2007 में एक फिल्म आई थी-
"चक दे इण्डिया"
जिसके नायक थे
'शाहरुख खान'।
फ़िल्म में उनका नाम था 'कबीर खान' और हॉकी कोच बने थे।
यह एक सच्ची घटना पर फिल्मायी फ़िल्म थी।
पूरी फिल्म में इसे "स्लिम" होने के कारण प्रताड़ित होते तथा देशभक्त बनते हुए दिखाया गया था।
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कुछ तथ्यों पर आपका ध्यान न गया होगा कि जिस वास्तविक पात्र पर यह फ़िल्म बनी है, वह हॉकी के खिलाड़ी श्री "मीर रंजन नेगी" जी हैं जो कि "हिन्दू" हैं। अब प्रश्न यह है कि इस पात्र को फ़िल्म में हिन्दू ही क्यों नहीं रहने दिया गया?
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दूसरा उदाहरण, फ़िल्म छपाक को लेकर है जो 2020 में रिलीज़ हुई। यह फ़िल्म भी एक सत्य घटना (दुर्घटना) पर फिल्मायी गई है जो लक्ष्मी अग्रवाल के जीवन पर आधारित है।
असल दुर्घटना में लक्ष्मी के ऊपर एसिड फेंकने वाले अपराधी का नाम नईम खान है जिसे फ़िल्म में बदल कर “राजेश”
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कर दिया गया है। फिर से प्रश्न वही है कि इस कुपात्र को फ़िल्म में स्लिम ही क्यों नहीं रहने दिया गया ?
वर्षों से,
एक सोचे समझे षड्यन्त्र के अंतर्गत, नैरेटिव का खेल इतिहास तथा फिल्मों के माध्यम से वामपंथी खेल रहे हैं।
भाईयों इनका खेल (नैरेटिव)समझो, #BoycottbollywoodCompletely
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जिद्दी कोठा गंध मचाने पर आमादा!
जजों की नियुक्ति को लेकर बनाए गए कॉलेजियम पर सुप्रीम कोठा और केंद्र सरकार के बीच तल्खी बढ़ती जा रही है।
सुप्रीम कोठा कॉलेजियम समलैंगिक वकील सौरभ कृपाल को दिल्ली हाईकोर्ट में नियुक्त करना चाहता है, #विध्वंस250123
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लेकिन केंद्र ने कृपाल के नाम पर आपत्ति दर्ज कराई है।
केंद्र ने इसके लिए खुफिया एजेंसी रॉ-आईबी की रिपोर्ट का हवाला दिया था।
इसमें समलैंगिक वकील सौरभ कृपाल के विदेशी पार्टनर को लेकर सवाल खड़ा किया गया है।
लेकिन कॉलेजियम ने इन एजेंसियों की आपत्तियों को खारिज कर दिया था।
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इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने पिछले हफ्ते पहली बार जजों के बारे में दी गईं केंद्र की आपत्तियों और रॉ-आईबी की रिपोर्ट्स को सार्वजनिक कर दिया था।
कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने मंगलवार को देश की खुफिया एजेंसी की रिपोर्ट्स को सार्वजनिक करने पर कहा- यह देश की सुरक्षा के लिए खतरा है।
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भारत के सबसे प्रसिद्ध फिल्म पटकथा लेखक सलीम खान (सलमान खान के पिता) ने एक बार एक वरिष्ठ पत्रकार से एक साक्षात्कार में कहा था: #विध्वंस250123
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क्या किसी को याद है कि मुंबई के दंगों के दौरान महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री कौन था,
जो गुजरात के दंगों से कम घातक नहीं था; 2002?
क्या किसी को मल्लियाना और मेरठ दंगों के दौरान यूपी के मुख्यमंत्री का नाम याद है
या बिहार के मुख्यमंत्री का नाम जब कांग्रेस के शासन में भागलपुर या
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जमशेदपुर दंगे हुए थे? क्या हम गुजरात के उन पूर्व मुख्यमंत्रियों के नाम सुनते हैं जिनके नेतृत्व में भारत के बाद सैकड़ों दंगे हुए?
