गाँव के लोग छल-प्रपंच से दूर अत्यंत ही सरल स्वभाव के होते हैं. गाँव के लोग अत्यधिक परिश्रमी होते है जो अपने परिश्रम से धरती माता की
कोख अन्न इत्यादि पैदा कर संसार में सबका भूख मिटाते हैं। आदि-अनादि काल से ही अनेकों देवी-देवता और संत महर्षि गण गाँव में ही उत्पन्न होते रहे हैं। सरलता में ही ईश्वर का वास होता है।
#शुद्र (जो अपने कर्म व सेवाभाव से इस लोक की दरिद्रता को दूर करे)
सेवा व कर्म से ही हमारे जीवन व दूसरों के जीवन का भी उद्धार होता है और जो इस सेवा व कर्म भाव से लोक का कल्याण करे वही ईश्वर का प्रिय पात्र होता है। कर्म ही पूजा है।
#पशु (जो एक निश्चित पाश में रहकर हमारे लिए उपयोगी हो)
प्राचीन काल और आज भी हम अपने दैनिक जीवन में भी
पशुओं से उपकृत होते रहे हैं. पहले तो वाहन और कृषि कार्य में भी पशुओं का उपयोग किया जाता था. आज भी हम दूध, दही. घी विभिन्न प्रकार के मिष्ठान्न इत्यादि के लिए हम पशुओं पर ही निर्भर हैं. पशुओ के बिना हमारे जीवन का कोई औचित्य ही नहीं. वर्षों पहले जिसके पास जितना पशु होता था उसे
उतना ही समृद्ध माना जाता था. सनातन में पशुओं को प्रतीक मानकर पूजा जाता है। #नारी ( जगत -जननी, आदि-शक्ति, मातृ-शक्ति )
नारी के बिना इस चराचर जगत की कल्पना ही मिथ्या है नारी का हमारे जीवन में माँ, बहन बेटी इत्यादि के रूप में बहुत बड़ा योगदान है। नारी के ममत्व से ही हम
अपने जीवन को भली-भाँती सुगमता से व्यतीत कर पाते हैं। विशेष परिस्थिति में नारी पुरुष जैसा कठिन कार्य भी करने से पीछे नहीं हटती है। जब जब हमारे ऊपर घोर विपत्तियाँ आती है तो नारी दुर्गा, काली, लक्ष्मीबाई बनकर हमारा कल्याण करती है। इसलिए सनातन संस्कृति में
उपरोक्त सभी से हमारे जीवन का उद्धार होता है इसलिए इसे उद्धार करने का अधिकारी कहा गया है।
अब यदि कोई व्यक्ति या समुदाय विधर्मियों या पाखंडियों के कहने पर अपने ही सनातन को माध्यम बनाकर, उसे गलत बताकर अपना स्वार्थ सिद्ध करता है तो ऐसे विकृत मानसिकता वालों को भगवान् सद्बुद्धि दे, तथा सनातन पर चलने की प्ररेणा दे।
ज्ञात रहे सनातन सबके लिए कल्याणकारी था कल्याणकारी है और
सदा कल्याणकारी ही रहेगा.
सनातन सरल है इसे सरलता से समझे कुतर्क पर न चले. अपने पूर्वजों पर सदेह करना महापाप है.
इसलिए जो भी रामचरितमानस सुन्दरकाण्ड के चौपाई का अर्थ गलत समझाए तो उसे इसका अर्थ जरूर समझाए और अपने धर्म की रक्षा करे........." @Dr_Uditraj
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#"वर्ण व्यवस्था"
कोई मुझे बताये अगर सनातन वर्णव्यवस्था गलत है तो आज के तथाकथित अति बुद्धिजीवियों द्वारा बनाई गई आधुनिक व्यवस्था में प्रथम श्रेणी से लेकर चतुर्थ श्रेणी तक कर्मचारियों को क्यों विभक्त किया गया है???
अगर आप सनातनधार्मियों को शूद्रों के शोषण का जिम्मेदार मानते हैं तो
आप अपने कार्यालय के एक चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के शोषक हैं..,
क्योंकि आप उसके साथ प्रथम श्रेणी कर्मचारी अथवा बॉस के जैसा व्यवहार नहीं करते..,,
उससे टॉयलेट साफ़ करवाते हैं /खाने की मेज साफ़ करवाते हैं /झाड़ू पोंछा लगवाते हैं/ गेट खुलवाते हैं /जी हुजूरी /सलामी करवाते हैं../
ड्राइविंग करवाते हैं ! खुद अपने बराबर खड़ा होने लायक भी नहीं समझते..!
"क्या तब आपको वो उसी परमपिता की संतान और एक जैसे खून वाला मनुष्य नहीं लगता,..तब तुम्हारी मानव मानव की बराबरी वाली थ्योरी कहाँ चली जाती है ?
