थ्रेड: #अंधी_पीसे_कुत्ता_खाय
भूखी जनता राजा के पास पहुंची: महाराज!!! विदेशी सब लूट के ले गए। खाने को कुछ नहीं है। कुछ कीजिये।
राजा (मंत्रियों से): सबके भोजन का इंतज़ाम करो। और सबको अन्न उगाने के लिए पर्याप्त भूमि, बीज खाद दो ताकि भविष्य में कोई भूखा न रहे।
कुछ समय बाद राज्य के सभी धनी व्यापारी राजा के पास पहुंचे: महाराज!!! हम तो बर्बाद हो गए।
राजा: क्या हुआ?
व्यापारी: महाराज!!! लोग खुद ही अन्न उगा रहे हैं और खा रहे हैं। साथ ही बुरे समय के लिए अन्न बचा भी रहे हैं। लोग आत्मनिर्भर हो रहे हैं। हमारी किसी को जरूरत ही नहीं।
फिर हमारा क्या होगा?
राजा: तो मैं क्या करूँ? जनता को अन्न उगाने से तो नहीं रोक सकता।
व्यापारी: लेकिन अन्न बचाने से तो रोक सकते हैं। ताकि हमारी भी दुकान चल सके। याद रखिये की आपका सिंहासन रथ वगैरह सब हमने ही स्पांसर किया हुआ है।
राजा: अच्छा ठीक है ठीक है। धमकियाँ देने की जरूरत नहीं।
तभी एक मंत्री खड़ा हुआ: महाराज! अगर कोई व्यक्ति अन्न उधार नहीं ले पाया तो?
व्यापारी: ऐसे लोगों के लिए हमारे पास एक स्कीम है, "भुखमरी कार्ड"।
राजा: ये क्या है?
व्यापारी: ये अन्य विकसित पूंजीवादी राज्यों में चल रही एक बहुत बढ़िया स्कीम है। हम जनता को एक भुखमरी कार्ड बेचेंगे। जिसके पास भी ये भुखमरी कार्ड होगा अगर वो भूख से मर जाता है है उसके परिवार को बदले में ढेर सारा अन्न दिया जाएगा ताकि दोबारा उनके यहाँ भूख से कोई ना मरे।
राजा ने तुरंत एक्शन लेते हुए बचे हुए अन्न पर टैक्स लगा दिया। अगर किसी के पास जरूरत से ज्यादा अन्न है तो उसे सरकारी खजाने में देना होगा। जरूरत के समय में व्यापारियों से महंगे दामों पर अन्न उधार लेना होगा।
लेकिन चूंकि लोगों में बचत की 'गन्दी' आदत पड़ी हुई थी, लोग भुखमरी कार्ड खरीदने में कोई रूचि नहीं दिखा रहे थे। ये बात व्यापारियों को हजम नहीं हुई। वो राजा के पास पहुंचे।
राजा ने कहा कि भई जब लोग भुखमरी कार्ड नहीं खरीद रहे तो हम क्या करें?
व्यापारी: आपके पास तो इतने अधिकारी हैं। इनसे कहिये भुखमरी कार्ड बेचने को। ये लोग जनता से कहेंगे तो जनता जरूर खरीदेगी।
राजा: लेकिन इससे हमें क्या फायदा?
व्यापारी: प्रत्येक भुखमरी कार्ड बेचने पर आपको कमीशन दिया जाएगा। ज्यादा से ज्यादा बेचने पर विदेश यात्रा, सुरा और सुंदरी...