क्या किसी को याद है कि 1984 में जब सिखों का कत्लेआम हुआ था तब दिल्ली की सुरक्षा की कमान किसके हाथ में थी??
भारत की राजधानी में?
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प्यारे देशभक्तों
एक भारतीय के रूप में बीबीसी के खिलाफ जवाब देने के लिए मुझे भी और आपको भी समय निकालनाचाहिए।
बीबीसी का हमेशा भारत विरोधी रुख रहा है। बीबीसी को 1970 के दशक में तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी ने भारत विरोधी होने के कारण बाहर का रास्ता दिखा दिया था।
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उस समय बीबीसी के खिलाफ 41 सांसदों ने हस्ताक्षर किए थे।
आज यह रूस और चीन में प्रतिबंधित है।
वहाँ उनकी कोई विश्वसनीयता नहीं है और कई मौकों पर उन्होंने अपनी झूठी खबरों के लिए माफी भी मांगी है।
मोदी 2002 में सीएम थे,
उनसे SC द्वारा नियुक्त SIT टीम द्वारा
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पूछताछ की गई थी और जांच का बड़ा हिस्सा UPA के दौरान किया गया था
SC को दंगों को प्रायोजित करने वाले राज्य का कोई सबूत नहीं मिला।
SC ने कई गवाहों से पूछताछ के बाद यह फैसला दिया और मोदी सरकार के मंत्रियों को जेल में डाल दिया गया।
उन्हें दोषी न पाकर छोड़ दिया गया।
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आज पता चला की श्याम मानव टैक्स चोर भी है,
श्याम मानव राहुल गांधी का गुरु भी है। पप्पू को भारत जोड़ो यात्रा के लिए श्याम मानव ने ही तैयार किया था।
आपको यदि याद हो तो इस श्याम मानव कि तो राजीव दिक्षित जी ने भी ठठरी बांध दी थी और अंध श्रध्दा निर्मूलन #विध्वंस230123
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समिति के सभी लोगो का पजामा टाइट कर दिया था ।
पादरी जब रुमाल से भूत भगाते है तब ये श्याम मानव और उसकी समितियां दूर कहीं कानों और गानों मे रुइ ठूँस कर सो जाती है ?
मतलब श्याम मानव कॉंग्रेस का ही एक toolkit है,
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इसका पारिवारिक इतिहास सिजरा और इसके साथ खड़े लोगों, एनजीओ का पुराना रिकॉर्ड, इसका कॉल रिकॉर्ड, संपर्क संबंध, बैंक अकाउंट, चल अचल संपत्ति के स्रोत, फंडिंग, विदेश यात्रा, नात रिश्तेदारों के रिकॉर्ड की उच्चस्तरीय जांच कराई जाए तो लगता है।
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प्यारे देशभक्तों
आइए चौपाल पर
आज एक और महत्वपूर्ण घटना आपको बताऊँ
भारतीय धरती पर एक और दीमक को मारने का एक और साहसिक निर्णय लेने के लिए भारत सरकार को बधाई दीजिए
संयुक्त राष्ट्र की एक समिति,
भारत और पाकिस्तान में संयुक्त राष्ट्र सैन्य पर्यवेक्षक समूह, #विध्वंस220123
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भारत में पिछले 74 वर्षों से काम कर रही थी, यह समूह भारत और पाकिस्तान के बीच विवाद को देखते हुए 1948 से भारत में ही बैठा था,
इन सभी वर्षों में भारत उनके आवास,
भोजन,
परिवहन और अन्य विविध खर्चों सहित उनके कार्यालय और कर्मचारियों से संबंधित खर्चों को वहन कर रहा था।
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पिछले हफ्ते इसी समिति ने घोषणा की कि जम्मू-कश्मीर विवाद भारत और पाकिस्तान के बीच का द्विपक्षीय मुद्दा नहीं है,
बल्कि चीन के साथ भी एक त्रिपक्षीय मुद्दा है, और भारत उन्हें उनके काम में रोक रहा है;
उन्होंने यह भी शिकायत की कि भारत द्वारा जो भी वित्त दिया जाता है वह
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