आपके अनुसार केवल मनुस्मृति और ब्राह्मणों ने ही शूद्रों को पददलित और
कामन सिविल कोड के विरोध में मुस्लिम पर्सनल लाॅ बोर्ड की मिटिंग हुई है।
यदि मुस्लिम विरोध पर उतरते हैं तो कोई चिन्ता नहीं करनी चाहिए।
नेहरू के जमाने से मुस्लिम की जितनी पुष्टि- तुष्टि हुई है
उतनी ही पुष्टि- तुष्टि हिन्दू को देकर बराबर कर देना होगा।
वंश वृद्धि के लिए हिन्दू को भी चार विवाह की छूट देनी होगी।
वक्फ बोर्ड को हासिल जमीन कब्जे और खुद फैसले का हक हिन्दू को दे देना होगा।
1930 से नहीं तो 1947 से हिन्दू मंदिरों से लिए गये आय को सूद के साथ लौटाना होगा।
पिछले 70 सालों से दी गई हज सब्सिडी जोड़कर उतना ही धन हिन्दू को देना होगा।
विलुप्त हो रहे अल्पसंख्यक निर्धन निरीह विद्वान ब्राह्मणों, संगीतज्ञों, पहलवानों, वैद्यों और अन्य गुणी जातियों को राजकोश और मंदिरों के आय से संरक्षित करना होगा।
ऐसा नहीं था कि कौरव के पक्ष में भीष्म द्रोण कृपाचार्य शल्य जैसे धर्मात्मा नहीं थे ..
और ऐसा भी नहीं कि पांडव पक्ष में हिडिंबा के पुत्र घटोत्कच जैसे लोग नहीं थे …
अच्छे और बुरे दोनों ओर थे ..
परन्तु पाण्डवों ने नारायण से नारायण को अपने पक्ष में माँगा और कौरव ने नारायणी सेना।
यह लड़ाई धर्म और अधर्म की ही नहीं बल्कि कौन ईश्वर की शरणागति नहीं छोड़ता है और किसे केवल संख्या बल पर भरोसा रहता है के बीच भी था ।
यदि महासमर जीतना है तो अपना ईश्वरीय पक्ष दृढ़ रखें और ईश्वर को अपनी बुद्धि में धारण करें ।
जो लोग युधिष्ठिर को जुआरी और अर्जुन को डरपोंक बताते हैं उनकी और दुर्योधन की कलियुगी बुद्धि में कोई अन्तर नहीं है । दुर्योधन, कलियुग का प्रतीक है , अधर्म का प्रतीक है । युधिष्ठिर, धर्मराज हैं और अपनी सभी वस्तुओं का श्रेय केवल नारायण को देते हैं ।
2018-19 मे राहुल गाँधी, Left Liberal और media का एक ख़ास section पूरे जोर शोर से हल्ला मचा रहे थे... कि प्रधानमंत्री मोदी HAL को बर्बाद कर देना चाहते हैं.... वो Rafale की deal HAL से छीन कर अपने दोस्त अनिल अम्बानी को दे रहे हैं..
मोदी जी खुद अम्बानी की जेब मे 58,000 करोड़ डाल रहे हैं।
राहुल गाँधी तो खुद HAL के plant मे गए थे, वहाँ के Employees से मिले.. उन्हें भड़काने का प्रयास किया.. यह narrative चलाया कि HAL के पास तो अपने Employees को salary देने के पैसे नहीं हैं।
कहते हैं कि झूठ के पाँव नहीं होते...इसलिए वह ज्यादा दूर तक नहीं चल पाता।
आज 4 साल बाद HAL की क्या हालत है.. आप जानना चाहेंगे??
HAL ने जबरदस्त growth की है... कल ही प्रधानमंत्री जी ने कर्नाटक मे Helicopter की नई factory का उद्घाटन किया है...
जब कुत्तों के सड़-सड़ कर मरने का समय जब आता है, तब उसे सूखी हड्डियां चबाने की लत लग जाती है। सूखी हड्डी चबाते समय उसे बहुत आनंद मिलता है, क्योंकि सूखी हड्डियों के टुकड़े उसके मसूड़ों और जबड़ों में चुभ जाते है और उससे खून रिसने लगता है। उसी खून का, यानी अपने ही खून को
स्वाद ले-लेकर कुत्ता चूसता है, और उसे उस हड्डी का स्वाद समझ कर खुश होता रहता है।
श्रीरामचरितमानस के पन्ने जलाने वालों....
ये तुम्हारे लिए ही कहा है। और सुनो...
तुलसीदास जी ने भी तुम जैसे लोगों को ही ‘गंवार’ कहा है। तुम गंवार ही हो। इसमें कोई शक नहीं है।
और तुम सचमुच केवल ताड़ना... और वो शिक्षा वाली ताड़ना नहीं, पिटाई वाली ताड़ना के ही अधिकारी हो। तुम्हें तभी अक्ल आएगी, जब तुम्हें ढोल की तरह बजाया जाए। आत्महंता कहीं के।
रामचरितमानस में जो भी कहा गया है, वह तुम्हारे ही हित में है। लेकिन तुम उस योग्य हो ही नहीं। कायर हो।