भाई, ये मौर्या रामभक्तों को गोलियों से भुनवाने वाली श्रीराम विरोधी पार्टी का सदस्य है इसलिए इस राक्षस को राम और रामचरितमानस कैसे सुहाएगी?
दरअसल तुलसीदास को समझने के लिए सद्बुद्धि चाहिए। इसके जैसे कुटिल बुद्धि वाले नीच उनको नहीं समझ सकते।
ऐसे लोग बीच बीच में से कुछ दोहे उठा कर बकवास किया करते हैं ।
तुलसीदास समदर्शी थे । वे बिना लाग लपेट के अपनी बात कहते थे । वरना वे ब्राह्मणों द्वारा किए जाने वाले पुरोहित कर्म को निम्न श्रेणी का क्यों कहते । उन्होंने रामचरितमानस में लिखा है:
'उपरोहित्य कर्म अति मंदा।
बेद पुरान सुमृति कर निंदा॥"
उसी रामचरितमानस में उन्होंने देवताओं को सदा स्वार्थी बताया है और देवराज इंद्र की तुलना तो कुत्ते से की है।
उन्होंने तो भगवान विष्णु के बारे में भी अपमानजनक भाषा का प्रयोग किया है और उनको कपटी, ईर्ष्यालु, धोखेबाज,
दुर्भाग्य है कि जहां जगतगुरु की प्रतिष्ठा प्राप्त शंकराचार्य जी की एक आवाज न केवल भारत में बल्कि भौगोलिक सीमा तोड़कर जगत भर में सुनी जानी चाहिए थी। स्वयं सनातन समाज के सभी लोग भी नहीं सुन पाते, शंकराचार्य जी को बयान दिए हुए आज 2 दिन हो गए हैं।
बागेश्वर बाबा के विरोध में उन्होंने बयान दिया है, लेकिन कितने लोगों तक अब भी उनकी बात पहुंच पाई है?
मोहन भागवत कौन हैं? क्या किसी सनातन समाज की परंपरा से आते हैं? क्या उन्हें जगतगुरु का कोई पद मिला हुआ है? क्या देश की आम जनता ने उन्हें अपना प्रतिनिधित्व दिया है? बिल्कुल नहीं।
मोहन भागवत एक स्वयंसेवी संस्था के प्रमुख मात्र हैं। लेकिन उनकी एक धीमी आवाज भी देशभर में सुनी जाती है। न केवल देशभर में बल्कि देश के बाहर की भी कान खड़ी रहती है। क्यों? स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद जैसे संत इसके लिए अंततः सनातन समाजी को ही दोषी ठहराते हैं।
जोशी मठ की दरारें ही नहीं , सनातन धर्म के लोग जो आसमानी किताब के ढोंग और चमत्कार से खिंचे जा रहे हैं और जो दरार हमारे समाज में पड़ रही है उसे भरने की आज आवश्यकता है ..
एक ढोंगी भारत तेरे टुकड़े के अवयवों के साथ घूम घूम बयान दे रहा है;
कि यह देश पुजारियों का नहीं बल्कि तपस्वियों का है और आप मौन हैं?
क्या आप अर्चा अवतार नहीं मानते?क्या अर्चना(जिसे सामान्य हिंदी में पूजा कहते हैं) सनातन धर्म का अंग नहीं है?क्यों नहीं तुरंत प्रतिकार किया गया?
क्या सेवा, सनातन हिन्दू धर्म का अंग नहीं है? क्यों नहीं फ़िरोज़ गांधी के अवयव का विरोध हुआ?
क्या उपासना, सनातन हिन्दू धर्म का अंग नहीं है?
आपने पूछा उस ढोंगी से कि "तपस्या" की परिभाषा बताये? तपस्या, जीवन का अंग अवश्य है पर वह अहंकार को जन्म न दे।
#राधिका_पंडिताइन.....!
एक गुमनाम क्रांतिकारी की पत्नी जो
इतिहास के पन्नों से भुलाई दी गई
95 साल की उम्र की राधिका पंडिताइन 2004 में गुमनाम मौत मर गयीं.... जमीन जायजाद जाने कब की रिश्तेदार हड़प चुके थे.... और मायका जवानी में मुंह मोड़ चुका था....
70 साल लम्बी जिंदगी उन्होंने अकेले काट दी अपने स्वर्गीय पति की गर्वित यादों के साथ...
क्यों कि यही उनकी इकलौती पूंजी थी....
और ये पूंजी उन्हें भारत की सबसे समृद्ध महिला बनाती थी...
क्यों कि राधिका देवी गुमनाम होकर भी भारत की वो बेटी थी
जिनका पूरा देश कर्जदार था.... रहेगा
वो महज़ 14 साल की बच्ची ही थी जब विवाह आज़ के वैशाली जिले के एक समृद्ध किसान परिवार में कर दिया गया.... पति के तौर पर मिले #बैकुंठ_शुक्ल.... उनसे तीन साल बड़े...
अब गौना हो ससुराल पहुंची तब तक बैकुंठ बाबू तो
शबरी बोली, यदि रावण का अंत नहीं करना होता तो भगवन(राम) तुम यहाँ कहाँ से आते?" राम गंभीर हुए कहा, "भ्रम में न पड़ो माते ! राम क्या रावण का वध करने आया है? ... अरे रावण का वध तो लक्ष्मण अपने पैर से बाण चला कर कर सकता है,
राम हजारों कोस चल कर इस गहन वन में आया है तो केवल तुमसे मिलने आया है माते , ताकि हजारों वर्षों बाद जब कोई पाखण्डी भारत के अस्तित्व पर प्रश्न खड़ा करे तो इतिहास चिल्ला कर उत्तर दे कि इस राष्ट्र को क्षत्रिय राम और उसकी भीलनी माँ ने मिल कर गढ़ा था,जब कोई कपटी भारत की
परम्पराओं पर उँगली उठाये तो तो काल उसका गला पकड़ कर कहे कि नहीं! यह एकमात्र ऐसी सभ्यता है, जहाँ एक राजपुत्र वन में प्रतीक्षा करती एक दरिद्र वनवासिनी से भेंट करने के लिए चौदह वर्ष का वनवास स्वीकार करता है,राम वन में बस इसलिए आया है ताकि जब युगों का इतिहास लिखा जाए तो
जब पार्वती ने बनाया भोजन तो शिवजी ने उन्हें बताई ये अनोखी बात
एक बार माता पार्वती ने भगवान शिव से कहा की प्रभु मैंने पृथ्वी पर देखा है कि जो व्यक्ति पहले से ही अपने प्रारब्ध से दुःखी है आप उसे और ज्यादा दुःख प्रदान करते हैं और जो सुख में है आप उसे दुःख नहीं देते है।
भगवान ने इस बात को समझाने के लिए माता पार्वती को धरती पर चलने के लिए कहा और दोनों ने इंसानी रूप में पति-पत्नी का रूप लिया और एक गावं के पास डेरा जमाया । शाम के समय भगवान ने माता पार्वती से कहा की हम मनुष्य रूप में यहां आए है इसलिए यहां के नियमों का
पालन करते हुए हमें यहां भोजन करना होगा। इसलिए मैं भोजन कि सामग्री की व्यवस्था करता हूं, तब तक तुम भोजन बनाओ।
जब भगवान के जाते ही माता पार्वती रसोई में चूल्हे को बनाने के लिए बाहर से ईंटें लेने गईं और गांव में कुछ जर्जर हो चुके मकानों से ईंटें लाकर चूल्हा तैयार कर दिया।