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Jan 12 13 tweets 4 min read
आज संघ परिवार की सारी सैद्धान्तिक विचारधारा गुरु गोलवरकर की दी हुई है जो स्वयं स्वामी विवेकानंद के परम्परा के रहे है और ये आज के प्रधानमंत्री मोदी भी उसी सिद्धान्त के वाहक जिसका अंत सनातन धर्म के अन्त की कल्पना से समाप्त होता है।
#Vivekananda

@madhukishwar @RituRathaur
व्यक्ति चाहे कितना ही प्रसिद्ध क्यों न हो, उसके पीछे कितनी ही भीड़ क्यों न हो, ये आवश्यक नही के उसके सारे सिद्धान्त सत्य ही होंगे, सत्य संख्याबल पर निर्भर नही करता। अतः शास्त्र विरुद्ध जो भी व्यक्ति होगा वो सनातन धर्मी तो नही हो सकता किंतु एक नए पंथ का निर्माता अवश्य हो जायेगा।
प्रचार तंत्र का उपयोग समाज के सामान्य लोगों के मस्तिष्क में अपने विचार भरने के लिए अंग्रेज सदैव से करते आये हैं, और आज भी ये लोग टी वी, मीडिया, बॉलीवुड के माध्यम भारतीय समाज मे अपने एजेंडे को वैज्ञानिकता अथवा आधुनिकता के नाम पर झूठी धारणाओं के रूप में स्थापित करते हैं।
स्वामी विवेकानन्द को भी इन्ही ईसाईयों ने प्रचार के माध्यम से भारतीय समाज मे स्थापित किया था, जबकि स्वामी विवेकानन्द से महान और श्रेष्ठ सन्त आचार्य भारत मे हजारो हुए और हर काल मे हुए और आज भी हैं, जिनके मुख से यदि शब्द निकलते है तो वो शास्त्र वचन ही होते हैं।
इस देश की शिक्षा व्यवस्था को सदैव से और आज भी अपने कब्जे में रखने वाले वामपंथियों ने पाठ्यपुस्तकों में केवल स्वामी विवेकानन्द को महत्वपूर्ण स्थान दिया जबकि वो चाहते तो उससे श्रेष्ठ और युवा सन्यासी आदिजगतगुरु शंकराचार्य को भी स्थान दे सकते थे, पर उन्होंने ऐसा नही किया।
वामपंथियों ऐसा इसलिए नही किया क्योंकि विवेकानन्द का जो समानता का सिद्धान्त है वो वामपंथियों के बराबरी वाले सिद्धान्त के ही समतुल्य है जिसे समानता और समरसता के नाम पर संघ भी 90 साल से ढो रहा है।
जबकि सनातन धर्म मे कोई व्यक्ति समान अथवा बराबर नही होता बल्कि उसकेे पूर्व एवं वर्तमान जन्म के कर्मो के आधार पर भेद होता ही है।
आप रामकृष्ण मठ द्वारा छपने वाले स्वामी विवेकानन्द के किताबे पढ़कर उनके प्रति श्रद्धा का भाव बनाये होंगे, इसे समझना बड़ा सरल है क्योंकि कोई मठ अपने निर्माता की झूठी प्रशंशा गान तो करेगा ही, इसमे क्या सोचना और समझना है??
मित्रो आप शायद यह नही जानते कि संघ अपने सभी संगठनों और युवाओं के मध्य केवल और केवल स्वामी विवेकानन्द को बढ़ा चढ़ा कर प्रचारित करता है , अगर आप सोचेंगे कि ऐसा क्यों है तो मैं आपको बता दूं कि दार्शनिक धरातल पे संघ, विवेकानंद के मत को ही मानता है जो कि सर्वस्था शास्त्र विरुद्ध है।
आप इसे केवल गीता के पहले अध्याय को ही पढ़कर जान जाएंगे कि किस प्रकार संघ/ विवेकानन्द का मत वैदिक धर्म के आधार वर्णाश्रम व्यवस्था के घोर विरूद्ध है। चूंकि गोलवरकर ही संघ के सिंद्धान्तो के प्रणेता है और वह विवेकानन्द के शिष्य के शिष्य थे अतः वो अपना मत वही रखेंगे जो उनके गुरु का था
गेरुआ वस्त्र में लिपटे विवेकानन्द आज युवाओं के माध्यम से घर घर पहुँचे है जबकि उन्ही विवेकानन्द के अनुयायी आज अपने को हिन्दू नही कहते, बल्कि ईसाइयों के कब्जे में आकर उनका प्रचार करते है उनके त्योहार मनाते हैं और इन सबकी शुरुआत स्वयं विवेकानन्द ने ही कि थी।
इसी प्रकार एक इस्कान वाले है इनलोगों ने भगवान कृष्ण की भक्ति के नाम पर दुनिया मे गए और श्रीमद्भगवत गीता का सबसे ज्यादा अर्थ का अनर्थ इन इस्कॉनियों ने ही किया है, ये भी अंग्रेजो के घुसाए हुए है और इनका भी नेटवर्क पूरे भारत मे रामकृष्ण मिशन और आरएसएस के तरह ही है।
साथियों ये जितने भी संगठन है चाहे राम कृष्ण मिशन हो या इस्कॉन हो या आर्यसमाज हो या आरएसएस हो ये सब समाज के हर कोने में फैले हैं और सब धर्म के नाम पे धर्म के आधार वर्ण व्यवस्था को मिटा कर हिन्दुओ को अब्राहमिंक बनाने में लगे है

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