संग्रहालय के अंदर जाने पर गुप्तकालीन #अष्टकोणीय स्तम्भ रखा है, जो नरेसर और अमरोल से मिला है, परंतु दर्शको मे भ्रमण के
दौरान भ्रम पैदा करने हेतु शिवलिंग लिखा हुआ है| अब #प्रश्न बनता है कि ASIभारतीय पुरातत्व विभाग को कैसे पता चला कि यह शिव जी का लिंग ही है? क्या उस आकृति पर लिखित कोई अभिलेख मिला या भ्रमवंश के लोग पूर्व से ही उस लिंग से परिचित थे? #चित्र संख्या👉2
थोडा और आगे बढेंगे, तो गुप्तकाल
के #बोधिसत्व की आकृति स्तम्भ पर बनी रखी है, जो नरेसर से मिला है| यहां भी दर्शको मे भ्रम पैदा करने हेतु, उसपर #महापशुपति_शिवलिंग लिखा है| जबकि उस आकृति मे बने व्यक्ति जिस प्रकार से बैठा है, बैठने का वह तरीका भगवान बुद्ध का #ध्यान_आसन है| #देखे चित्र संख्या👉3
संग्रहालय के बगल मे
जहांगीर किला की ओर चलते है, वहां किला की दीवारो पर #भगवान_बुद्ध और #बोधिवृक्ष के दोनो ओर हाथी की कलाकृति बनी है| #देखे चित्र संख्या👉4
किले के प्रवेशद्वार पर स्तम्भ है, जिस स्तम्भ पर नक्कासी बनी है, उस नक्कासी पर ध्यान दे, मछलीनुमा आकृति अपने मुंह मे #त्रिरत्न पकडे है| #चित्र
संख्या👉5
ASIभारतीय पुरातत्व विभाग मे तथाकथित भ्रमवंश के लोग इन सब बातो पर चुप्पी साध लेता है| आखिर भ्रमवंशियो का छुपा एजेंडा जो है कि लोगो को कट्टर हिंदुत्व के ढांचे मे ढालकर, उसपर शासन और शोषण-दोहन दोनो करना है|
- Rajeev Patel जी के फेसबुक वॉल से साभार