a High Court order,
launched a drive to clear encroachments from Railway land in the area.
1.This is not an eviction drive that is being carried out at the whim of the administration. The authorities have been trying to evict land encroachers since 2007 – that is 15 years.
2. The eviction drive is a result of a High Court order, therefore, it is safe to say that the legal process has been followed by the authorities in order to carry out this demolition drive
3. When an eviction operation was conducted in 2007, the residents of Haldwani, who are today wailing and crying, indulged in arson and rioting against the eviction drive.
4. There were several eviction notices furnished to the residents of Haldwani, who today seem to be insinuating that they are in a state of shock that their illegal houses, constructed on Railway land, are being demolished.
5. The Supreme Court, when approached by the residents, had asked them to go back to the High Court. SC had asked HC to decide their pleas in 3 months – this was in 2017. It was a couple of weeks ago that the High Court passed the judgement to remove encroachments from Haldwani.
6.After the High Court order, Rajendra Singh, Railway PRO, Izzat Nagar had said that there were 4365 encroachments and the eviction notices were served through the local newspaper. He said that the residents were given 7 days to shift, after which, the demolition would take place
7. It is pertinent to note that after the High Court judgement and the eviction notice being served for the residents to shift in 7 days, the residents have spent their time protesting, blocking roads,
talking to the media, crying ‘persecution’ and playing victim, with sympathetic voices in the media trying to build a narrative about a grave injustice being meted out to the Muslim residents.
From the facts of the case, it is evident that this eviction drive was 15 years in the making, with the residents being given ample hearing in a court of law and sufficient time by the authorities to move out of the illegal residences.
But the narrative that is now being built has all the marking of a protest being crafted to mirror the 2019-2020 Shaheen Bagh protest that ultimately led to the Delhi anti-Hindu Riots in February 2020..
The ongoing protests in Haldwani, the imagery being used and the narrative being weaved by Islamist allies have uncanny parallels to what we saw unfolding in 2019-2020.
Congress has taken a special interest in the Haldwani eviction drive. On the 2nd of January, Congress leader Imran Pratapgarhi tweeted that represented by Salman Khurshid, he had approached the Supreme Court against the eviction drive.
He said he had approached the court against the demolition of the homes of the “oppressed”. So far, we have been given no context by Pratapgarhi as to how the residents of Haldwani were being “oppressed”.
build houses on government lands illegally and when any court orders to break down then these people do cryings and dramas and top of that they even don’t feel grateful to the government that allowed them to live for so long on the land which never belonged to them.
Buy land, pay taxes and duties, pay registration charges, pay annual lease charges, and then it suddenly belongs to Waqf mafia because some corrupt govt transferred it illegally decades back.
If we stop today, they will soon start occupying government land all across the country and will again portray themselves as victims. And again we will be forced to stop.
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गुजरात प्रांत के काठियावाड़ क्षेत्र में समुद्र के किनारे सोमनाथ नामक विश्वप्रसिद्ध मंदिर में 12 ज्योतिर्लिंगों से एक स्थापित है। #सोमनाथ_मंदिर
पावन प्रभास क्षेत्र में स्थित इस सोमनाथ-ज्योतिर्लिंग की महिमा महाभारत, श्रीमद्भागवत तथा स्कंद पुराण आदि में विस्तार से बताई गई है। चन्द्रदेव का एक नाम सोम भी है। उन्होंने भगवान शिव को ही अपना नाथ-स्वामी मानकर यहां तपस्या की थी इसीलिए इसका नाम 'सोमनाथ' हो गया।
कहते हैं कि सोमनाथ के मंदिर में शिवलिंग हवा में स्थित था। यह वास्तुकला का एक नायाब नमूना था। इसका शिवलिंग चुम्बक की शक्ति से हवा में ही स्थित था। कहते हैं कि महमूद गजनवी इसे देखकर हतप्रभ रह गया था।
एकदा वाचाच औरंग्याने आपल्या भावांची निर्घृण हत्या करून त्यांच्या प्रेतांची धिंड काढली होती - तरीपण तो क्रूर नव्हताच जरासा नॉटी होता इतकंच, भावा भावांत इतकं चालायचंच ना.. शेवटी मुघलच ते.
औरंग्याने हजारो हिंदूंची अनेकवेळा ठिकठिकाणी कत्तल केली - तरीपण तो क्रूर नव्हताच जरासा धार्मिक होता इतकंच. त्याला त्याच्या धर्माचा प्रसार करण्याचा अधिकार होताच ना?
औरंग्याने शीखांचे गुरु तेग बहादूर यांना दिल्लीत चांदणी चौकात हाल हाल करून ठार केले - तरीपण तो क्रूर नव्हताच जरा जास्त चिडायचा इतकंच. योग्य वयात त्याला कुणी बकरीच्या दुधाची व चरख्यावर सूत कातायची सवय लावली असती तर तो असा नसता झाला.
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टीकडून नेहमीच इतिहास मोडून तोडून मुघल कसे चांगले होते, अफजल खान सीमांचे रक्षण करायला आला होता तसेच औरंग्याचेही उदात्तीकरण केले जाते.