राजा: बस-बस, हम समझ गए।
राजा ने राज्य के सभी विभागों और विशेषकर 'अन्न भण्डारण एवं वितरण विभाग' को आदेश दिया कि किसी भी तरह से राज्य की "कार्ड पेनेट्रेशन और कार्ड डेंसिटी" बढ़ानी है।
मंत्रियों ने अपने अधिकारियों को आदेश दे दिए कि साम दाम दंड भेद किसी भी तरह से लोगों को भुखमरी कार्ड बेचना है।
अब सब तरफ भुखमरी कार्ड का ही आतंक था। जनता को झूठे-सच्चे फायदे बता कर जबरदस्ती भुखमरी कार्ड बेचा जा रहा था।
"आज एक बोरे अन्न का भुखमरी कार्ड खरीदने पर दस साल बाद पचास बोरे अन्न मिलेगा"। विशेषकर "अन्न भण्डारण और वितरण विभाग" के कर्मचारियों को अपना काम छोड़कर केवल भुखमरी कार्ड बेचने पर ही लगा दिया।
अन्न जमा करवाने आओ तो जबरदस्ती भुखमरी कार्ड खरीदो, और अन्न लेने आओ तब तो भुखमरी कार्ड लेना ही पड़ेगा। लोगों के बचाये हुए अन्न को जब्त कर बदले में उनको भुखमरी कार्ड थमा दिया जाता। जो कर्मचारी इस गोरखधंधे का विरोध करता उसे तरह तरह से प्रताड़ित किया जाता।
रोज सुबह शाम भुखमरी कार्ड बेचने के टारगेट दिए जाते। लोगों को कार्ड खरीदने के लिए सुबह शाम फ़ोन और मैसेज किये जाते। फिर भी जो कर्मचारी टारगेट पूरा नहीं कर पाते उन्हें ऑफिस बुलाकर ज़लील किया जाता। यहाँ तक कि आत्महत्या तक करने पर मजबूर कर दिया जाता।
लेकिन कुछ लोगों को ये बात हजम नहीं हो रही थी। "भई बुरे वक़्त में मदद करना तो राजा का काम है, इसकेलिए ही तो हम राजा को टैक्स देते हैं। तो हम भुखमरी कार्ड क्यों खरीदें?"ये लोग राजा के पास पहुंचे। राजा के पास पहुंचकर देखते हैं कि वहां तो व्यापारियों की एक बहुत बड़ी पार्टी चल रही है।
भीतर जाकर देखा तो क्या राजा क्या मंत्री और क्या अधिकारी, सभी शराब के नशे में धुत्त होकर सुंदरियों के साथ नाच रहे हैं। लोग शर्म से बाहर आ गए। पार्टी के बाहर बोर्ड लगा हुआ था "भुखमरी कार्ड सेल्स फैसिलिटेशन"। चुपचाप नजदीकी दुकान से भुखमरी कार्ड खरीदने लगे।
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थ्रेड: #हंस_चला_बगुले_की_चाल
भारत एक मानसून आधारित देश हैं जहाँ साल में एक तिहाई समय मानसून का होता है। मानसून में जबरदस्त बरसात होती है। साल भर के हिस्से की बरसात चार महीनों में ही हो जाती है। बाकी समय लगभग सूखा ही रहता है।
यहाँ के मानसून को समझना विदेशियों के लिए हमेशा से एक टेढ़ी खीर ही रहा। विशेषकर अंग्रेज तो मानसून से इतने परेशान थे कि भारत की कृषि व्यवस्था की रीढ़ तोड़कर ही माने। लेकिन भारतीयों के लिए मानसून जीवनशैली का एक अभिन्न अंग था। हमारी जीवनशैली मानसून के हिसाब से ढली हुई थी।
मानसून के "चौमासे" में न तीर्थ यात्रा होती थी और ना ही शुभ कार्य जैसे विवाह इत्यादि। इन चार महीनों में हो देवताओं से सोने की परंपरा शुरू हुई थी वो आज भी जारी है। राम ने भी लंका पर चढ़ाई चार महीने के लिए रोकी थी और मानसून के दौरान माल्यवान पर्वत पर इंतज़ार किया था।
तो हुआ यूं कि पिछले महीने हमारी मोबाइल फ़ोन की एलिजिबिलिटी रिन्यू हुई। और हमारा फ़ोन भी काफी पुराना हो चुका था। छः साल से एक ही फ़ोन को चला रहे थे। हमारे फ़ोन को लोग ऐसे नजरों से देखते थे
जैसे कि हड़प्पा की खुदाई से निकला हुआ कोई नमूना देख लिया हो। लेकिन हम भी उस पुराने फ़ोन को घूंघट के ऑउटडेटेड रिवाज़ की तरह चलाये जा रहे थे। लेकिन समस्या तब हुई जब मोबाइल बैंकिंग के एप्प ने एंड्राइड 8 को ब्रिटिशराज घोषित करके आज़ादी की मांग कर दी।
अब तो हमें नया फ़ोन चाहिए ही था। अब चूंकि हम मोबाइल की दुनिया में चल रही क्रांति से नावाक़िफ़ थे इसलिए हमने यूट्यूब का रुख किया। वहां हमको अलग ही लेवल की भसड़ मिली। उनके बारे में बाद में बात करेंगे।
नोटबंदी जैसी तुग़लकी स्कीम जिससे सिर्फ एक पार्टी और चंद पूंजीपतियों को हुआ, लेकिन पूरा देश एक एक पैसे के लिए तरस गया, धंधे बर्बाद हो गए, बैंकरों ने अपनी जान खपा दी, दिन रात पत्थरबाजी झेली, रोज गालियां खाई,
साहब के कपड़ों की तरह दिन में कई कई बार बदले नियमों को झेला, नुक्सान की भरपाई जेब से करी। और जैसा कि होना था, भारी मीडिया मैनेजमेंट और ट्रोल्स की फ़ौज के बावजूद नोटबंदी फेल साबित हुई।
जब नोटबंदी फेल हुई थी तो बड़ी बेशर्मी से इन लोगों ने नोटबंदी की विफलता का ठीकरा बैंकों के माथे फोड़ दिया।
"अजी वो तो बैंक वाले ही भ्रष्ट हैं वरना जिल्लेइलाही ने तो ऐसे स्कीम चलाई थी कि देश से अपराध ख़त्म ही हो जाना था।"
थ्रेड: #ड्यू_डिलिजेंस
बैंक में ड्यू डिलिजेंस बहुत जरूरी चीज है। बिना ड्यू डिलिजेंस के हम लोन देना तो दूर की बात है कस्टमर का करंट खाता तक नहीं खोलते।
लोन देने से पहले पचास सवाल पूछते हैं। पुराना रिकॉर्ड चेक करते हैं। चेक बाउंस हिस्ट्री चेक करते हैं।
और लोन देने के बाद भी उसकी जान नहीं छोड़ते। किसी कस्टमर के खाते में अगर एक महीने किश्त ना आये तो उसकी CIBIL खराब हो जाती है। और तीन महीने किश्त न आये तो खाता ही NPA हो जाता है और फिर उसे कोई लोन नहीं देता। #12thBPS
अगर डॉक्यूमेंट देने में या और कोई कम्प्लाइंस में ढील बरते तो बैंक पीनल इंटरेस्ट चार्ज भी करते हैं। लेकिन बैंकों का ये ड्यू डिलिजेंस केवल कस्टमर के लिए ही है। पिछले 56 सालों से बैंकरों का अपना रीपेमेंट टाइम पर नहीं आ रहा। हर पांच साल में बैंकरों का वेज रिवीजन ड्यू हो जाता है।
थ्रेड: #परफॉरमेंस
मेरी पिछली कंपनी में एक GM साहब थे। बहुत हाई परफ़ॉर्मर। मतलब जिस माइन के लिए कंपनी ने पांच साल पहले बोल दिया था कि अब इसमें मिट्टी के अलावा कुछ नहीं बचा उसमें से भी पांच साल से प्रोडक्शन देकर टॉप पे रखा हुआ था। 48 की उम्र में GM बन गए थे।
ना खाने का होश, ना पहनने का। फैमिली कहाँ पड़ी है कोई आईडिया नहीं। मतलब, GM साहब को आईडिया होगा लेकिन हमको आईडिया नहीं था क्योंकि हमने तो उन्हें कभी घर जाते देखा नहीं। छुट्टी वगैरह कुछ नहीं। ना खुद लेते थे ना स्टाफ को देते थे। स्टाफ की नाक में दम किया हुआ था।
बिना गालियों के तो बात ही नहीं करते थे। खौफ का दूसरा नाम। कंजूस इतने कि क्लब नाईट में भी खाने में केवल पूरी और परवल की सब्जी बनवाते थे। मतलब पूरी तरफ से कंपनी को समर्पित।
थ्रेड: #Hierarchy
समाजशास्त्र में एक सिद्धांत है। "Power is zero sum game" का। मतलब जैसे ऊर्जा उत्पन्न या नष्ट नहीं की जा सकती केवल एक स्वरुप से दूसरे स्वरुप में परिवर्तित की जा सकती है वैसे ही शक्ति भी केवल एक व्यक्ति से दूसरी व्यक्ति को ट्रांसफर की जा सकती है।
अगर किसी व्यक्ति कि शक्ति बढ़ रही है बदले में किसी न किसी कि शक्ति कम भी हो रही है। मानव समाज विकास के प्रारंभिक चरण को "प्रिमिटिव कम्युनिज्म" कहा जाता है जहाँ सबके पास सामान शक्ति हुआ करती थी।
धीरे धीरे शक्ति का असंतुलन बढ़ता गया और सत्ता कुछ लोगों के हाथ में केंद्रित होकर रह गई। धीरे धीरे एक पूरी शक्ति की एक पूरी हायरार्की बन गई। सबसे ऊपर राजा, फिर सामंत, फिर राज कर्मचारी, फिर व्यापारी, फिर आम प्रजा।