सकल हिंदू समाजासाठी ही खूप गंभीर बाब आहे कारण राष्ट्रवादीकडून जो अजेंडा चालवला जातो तो हिंदूंसाठी अत्यंत घातक आहे.आता तर राष्ट्रवादीच्या नेत्यांनी राजकिय जिहादचा कळस केला आहे …
अजित पवार विधानसभेत म्हणतात संभाजी महाराज धर्मवीर नव्हते..आणि पुन्हा माफी मागायची सोडून त्यांचा एकक नेता त्यांना समर्थन देणारे वीडियो बनवून टाकतो त्यातील एक मुंब्र्याची औरंगजेबाची औलाद जितेंद्र आव्हाड म्हणतो औरंगजेब सुफी संत होता तो हिंदू विरोधी नव्हता…😡
२०० साल भारत में अंग्रेजों ने शासन किया, उससे पहले ४०० साल भारत में मुगलों का शासन आधे से अधिक भारत पर रहा।
विचार करने योग्य बात यह है कि ६०० साल की गुलामी के काल में वामपंथी इतिहासकारों ने एक यह झूठ फैलाए रखा कि ब्राह्मणों ने दलितों पर अत्याचार किए।
१९ वीं सदी से पहले भारत में दलित नाम का शब्द ही नहीं था।
भारत के किसी भी ग्रंथ में और किताब में जो कि १९ वीं सदी से पहले लिखी गयी हो उसमें दलित शब्दावली नहीं है।
आजाद भारत के बाद ही "दलित" शब्द उन हिंदुओं के लिए प्रयोग किया जाने लगा जो कि आर्थिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े हुए थे।
औरंगजेब के ही कालखंड में एक फरमान जारी किया गया था और सार्वजनिक धार्मिक सभाओं पर रोक लगाई गयी, जो भी हिंदू खुले में धर्माचार्यों द्वारा धार्मिक कथाएं सुनते उनके कान फोड़ने और उन हिंदुओं के सिर कलम करने का आदेश जारी किया गया।
सावरकरांनी त्यांच्या हिंदुपदपादशाही या पुस्तकात लिहिलेले एका वाक़याचा संदर्भ देऊन काही मूर्ख याचा वेगळा अर्थ काढून सावरकरांविषयी द्वेष पसरवत आहेत…आणि @AjitPawarSpeaks च्या चुकीला लपवायचा प्रयत्न करत आहेत…सगळयात आघाडीवर आहे अफजल्याचा मानसपुत्र @Awhadspeaks 😡😡
“शिवाजीमहाराजांच्या जागी त्यांसारख्या शूर पण नाकर्ता आल्याने इतिश्री झाली असली पाहिजे”…शिवाजीमहाराजांसारखा कर्ता पुढारी कालवश झाल्याने आणि त्यांच्याजागी संभाजी प्रमाणे शूर व नाकर्ता पुत्र आल्याने, इतिश्री झाली असली पाहिजे, असे त्याला वाटले."
असे त्याला वाटले…म्हणजे कोणाला??
सांगा आव्हाड😡…'असे त्याला वाटले.' त्याला म्हणजे औरंगजेबाला…इकडे औरंगजेबाला काय वाटले असेल हे त्यांनी लिहिले आहे…त्यांना स्वतःला काय वाटले ते नाही😡…तुम्हीं सांगताय अभ्यास करुन बोलतोय मी…जो अफ़ज़ल्याच वर्णन मोठ रंगऊन सांगतो??…

चापलूसी की खड़ाऊ उठाने वालों की हमारे देश में कभी भी कमीं नहीं रही! इंदिरा के जमाने में तो उनके छोटे पुत्र संजय गांधी ने उस समय के दिग्गज मुख्यमंत्रियों चप्पलें उठवा दी थी! इनमें एनडी तिवारी, ज्ञानी जैल सिंह, विद्याचरण और श्यामाचरण शुक्ल, अर्जुन सिंह आदि शामिल थे! @INCIndia
उनकी इन गतिविधियों पर इंदिरा जी नाराज होने की बजाय खुश हुई थीं!
संजय से सीख लेने के लिए उस समय के बड़े बड़े नेता कतार लगाकर खड़े रहते थे। वह तो दुर्भाग्य जनक दुर्घटना में संजय हमारे बीच नहीं रहे। उनके छोड़े काम बाद में इंदिरा गांधी ने पूरे किए। यही उनके पतन का कारण बना
उनके कार्यकाल में गुलामनबी आजाद, अशोक गहलौत, आनंद शर्मा, सलमान खुर्शीद, शरद पवार आदि, माधव राव सिंधिया, जयराम रमेश, हेमवती नंदन बहुगुणा, शुक्ला बंधु, पी चिदंबरम जैसे गंभीर नेता उभरे। उसी दौर में दिग्विजय सिंह, मणिशंकर अय्यर, कपिल सिब्बल आदि का उदय हुआ।